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हम जो कुछ भी खाते हैं वह किसी प्रकार हमारे उपयोग हेतु शुद्ध एवं स्वीकार्य होता है?

हम जो कुछ भी खाते हैं वह परमेश्वर के वचन और प्रार्थना द्वारा शुद्ध एवं स्वीकार्य हो जाता है।