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मरना, मरता, मर गया, मरे हुए, जान लेवा, मुर्दा, मौत, मौतें

सच्चाई:

यह लफ़्ज़ जिस्मानी और रूहानी मौत दोनों का हवाला देता है| जिस्मानी तौर पर, इसका हवाला देता है जब किसी शख़्स का जिस्म का जीना ख़त्म जाता है| रूहानी तौर पर, यह गुनाहगारों को उनका गुनाहों की वजह से मुक़द्दस ख़ुदा से अलग हो जाना.

1. जिस्मानी मौत

  • “मरना” मतलब जीना छोड़ देना| मौत जिस्मानी ज़िन्दगी की आख़िर है|
  • किसी शख़्स की रूह उसका जिस्म छोड़ देती है, जब वह मरता है|
  • जब आदम और हव्वा ने गुनाह किया, तब जिस्मानी मौत दुनिया में आई|
  • इज़हार “सज़ा-ए-मौत” से मतबल है किसी को क़त्ल करना या किसी को मार डालने का हुक्म देना, ख़ास तौर से किसी बादशाह या कोई और हाकिम किसी को मारने का हुक्म देता है|

2 रूहानी मौत

  • रूहानी मौत ख़ुदा की तरफ़ से एक शख़्स की जुदाई है|
  • आदम रूहानी मौत मरा, जब उसने ख़ुदा की नाफ़रमानी की| उसका ख़ुदा के साथ रिश्ता टूट गया| वह शर्मिन्दा हो गया और ख़ुदा से छिपने की कोशिश की|
  • आदम की हर नसल एक गुनाहगार है, और रूहानी तौर पर मुर्दा है| जब हम ‘ईसा मसीह पर ईमान रखते हैं तो ख़ुदा हमें रूहानी तौर पर दुबारा ज़िन्दा करता है|

तर्जुमे की सलाह

  • इस लफ़्ज़ का तर्जुमा करने के लिए, रोज़ाना इस्ते’माल करना बेहतर है, क़ुदरती लफ़्ज़ या इज़हार मक़सदी ज़बान जो मौत की तरफ़ इशारा करती है|
  • कुछ ज़बानों में, “मरने” के लिए “ज़िन्दा नहीं” का इस्ते’माल किया जा सकता है| लफ़्ज़ “मरा” को “ज़िन्दा नहीं” या “कोई ज़िन्दगी नहीं है” या “नहीं रहना” के तौर पर तर्जुमा किया जा सकता है|

बहुत सी ज़बानों में मौत की तफ़सील के लिए ‘अलामती इज़हार का इस्ते’माल किया जाता है, मिसाल के तौर पर अंग्रेज़ी में “गुज़र जाना” ताहम, किताब-ए-मुक़द्दस में यह सबसे बेहतर है कि रोज़ाना की ज़बान में मौत के लिए सीधे लफ़्ज़ का इस्ते’माल करें| किताब-ए-मुक़द्दस में जिस्मानी ज़िन्दगी और मौत अमूमन रूहानी ज़िन्दगी और मौत के मुक़ाबिल में होती हैं| तर्जुमे में जिस्मानी मौत और रूहानी मौत दोनों के लिए एक ही लफ़्ज़ या जुमले का इस्ते’माल ज़रूरी है|

  • कुछ ज़बानों में “रूहानी मौत” कहना ज़्यादा साफ़ होता है जब मजमूनों में उस मतलब की ज़रूरत हो। कुछ मुतरज्जिम भी महसूस कर सकते हैं कि मज़मून में “जिस्मानी मौत” कहना अच्छा है, जहाँ इसका इस्ते’माल रूहानी मौत के मुक़ाबिल किया जा रहा है|
  • इज़हार “मुर्दा” एक नामज़द सिफ़त है जो मरने वाले लोगों के हवाले से है| कुछ ज़बानों में इसका तर्जमा इस तरह होगा “मुर्दा लोग” या “जो लोग मर गए हैं” (देखें: नामज़द सिफ़त
  • अलफ़ाज़ “सज़ा-ए-मौत” को “मारना” या “क़त्ल करना” के तौर पर भी किया जा सकता है|

(यह भी देखें: यक़ीन, ईमान, ज़िन्दगी, रूह)

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

किताब-ए-मुक़द्दस कीं कहानियों से मिसालें:

  • 01:11 ख़ुदा ने आदम से कहा कि वह भले और बुरे के ‘इल्म के पेड़ के फल को छोड़कर बाग़ के किसी भी पेड़ से खा सकता है। अगर वह इस पेड़ के फल को खाएगा, तो वह मर जाएगा|
  • __02:11__तब तुम मर जाओगे और जिस्म वापस मिट्टी में मिल जाएगा|
  • 07:10 इस्हाक़ की मौत हो गयी और उसके बेटे ‘ऐसौ और या’कूब ने उसको मिट्टी दी।
  • 37:05 ‘ईसा ने जवाब दिया, "मैं क़यामत और ज़िन्दगी हूँ।" जो कोई मुझ पर ईमान करता है वह अगर मर भी जाए तोभी जीता रहेगा। और हर कोई जो मुझ पर ईमान करता है वह कभी न मरेंगा।”
  • 40:08 अपनी __ मौत__ के जरिए’ ‘ईसा ने लोगों के लिये ख़ुदा के पास आने का रास्ता खोल दिया।
  • 43:07 "अगरचे ‘ईसा मरा, लेकिन ख़ुदा ने उसे मुर्दों में से जी उठाया|
  • 48:02 क्यूँकि वह गुनाहगार थे, इसलिए ज़मीन पर हर एक बीमार हुआ और__मरा__|
  • 50:17 वह (‘ईसा) हर आँसू को पोछेगा और यहाँ तक कि और कोई परेशानी, दुःख, रोना, बुराई, दर्द, या __मौत__नहीं होगी|

शब्दकोश:

  • Strong's: H6, H1478, H1826, H1934, H2491, H4191, H4192, H4193, H4194, H4463, H5038, H5315, H6297, H6757, H7496, H7523, H8045, H8546, H8552, G336, G337, G520, G581, G599, G615, G622, G684, G1634, G1935, G2079, G2253, G2286, G2287, G2288, G2289, G2348, G2837, G2966, G3498, G3499, G3500, G4430, G4880, G4881, G5053, G5054