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2.0 KiB

ग़ौर , ग़ौर करता, तवज्जोह

ता’अर्रुफ़:

“ग़ौर ” या'नी किसी बात पर एहतियात के साथ और गहराई से ग़ौर करना।

  • कलाम में इस लफ़्ज़ का इस्ते'माल हमेशा ख़ुदा और उसकी ता'लीमों पर ग़ौर करने के लिए काम में किया गया है।
  • ज़बूर 1 में लिखा है कि वह इन्सान जो “दिन रात” ख़ुदा की शरी'अत पर ग़ौर करता है, मुबारक है।

तर्जुमा की सलाह:

  • “ग़ौर” का तर्जुमा हो सकता है, “एहतियात के साथ और गहराई से ग़ौर करना” या “ फ़िक्र मन्द होकर गहराई से ग़ौर करना” या “बार-बार सोचना”।
  • इसकी जमा' की शक्ल है, “तवज्जोह” और इसका तर्जुमा “गहराई के ख़यालात” हो सकता है। “मेरे मन के ख़याल” का तर्जुमा हो सकता है, “मैं जिसका गहराई से ग़ौर करता हूं” या “मै अक्सर किस बारे में सोचता हूँ”।

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

शब्दकोश:

  • Strong's: H1897, H1900, H1901, H1902, H7742, H7878, H7879, H7881, G3191, G4304