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गोश्त

ता’अर्रुफ़ :

किताब-ए-मुक़द्दस में “गोश्त” इन्सान या जानवर के नरमी के बारे में बताता है।

  • किताब-ए-मुक़द्दस में “गोश्त” लफ़्ज़ का ‘अलामती इस्ते’माल भी होता है जिसके ज़रिए’ सब इन्सानों या सब जानवरों का ज़िक्र होता है।

नये ‘अहदनामे में “गोश्त” लफ़्ज़ इन्सानों के गुनाहगार आदत के लिए काम में लिया गया है। इसका इस्ते’माल अक्सर रूहानी आदत के मुख़तलिफ़ किया जाता है।

  • “अपना गोश्त और ख़ून” किसी के साथ ख़ून के रिश्ते का हवाला देता है जैसे वालिदैन, भाई-बहन, औलाद, नाती-पोते।
  • इसका हवाला बुज़ुर्गों या नसलों से भी है।
  • “एक जिस्म” का मतलब शादीशुदा औरत और मर्द के जिस्मानी ता’अल्लुक़ से भी है|

तर्जुमे की सलाह:

  • मज़मून में एक जानवर के जिस्म का तर्जुमा “जिस्म” या “जिल्द” या “गोश्त” किया जा सकता है|
  • जब ‘आम तौर पर सभी जानदार मख़लूक के लिए इस्ते’माल में लिया जाए, तब इस लफ़्ज़ का तर्जुमा “जानदार” या “हर एक चीज़ जो ज़िन्दा है” किया जा सकता है|
  • जब ‘आम तौर पर सभी इन्सानों के लिए इस्ते’माल में लिया जाए, तब इस लफ़्ज़ का तर्जुमा है, “लोग ” या “इन्सानी क़ौम” या “सब ज़िन्दा लोग” हो सकता है|
  • इज़हार “जिस्म और ख़ून” का तर्जुमा हो सकता है “रिश्तेदार ” या “ख़ानदान” या “रिश्तेदार” या “ख़ानदानी नसल”। वहाँ वह मजमून हो सकता है, जहाँ इसका तर्जुमा “बुज़ुर्गों” या “नसलों” किया जा सकता है|
  • कुछ ज़बानों में इज़हार हो सकता है कि “गोश्त और ख़ून” मतलब में एक जैसे हैं|
  • इज़हार “एक गोश्त होना” का तर्जुमा “जिन्सी अजज़ा” या “एक जिस्म होना या “एक इन्सान का जिस्मानी और रूहानी तौर पर एक होना” हो सकता है| * इस इज़हार के तर्जुमे को जाँच कर पक्का करना लेना चाहिए कि यह मक़सदी ज़बान और रवायत के क़ुबूल करने लायक़ है या नहीं| (देखें: अलफ़ाज़). यह भी समझना चाहिए कि यह ‘अलामती है, और इसका मतलब यह नहीं है कि एक मर्द और ‘औरत जो "एक जिस्म होंगे" का लफ़्जी तौर से एक इन्सान बन गया है।

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

शब्दकोश:

  • Strong's: H829, H1320, H1321, H2878, H3894, H4207, H7607, H7683, G2907, G4559, G4560, G4561