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सांस, सांस फूंकना, सांस लेता है, सांस फूँक दिया, सांस लेना

ता'अर्रुफ़:

किताब-ए-मुक़द्दस“ सांस फूंकना” और “सांस” हमेशा 'अलामती शक्ल में ज़िन्दगी देना या “ज़िन्दा होने के बारे में काम में लिए गए है।

  • किताब-ए-मुक़द्दस में इज़हार है कि ख़ुदा ने आदम में ज़िन्दगी की सांस फूंका। उसी लम्हे में आदम ज़िन्दा जान्दार हो गया।
  • जब 'ईसा ने शागिर्दों पर फूंका और उनसे कहा “रूह में” तब वह हक़ीक़त में उन पर सांस फूंक रहा था जो उन पर पाक रूह के तशरीह का हर एक था।
  • कभी-कभी “सांस लेना” या “सांस छोड़ना” का मतलब तलाफ़्फ़ुज़ करना से भी है।
  • "ख़ुदावन्द का सांस” या “यहोवा की सांस ” इस जुमले का 'अलामती तर्जुमा हमेशा बाग़ी और बदमा'श क़ौमों पर ख़ुदा का गज़ब डाला जाता है। इससे उसका ताक़तवर ज़ाहिर होता है।

तर्जुमा की सलाह:

  • “आख़िर सांस लेना” या मरना। इसका तर्जुमा हो सकता है, “उसने अपनी आख़िर सांस ली” या “उसकी सांस ख़त्म हो गई और वह मर गया “ या “उसने आख़िर बार हवा में सांस ली”।
  • किताब-ए-मुक़द्दस को “ख़ुदा की सांस से पाक हैं” इसका मतलब है कि ख़ुदा ने कलाम कहा या भेजा किए तब इंसानी लिखने वालों ने लिखा। अगर मुमकिन हो तो बहुत अच्छा यही होगा कि “ख़ुदावन्द की तलाश” का तर्जुमा जैसे का तैसे ही रहने दिया जाए क्योंकि इसका तर्जुमा करना सख्त होगा।
  • अगर“ख़ुदा की सांस से रचा गया” को जैसे का तैसे रखना क़बूल न हो तो इसको और तर्जुमें हो सकते हैं, “ख़ुदावन्द ” या “खुद की तरफ़ से लिखा ” या “ख़ुदा की तरफ़ से बोला गया” यह भी कहा जा सकता है कि “ख़ुदा ने कलामे मुक़द्दस के कलामों को सांस के ज़रिए ज़ाहिर किया”।
  • “सांस डालना” या “जान फूंकना” या “ज़िन्दगी देना” का तर्जुमा हो सकता है, “सांस लेने के लायक़ बनाना” या “दुबारह ज़िन्दा करना” या “जीने और सांस लेने के लायक़ करना” या “ज़िन्दगी देना”
  • अगर मुमकिन हो तो “ख़ुदावन्द कि सांस ” को मक़सदी ज़बान में सांस लफ्ज़ ही से तर्जुमा करें। अगर खुदा का सांस माना नहीं जाता है तो इसका तर्जुमा “ख़ुदा की ताक़त” या “ख़ुदा का तलाफ़्फ़ुज़ ” करें।
  • “सांस भी लेने (देना)” का तर्जुमा “कई इत्मिनान से सांस लेने के लिए आराम करना” या “'आम तौर से सांस लेने के लिए दौड़ना बंद करो”।
  • “सिर्फ़ एक सांस है” या “बहुत कम वक़्त का है”।
  • इसी तरह , “इंसान सांस भर का” होता है या “इंसान बहुत कम वक़्त ज़िन्दा रहता है” या “इंसानों की ज़िन्दगी बहुत कम है”। या “ख़ुदावन्द की बराबरी में इंसान की ज़िन्दगी इतनी छोटी है जितनी कि एक सांस होती है”।

(यह भी देखें: आदम, पौलुस , ख़ुदावन्द का कलम , ज़िन्दगी )

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

शब्दकोश:

  • Strong's: H3307, H5301, H5396, H5397, H7307, H7309, G1709, G1720, G4157