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एक हमसर तर्जुमा सोर्स ज़बान को उसही तरीके से सामने वाले की ज़बान में ज़ाहिर कर राबता करते हैं. खास तौर से ध्यान दें के सोर्स के अल्फाज़ जिस जजबात से राबता किया जाता है और सामने वाले के ज़बान के लिए भी फॉर्म्स चुनें. कुछ फॉर्म्स के मिसाल निचे दिए गए हैं.

मुहावरा

डेफिनिशन - मुहावरा कुछ अल्फाजों के गिरोह हैं जिनके मायने बोलने वाले के अल्फाजो के मायने से अलग समझ आते हैं. मुहावरे, कहावत, और अंदाज़ इज़हार को दरयाफ्त करें और वही मायने को जज़बातों के साथ तर्जुमा करें.

तफसील - आम तौर पर मुहावरों का किसी और ज़बान में लाफ्ज़ी तौर पर तर्जुमा नहीं किया जा सकता. मुहावरों के मायने को कोई और ज़बान में वही जज़्बाती तरीके से बोलना चाहिए.

यहाँ तीन तरजुमे हैं, सभी के एक ही मायने हैं, ऑफ़ एक्ट्स १८:६:

  • “तुम्हारा खून तुम्हारे सर के ऊपर होगा! मैं बेगुनाह हूँ.” (आरएसवी)
  • “अगर तुम गुम गए हो, तुम्हे खुदपर ही इलज़ाम लेना होगा उसके लिए, मैं ज़िम्मेदार नहीं हूँ.” (जीएनबी)
  • “अगर खुदा तुम्हे सजा देता है, तो वो तुम्हारी वजह से, मेरी नहीं!” (टीएफटी)

ये सब गुनाहों के इलज़ाम हैं. कुछ लोग मुहावरों को “खून” या “गुम शुदा” जैसे अल्फाजों के साथ इस्तेमाल करते हैं, जबकि तीसरा वाला साफ़ अलफ़ाज़ “सजा” कहा. तुम्हारा तर्जुमा बराबर हो, इस लिए उसमे इलज़ाम को जज़्बाती तरीके से कहना चाहिए, और मुहावरा भी इस्तेमाल कर सकते हो, जब तक इलज़ाम और मुहावरा दोनों ही सामने वाले की ज़बान और सकाफत के हिसाब से हो.

अंदाज़ इज़हार

डेफिनिशन - अंदाज़ इज़हार एक ख़ास तरीका है कुछ बोलने का ताके आप लोगों का ध्यान पकड़ सको या जो भी कहा है उसे जज्बात से ज़ाहिर करने का.

तफसील - अंदाज़ इज़हार के मायने एक शख्स के अल्फाजों के आम मायने से पूरी तरह अलग होता है.

यहाँ कुछ मिसाल हैं:

  • <यू>मैं टूट हो गई थी</यू>! बोलने वाला लाफ्ज़ी तौर पर नहीं टुटा था, पर उसे काफी बुरा लगा.
  • <यू>मैं जो भी कहती वो अपने कान बंद कर लेता.</यू> मतलब, “वो जो कुछ भी कह रही थी उसने सुनना नहीं चाहा.”
  • <यू>हवा पेड़ में गम मना तहे थे</यू>. इसका मतलब जो हवा पेड से लग कर आवाज़ कर रही थी ऐसा लग रहा था के कोई शक्स रो रहा हो.
  • <यू>सारी दुनिया मीटिंग में आई थी</यू>. आलम के हर लोग ने मीटिंग में हाज़िर नहीं हुए. वहां मीटिंग में काफी लोग थे.

हर ज़बान अपने अलग अंदाज़ इज़हार इस्तमाल करती है. कोशिश करो के तुम भी कर सको:

  • पहचानो के अंदाज़ इज़हार का इस्तेमाल हुआ है
  • अंदाज़ इज़हार का मकसद पहचानो
  • अंदाज़ इज़हार का असल मायने पहचानो

अंदाज़ इज़हार का असल मायने यही है जिसे अपनी ज़बान में तर्जुमा करना चाहिए, किसी अफराद के अल्फाजों के मायनों का नहीं. एक बार तुमने असल मायने को समझ लिए, तो तुम सामने वाले की ज़बान में बात ज़ाहिर करने के लिए वही मायने और जजबात का इस्तेमाल कर सकते हो.

(ज्यादा मालूमात के लिए, [अंदाज़ इज़हार] देखें(../figs-intro/01.md)मालूमात.)

रेटोरिकल सवाल

डेफिनिशन - रेटोरिकल सवालात जिससे बोलने वाला पढने वाले का ध्यान अपनी तरफ मैल करता है.

तफसील - रेटोरिकल सवाल एक किस्म का सवाल है जो जवाब की उम्मीद नहीं रखता या मालूमात नहीं मांगता. वो सिर्फ कसी तरह के जज्बात को ज़ाहिर करता है और बगावत का इरादा भी हो सकता है, एक धमकी, हैरत इज़हार करना, या कोई और चीज़.

देखें, मसलन, मैथिव ३:७: “तुम जहरीले सांप की नसल, तुम्हे मुसीबत से भागने के लिए किसने कहा?”

यहाँ कोई जवाब नहीं चाहता. बोलने वाला मालूमात नहीं पुछ रहा; वो सुनने वाले को डांट रहा है. ये लोगों को खुदा के कहर के बारे में खबरदार करना नेक काम नहीं है, क्योंकि इन्होने अपने बचने का एक ही रास्ता; गुनाहों से तौबा को मना कर दिया.

जब तुम अपना तर्जुमा पढ़ रहे हो तो हो सकता है के तुम्हे रेटोरिकल सवाल दोबारा पढना पढ़े, अगर तुम्हारी जबान रेटोरिकल सवाल उस तरीके से नहीं इस्तेमाल करती. पर याद रखें, के मकसद और मायने को वही रखें, और राबता करें वही जजबात के साथ असल रेटोरिकल सवाल. अगर तुम्हारी ज़बान रेटोरिकल सवाल के मकसद, मायने और जजबात को किसी और अंदाज़ इज़हार से राबता करती है , तो वही अंदाज़ इज़हार इस्तेमाल करें.

(देखें रेटोरिकल सवाल)

एक्सक्लैमेशन्स

डेफिनिशन - ज़बान एक्सक्लैमेशन्स का इस्तेमाल जजबात ज़ाहिर करने को करते हैं. कभी कभी एक्सक्लैमेशन्स के अल्फाज़ या अल्फाजों का मतलब जजबात ज़ाहिर करने के अलावा कुछ नहीं होता, जैसे अंग्रजी में “आलास” या “वाव” जैसे अलफ़ाज़.

देखें, मसलन, १ सैमवेल ४:८:वो टू अस! हमें इन निहायत ताकतवर खुदा से कौन बचाएगा? (यूएलटी)

यहाँ यहूदी तरजुमे किए अल्फाज़ “वो” कुछ बुरा होने के मज़बूत जजबात ज़ाहिर करता है. अगर हो सके तो अपनी ज़बान में वही जजबात को ज़ाहिर करने के लिए एक्सक्लैमेशन ढूंढे.

शायरी

डेफिनिशन - शायरी का एक मकसद ये भी है के किसी चीज़ के बारे में जजबात ज़ाहिर करना.

तफसील - शायरी को कई अलग तरीके से अलग अलग ज़बान में किया जाता है. इन तरीकों पर कई बार गुफ्तगू हो चुकी है, जैसे अंदाज़ इज़हार और एक्सक्लैमेशन्स. शायरी में आम गुफ्तगू में इस्तेमाल की जाने वाली ग्रामर को मुख्तलिफ अंदाज़ से इस्तेमाल किया जाता है, या अल्फाजों के खेल या एक जैसे सुनाई देने वाले अल्फाज़ या इन सिलसिलों के ज़रिए जजबात ज़ाहिर किया जाता है.

देखें, मसलन, साम ३६:५: तुम्हारी इमानदारी का अहद, याह्वी, [पहोचना] जन्नत मे; तुम्हारी वफादारी तुम्हे बादलों में [पहोचाती] है. (यूएलटी)

इस शायरी की शेर हम सूरत सोच को दो लकीरों मे दोहराया, जो यहूदी शायरी का अच्छा तरीका है. और, असल यहूदी में कोई वर्ब भी नही होता, जो के आम तक़रीर के ग्रामर से अलग इस्तेमाल करते हैं. तुम्हारी ज़बान में चीजें मुह्तालिफ हो तो उसे शायरी ही कहो. जब आप शायरी का तार्जुमा कर रहे हो तो कोहिश करो के बात ज़ाहिर करने के लिए अपनी ज़बान के फोर्म्स इस्तेमाल करो ताके पढने वाले को लगे के ये शायरी है, और वो वही जजबात से राबता करेगा जो सोर्स शायरी कोशिश कर रही है.

याद रहे - असल अलफ़ाज़ के अहसास और रवैया को ज़ाहिर करो. उसे तर्जुमा करो उसी फॉर्म में जिस तरीके से तुम अपनी ज़बान में राबता करना चाहते हो. गौर करो के कैसे वो मायने सबसे नेह्तारीन हो सकते हैं बिलकुल दुरुस्त, साफ़ तौर से, इकवली, और कुदरती ज़ाहिर करना सामने वाले की जबान में.