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बेख़मीरी रोटी

ता’अर्रुफ़:

“बेख़मीरी रोटी” बेख़मीरी या'नी खट्टा करने वाले पदार्थ के बिग़ैर रोटी। यह रोटी पतली होती है क्यूँकि उसे फूलने के लिए उसमें ख़मीर नहीं होता है।

  • जब ख़ुदा ने इस्राईलियेां को मिस्र की ग़ुलामी से छुड़ाया था तब कहा था कि आटे को ख़मीर होने की 'अहद किए बिना वह फ़ौरन वहाँ से निकलें। लिहाज़ा उन्होंने खाने में बेख़मीरी रोटी खाई थी। तब से उनके सालाना 'ईद में बेख़मीरी रोटी का इस्ते'माल किया जाता था कि उन्हें उस वक़्त को याद करवाए।
  • कभी-कभी ख़मीर गुनाह की मु'आफ़ी भी कहा गया है,लिहाज़ा बेख़मीरी रोटी लोगों की ज़िन्दगी से गुनाह से छुटकारे को बताती है , या'नी ख़ुदा को 'इज़्ज़त देनेवाली ज़िन्दगी ।

तर्जुमा की सलाह:

  • इस लफ़्ज़ के तर्जुमा में कई शक्लें हो सकती हैं, “बिना ख़मीर की रोटी” या “बिना फूली रोटी."
  • वाज़ेह करें कि इसका तर्जुमा आपके ज़रिए' “ख़मीर” के तर्जुमा से अलग हो।
  • कुछ जुमलों में “बेख़मीरी रोटी” का तर्जुमा “बेख़मीरी रोटी की 'ईद” से है और इसका तर्जुमा वैसे ही किया जाए।

(यह भी देखें: रोटी, मिस्र, जशन, ‘ईद, ख़ादिम, ख़ादिम, ख़मीर)

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

शब्दकोश:

  • Strong's: H4682, G106