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ट्रांसलेशन अकादमी का मकसद बाइबिल का मुतर्जिम बनने के लिए तरबियत देना है. ईसा मसीह के शागिर्द के तौर पर अपने लोगों की तादाद बढ़ाने में मदद करने के लिए खुदा के कलाम को अपनी ज़बान में तर्जमा करना एक अहम काम है. आपको अज्म कर लेना चाहिए कि इस काम को करना है, अपनी ज़िम्मेदारी को संजीदगी से लीजिए, और दुआ कीजिए कि खुदा आपकी मदद करे.

खुदा ने बाइबिल में हमसे बात की है. उसने बाइबिल के मुसन्नफीन को इबरानी, अरबी और यूनानी ज़बानों में अपने कलाम को लिखने के लिए हौसलाअफजाई किया है. तकरीबन 40 मुख्तलिफ मुसन्नफीन थे जो तकरीबन 1400 B.C. से 100 A.D. तक लिख रहे थे. यह दस्तावेजात मशरिक उस्ता, शुमाली अफ्रीका और यूरोप में लिखे गए थे. उन ज़बानों में अपने कलाम को रिकॉर्ड कर के खुदा को यकीन हो गया कि उन जगहों पर उस वक्त के लोग उसको समझ सकते थे.

आज, आपके मुल्क में लोग इबरानी, अरबी और यूनानी नहीं समझते हैं. मगर उनकी ज़बान में खुदा के कलाम का तर्जमा उन्हें इस काबिल बनाएगा कि वह उसे समझ सकें.

किसी की “मादरी ज़बान” या “दिल की ज़बान” का मतलब होता है कि वह एक बच्चे के तौर पर सबसे पहले उसी को बोलता है और अपने घर पर इस्तेमाल करता है. यही वह ज़बान होती है जिसे वह सबसे ज्यादा आरामदेह समझता है और अपने गहरे ख्यालात का इज़हार करने के लिए उसी का इस्तेमाल करता है. हम चाहते हैं कि खुदा के कलाम को सब कोई अपनी ज़बान में पढ़े.

हर ज़बान अहम और काबिल-ए-कद्र है. छोटी ज़बानें भी उतनी अहम हैं जितनी कि आपके मुल्क में बोली जाने वाली कौमी ज़बान, और वह भी उस मतलब को बयान कर सकती हैं. किसी को भी अपनी ज़बान बोलने में शर्म नहीं आनी चाहिए. कभी कभी, अकलियत में रहने वाले लोग अपनी ज़बान बोलने में शर्म महसूस करते हैं और उसका इस्तेमाल उन लोगों के बीच नहीं करते जो मुल्क में अक्सरियत में हैं. लेकिन ज़ाती तौर पर कोई भी ज़बान ज्यादा अहमियत का हामिल, पुर वकार, या मुहज्ज़ब नहीं है, चाहे वह कौमी ज़बान हो या मकामी. हर ज़बान का एक मुनफ़रिद अंदाज़ है और उसके मानी के मुख्तलिफ रंग हैं जो कि इन्फरादियत को बनाए रखती हैं. हमें वही ज़बान इस्तेमाल करनी चाहिए जिसमें हम ज्यादा आराम महसूस करते हैं और जिसमें हम अपने जज़्बात को अच्छी तरह बयान कर सकें.

  • क्रेडिट: "Bible Translation Theory & Practice" बज़रियः Todd Price, Ph.D. CC BY-SA 4.0 से लिया गया. *