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साफ़ तर्जुमा

साफ़ तर्जुमा हर मुमकिन ज़बानी बनावट इस्तेमाल करेगा ताके पढने वाले को पढने में आसानी हो और समझने में मदद मिले. इसमें लिखाई है जिसे अलग तरीके से या तरतीब से लिखा जाए और जितना हो सके या चंद अल्फाज़ की ज़रूरत करें असल मायने को साफ साफ़ बताने के लिए.

ये हिदायत बाकी दुसरे ज़बानी तर्जुमे के लिए है, नाकि गेटवे लैंग्वेज ट्रांसलेशनस के लिए. जब तुम यूएलटी से गेटवे लैंग्वेज का तर्जुमा करते हो, तो तुम्हे ये तब्दीलियाँ नहीं करनी है. यूएसटी से गेटवे लैंग्वेज के तरजुमे में ये तबदीली करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वो पहले ही हो चुकी है. यहाँ सोर्स अल्फाज़ से साफ़ तरजुमे करने के लिए कुछ तरकीब बताई गई है:

प्रोनाउंस जांचे

तुम्हे सोर्स के अल्फाज़ में प्रोनाउंस की जांच करनी होगी और ये साफ़ करना होगा के हर प्रोनाउंस क्या और क्सिके मुताल्लिक है. प्रोनाउंस वो अल्फाज़ अहि जो नाउन और नाउन के जुमले के बिच आता है. प्रोनाउंस का हवाला जो बात पहले से ही बता दी गई हो उनसे है.

ये हमेशा एह्तियातन जांच करें के प्रोनाउन साफ़ तौर पर क्या का किस्से मुताल्लिक है. अगर ये साफ़ न हो, तो प्रोनाउन की जगह किसी शक्स का नाम या चीज़ का ज़िक्र करना ज़रूरी हो सकता है.

शरीक की पहचान करें

आगे आपको ये समझना है के कौन अमल कर रहा है. एक साफ़ तर्जुमा शरीक को पहचान लेगा. शरीक कोई वाके में लोग या चीजें हैं जो उस वाके में हिस्सा लेते हो. कोई शक्स जो कुछ अमल कर रहा हो और कोई चीज़ जो अमल में आई हो ये सदर शरीक हैं. जब कोई वाके की सोच को वर्ब को दोबारा ज़ाहिर करना हो, तब ये बताना ज़रूरी होता है के कौन या क्या शरीक है उस वाके में. आम तौर पर ये तो हालात से साफ़ हो जाता है.

वाके के सोच को वाज़े तौर पर इज़हार करें

गेटवे लैंग्वेज में कई वाके की सोच नोउंस के जैसे आ सकते हैं. एक साफ तरजुमे को इन वाके की सोच को वर्ब की तरह इज़हार करना चाहिए.

जब तरजुमे की तय्यारी हो, तो जुज़ में वाके की सोच ढूंडना काफी फायदेमंद साबित होता है, खासतौर पर वो जो वर्ब के अलावा कोई और फॉर्म से वाजे हो. देखो अगर तुम वाके की सोच के मायने को वर्ब के ज़रिए ज़ाहिर सको तो. अगर, हलाकि, आपकी ज़बान भी इस्तेमाल करती है वाके की सोच और वाके या कोई अमल जो नाउन से बेहतर लगे, तब नाउन फॉर्म का इस्तेमाल करें. [अब्सत्रक्ट नोउंस] देखें(../figs-abstractnouns/01.md)

ताकी ये ठीक से समझ आए तुम्हे हर वाके की सोच को एक्टिव क्लॉज़ में तब्दील करना पड़ सकता है

पैसिव वर्ब्स

एक साफ़ तर्जुमा में किसी पैसिव वर्ब्स को एक्टिव फॉर्म में तब्दील करना पड़ सकता है. [एक्टिव या पैसिव] देखें(../figs-activepassive/01.md)

एक्टिव फॉर्म में, फिकरे में मज़मून ही वो सकस है जो अमल करता है. पैसिव फॉर्म में, फिकरे में मज़मून वो सकस या चिक्स है जिसपर कोई अमल हुआ हो. मसलन, “जॉन ने बिल को मारा” ये एक एक्टिव फिकरा है. “बिल जॉन से मार खाया” ये एक पैसिव फिकरा है.

कई ज़बान में पैसिव फॉर्म नहीं होते, सिर्फ एक्टिव फॉर्म ही मौजूद है. इस सूरत में, पैसिव फॉर्म फिकरे को एक्टिव फॉर्म में तब्दील करना ज़रूरी हो जाता है, कुछ ज़बान में, हलाकि, पैसिव फॉर्म का इस्तेमाल करना तरजीह करते हैं. तर्जुमान को वो फॉर्म का ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए जो हदफी ज़बान में बेहद कुदरती हो.

हर जुज़ में ‘ऑफ़’ को देखो

साफ़ तर्जुमा बनाने के लिए, नोउंस और “ऑफ़” के बिच के ताल्लुक के मायने को पहचानने के लिए तुम्हे हर जुज़ में “ऑफ़” को देखना होगा. कई ज़बान में “ऑफ” की बनावट इतनी नहीं दिखती जितनी इंजील की असल ज़बान में है. “ऑफ़” के हर मायने और दोबारा ज़ाहिर करने से फिकरे के हिस्सों के बिच ताल्लुकात साफ हो जाते हैं.

जब तुमने सब चीजें जाँच ली हो और अपना तर्जुमा जितना हो सके साफ़ कर लिया हो, तो तुम्हे और लोग जो तुम्हारी ज़बान बोलते हैं उनको पढ़ कर सुनाना होगा ये देखने के लिए के उन्हें साफ समझ आ रहा है. अगर कोई हिस्सा उन्हें साफ़ समझ नहीं आ रहा, यानी वो हिस्सा साफ़ अनहि है. आपस में, तुम उस हिस्सा को साफ़ तरीके से कहने के बारे में सोच सकते हो. जब तक सब साफ न हो तब तक तर्जुमेह को कई लोगों के ज़रिए जाँच करो.

याद रखें: तरजुमह करना यानी दोबारा कहना, जितना हो सके उतना दुरुस्त, साफ़ और कुदरती तरीके से असल पैगाम के मायने सामने वाले की ज़बान में.

साफ़ तौर पर लिखना

तर्जुमा जो साफ़ बात जाहिर करे जिसके लिए आपको खुद से ये सवाल करना होगा जो आप के लिए मददगार साबित हो:

  • क्या तुमने वक्फ का इस्तमाल किया के पढने वालों को मदद मिले की कहाँ ठहरना है या सांस लेना है?
  • क्या तुमने ये ज़ाहिर किया के कौनसा हिस्सा डायरेक्ट स्पीच है?
  • क्या तुम जुज़ को अलग करते हो?
  • क्या तुमने सुर्खी की जगह शामिल करने के बारे में सोचा?