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चार अहम ख़सूसियात है

एक अच्छे तर्जुमे की चार अहम ख़सूसियात होती है। वो होनी चाहिए:

हम इन चार ख़सूसियात की हर ख़सूसियात को चार पाई की एक-एक टाँग की तरह सोच सकते है। अगर एक भी ग़ायब हो तो चार पाई खड़ी नहीं रह सकती। इसी तरह, इन ख़सूसियात में से हर एक का तर्जुमे में मौजूद रहना ज़रूरी है ताकि ये गिर्जा से वफादार और उसके लिए मुफीद रहे।

वाज़ेह

फहम के सबसे ज़्यादा मेयार को हासिल करने के लिए अपनी ज़ुबान का जो भी साख़्त ज़रूरी हो उसका इस्तेमाल करें। इस में शामिल है आसान बनाए गए तसव्वुरात, मतन की शक्ल को दोबारा बदलना, और ज़रूरत के मुताबिक जितने ज़्यादा या कम इसतेलाह का इस्तेमाल करना ताकि असल मानी को जितना मुमकिन हो उतनी ठीक तरह से बता सकें। वाज़ेह तर्जुमह बनाना सीखने के लिएदेखिएवाज़ेह तर्जुमह बनाएँ

क़ुदरती

ऐसी ज़ुबान की शक्लें इस्तेमाल करें जो मोअसर हो और उस तरह की अक्कासी करते हैकिआपकीज़ुबान के मुताल्लिक सयाख़ व सबाख़ में इस्तेमाल की जाती है। कुदरती तर्जुमह बनाना सीखने के लिएदेखिए क़ुदरती तर्जुमह बनाएँ

दुरूस्त

दुरुस्त, शक्ल को बीगाड़े, बदले बग़ैर, या असल मतन के मानी में ज़्यादा शामिल किए बिना तर्जुमह करें, जैसे इसे असल सामाइन समझ सकते थे। मतन के मानी को ज़हन में रख कर तर्जुमह करें और दुरुस्त मालूमात, नामालूम तसव्वुरात, और तख़रीर के एहदाद व शुमार को सही तौर पर बताएं। दुरुस्त तर्जुमह बनाना सीखने के लिएदेखिए दुरुस्त तर्जुमह बनाएँ

गिर्जा से मंज़ूर शुदाह

अगर एक तर्जुमह वाज़ेह, क़ुदरती और दुरुस्त हो, मगर गिर्जा अपनी रज़ा मंदी ना देता है या उसे मंज़ूर नहीे करता हो, तो फिर ये गिर्जा की अफज़ोनी का आख़री मख़सद हासिल करने में नाकाम रहा है। ये ज़रूरी है कि गिर्जा तर्जुमह करने, जांच करने और तर्जुमे की तख़सीम करने में शामिल हो। गिर्जा से मंज़ूर शुदाह तर्जुमह बनाना सीखने के लिएदेखिए दुरुस्त तर्जुमह बनाएँ

छह और खुसूसियात

वाज़ेह, क़ुदरती और दुरुस्त और गिर्जा से मंज़ूर शुदाह होने के अलावा, एक अज़ीम तर्जुमे को होना चाहिए: