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2.9 KiB

मुनाफ़िक़, मुनाफ़िक़ों, मुनाफ़िक़त

ता’अर्रुफ़:

“मुनाफ़िक़” लफ़्ज़ उस इन्सान के बारे में है जो रास्तबाज़ दिखने के लिए कुछ करता है लेकिन छिपकर बुरे काम करता है। “मुनाफ़िक़त” ऐसा सुलूक है जो इन्सानों को धोखा दे कि वह रास्तबाज़ इन्सान है।

  • मुनाफ़िक़ इन्सान अच्छे काम करते हुए दिखाना चाहते हैं कि इन्सान उन्हें अच्छा इन्सान समझें।
  • मुनाफ़िक़ अक्सर दूसरों की बुराई करते हैं जबकि वे आप वैसे काम करते हैं।
  • ‘ईसा फ़रीसियों को मुनाफ़िक़ कहता था क्योंकि वे रास्तबाज़ी के काम ऐसे करते थे जैसे ख़ास लिबास पहनना, ख़ास खाना खाना लेकिन वे इन्सानों के साथ रहम का और बेतरफ़दारी का सुलूक नहीं करते थे।
  • मुनाफ़िक़ इन्सान दूसरों के ‘ऐब देखता है लेकिन अपने ‘ऐब क़ुबूल नहीं करता है।

तर्जुमे की सलाह:

  • कुछ ज़बानों का इज़हार है जैसे, “दोमुहाँ” मुनाफ़िक़ों और मुनाफ़िक़त के ‘आमाल की तफ़सील करता है
  • “मुनाफ़िक़” के तर्जुमे के और तरीक़े हैं, “झूठा” या “ढोंगी” या “बहुत धोखा देने वाला इन्सान”।
  • “मुनाफ़िक़त” का तर्जुमा “धोखा” या “झूठे काम” या “दिखावा” किया जा सकता है।

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

शब्दकोश:

  • Strong's: H120, H2611, H2612, G505, G5272, G5273