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ख़ानदान, ख़ानदानों
ता’अर्रुफ़:
“ख़ानदान” लफ़्ज़ ख़ून के रिश्तेदारों की जमा’अत का हवाला देता है, इनमें अक्सर वालिदैन और औलाद शामिल होती हैं| ख़ानदान में और अफ़राद भी होते हैं जैसे दादा-दादी, पोता-पोती, चाचा-चाची वग़ैरह
- इब्रानी ख़ानदान एक मज़हबी क़बीला था जो परस्तिश और हिदायतों के ज़रिए’ रवायतों को आगे बढ़ाता था।
- बाप अक्सर ख़ानदान का ख़ास इख़्तियार होता था।
- ख़ानदान में ख़ादिम, लौंडियाँ और परदेशी भी होते थे।
- कुछ ज़बानों में वसी’ लफ़्ज़ होते है जैसे “क़बीला” या “ख़ानदान” जो उन मज़मूनों में ज़्यादा ठीक होंगे जहाँ मतलब वालिदैन और औलाद से ज़्यादा अफराद का हो|
- लफ्ज़ “ख़ानदान” का इस्ते’माल उन लोगों के बारे में बताने के लिए किया जाता हैं जो रूहानी शक्ल से मुता’अल्लिक हैं, जैसे कि लोग जो ख़ुदा के ख़ानदान का हिस्सा हैं क्यूँकि वह ‘ईसा में यक़ीन रखते हैं|
(यह भी देखें: क़बीला, बुज़ुर्ग, घर)
किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:
शब्दकोश:
- Strong's: H1, H251, H272, H504, H1004, H1121, H2233, H2859, H2945, H3187, H4138, H4940, H5387, H5712, G1085, G3614, G3624, G3965