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जान , रूह
ता'अर्रुफ़:
“रूह ” शख़्स का अन्दुरूनी ना दिखाई देने वाला अब्दी हिस्सा है। यह शख़्स का ग़ैर जिस्मानी हिस्सा है।
- “रूह” और “जान” दो अलग नज़रयात हैं या वह दो अलग लफ़्ज़ हैं जो एक ही ख़याल को बयान करते हैं।
- इन्सान जब मरता है तब उसकी रूह जिस्म को छोड़ देती है।
- “रूह” लफ़्ज़ का इस्ते'माल कभी-कभी 'अलामती शक्ल में पूरे तौर पर बयान लिए किया गया है। मिसाल के तौर पर “ रूह गुनाह करती है” या'नी “इन्सान गुनाह करता है”, या “मेरी रूह थकी है” या'नी “मैं थका हुआ हूं।”
तर्जुमा की सलाह:
- “रूह” का तर्जुमा “अन्दुरूनी आदमी ” या “अन्दुरूनी शख़्स”
- कुछ बयानों में “मेरी रूह” का तर्जुमा, “मैं” या “मुझे” हो सकता है।
- जुमले के मुताबिक़ “रूह” का तर्जुमा 'आम तौर पर “शख़्स” या “वह” या “उसे” हो सकता है।
- कुछ ज़बानों में “रूह” और “रूह” के लिए एक ही लफ़्ज़ होता है।
- 'इब्रानियों 4:12 में 'अलामती शक्ल में “जान और रूह को... अलग करके” का मतलब हो सकता है, “अन्दुरूनी शख़्स को समझना या अन्दुरूनी शख़्स को ज़ाहिर करना।”
(यह भी देखें: रूह )
किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:
- 2 पतरस 02:7-9
- रसूलों के 'आमाल 02:27-28
- रसूलों के 'आमाल 02:40-42
- पैदाइश 49: 5-6
- यसा'याह 53:10-11
- या'क़ूब 01:19-21
- यरमियाह 06:16-19
- योना 02:7-8
- लूक़ा 01:46-47
- मत्ती 22:37-38
- ज़बूर 019:7-8
- मुक़ाश्फ़ा 20:4
शब्दकोश:
- Strong's: H5082, H5315, H5397, G5590