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जाल , फंदे, फंसाना, फंसाना, फँसना, फंसाना, जाल, जालें, फंस गए

ता'अर्रुफ़:

"जाल" और "फंदा" यह ऐसी चीजें होती थे जिनसे जानवर परिन्दे पकड़े जाते थे। जाल में फँसाने के लिए "फंसे" या "जाल" करना" है, और "जाल" या "फंसाने" के लिए एक जाल से पकड़ना है । कलाम में इन लफ़्ज़ों को जुमले की शक्ल में भी काम में लिया गया है कि गुनाह और आज़माइश छिपे हुए फंदे हैं। जिनमें फंसकर इन्सान नुक़सान उठाता है।

  • “जाल” रस्सी या तार का एक कुंडलाकार फंदा होता है जिसमें जानवर का पैर पड़ जाए तो वह उसमें उलझ जाता है।
  • “जाल ” धातु या लकड़ी का बना होता है जिसके दो हिस्से होते हैं जो जानवर का पैर पड़ने पर बन्द हो जाते हैं और जानवर भाग नहीं पाता है। कभी-कभी ज़मीन में खोदे हुए गड्ढा में जाल होता है जिसमें जानवर गिर जाता है।
  • जाल या फंदा छिपाकर रखा जाता है कि जानवर उसे देख न पाए।
  • “जाल बिछाना” या'नी किसी को फंसाने के लिए जाल लगाना।
  • “जाल में फंसना” या'नी किसी गहरे गड्ढे में गिरना जो पहले से जानवर को फंसाने के लिए खोदा गया है।
  • एक शख्स जो गुनाह करना शुरू' कर देता है और रोक नहीं सकता, उसे "गुनाह से फंसे" की शक्ल में बयान किया जा सकता है, जिस तरह एक जानवर को फँसाने के लिए किया जा सकता है और बच नहीं सकता।
  • जिस तरह कि जानवर फंदे में फंसकर मिसीबत में पड़ जाता है और नुक़सान उठाता है उसी तरह इन्सान गुनाह में फंस कर नुक़सान उठाता है और उसे आज़ादी की ज़रूरत होती है।

(यह भी देखें: आज़ाद , , शिकार, शैतान, आज़माइश में डालना)

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

शब्दकोश:

  • Strong's: H2256, H3353, H3369, H3920, H3921, H4170, H4204, H4434, H4685, H4686, H4889, H5367, H5914, H6315, H6341, H6351, H6354, H6679, H6983, H7639, H7845, H8610, G64, G1029, G2339, G2340, G3802, G3803, G3985, G4625