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ज़िन्दगी, ज़िन्दा रहना, रहा, ज़िन्दगी,जानदार, ज़िन्दा

ता’अर्रुफ़:

इन सब अलफ़ाज़ का मतलब है ज़िन्दा रहना, मरना नहीं इनका इस्ते’माल ‘अलामती तौर पर रूह में ज़िन्दा रहने के लिए भी किया जाता है। मुन्दर्ज़ा ज़ेल से ज़िक्र किया जाता है कि, “जिस्मानी ज़िन्दगी” और “रूहानी ज़िन्दगी” का क्या मतलब है

1. जिस्मानी ज़िन्दगी

  • जिस्मानी ज़िन्दगी जिस्म में रूह की हाज़िरी है। ख़ुदा ने आदम के जिस्म में ज़िन्दगी की सांस दी, और वह एक ज़िंदा हो गया।
  • एक "ज़िन्दगी" को "एक ज़िन्दगी बचाया गया" के बारे में भी इस्ते’माल किया जा सकता है।
  • कभी-कभी लफ़्ज़ "ज़िन्दगी" में रहने के तजरुबे के बारे में बताता है, "उसकी ज़िन्दगी ख़ुशहाल थी"
  • यह किसी इन्सान की ‘उम्र का भी ज़िक्र कर सकता है, जैसा कि इज़हार में "उसकी ज़िन्दगी की आख़िर" होता है।
  • "ज़िन्दा रहना" लफ़्ज़ का मतलब जिस्मानी तौर से जिंदा होने का ज़िक्र कर सकते हैं, जैसा कि "मेरी मां अभी भी ज़िन्दा है।" यह रहने के बारे में ज़िक्र कर सकता है, "वे शहर में रह रहे थे।"
  • किताब-ए-मुक़द्दस में, "ज़िन्दगी" का तसव्वुर अक्सर "मौत" के तसव्वुर से अलग है।

2. रूहानी ज़िन्दगी

  • एक इन्सान की रूहानी ज़िन्दगी है, जब वह ख़ुदा के साथ ‘ईसा पर ईमान करता है, तो उस इन्सान को पाक रूह के साथ रूहानी ज़िन्दगी में बदल जाता है।
  • इस ज़िन्दगी को "अबदी ज़िन्दगी" कहा जाता है, यह इशारा करने के लिए कि इसका आख़िर नहीं है।
  • रूहानी ज़िन्दगी के मुख़तलिफ़ रूहानी मौत है, जिसका मतलब है कि ख़ुदा से अलग होने और अबदी सज़ा का सामना करना।

तर्जुमें की सलाह:

  • मज़मून पर मुनहस्सिर “ज़िन्दगी” का तर्जुमा “वजूद” या “इन्सान” या “जान” या “होना” या “तजरुबा” हो सकता है।
  • “रहना” लफ़्ज़ का तर्जुमा “रहना” या “बसना” या “वजूद में रहना” किया जा सकता है।
  • इज़हार “ज़िन्दगी की आख़िर” का तर्जुमा “ज़िन्दगी की सांस रूक जाए” हो सकता है।
  • इज़हार “जान बचा दी” का तर्जुमा “जीने दिया” या “क़त्ल नहीं की” किया जा सकता है।
  • इज़हार “जान ख़तरे में डाली” का तर्जुमा हो सकता है, “जान मुसीबत में डाली” या “ऐसा काम किया जो जान लेवा हो सकता था”।
  • जब किताब-ए-मुक़द्दस के मज़मून में रूहानी तौर से ज़िन्दा होने के बारे में बात की जाती है, “ मज़मून पर मुनहस्सिर "ज़िन्दगी" का तर्जुमा "रूहानी ज़िन्दगी" या "अबदी ज़िन्दगी" के तौर पर किया जा सकता है।
  • "रूहानी ज़िन्दगी" का तसव्वुर का भी तर्जुमा किया जा सकता है क्योंकि "ख़ुदा हमें अपनी रूहों में ज़िन्दा कर रहा है" या "ख़ुदा की रूह से नई ज़िन्दगी" या "रूह में ज़िन्दा किया जाना।"
  • मज़मून पर मुनहस्सिर, इज़हार "ज़िन्दगी देना" का तर्जुमा "ज़िन्दा रहने के लिए" या "अबदी ज़िन्दगी दे" या "हमेशा के लिए जीना" के तौर पर भी किया जा सकता है।

(यह भी देखें: मौत, अबदी)

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

किताब-ए-मुक़द्दस की कहानियों से मिसालें:

  • 01:10 फिर ख़ुदा ने मिट्टी ली, और उससे एक आदमी बनाया, और उसमें ज़िन्दगी की साँस फूँक दी
  • 03:01 एक लंबे वक़्त के बा’द, बहुत से लोग दुनिया में रह रहे थे।
  • 08:13 जब यूसुफ़ के भाई अपने बाप या’क़ूब के पास पहुँचे और उससे कहा, यूसुफ़ अब तक ज़िन्दा है, यह सुन वह बहुत ख़ुश हुआ।
  • 17:09 हालांकि, अपनी ज़िन्दगी के आख़िरी वक़्त में उसने ख़ुदा के ख़िलाफ़ ख़ौफ़नाक गुनाह किया।
  • 27:01 एक दिन, यहूदी मज़हब में माहिर एक मुन्तज़िम ‘ईसा के पास उसकी आज़माइश लेने के लिए आया, और कहने लगा, “ऐ उस्ताद अबदी ज़िन्दगी का वारिस होने के लिए मैं क्या करूं?”
  • 35:05 ‘ईसा ने जवाब दिया, "मैं क़यामत और ज़िन्दगी हूँ।"
  • 44:05 “तुम वही हो जिसने रोमी हुकूमत से कहा कि ‘ईसा को मार दिया जाएँ। तुम ने ज़िन्दगी के मुसन्निफ़ को मार डाला, लेकिन ख़ुदा ने उसे मरे हुओ में से जिलाया।”

शब्दकोश:

  • Strong's: H1934, H2416, H2417, H2421, H2425, H5315, G198, G222, G227, G806, G590