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फ़ाहेशा , रण्डी , ज़ानी , क़स्बी , छिनाल , जिना करने वाली
ता’अर्रुफ़:
“फ़ाहेशा” या’नी पैसों के लिए या सालाना रस्मों के लिए ज़िनाकारी करना। कस्बियाँ अक्सर ‘औरतें होती थी लेकिन आदमी भी होते थे।
- कलाम में “फ़ाहेशा” लफ़्ज़ तमसीली शक्ल में बुत की इबादत या जादू टोना करने वाले के लिए काम में लिया जाता था।
- “ज़िना करना” या’नी फ़ाहेशा के जैसा बुरा काम करना। कलाम में यह जुमला बुत की इबादत के लिए भी काम में लिया गया है।
- “जिना होना” या’नी बुरे काम करना या तमसीली शकल में -ग़ैर मा’बूदों की इबादत करना।
- पुराने ज़माने में हैक्लों में ‘औरत और आदमी काम के लिए जिना के हक़दार होते थे।
- इस लफ़्ज़ का तर्जुमा मकसदी ज़बान में उसी लफ़्ज़ से किया जाए जिसका मतलब क़स्बी हो। कुछ ज़बानों में इस लफ़्ज़ के लिए एक ख़ास लफ़्ज़ हो सकता है। (देखें: किस्म
(यह भी देखें: ज़िना, झूठेमा’बूद , बुरा काम , बुत )
किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:
शब्दकोश:
- Strong's: H2154, H2181, H2183, H2185, H6945, H6948, H8457, G4204