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घंटे, घंटा

ता'अर्रुफ़:

“वक़्त ” किताब-ए-मुक़द्दस में हमेशा इस्ते'माल किया जाता है ये बताता है कि मखसूस वाक़ि'या कहाँ से हुआ है । इसका 'अलामती इस्ते'माल “वक़्त” या “लम्हे ” के लिए भी किया जाता है।

  • यहूदी दिन को सूरज निकलने से गिनते थे। (तक़रीबन सुबह 6 बजे) मिसाल के तौर पर, "नवें घंटे" का मतलब है कि" दुपहर में (तक़रीबन तीन बजे)
  • रात का वक़्त गुरूब आफ़ताब (तक़रीबन 6 बजे) शाम की शुरू'आत से शुमार होती है मिसाल के तौर पर “रात के तीसरे घंटे” का मतलब हमारे मौजूदा दिन के निज़ाम में "रात में नौ बजे के तक़रीबन"।
  • किताब-ए-मुक़द्दस में वक़्त के बारे में मौजूदा वक़्त के निज़ाम के मुताबिक़ नहीं होंगे, इसलिए "तक़रीबन नौ" या "तक़रीबन छः बजे" जैसे जुमलों का इस्ते'माल किया जा सकता है।
  • कुछ तर्जुमों में ऐसे जुमले काम में लिए गए हैं जैसे “शाम का वक़्त ” या “सुबह के वक़्त ” या “दोपहर के वक़्त ” कि दिन के वक़्त को तें किया जाए।
  • “उस घड़ी में” का तर्जुमा हो सकता है, “उस वक़्त ” या “उस लम्हे ”
  • 'ईसा के बारे में “घड़ी आ पहुंची है” का तर्जुमा हो सकता है, “उसका वक़्त आ गया है कि” या “उसका मुक़र्रर वक़्त आ चूका है”।

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

शब्दकोश:

  • Strong's: H8160, G5610