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2.6 KiB

तरस, रहम दिल

ता’अर्रुफ़:

“तरस” लफ़्ज़ का हवाला इन्सानों के लिए फ़िक्र के जज़्बे से है। ख़ास करके दर्द मन्द लोगों के लिए “तरस खाने वाला” इन्सानों की फ़िक्र करके उनकी मदद करता है।

  • “तरस” लफ़्ज़ का मतलब है इन्सानों की ख़बर लेना और उनकी मदद का कदम उठाना।
  • किताब-ए-मुक़द्दस में ख़ुदा को तरस खानेवाला कहा गया है, या’नी वह मुहब्बत करने व रहमदिल है।
  • कुलुस्से की कलीसिया को लिखे ख़त में पौलुस उनसे कहता है, “बडा तरस... किया करो” वह उन्हें हुक्म देता है कि वे आदमियों की ख़बर लें और जो ज़रूरतमन्द है, उनकी मदद करें।

तर्जुमे की सलाह:

“तरस” के मा’नी हैं “रहम का जज़्बा” यह एक अलग ज़बान है जिसका मा’नी है “तरस” या “रहम”। और ज़बानों में इसका कलाम अलग ज़बान होगी |

  • “तरस” (रहम) के तर्जुमे की और शक्लें हैं, “दिल की गहराई से ख़बर लेना” या “मदद रहम”
  • “तरस खाने वाला” (रहमदिल) का तर्जुमा “ख़बर लेने वाला और मदद करने वाला” या “गहरी मुहब्बत व रहम करने वाला”

किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:

शब्दकोश:

  • Strong's: H2550, H7349, H7355, H7356, G1653, G3356, G3627, G4697, G4834, G4835