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3.2 KiB

हलीम, हलीम, हलीम बनाया, हलीमी

ता’अर्रुफ़:

“हलीम” लफ़्ज़ उस इन्सान के लिए काम में लिया जाता है जो अपने आपको औरों से बड़ा नहीं समझता है। वह न तो घमण्डी है न मग़रूर है। हलीमी हलीम होने की खुसीसियतहै।

  • ख़ुदा के सामने हलीम होने का मतलब है ख़ुदा की बड़ाई, अक़्ल और कामिलियत के सामने अपने आप की कमज़ोरी और नाकामिलियत को समझना।
  • इन्सान अगर हलीम बने तो वह ख़ुद को कम हैसियत के मक़ाम में रखता है।
  • हलीमी का मतलब है अपने से ज़्यादा दूसरों की ज़रूरत की ख़बर लेना।
  • हलीमी का मतलब यह भी है कि अपने ने’मतों तथा क़ाबिलियत के इस्ते’माल के वक़्त किसी की ख़िदमत में हदों का ‘अमल करना।

“हलीम बनो” का तर्जुमा, “मग़रूर न होना” हो सकता है।

  • “ख़ुदा के सामने हलीम बनो” का तर्जुमा हो सकता है, “ख़ुदा की बड़ाई को क़ुबूल करके अपनी मर्ज़ी से ख़ुदा के ताबे’ कर दो”।

(यह भी देखें: घमण्ड

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

किताब-ए-मुक़द्दस की कहानियों से मिसालें:

  • 17:02 दाऊद एक बहुत ही __ हलीम__ व रास्तबाज़ आदमी था, जो ख़ुदा के हुक्मों का फ़रमाबरदारी करता था।
  • 34:10 “जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह(ख़ुदा)हलीम करेगा, और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।”

शब्दकोश:

  • Strong's: H1792, H3665, H6031, H6035, H6038, H6041, H6800, H6819, H7511, H7807, H7812, H8213, H8214, H8215, H8217, H8467, G858, G4236, G4239, G4240, G5011, G5012, G5013, G5391