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आवाज़ , आवाजें
ता’अर्रुफ़:
“आवाज़ ” का इस्ते’माल हमेशा बोलने या ख़्यालों का तबादला करने के लिए किया गया है।
- ख़ुदा अपने आवाज़ को कहता है अगर चे उसकी आवाज़ इन्सान जैसी नहीं है।
- आवाज़ पूरे इन्सान का बयान देती है जैसे “जंगल में एक पुकारने वाले की आवाज़ सुनाई देती है, ख़ुदावन्द की राह तैयार करो।” इसका तर्जुमा हो सकता है, “जंगल में एक इन्सान की पुकार सुनी जाती है”। (देखें:हम आहंगी
- “किसी की आवाज़ सुनना” या’नी “किसी को बोलते सुनना”।
कभी कभी "आवाज़ " का इस्तेमाल ऐसी चीजों के लिए भी किया गया है जो बोल नहीं सकती, जैसे दाऊद लिखता है कि ख़ुदा की हैरत अंगेज़ तख़लीक़ उसके कामों का बयान करती है, या’नी उनकी आवाज़ उनकी अज़मत का ‘एलान करती है। इसका तर्जुमा हो सकता हैः "उनकी बड़ाई ख़ुदा के जलाल का बयान कर रही है।"
(यह भी देखें: बुलाहट, ‘एलान करना, जलवा )
किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:
शब्दकोश:
- Strong's: H6963, H7032, H7445, H8193, G2906, G5456, G5586