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सूरत और मानी की तआरीफ़ करना

तर्जुमे के मतन में इस्तेमाल होने वाली दो अहम इस्तलाहात “सूरत” और “मानी” हैं। बाईबल तर्जुमे में ये इस्तलाहात ख़ुसूसी तरीक़े से इस्तेमाल किये जाते हैं। इनकी मुन्दर्जा जैल तआरीफ़ें हैं”

  • सूरत - ज़बान की साख्त जिस तरह यह सफ़ह पर ज़ाहिर होता है या जिस तरह यह बोला जाता है। “सूरत” उस तरीक़े से मुराद है जैसा ज़बान को तरतीब दिया जाता है-इसमें अल्फ़ाज़, लफ्ज़ आरास्तगी, क़वायद, मुहावरे, और मतन के साख्त की कोई भी दूसरी ख़ुसूसियात शामिल होते हैं।
  • मानी - बुनियादी ख़याल या तसव्वर जो यह मतन कारी या सुनने वालों को इत्तिला करने की कोशिश कर रहा है। ख़तीब या मुसन्निफ़ इसी मानी को ज़बान की मुख्तलिफ़ सूरतें इस्तेमाल करने के ज़रिए इत्तिला कर सकते हैं, और ज़बान की इसी सूरत को पढ़ने या सुनने के ज़रिए मुख्तलिफ़ लोग मुख्तलिफ़ मानी समझ सकते हैं। इस तरीक़े से आप देख सकते हैं के सूरत और मानी एक ही चीज़ नहीं हैं।

एक मिशाल

आयें आम ज़िन्दगी से एक मिशाल पर गौर करें। फ़र्ज़ करें के एक दोस्त ने आपको नीचे दिया गया नोट भेजा:

  • मैं एक बहुत मुश्किल हफ़्ता गुज़ार रहा हूँ। मेरी माँ बेमार थीं और मैंने अपनी तमाम रक़म उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने और उनके लिए दवा खरीदने में ख़र्च कर दिया। मेरे पास कुछ नहीं बचा। मेरा आजिर अगले हफ़्ते के आख़िर तक मुझे अदायगी नहीं करेगा। मुझे नहीं मालूम के मैं हफ़्ता भर किस तरह गुज़ारूँगा। मेरे पास खाना ख़रीदना के लिए भी रक़म नहीं है”।

मानी

आपको क्यों लगता है के दोस्त ने यह नोट भेजा है? सिर्फ़ अपने हफ़्ते की बाबत आपको बताने के लिए? शायद नहीं। ज़ियादा मुमकिन है के आपको बताने का उसका अस्ल इरादा था:

  • “मैं चाहता हूँ के तुम मुझे रक़म दो”।

यह इस नोट का बुनियादी मानी है जिसको भेजने वाला आपको इत्तिला करना चाहता है। यह कोई रिपोर्ट नहीं बल्के दरख्वास्त है। ताहम, बाज़ तहज़ीबों में इतना बराह रास्त रक़म माँगना बदतमीज़ी होगी-यहाँ तक के दोस्त से भी। लिहाज़ा, उसने दरख्वास्त को पूरा करने और उसकी ज़रुरत को समझने में आपकी मदद के लिए नोट की सूरत को आरास्ता किया। उसने तहज़ीबी तौर पर क़ाबिल ए क़बूल अन्दाज़ में अपनी रक़म की ज़रुरत पेश की लेकिन आपको जवाब देने का पाबन्द नहीं किया। उसने वज़ाहत किया के उसके पास रक़म क्यों नहीं थी (उसकी बीमार माँ), के उसकी ज़रुरत आरिज़ी थी (जब तक के उसकी अदायगी न हो), और के हालत मायूस कुन थी (खाना नहीं)। दूसरी तहज़ीबों में, दरख्वास्त की एक ज़ियादा बारह रास्त सूरत इस मानी को बताने के लिए ज़ियादा मुनासिब हो सकती है।

सूरत

इस मिशाल में, नोट की पूरी मतन सूरत है। मानी है “मैं चाहता हूँ के तुम मुझे रक़म दो!”

हम इन इस्तलाहात को यकसां तरीक़े से इस्तेमाल करते हैं। सूरत इन आयात के पूरे मतन का हवाला देगा जिस का हम तर्जुमा कर रहे हैं। मानी इस ख़याल या नज़रियात का हवाला देगा जिसको मतन इत्तिला करने की कोशिश कर रहा है। किसी मानी को इत्तिला करने के लिए बेहतरीन सूरत मुख्तलिफ़ ज़बानों और तहज़ीबों में मुख्तलिफ़ होगी।