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राख, राख, धूल
सच्चाई:
“राख” लफ़्ज़ उस काले पावडर के बारे में काम में लिया जाता है जो लकड़ी के जलने के बा'द रह जाता है। कभी-कभी इस लफ़्ज़ का इस्ते'माल किसी बेकार और निकम्मी चीज़ के लिए भी किया जाता है।
- कलाम में कभी-कभी राख के लिए "धूल" लफ़्ज़ का इस्ते'माल भी किया गया है। इसके बारे में सूखी ज़मीन की मिट्टी से भी है।
- “राख का ढेर” या'नी बहुत राख का ढेर पड़ा है।
- पुराने ज़माने में राख में बैठना दुःख और नौहा का इशारा देता था।
- नौहा के वक़्त टाट का बना कड़ा चुभनेवाला लिबास पहन कर राख में बैठना या सिर में राख डालना होता था।
- सिर में राख डालना बे'इज़्ज़त और शर्मिंदगी की भी पहचान थी ।
- जब कोई किसी निकम्मी चीज़ के लिए कोशिश करता है जो कहा जाता है कि वह “राख खा रहा है”।
- “राख” लफ़्ज़ का तर्जुमा करते वक़्त मक़सदी ज़बान में ऐसा लफ़्ज़ काम में लें जो जली लकड़ी के जल जाने के बा'द काले चूर्ण को बयान करता है।
- तवज्जुह दें कि “राख का दरख़्त(राख का दरख़्त)” एक मुकम्मल अलग लफ़्ज़ है।
किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:
शब्दकोश:
- Strong's: H80, H665, H666, H766, H1854, H6083, H6368, H7834, G2868, G4700, G5077, G5522