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मय, दाखरस, मशक़, मशक़ो, नई दाखरस

ता’अर्रुफ़:

किताब-ए-मुक़द्दस में, "मय" लफ़्ज़ एक तरह का शीरा पीने का जो एक फल के रस से बनता है जिसे अंगूर कहते हैं। मय मशक़ों में रखा जाता था। मशक़ जानवरों की खाल से बनी थैली होती थी।

  • “नई मय” या’नी अंगूर का ताजा रस जिसका शीरा नहीं किया गया है। कभी-कभी मय शीरा के बिना मय को भी कहते थे।
  • मय निकालने के लिए अंगूरों को हौज़ में कुचला जाता है ताकि उनका रस निकले। रस का शीरा किया जाता था कि उसका मय बने।
  • किताब-ए-मुक़द्दस के ज़माने में मय खाने के साथ एक आम तौर से पीने का रस था। उसमें नशे की मिक़दार उतनी नहीं होती थी जितनी आज की मय में होती है।
  • खाने के वक़्त पेश की गई शराब में अक्सर पानी मिलाया गया होता था।
  • पुरानी मशक़ कड़क होकर चिटक जाती थी जिसकी दरारों में से मय बह जाता था। नई मशक़ें नाज़ुक एवं लचीली होती थी या;नी वे फटती नहीं थी और मय को महफ़ूज़ रखने के लिए सही थी।
  • अगर आपके मज़हब में मय नहीं जानी जाती है तो इसका तर्जुमा “शीरा किया हुआ अंगूर का रस” कह सकते हैं या “अंगूर के फलों से शीरा किया हुआ रस” या “शीरा किया हुआ फलों का रस” (देखें:अनजान लफ़्ज़ों का तर्जुमा कैसे करें )
  • “मशक़” का तर्जुमा “शराब की थैली” या “जानवर की खाल शराब का थैला” या “जानवर की खाल शराब का थैला”।

(यह भी देखें: अंगूर, मय, मय की बारी, मय के हौज़ )

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

बर्बाद करना

शब्दकोश:

  • Strong's: H2561, H2562, H3196, H4469, H4997, H5435, H6025, H6071, H8492, G1098, G3631, G3820, G3943