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रज़ा की क़ुर्बानी, रज़ा की क़ुर्बानियाँ

ता’अर्रुफ़:

रज़ा की क़ुर्बानी ख़ुदा को चढ़ायी जानेवाली क़ुर्बानी थी जिसकी ज़रूरत मूसा की शरी’अत में नही थी। यह इन्सान की अपनी मर्ज़ी की नज़्र थी।

  • अगर रज़ा की क़ुर्बानी में जानवर था तो उस जानवर में कुछ ‘ऐब क़ुबूल थे क्योंकि वह इन्सान की अपनी मर्ज़ी से थी।
  • इस्राईली क़ुर्बानी के जानवर का गोश्त खाते थे जो ‘ईद का हिस्सा था।
  • जब रज़ा की क़ुर्बानी पेश की जा सकती,या इस्राईल की ख़ुशी की वजह थी क्यूँकि इसका मतलब था कि फसल अच्छी हुई है और उनके पास बहुत खाने का सामान है
  • ‘अज़्रा की किताब में एक मुख़तलिफ़ रज़ा की क़ुर्बानी है जो हैकल के दुबारा ता’मीर के लिए चढ़ाई गई थी। इस चढ़ावे में सोना-चाँदी और सोने चाँदी के बर्तन थे।

(यह भी देखें: सोख़्तनी क़ुर्बानी, ‘अज़्रा, दा’वत, अनाज का हदिया, जुर्म का हदिया, शरी’अत, गुनाह का हदिया)

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

शब्दकोश:

  • Strong's: H5068, H5071