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आमीन, सच में
ता’अर्रुफ़:
“आमीन” लफ़्ज़ किसी की बात पर ज़ोर देना या तवज्जह करना ज़ाहिर करता है। इसका इस्तेमाल हमेशा दु'आ के आख़िर में होता है। कभी-कभी इसका तर्जुमा “सच में” किया जाता है।
- दु'आ के आख़िर में “आमीन” लफ़्ज़ दु'आ के साथ इत्तिफ़ाक़ या दु'आ पूरी होने की मर्ज़ी ज़ाहिर करता है।
- अपनी ता'लीमों में ईसा ने “आमीन” लफ़्ज़ के इस्तेमाल के ज़रिए' अपनी बात की सच्चाई पर ताक़त दी थी । इस लफ़्ज़ के बाद उसने हमेशा कहा, “और मैं तुमसे कहता हूं” कि वह पहले की बात से मुता'अल्लिक़ एक और बात कहे।
- जब ईसा “आमीन” लफ़्ज़ का इस्तेमाल इस पतरह करता है तो कुछ अंग्रेजी कलाम (यू. एल. बी. भी) इसका तर्जुमा “सच में” या “सच कहता हूं” करती हैं।
- एक और लफ़्ज़ “सच-सच” का तर्जुमा “यक़ीनन” या “वाक़ई , हक़ीक़त” किया जा सकता है।
तर्जुमा की सलाह
- देखें कि कोई और ज़बान में से कोई ख़ास लफ़्ज़ या कोई जुमला है जो किसी कही गई बात पर ज़ोर देने के काम में ली जाती है।
- दु'आ के आख़िर में या किसी बात के इत्तिफ़ाक़ में, “आमीन” तर्जुमा किया जा सकता है, “ऐसा ही हो”, या “ऐसा होने दे”, या “यह सच है”।
- जब ईसा कहता है, “ मैं तुमसे सच सच कहता हूं” तो इसका तर्जुमा हो सकता है, “हां, मैं सच कहता हूं” या “यह सच है और मैं कहता हूं”।
“मैं तुमसे सच-सच कहता हूं” का तर्जुमा हो सकता है, “मैं तुमसे सच्ची बात कहता हूं” या “मैं सच्चे ख़याल से तुमसे कहता हूं” या “मैं जो तुमसे कहता हूं वह सच है”
किताब-ए-मुक़द्दस के बारे में:
शब्दकोश:
- Strong's: H543, G281