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आशिक़, आशिक़ों

ता’अर्रुफ़:

“आशिक़” या’नी “मुहब्बत करने वाला इन्सान” यह लफ़्ज़ अक्सर उन इन्सानों के लिए है जिनके जिस्मानी ता’अल्लुक़ात होते हैं।

  • किताब-ए-मुक़द्दस में “आशिक़” लफ़्ज़ उस इन्सान के लिए काम में लिया जाता है जो किसी के साथ जिस्मानी ता’अल्लुक़ रखता है, जिससे उसकी शादी नहीं हुई है।
  • ऐसा नाजायज़ ता’अल्लुक़ किताब-ए-मुक़द्दस में इस्राईल के ज़रिए’ बुतपरस्ती करके ख़ुदा की नाफ़रमानी के लिए काम में लिया जाता है। लिहाज़ा “आशिक़” लफ़्ज़ ‘अलामती तौर पर इस्राईल के ज़रिए’ ‘इबादत किये जानेवाले बुतों के लिए भी काम में लिया गया है। इन मज़मूनों में इस लफ़्ज़ का तर्जुमा मुमकिन हो तो इस तरह किया जाए, “नाजायज़ साथी” या “ज़िनाकार के साथी” या “बुतों”,(देखें: मिसाल)
  • पैसों के “लालची” (आशिक़) ऐसा इन्सान जो पैसा कमाने और दौलतमन्द होने को बहुत ज़्यादा अहमियत देता है।
  • पुराने ‘अहदनामे में ग़ज़ल-उल-ग़ज़लात की किताब में “आशिक़” लफ़्ज़ का इस्ते’माल मुश्बत तौर पर किया गया है।

(यह भी देखें: ज़िनाकर, झूठे मा’बूद, बुत, मुहब्बत)

## ‏किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:##

शब्दकोश:

  • Strong's: H157, H158, H868, H5689, H7453, H8566, G865, G866, G5358, G5366, G5367, G5369, G5377, G5381, G5382