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3.2 KiB

जान , रूह

ता'अर्रुफ़:

“रूह ” शख़्स का अन्दुरूनी ना दिखाई देने वाला अब्दी हिस्सा है। यह शख़्स का ग़ैर जिस्मानी हिस्सा है।

  • “रूह” और “जान” दो अलग नज़रयात हैं या वह दो अलग लफ़्ज़ हैं जो एक ही ख़याल को बयान करते हैं।
  • इन्सान जब मरता है तब उसकी रूह जिस्म को छोड़ देती है।
  • “रूह” लफ़्ज़ का इस्ते'माल कभी-कभी 'अलामती शक्ल में पूरे तौर पर बयान लिए किया गया है। मिसाल के तौर पर “ रूह गुनाह करती है” या'नी “इन्सान गुनाह करता है”, या “मेरी रूह थकी है” या'नी “मैं थका हुआ हूं।”

तर्जुमा की सलाह:

  • “रूह” का तर्जुमा “अन्दुरूनी आदमी ” या “अन्दुरूनी शख़्स”
  • कुछ बयानों में “मेरी रूह” का तर्जुमा, “मैं” या “मुझे” हो सकता है।
  • जुमले के मुताबिक़ “रूह” का तर्जुमा 'आम तौर पर “शख़्स” या “वह” या “उसे” हो सकता है।
  • कुछ ज़बानों में “रूह” और “रूह” के लिए एक ही लफ़्ज़ होता है।
  • 'इब्रानियों 4:12 में 'अलामती शक्ल में “जान और रूह को... अलग करके” का मतलब हो सकता है, “अन्दुरूनी शख़्स को समझना या अन्दुरूनी शख़्स को ज़ाहिर करना।”

(यह भी देखें: रूह )

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

शब्दकोश:

  • Strong's: H5082, H5315, H5397, G5590