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क़ुरआ’, क़ुर’आ डालकर

ता’अर्रुफ़:

“क़ुर’आ” पर्चियों पर नाम लिखे जाते हैं और फ़ैसले लेने के लिए उनमें से एक उठाई जाती है। “क़ुर’आ डालना” मतलब निशान लगाकर पर्चियों को ज़मीन पर या और जगह में डालकर एक उठाना।

  • क़ुर’आ अक्सर निशान लगाये पत्थर या मिट्टी के बर्तनों के टूटे हुए टुकड़े होते थे।
  • कुछ रवायतों में क़ुर’आ डालने में तिनकों का गट्ठा काम में लिया जाता था। एक इन्सान उन तिनकों को पकड़ कर रखता था कि कोई देख न पाए कि वे कितने लम्बे हैं। हर एक इन्सान एक तिनका खींचता था और जिसके पास सबसे लम्बा तिनका आता था (या सबसे छोटा) वही चुना हुआ माना जाता था।
  • चिट्ठियां डालने की मश्क़ इस्राईली ख़ुदा की मर्ज़ी जानने के लिए करते थे।
  • जैसा ज़करियाह और इलीशिबा के वक़्त में किया गया था कि हैकल में कौन ख़िदमत करेगा।
  • ‘ईसा के सलीब चढ़ाने वाले सिपाईयों ने भी चिट्ठियाँ डाली थी कि ‘ईसा का चोग़ा किसे मिलना चाहिए।
  • “क़ुर’आ डालना” का तर्जुमा, “पर्चियां डालना” या “पर्ची खींचना” या पर्ची गिराना” भी हो सकता है। “डालना” का तर्जुमा ऐसा ज़ाहिर न करे कि चिट्ठियां बहुत दूर तक फेंकी जाती थी।
  • मज़मून पर मुनहस्सिर “क़ुर’आ” का तर्जुमा “निशान लगाए पत्थर” या “मिट्टी के बर्तनों के टुकड़ों” या “लकड़ियां” या “तिनके” भी किए जा सकते हैं।
  • अगर “क़ुर’आ” के ज़रिए’ फ़ैसला लिया गया तो उसका तर्जुमा “क़ुर’आ डालकर” किया जा सकता है।

(यह भी देखें: इलीशिबा, काहिन, ज़करियाह (पुराना ‘अहदनामा), ज़करियाह (नया ‘अहदनामा))

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

शब्दकोश:

  • Strong's: H1486, H2256, H5307, G2624, G2819, G2975, G3091