ur-deva_irv/24-JER.usfm

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\id JER
\ide UTF-8
\h यर्मयाह
\toc1 यर्मयाह
\toc2 यर्म
\toc3 jer
\mt1 यर्मयाह
\is मुसन्निफ़ की पहचान
\ip यर्मयाह अपने कातिब बारूक के साथ। यर्मयाह जिसने काहिन और नबी बतौर खि़दमत की हिलकियाह नाम एक काहिन का बेटा था। 2 सलातीन 22:8 का सरदार काहिन नहीं वह एक छोटे से गांव अंतूत का रहने वाला था (यमेयाह 1:1) बारूक जो यर्मयाह का कातिब था वह उसका हमखि़दमत था। उसको यर्मयाह ने सारी बातें लिखवाईं और उसी ने नबी के पैगाम को लिखा, तालीफ़ — ओ — तर्तीब दी (यर्मयाह 36:4, 32; 45:1) यर्मयाह को राने वाला नबी भी कहा जाता है (यर्मयाह 9:1; 13:17; 14:17) एक कशमकश भरी ज़िन्दगी गुज़ारी क्योंकि उसने बाबुल के हमलावरों की बाबत पेशबीनी की थी।
\is लिखे जाने की तारीख़ और जगह
\ip इस के तस़्नीफ़ की तारीख़ तक़रीबन 626 - 570 क़ब्ल मसीह के बीच है।
\ip यह किताब ग़ालिबन बाबुल की जिलावतनी के दौरान पूरी हुई। हालांकि कुछ उलमा‘ ने लिहाज़ किया कि किताब की मदविन की जाए ताकि बाद में इसे जारी रखा जाए।
\is क़बूल कुनिन्दा पाने वाले
\ip यह किताब यहूदा आर यरूशलेम के लोगों के लिए लिखी गई और बाद में क़रिईन — ए — बाइबल के लिए।
\is असल मक़सूद
\ip यर्मयाह की किताब उस नए अहद की सब से ज़्यादा साफ़ झलक पेश करती है जिसे ख़ुदा ने अपने लोगों के साथ बांधने का इरादा किया था जब एक बार मसीह जमीन पर आया था। यह नया अहद ख़ुदा के लोगों के लिए बहाली का वसीला होगा जब वह अपनी शरीयत पत्थर की तख़्तियों पर लिखने के बदले उनके दिलों में लिखने वाला था। यर्मयाह की किताब यहूदाह के लिए आखरी नबुवत की क़लम्बन्दी यह ख़तरे की अलामत पेश करते हुए कि अगर वह तौबा नहीं करंगे तो उन की बर्बादी यक़ीनी है। यर्मयाह कौम के लोगों को बुलाता है कि वह ख़ुदा की तरफ़ फिरें उसी वक़्त यर्मयाह यहूदा की बुतपरस्ती और बदकारी से तौबा न करने के सबब से उस की बर्बादी के नागुज़ीर हाने को जानता था।
\is मौज़’अ
\ip अदालत (इन्साफ़)
\iot बैरूनी ख़ाका
\io1 1. ख़ुदा के ज़रिये यर्ममाह की बुलाहट — 1:1-19
\io1 2. यहूदा को तंबीह — 2:1-35:19
\io1 3. यर्मयाह का दुख उठाना — 36:1-38:28
\io1 4. यरूशलेम का ज़वाल और उसके नतीजे — 39:1-45:5
\io1 5. क़ौमों की बाबत नबुवतें — 46:1-51:64
\io1 6. तारीख़ी ज़मीमा — 52:1-34
\s5
\c 1
\p
\v 1 यरमियाह — बिन — ख़िलक़ियाह की बातें जो — बिनयमीन की ममलुकत में अन्तोती काहिनों में से था;
\v 2 जिस पर ख़ुदावन्द का कलाम शाह — ए — यहूदाह यूसियाह — बिन — अमून के दिनों में उसकी सल्तनत के तेरहवें साल में नाज़िल हुआ।
\v 3 शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम बिन — यूसियाह के दिनों में भी, शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह — बिन — यूसियाह के ग्यारहवें साल के पूरे होने तक अहल — ए — येरूशलेम के ग़ुलामी में जाने तक जो पाँचवें महीने में था, नाज़िल होता रहा।
\s यर्मयाह का बुलाया जाना और पहली बसारत
\s5
\p
\v 4 तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,
\v 5 “इससे पहले कि मैंने तुझे बत्न में ख़ल्क़ किया, मैं तुझे जानता था और तेरी पैदाइश से पहले मैंने तुझे ख़ास किया, और क़ौमों के लिए तुझे नबी ठहराया।”
\v 6 तब मैंने कहा, हाय, ख़ुदावन्द ख़ुदा! देख, मैं बोल नहीं सकता, क्यूँकि मैं तो बच्चा हूँ।
\s5
\v 7 लेकिन ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, यूँ न कह कि मैं बच्चा हूँ; क्यूँकि जिस किसी के पास मैं तुझे भेजूँगा तू जाएगा, और जो कुछ मैं तुझे फ़रमाऊँगा तू कहेगा।
\v 8 तू उनके चेहरों को देखकर न डर क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैं तुझे छुड़ाने को तेरे साथ हूँ।
\s5
\v 9 तब ख़ुदावन्द ने अपना हाथ बढ़ाकर मेरे मुँह को छुआ; और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया देख मैंने अपना कलाम तेरे मुँह में डाल दिया।
\v 10 देख, आज के दिन मैंने तुझे क़ौमों पर, और सल्तनतों पर मुक़र्रर किया कि उखाड़े और ढाए, और हलाक करे और गिराए, और ता'मीर करे और लगाए।
\s5
\v 11 फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया, ऐ यरमियाह, तू क्या देखता है? मैंने 'अर्ज़ की कि “बादाम के दरख़्त की एक शाख़ देखता हूँ।”
\v 12 और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, तू ने ख़ूब देखा, क्यूँकि मैं अपने कलाम को पूरा करने के लिए बेदार' रहता हूँ।
\s5
\v 13 दूसरी बार ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रामाया तू क्या देखता है मैंने अर्ज़ की कि उबलती हुई देग देखता हूँ, जिसका मुँह उत्तर की तरफ़ से है।
\v 14 तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, उत्तर की तरफ़ से इस मुल्क के तमाम बाशिन्दों पर आफ़त आएगी।
\s5
\v 15 क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, देख, मैं उत्तर की सल्तनतों के तमाम ख़ान्दानों को बुलाऊँगा, और वह आएँगे और हर एक अपना तख़्त येरूशलेम के फाटकों के मदख़ल पर, और उसकी सब दीवारों के चारों तरफ़, और यहूदाह के तमाम शहरों के सामने क़ाईम करेगा।
\v 16 और मैं उनकी सारी शरारत की वजह से उन पर फ़तवा दूँगा; क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया और ग़ैर — मा'बूदों के सामने लुबान जलाया और अपनी ही दस्तकारी को सिज्दा किया।
\s5
\v 17 इसलिए तू अपनी कमर कसकर उठ खड़ा हो, और जो कुछ मैं तुझे फ़रमाऊँ उनसे कह। उनके चेहरों को देखकर न डर, ऐसा न हो कि मैं तुझे उनके सामने शर्मिंदा करूँ।
\v 18 क्यूँकि देख, मैं आज के दिन तुझ को इस तमाम मुल्क, और यहूदाह के बादशाहों और उसके अमीरों और उसके काहिनों और मुल्क के लोगों के सामने, एक फ़सीलदार शहर और लोहे का सुतून और पीतल की दीवार बनाता हूँ।
\v 19 और वह तुझ से लड़ेंगे, लेकिन तुझ पर ग़ालिब न आएँगे; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं तुझे छुड़ाने को तेरे साथ हूँ।
\s5
\c 2
\s ख़ुदा का अपने लोगों के ख़िलाफ बोलना
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया कि
\v 2 “तू जा और येरूशलेम के कान में पुकार कर कह कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि 'मैं तेरी जवानी की उल्फ़त, और तेरी शादी की मुहब्बत को याद करता हूँ कि तू वीरान या'नी बंजर ज़मीन में मेरे पीछे पीछे चली।
\v 3 इस्राईल ख़ुदावन्द का पाक, और उसकी अफ़्ज़ाइश का पहला फल था; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उसे निगलने वाले सब मुजरिम ठहरेंगे, उन पर आफ़त आएगी।”
\s5
\v 4 ऐ अहल — ए — या'क़ूब और अहल — ए — इस्राईल के सब ख़ानदानों ख़ुदावन्द का कलाम सुनो:
\v 5 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि “तुम्हारे बाप — दादा ने मुझ में कौन सी बे — इन्साफ़ी पाई, जिसकी वजह से वह मुझसे दूर हो गए और झूठ की पैरवी करके बेकार हुए?
\v 6 और उन्होंने यह न कहा कि 'ख़ुदावन्द कहाँ है जो हमको मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया, और वीरान और बंजर और गढ़ों की ज़मीन में से, ख़ुश्की और मौत के साये की सरज़मीन में से, जहाँ से न कोई गुज़रता और न कोई क़याम करता था, हमको ले आया?”
\s5
\v 7 और मैं तुम को बाग़ों वाली ज़मीन में लाया कि तुम उसके मेवे और उसके अच्छे फल खाओ; लेकिन जब तुम दाख़िल हुए, तो तुम ने मेरी ज़मीन को नापाक कर दिया और मेरी मीरास को मकरूह बनाया।
\v 8 काहिनों ने न कहा, कि 'ख़ुदावन्द कहाँ है?' और अहल — ए — शरी'अत ने मुझे न जाना; और चरवाहों ने मुझसे सरकशी की, और नबियों ने बा'ल के नाम से नबुव्वत की और उन चीज़ों की पैरवी की जिनसे कुछ फ़ायदा नहीं।
\s5
\v 9 इसलिए ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं फिर तुम से झगड़ूँगा और तुम्हारे बेटों के बेटों से झगड़ा करूँगा।
\v 10 क्यूँकि पार गुज़रकर कित्तीम के जज़ीरों में देखो, और क़ीदार में क़ासिद भेजकर दरियाफ़्त करो, और देखो कि ऐसी बात कहीं हुई है?
\v 11 क्या किसी क़ौम ने अपने मा'बूदों को, हालाँकि वह ख़ुदा नहीं, बदल डाला? लेकिन मेरी क़ौम ने अपने जलाल को बेफ़ायदा चीज़ से बदला।
\s5
\v 12 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ आसमानो, इससे हैरान हो; शिद्दत से थरथराओ और बिल्कुल वीरान हो जाओ'।
\v 13 क्यूँकि मेरे लोगों ने दो बुराइयाँ कीं:उन्होंने मुझ आब — ए — हयात के चश्मे को छोड़ दिया और अपने लिए हौज़ खोदे हैं शिकस्ता हौज़ जिनमें पानी नहीं ठहर सकता।
\s5
\v 14 क्या इस्राईल ग़ुलाम है? क्या वह ख़ानाज़ाद है? वह किस लिए लूटा गया?
\v 15 जवान शेर — ए — बबर उस पर गु़र्राए और गरजे, और उन्होंने उसका मुल्क उजाड़ दिया। उसके शहर जल गए, वहाँ कोई बसने वाला न रहा।
\v 16 बनी नूफ़ और बनी तहफ़नीस ने भी तेरी खोपड़ी फोड़ी।
\v 17 क्या तू ख़ुद ही यह अपने ऊपर नहीं लाई कि तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को छोड़ दिया, जब कि वह तेरी रहबरी करता था?
\s5
\v 18 और अब सीहोर “का पानी पीने को मिस्र की राह में तुझे क्या काम? और दरिया — ए — फ़रात का पानी पीने को असूर की राह में तेरा क्या मतलब?
\v 19 तेरी ही शरारत तेरी तादीब करेगी, और तेरी नाफ़रमानी तुझ को सज़ा देगी। ख़ुदावन्द रब्ब — उल — अफ़वाज, फ़रमाता है, देख और जान ले कि यह बुरा और बहुत ही ज़्यादा बेजा काम है कि तूने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को छोड़ दिया, और तुझ को मेरा ख़ौफ़ नहीं।
\s5
\v 20 क्यूँकि मुद्दत हुई कि तूने अपने जुए को तोड़ डाला और अपने बन्धनों के टुकड़े कर डाले, और कहा, 'मैं ताबे' न रहूँगी।” हाँ, हर एक ऊँचे पहाड़ पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे तू बदकारी के लिए लेट गई।
\v 21 मैंने तो तुझे कामिल ताक लगाया और उम्दा बीज बोया था, फिर तू क्यूँकर मेरे लिए बेहक़ीक़त जंगली अंगूर का दरख़्त हो गई?
\v 22 हर तरह तू अपने को सज्जी से धोए और बहुत सा साबुन इस्ते'माल करे, तो भी ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, तेरी शरारत का दाग़ मेरे सामने ज़ाहिर है।
\s5
\v 23 तू क्यूँकर कहती है, 'मैं नापाक नहीं हूँ, मैंने बा'लीम की पैरवी नहीं की'? वादी में अपने चाल — चलन देख, और जो कुछ तूने किया है मा'लूम कर। तू तेज़रौ ऊँटनी की तरह है जो इधर — उधर दौड़ती है;
\v 24 मादा गोरख़र की तरह जो वीराने की 'आदी है, जो शहवत के जोश में हवा को सूँघती है; उसकी मस्ती की हालत में कौन उसे रोक सकता है? उसके तालिब मान्दा न होंगे, उसकी मस्ती के दिनों में “वह उसे पा लेंगे।
\v 25 तू अपने पाँव को नंगे पन से और अपने हलक़ को प्यास से बचा। लेकिन तूने कहा, 'कुछ उम्मीद नहीं, हरगिज़ नहीं; क्यूँकि मैं बेगानों पर आशिक़ हूँ और उन्हीं के पीछे जाऊँगी।”
\s5
\v 26 जिस तरह चोर पकड़ा जाने पर रुस्वा होता है, उसी तरह इस्राईल का घराना रुस्वा हुआ; वह और उसके बादशाह, और हाकिम और काहिन, और नबी;
\v 27 जो लकड़ी से कहते हैं, 'तू मेरा बाप है, और पत्थर से, 'तू ने मुझे पैदा किया। क्यूँकि उन्होंने मेरी तरफ़ मुँह न किया बल्कि पीठ की; लेकिन अपनी मुसीबत के वक़्त वह कहेंगे, 'उठकर हमको बचा!
\v 28 लेकिन तेरे बुत कहाँ हैं, जिनको तूने अपने लिए बनाया? अगर वह तेरी मुसीबत के वक़्त तुझे बचा सकते हैं तो उठें; क्यूँकि ऐ यहूदाह, जितने तेरे शहर हैं उतने ही तेरे मा'बूद हैं।
\s5
\v 29 “तुम मुझसे क्यूँ हुज्जत करोगे? तुम सब ने मुझसे बग़ावत की है,” ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 30 मैंने बेफ़ायदा तुम्हारे बेटों को पीटा, वह तरबियत पज़ीर न हुए; तुम्हारी ही तलवार फाड़ने वाले शेर — ए — बबर की तरह तुम्हारे नबियों को खा गई।
\v 31 ऐ इस नसल के लोगों, ख़ुदावन्द के कलाम का लिहाज़ करो। क्या मैं इस्राईल के लिए वीरान या तारीकी की ज़मीन हुआ? मेरे लोग क्यूँ कहते हैं, 'हम आज़ाद हो गए, फिर तेरे पास न आएँगे?'
\s5
\v 32 क्या कुँवारी अपने ज़ेवर, या दुल्हन अपनी आराइश भूल सकती है? लेकिन मेरे लोग तो मुद्दत — ए — मदीद से मुझ को भूल गए।
\v 33 तू तलब — ए इश्क में अपनी राह को कैसी आरास्ता करती है। यक़ीनन तूने फ़ाहिशा 'औरतों को भी अपनी राहें सिखाई हैं।
\v 34 तेरे ही दामन पर बेगुनाह ग़रीबों का ख़ून भी पाया गया; तूने उनको नक़ब लगाते नहीं पकड़ा; बल्कि इन्हीं सब बातों की वजह से,
\s5
\v 35 तो भी तू कहती है, 'मैं बेक़ुसूर हूँ, उसका ग़ज़ब यक़ीनन मुझ पर से टल जाएगा; देख, मैं तुझ पर फ़तवा दूँगा क्यूँकि तू कहती है, 'मैंने गुनाह नहीं किया।
\v 36 तू अपनी राह बदलने को ऐसी बेक़रार क्यूँ फिरती है? तू मिस्र से भी शर्मिन्दा होगी, जैसे असूर से हुई।
\v 37 वहाँ से भी तू अपने सिर पर हाथ रख कर निकलेगी; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको जिन पर तूने भरोसा किया हक़ीर जाना, और तू उनसे कामयाब न होगी।
\s5
\c 3
\p
\v 1 कहते हैं कि 'अगर कोई मर्द अपनी बीवी को तलाक दे दे, और वह उसके यहाँ से जाकर किसी दूसरे मर्द की हो जाए, तो क्या वह पहला फिर उसके पास जाएगा? क्या वह ज़मीन बहुत नापाक न होगी? लेकिन तूने तो बहुत से यारों के साथ बदकारी की है; क्या अब भी तू मेरी तरफ़ फिरेगी? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 2 पहाड़ों की तरफ़ अपनी आँखें उठा और देख! कौन सी जगह है जहाँ तूने बदकारी नहीं की? तू राह में उनके लिए इस तरह बैठी, जिस तरह वीराने में 'अरब। तूने अपनी बदकारी और शरारत से ज़मीन को नापाक किया।
\s5
\v 3 इसलिए बारिश नहीं होती और आख़िरी बरसात नहीं हुई तेरी पेशानी फ़ाहिशा की है और तुझ को शर्म नहीं आती'।
\v 4 क्या तू अब से मुझे पुकार कर न कहेगी, ऐ मेरे बाप, तू मेरी जवानी का रहबर था?
\v 5 क्या उसका क़हर हमेशा रहेगा? क्या वह उसे हमेशा तक रख छोड़ेगा? देख, तू ऐसी बातें तो कह चुकी, लेकिन जहाँ तक तुझ से हो सका तूने बुरे काम किए।
\s यहूदाह का इस्राईल के नमूने को देख कर चलना
\s5
\p
\v 6 और यूसियाह बादशाह के दिनों में ख़ुदावन्द ने मुझसे फ़रमाया, क्या तूने देखा, नाफ़रमान इस्राईल ने क्या किया है? वह हर एक ऊँचे पहाड़ पर और हर एक हरे दरख़्त के नीचे गई, और वहाँ बदकारी की।
\v 7 और जब वह ये सब कुछ कर चुकी तो मैंने कहा, वह मेरी तरफ़ वापस आएगी; लेकिन वह न आई, और उसकी बेवफ़ा बहन यहूदाह ने ये हाल देखा।
\s5
\v 8 फिर मैंने देखा कि जब फिरे हुए इस्राईल की ज़िनाकारी की वजह से मैंने उसको तलाक़ दे दिया, और उसे तलाक़नामा लिख दिया तो भी उसकी बेवफ़ा बहन यहूदाह न डरी; बल्कि उसने भी जाकर बदकारी की।
\v 9 और ऐसा हुआ कि उसने अपनी बदकारी की बुराई से ज़मीन को नापाक किया, और पत्थर और लकड़ी के साथ ज़िनाकारी की।
\v 10 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि बावजूद इस सब के उसकी बेवफ़ा बहन यहूदाह सच्चे दिल से मेरी तरफ़ न फिरी, बल्कि रियाकारी से।
\s5
\v 11 और ख़ुदावन्द ने मुझसे फ़रमाया, नाफ़रमान इस्राईल ने बेवफ़ा यहूदाह से ज़्यादा अपने आपको सच्चा साबित किया है।
\v 12 जा और उत्तर की तरफ़ यह बात पुकारकर कह दे कि 'ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ नाफ़रमान इस्राईल, वापस आ; मैं तुझ पर क़हर की नज़र नहीं करूँगा क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैं रहीम हूँ मेरा क़हर हमेशा का नहीं।
\s5
\v 13 सिर्फ़ अपनी बदकारी का इक़रार कर कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से 'आसी हो गई, और हर एक हरे दरख़्त के नीचे ग़ैरों के साथ इधर — उधर आवारा फिरी; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तुम मेरी आवाज़ के सुनने वाले न हुए।
\v 14 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, 'ऐ नाफ़रमान बच्चों, वापस आओ; क्यूँकि मैं ख़ुद तुम्हारा मालिक हूँ, और मैं तुम को हर एक शहर में से एक, और हर एक घराने में से दो लेकर सिय्यून में लाऊँगा।
\v 15 “और मैं तुम को अपने ख़ातिर ख़्वाह चरवाहे दूँगा, और वह तुम को समझदारी और 'अक़्लमन्दी से चराएँगे।
\s5
\v 16 और यूँ होगा कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि जब उन दिनों में तुम मुल्क में बढ़ोगे और बहुत होगे, तब वह फिर न कहेंगे कि 'ख़ुदावन्द के 'अहद का सन्दूक़'; उसका ख़याल भी कभी उनके दिल में न आएगा, वह हरगिज़ उसे याद न करेंगे और उसकी ज़ियारत को न जाएँगे, और उसकी मरम्मत न होगी।
\s5
\v 17 उस वक़्त येरूशलेम ख़ुदावन्द का तख़्त कहलाएगा, और उसमें या'नी येरूशलेम में, सब क़ौमें ख़ुदावन्द के नाम से जमा' होंगी; और वह फिर अपने बुरे दिल की सख़्ती की पैरवी न करेंगे।
\v 18 उन दिनों में यहूदाह का घराना इस्राईल के घराने के साथ चलेगा, वह मिलकर उत्तर के मुल्क में से उस मुल्क में जिसे मैंने तुम्हारे बाप — दादा को मीरास में दिया, आएँगे।
\s5
\v 19 'आह, मैंने तो कहा था, मैं तुझ को फ़र्ज़न्दों में शामिल करके ख़ुशनुमा मुल्क या'नी क़ौमों की नफ़ीस मीरास तुझे दूँगा; और तू मुझे बाप कह कर पुकारेगी, और तू फिर मुझसे न फिरेगी।
\v 20 लेकिन ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ इस्राईल के घराने, जिस तरह बीवी बेवफ़ाई से अपने शौहर को छोड़ देती है, उसी तरह तूने मुझसे बेवफ़ाई की है।
\s5
\v 21 पहाड़ों पर बनी — इस्राईल की गिरया — ओ — ज़ारी और मिन्नत की आवाज़ सुनाई देती है क्यूँकि उन्होंने अपनी राह टेढ़ी की और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को भूल गए।
\v 22 'ऐ नाफ़रमान फ़र्ज़न्द वापस आओ मैं तुम्हारी नाफ़रमानी का चारा करूँगा। देख, हम तेरे पास आते हैं; क्यूँकि तू ही, ऐ ख़ुदावन्द, हमारा ख़ुदा है।
\s5
\v 23 हक़ीक़त में टीलों और पहाड़ों पर के हुजूम से कुछ उम्मीद रखना बेफ़ायदा है। यक़ीनन ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ही में इस्राईल की नजात है।
\v 24 लेकिन इस रुस्वाई की वजह ने हमारी जवानी के वक़्त से हमारे बाप — दादा के माल को, और उनकी भेड़ों और उनके बैलों और उनके बेटे और बेटियों को निगल लिया है।
\v 25 हम अपनी शर्म में लेटें और रुस्वाई हमको छिपा ले, क्यूँकि हम और हमारे बाप — दादा अपनी जवानी के वक़्त से आज तक ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के ख़ताकार हैं। और हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ के सुनने वाले नहीं हुए।”
\s5
\c 4
\p
\v 1 “ऐ इस्राईल, अगर तू वापस आए, ख़ुदावन्द फ़रमाता है अगर तू मेरी तरफ़ वापस आए; और अपनी मकरूहात को मेरी नज़र से दूर करे तो तू आवारा न होगा;
\v 2 और अगर तू सच्चाई और 'अदालत और सदाक़त से ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम खाए, तो क़ौमें उसकी वजह से अपने आपको मुबारक कहेंगी और उस पर फ़ख़्र करेंगी।”
\s यहूदाह के खिलाफ़ आने वाला फैसला
\p
\v 3 क्यूँकि ख़ुदावन्द यहूदाह और येरूशलेम के लोगों को यूँ फ़रमाता है: “अपनी उम्दा ज़मीन पर हल चलाओ, और काँटों में बीज न बोया करो।
\s5
\v 4 'ऐ यहूदाह के लोगों, और येरूशलेम के बाशिन्दो, ख़ुदावन्द के लिए अपना ख़तना कराओ; हाँ, अपने दिल का ख़तना करो; ऐसा न हो कि तुम्हारी बद'आमाली की वजह से मेरा क़हर आग की तरह शो'लाज़न हो, और ऐसा भड़के के कोई बुझा न सके।”
\v 5 यहूदाह में इश्तिहार दो, और येरूशलेम में इसका 'ऐलान करो और कहो, तुम मुल्क में नरसिंगा फूँको, बलन्द आवाज़ से पुकारो और कहो कि “जमा' हो, कि हसीन शहरों में चलें।
\v 6 तुम सिय्यून ही में झण्डा खड़ा करो, पनाह लेने को भागो और देर न करो, क्यूँकि मैं बला और हलाकत — ए — शदीद को उत्तर की तरफ़ से लाता हूँ।
\s5
\v 7 शेर — ए — बबर झाड़ियों से निकला है, और क़ौमों के हलाक करने वाले ने रवानगी की है; वह अपनी जगह से निकला है कि तेरी ज़मीन को वीरान करे, ताकि तेरे शहर वीरान हों और कोई बसने वाला न रहे।
\v 8 इसलिए टाट ओढ़कर छाती पीटो और वावैला करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर — ए — शदीद हम पर से टल नहीं गया।”
\s5
\v 9 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उस वक़्त यूँ होगा कि बादशाह और सरदार बे — दिल हो जायेंगे और काहिन हैरतज़दा और नबी शर्मिंदा होंगे।
\v 10 तब मैंने कहा, अफ़सोस, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, यक़ीनन तूने इन लोगों और येरूशलेम को ये कह कर दग़ा दी कि तुम सलामत रहोगे; हालाँकि तलवार जान तक पहुँच गई है।
\s5
\v 11 उस वक़्त इन लोगों और येरूशलेम से ये कहा जाएगा कि 'वीराने के पहाड़ों पर से एक ख़ुश्क हवा मेरी दुख़्तर — ए — क़ौम की तरफ़ चलेगी, उसाने और साफ़ करने के लिए नहीं,
\v 12 बल्कि वहाँ से एक बहुत तुन्द हवा मेरे लिए चलेगी; अब मैं भी उन पर फ़तवा दूँगा।
\s5
\v 13 देखो, वह घटा की तरह चढ़ आएगा, उसके रथ गिर्दबाद की तरह और उसके घोड़े 'उक़ाबों के जैसे तेज़तर हैं। हम पर अफ़सोस के हाय, हम बर्बाद हो गए!
\v 14 ऐ येरूशलेम, तू अपने दिल को शरारत से पाक कर ताकि तू रिहाई पाए। बुरे ख़यालात कब तक तेरे दिल में रहेंगे?
\v 15 क्यूँकि दान से एक आवाज़ आती है, और इफ़्राईम के पहाड़ से मुसीबत की ख़बर देती है;
\s5
\v 16 क़ौमों को ख़बर दो, देखो, येरूशलेम के बारे में 'ऐलान करो कि “घिराव करने वाले दूर के मुल्क से आते हैं, और यहूदाह के शहरों के सामने ललकारेंगे
\v 17 खेत के रखवालों की तरह वह उसे चारों तरफ़ से घेरेंगे, क्यूँकि उसने मुझसे बग़ावत की, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 18 तेरी चाल और तेरे कामों से यह मुसीबत तुझ पर आयी है। यह तेरी शरारत है, यह बहुत तल्ख़ है, क्यूँकि यह तेरे दिल तक पहुँच गई है।”
\s5
\v 19 हाय, मेरा दिल! मेरे पर्दा — ए — दिल में दर्द है! मेरा दिल बेताब है, मैं चुप नहीं रह सकता; क्यूँकि ऐ मेरी जान, तूने नरसिंगे की आवाज़ और लड़ाई की ललकार सुन ली है।
\v 20 शिकस्त पर शिकस्त की ख़बर आती है, यक़ीनन तमाम मुल्क बर्बाद हो गया; मेरे ख़ेमे अचानक और मेरे पर्दे एक दम में बर्बाद किए गए।
\s5
\v 21 मैं कब तक ये झण्डा देखूँ और नरसिंगे की आवाज़ सुनूँ?
\v 22 “हक़ीक़त में मेरे लोग बेवक़ूफ़ हैं, उन्होंने मुझे नहीं पहचाना; वह बेश'ऊर बच्चे हैं और फ़र्क़ नहीं रखते बुरे काम करने में होशियार हैं, लेकिन नेक काम की समझ नहीं रखते।”
\s5
\v 23 मैंने ज़मीन पर नज़र की, और क्या देखता हूँ कि वीरान और सुनसान है; आसमानों को भी बेनूर पाया।
\v 24 मैंने पहाड़ों पर निगाह की, और क्या देखता हूँ कि वह काँप गए, और सब टीले लर्ज़िश खा गए।
\v 25 मैंने नज़र की, और क्या देखता हूँ कि कोई आदमी नहीं, और सब हवाई परिन्दे उड़ गए।
\v 26 फिर मैंने नज़र की और क्या देखता हूँ कि ज़रखेत ज़मीन वीरान हो गई, और उसके सब शहर ख़ुदावन्द की हुज़ूरी और उसके क़हर की शिद्दत से बर्बाद हो गए।
\s5
\v 27 क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि तमाम मुल्क वीरान होगा तोभी मैं उसे बिल्कुल बर्बाद न करूँगा।
\v 28 इसीलिए ज़मीन मातम करेगी और ऊपर से आसमान तारीक हो जाएगा; क्यूँकि मैं कह चुका, मैंने इरादा किया है, मैं उससे पशेमान न हूँगा और उससे बाज़ न आऊँगा।
\v 29 सवारों और तीरअंदाज़ों के शोर से तमाम शहरी भाग जाएँगे; वह घने जंगलों में जा घुसेंगे, और चट्टानों पर चढ़ जाएँगे, सब शहर छोड़ दिए जायेंगे और कोई आदमी उनमें न रहेगा।
\s5
\v 30 तब ऐ ग़ारतशुदा, तू क्या करेगी? अगरचे तू लाल जोड़ा पहने, अगरचे तू ज़र्रीन ज़ेवरों से आरास्ता हो, अगरचे तू अपनी आँखों में सुरमा लगाए, तू 'अबस अपने आपको ख़ूबसूरत बनाएगी; तेरे 'आशिक़ तुझ को हक़ीर जानेंगे, वह तेरी जान के तालिब होंगे।
\v 31 क्यूँकि मैंने उस 'औरत की जैसी आवाज़ सुनी है जिसे दर्द लगे हों, और उसकी जैसी दर्दनाक आवाज़ जिसके पहला बच्चा पैदा हो, या'नी दुख़्तर — ए — सिय्यून की आवाज़, जो हाँपती और अपने हाथ फैलाकर कहती है, 'हाय! क़ातिलों के सामने मेरी जान बेताब है।
\s5
\c 5
\s यहूदाह के गुनाह
\p
\v 1 अब येरूशलेम की गलियों में इधर — उधर गश्त करो; और देखो और दरियाफ़्त करो, और उसके चौकों में ढूँडो, अगर कोई आदमी वहाँ मिले जो इन्साफ़ करनेवाला और सच्चाई का तालिब हो, तो मैं उसे मु'आफ़ करूँगा।
\v 2 और अगरचे वह कहते हैं, ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम, तो भी यक़ीनन वह झूटी क़सम खाते हैं।
\v 3 ऐ ख़ुदावन्द, क्या तेरी आँखें सच्चाई पर नही हैं? तूने उनको मारा है, लेकिन उन्होंने अफ़सोस नहीं किया; तूने उनको बर्बाद किया, लेकिन वह तरबियत — पज़ीर न हुए; उन्होंने अपने चेहरों को चट्टान से भी ज़्यादा सख़्त बनाया, उन्होंने वापस आने से इन्कार किया है।
\s5
\v 4 तब मैंने कहा कि “यक़ीनन ये बेचारे जाहिल हैं, क्यूँकि ये ख़ुदावन्द की राह और अपने ख़ुदा के हुक्मों को नहीं जानते।
\v 5 मैं बुज़ुर्गों के पास जाऊँगा, और उनसे कलाम करूँगा; क्यूँकि वह ख़ुदावन्द की राह और अपने ख़ुदा के हुक्मों को जानते हैं।” लेकिन इन्होंने जूआ बिल्कुल तोड़ डाला, और बन्धनों के टुकड़े कर डाले।
\v 6 इसलिए जंगल का शेर — ए — बबर उनको फाड़ेगा वीराने का भेड़िया हलाक करेगा, चीता उनके शहरों की घात में बैठा रहेगा; जो कोई उनमें से निकले फाड़ा जाएगा, क्यूँकि उनकी सरकशी बहुत हुई और उनकी नाफ़रमानी बढ़ गई।
\s5
\v 7 मैं तुझे क्यूँकर मु'आफ़ करूँ? तेरे फ़र्ज़न्दों ने' मुझ को छोड़ा, और उनकी क़सम खाई जो ख़ुदा नहीं हैं। जब मैंने उनको सेर किया, तो उन्होंने बदकारी की और परे बाँधकर क़हबाख़ानों में इकट्ठे हुए।
\v 8 वह पेट भरे घोड़ों की तरह हो गए, हर एक सुबह के वक़्त अपने पड़ोसी की बीवी पर हिनहिनाने लगा।
\v 9 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या मैं इन बातों के लिए सज़ा न दूँगा, और क्या मेरी रूह ऐसी क़ौमों से इन्तक़ाम न लेगी?
\s5
\v 10 'उसकी दीवारों पर चढ़ जाओ और तोड़ डालो, लेकिन बिल्कुल बर्बाद न करो, उसकी शाख़ें काट दो, क्यूँकि वह ख़ुदावन्द की नहीं हैं।
\v 11 इसलिए कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने ने मुझसे बहुत बेवफ़ाई की।
\v 12 “उन्होंने ख़ुदावन्द का इन्कार किया और कहा कि 'वह नहीं है, हम पर हरगिज़ आफ़त न आएगी, और तलवार और काल को हम न देखेंगे;
\v 13 और नबी महज़ हवा हो जाएँगे, और कलाम उनमें नहीं है; उनके साथ ऐसा ही होगा।”
\s5
\v 14 फिर इसलिए कि तुम यूँ कहते हो, ख़ुदावन्द रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि, देख, मैं अपने कलाम को तेरे मुँह में आग और इन लोगों को लकड़ी बनाऊँगा और वह इनको भसम कर देगी।
\v 15 ऐ इस्राईल के घराने, देख, मैं एक क़ौम को दूर से तुझ पर चढ़ा लाऊँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है वह ज़बरदस्त क़ौम है, वह क़दीम क़ौम है, वह ऐसी क़ौम है जिसकी ज़बान तू नहीं जानता और उनकी बात को तू नहीं समझता।
\s5
\v 16 उनके तरकश खुली क़ब्रे हैं, वह सब बहादुर मर्द हैं।
\v 17 और वह तेरी फ़सल का अनाज और तेरी रोटी, जो तेरे बेटों और बेटियों के खाने की थी, खा जाएँगे; तेरे गाय — बैल और तेरी भेड़ बकरियों को चट कर जाएँगे, तेरे अंगूर और अंजीर निगल जाएँगे, तेरे हसीन शहरों को जिन पर तेरा भरोसा है, तलवार से वीरान कर देंगे।
\s5
\v 18 “लेकिन ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन दिनों में भी मैं तुम को बिल्कुल बर्बाद न करूँगा।
\v 19 और यूँ होगा कि जब वह कहेंगे, 'ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने यह सब कुछ हम से क्यूँ किया?' तो तू उनसे कहेगा, जिस तरह तुम ने मुझे छोड़ दिया और अपने मुल्क में ग़ैर मा'बूदों की इबादत की, उसी तरह तुम उस मुल्क में जो तुम्हारा नहीं है, अजनबियों की ख़िदमत करोगे।”
\s5
\v 20 या'क़ूब के घराने में इस बात का इश्तिहार दो, और यहूदाह में इसका 'ऐलान करो और कहो,
\v 21 “अब ज़रा सुनो, ऐ नादान और बे'अक़्ल लोगों, जो आँखें रखते हो लेकिन देखते नहीं, जो कान रखते हो लेकिन सुनते नहीं।
\v 22 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या तुम मुझसे नहीं डरते? क्या तुम मेरे सामने थरथराओगे नहीं, जिसने रेत को समन्दर की हद पर हमेशा के हुक्म से क़ाईम किया कि वह उससे आगे नहीं बढ़ सकता और हरचन्द उसकी लहरें उछलती हैं, तोभी ग़ालिब नहीं आतीं; और हरचन्द शोर करती हैं, तो भी उससे आगे नहीं बढ़ सकतीं।
\s5
\v 23 लेकिन इन लोगों के दिल बाग़ी और सरकश हैं; इन्होंने सरकशी की और दूर हो गए।
\v 24 इन्होंने अपने दिल में न कहा कि हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से डरें, जो पहली और पिछली बरसात वक़्त पर भेजता है, और फ़सल के मुक़र्ररा हफ़्तों को हमारे लिए मौजूद कर रखता है।
\v 25 तुम्हारी बदकिरदारी ने इन चीज़ों को तुम से दूर कर दिया, और तुम्हारे गुनाहों ने अच्छी चीज़ों को तुम से बाज़ रखा'।
\s5
\v 26 क्यूँकि मेरे लोगों में शरीर पाए जाते हैं; वह फन्दा लगाने वालों की तरह घात में बैठते हैं, वह जाल फैलाते और आदमियों को पकड़ते हैं।
\v 27 जैसे पिंजरा चिड़ियों से भरा हो, वैसे ही उनके घर फ़रेब से भरे हैं, तब वह बड़े और मालदार हो गए।
\v 28 वह मोटे हो गए, वह चिकने हैं। वह बुरे कामों में सबक़त ले जाते हैं, वह फ़रियाद या'नी यतीमों की फ़रियाद, नहीं सुनते ताकि उनका भला हो और मोहताजों का इन्साफ़ नहीं करते।
\v 29 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या मैं इन बातों के लिए सज़ा न दूँगा? और क्या मेरी रूह ऐसी क़ौम से इन्तक़ाम न लेगी?”
\s5
\v 30 मुल्क में एक हैरतअफ़ज़ा और हौलनाक बात हुई;
\v 31 नबी झूठी नबुव्वत करते हैं, और काहिन उनके वसीले से हुक्मरानी करते हैं, और मेरे लोग ऐसी हालत को पसन्द करते हैं, अब तुम इसके आख़िर में क्या करोगे?
\s5
\c 6
\s यरुशलेम को आखिरी बार खबरदार करना
\p
\v 1 ऐ बनी बिनयमीन, येरूशलेम में से पनाह के लिए भाग निकलो, और तक़ू'अ में नरसिंगा फूँको और बैत हक्करम में आतिशीन 'अलम बलन्द करो; क्यूँकि उत्तर की तरफ़ से बला और बड़ी तबाही आनेवाली है।
\v 2 मैं दुख़्तर — ए — सिय्यून को जो शकील और नाज़नीन है, हलाक करूँगा।
\v 3 चरवाहे अपने गल्लों को लेकर उसके पास आएँगे और चारों तरफ़ उसके सामने ख़ेमे खड़े करेंगे हर एक अपनी जगह में चराएगा।
\s5
\v 4 “उससे जंग के लिए अपने आपको ख़ास करो; उठो, दोपहर ही को चढ़ चलें! हम पर अफ़सोस, क्यूँकि दिन ढलता जाता है, और शाम का साया बढ़ता जाता है!
\v 5 उठो, रात ही को चढ़ चलें और उसके क़स्रों को ढा दें!”
\s5
\v 6 क्यूँकि रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: 'दरख़्त काट डालो, और येरूशलेम के सामने दमदमा बाँधो; यह शहर सज़ा का सज़ावार है, इसमें ज़ुल्म ही ज़ुल्म हैं।
\v 7 जिस तरह पानी चश्मे से फूट निकलता है, उसी तरह शरारत इससे जारी है; ज़ुल्म और सितम की हमेशा इसमें सुनी जाती है, हर दम मेरे सामने दुख दर्द और ज़ख़्म हैं।
\v 8 ऐ येरूशलेम, तरबियत — पज़ीर हो; ऐसा न हो कि मेरा दिल तुझ से हट जाए, न हो कि मैं तुझे वीरान और ग़ैरआबाद ज़मीन बना दूँ।
\s5
\v 9 रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: “वह इस्राईल के बक़िये को अंगूर की तरह ढूँडकर तोड़ लेंगे। तू अंगूर तोड़ने वाले की तरह फिर अपना हाथ शाख़ों में डाल।”
\v 10 मैं किससे कहूँ और किसको जताऊँ, ताकि वह सुनें? देख, उनके कान नामख़्तून हैं और वह सुन नहीं सकते; देख, ख़ुदावन्द का कलाम उनके लिए हिक़ारत का ज़रिया' है, वह उससे ख़ुश नहीं होते।
\s5
\v 11 इसलिए मैं ख़ुदावन्द के क़हर से लबरेज़ हूँ, मैं उसे ज़ब्त करते करते तंग आ गया। बाज़ारों में बच्चों पर और जवानों की जमा'अत पर उसे उँडेल दे, क्यूँकि शौहर अपनी बीवी के साथ और बूढ़ा कुहनसाल के साथ गिरफ़्तार होगा।
\v 12 और उनके घर खेतों और बीवियों के साथ औरों के हो जायेंगे क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं अपना हाथ इस मुल्क के बाशिन्दों पर बढ़ाऊँगा।
\s5
\v 13 इसलिए कि छोटों से बड़ों तक सब के सब लालची हैं, और नबी से काहिन तक हर एक दग़ाबाज़ है।
\v 14 क्यूँकि वह मेरे लोगों के ज़ख़्म को यूँही 'सलामती सलामती' कह कर अच्छा करते हैं, हालाँकि सलामती नहीं है।
\v 15 क्या वह अपने मकरूह कामों की वजह से शर्मिन्दा हुए? वह हरगिज़ शर्मिन्दा न हुए, बल्कि वह लजाए तक नहीं; इस वास्ते वह गिरने वाले के साथ गिरेंगे ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब मैं उनको सज़ा दूँगा, तो पस्त हो जाएँगे।
\s5
\v 16 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: 'रास्तों पर खड़े हो और देखो, और पुराने रास्तों के बारे में पूछो कि अच्छी राह कहाँ है, उसी पर चलो और तुम्हारी जान राहत पाएगी। लेकिन उन्होंने कहा, 'हम उस पर न चलेंगे।
\v 17 और मैंने तुम पर निगहबान भी मुक़र्रर किए और कहा, 'नरसिंगे की आवाज़ सुनो!' लेकिन उन्होंने कहा, 'हम न सुनेंगे।
\v 18 इसलिए ऐ क़ौमों, सुनो, और ऐ अहल — ए — मजमा', मा'लूम करो कि उनकी क्या हालत है।
\v 19 ऐ ज़मीन सुन; देख, मैं इन लोगों पर आफ़त लाऊँगा जो इनके अन्देशों का फल है, क्यूँकि इन्होंने मेरे कलाम को नहीं माना और मेरी शरी'अत को रद्द कर दिया है।
\s5
\v 20 इससे क्या फ़ायदा के सबा से लुबान और दूर के मुल्क से अगर मेरे सामने लाते हैं? तुम्हारी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ मुझे पसन्द नहीं, और तुम्हारी क़ुर्बानियों से मुझे ख़ुशी नहीं।
\v 21 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि 'देख, मैं ठोकर खिलाने वाली चीजें इन लोगों की राह में रख दूँगा; और बाप और बेटे बाहम उनसे ठोकर खायेंगे पड़ोसी और उनके दोस्त हलाक होंगे।
\v 22 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, 'देख, उत्तरी मुल्क से एक गिरोह आती है, और इन्तिहाए — ज़मीन से एक बड़ी क़ौम बरअंगेख़्ता की जाएगी।
\s5
\v 23 वह तीरअन्दाज़ और नेज़ाबाज़ हैं, वह संगदिल और बेरहम हैं, उनके ना'रों की हमेशा समन्दर की जैसी है और वह घोड़ों पर सवार हैं; ऐ दुख़्तर — ए — सिय्यून, वह जंगी मर्दों की तरह तेरे सामने सफ़आराई करते हैं।
\v 24 हमने इसकी शोहरत सुनी है, हमारे हाथ ढीले हो गए, हम ज़चा की तरह मुसीबत और दर्द में गिरफ़्तार हैं।
\s5
\v 25 मैदान में न निकलना और सड़क पर न जाना, क्यूँकि हर तरफ़ दुश्मन की तलवार का ख़ौफ़ है।
\v 26 ऐ मेरी बिन्त — ए — क़ौम, टाट औढ़ और राख में लेट, अपने इकलौतों पर मातम और दिलख़राश नोहा कर; क्यूँकि ग़ारतगर हम पर अचानक आएगा।
\s5
\v 27 “मैंने तुझे अपने लोगों में आज़माने वाला और बुर्ज मुक़र्रर किया ताकि तू उनके चाल चलनो को मा'लूम करे और परखे।
\v 28 वह सब के सब बहुत सरकश हैं, वह ग़ीबत करते हैं, वह तो ताँबा और लोहा हैं, वह सब के सब मु'आमिले के खोटे हैं।
\v 29 धौंकनी जल गई, सीसा आग से भसम हो गया; साफ़ करनेवाले ने बेफ़ायदा साफ़ किया, क्यूँकि शरीर अलग नहीं हुए।
\v 30 वह मरदूद चाँदी कहलाएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको रद्द कर दिया है।”
\s5
\c 7
\s यर्मयाह का ख़ुदावन्द के घर में बोलना
\p
\v 1 यह वह कलाम है जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,
\v 2 तू ख़ुदावन्द के घर के फाटक पर खड़ा हो, और वहाँ इस कलाम का इश्तिहार दे, और कह, ऐ यहूदाह के सब लोगों, जो ख़ुदावन्द की इबादत के लिए इन फाटकों से दाख़िल होते हो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो।
\s5
\v 3 रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है: अपने चाल चलन और अपने आ'माल दुरुस्त करो, तो मैं तुम को इस मकान में बसाऊँगा।
\v 4 झूटी बातों पर भरोसा न करो और यूँ न कहते जाओ, 'यह है ख़ुदावन्द की हैकल, ख़ुदावन्द की हैकल, ख़ुदावन्द की हैकल।
\s5
\v 5 क्यूँकि अगर तुम अपने चाल चलन और अपने आ'माल सरासर दुरुस्त करो, अगर हर आदमी और उसके पड़ोसी में पूरा इन्साफ़ करो,
\v 6 अगर परदेसी और यतीम और बेवा पर ज़ुल्म न करो, और इस मकान में बेगुनाह का ख़ून न बहाओ, और ग़ैर — मा'बूदों की पैरवी जिसमें तुम्हारा नुक़सान है, न करो,
\v 7 तो मैं तुम को इस मकान में और इस मुल्क में बसाऊँगा, जो मैंने तुम्हारे बाप — दादा को पहले से हमेशा के लिए दिया।
\s5
\v 8 देखो, तुम झूटी बातों पर जो बेफ़ायदा हैं, भरोसा करते हो।
\v 9 क्या तुम चोरी करोगे, ख़ून करोगे, ज़िनाकारी करोगे, झूटी क़सम खाओगे, और बा'ल के लिए ख़ुशबू जलाओगे और ग़ैर मा'बूदों की जिनको तुम नहीं जानते थे, पैरवी करोगे।
\v 10 और मेरे सामने इस घर में जो मेरे नाम से कहलाता है, आकर खड़े होगे और कहोगे कि हम ने छुटकारा पाया, ताकि यह सब नफ़रती काम करो?
\v 11 क्या यह घर जो मेरे नाम से कहलाता है, तुम्हारी नज़र में डाकुओं का ग़ार बन गया? देख, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैंने खु़द यह देखा है।
\s5
\v 12 इसलिए, अब मेरे उस मकान को जाओ जो शीलोह में था, जिस पर पहले मैंने अपने नाम को क़ाईम किया था; और देखो कि मैंने अपने लोगों या'नी बनी — इस्राईल की शरारत की वजह से उससे क्या किया?
\v 13 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, अब चूँकि तुम ने यह सब काम किए, मैंने बर वक़्त' तुम को कहा और ताकीद की, लेकिन तुम ने न सुना; और मैंने तुम को बुलाया लेकिन तुम ने जवाब न दिया,
\v 14 इसलिए मैं इस घर से जो मेरे नाम से कहलाता है, जिस पर तुम्हारा भरोसा है, और इस मकान से जिसे मैंने तुम को और तुम्हारे बाप — दादा को दिया, वही करूँगा जो मैने शीलोह से किया है।
\v 15 और मैं तुम को अपने सामने से निकाल दूँगा, जिस तरह तुम्हारी सारी बिरादरी इफ़्राईम की कुल नसल को निकाल दिया है।
\s5
\v 16 “इसलिए तू इन लोगों के लिए दुआ न कर, और इनके वास्ते आवाज़ बुलन्द न कर, और मुझसे मिन्नत और शफ़ा'अत न कर क्यूँकि मैं तेरी न सुनूँगा।
\v 17 क्या तू नहीं देखता कि वह यहूदाह के शहरों में और येरूशलेम के कूचों में क्या करते हैं?
\v 18 बच्चे लकड़ी जमा' करते हैं और बाप आग सुलगाते हैं, और औरतें आटा गूँधती हैं ताकि आसमान की मलिका के लिए रोटी पकाएँ, और ग़ैर मा'बूदों के लिए तपावन तपाकर मुझे ग़ज़बनाक करें।
\s5
\v 19 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या वह मुझ ही को ग़ज़बनाक करते हैं? क्या वह अपनी ही रूसियाही के लिए नहीं करते?
\v 20 इसी वास्ते ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: देख, मेरा क़हर — ओ — ग़ज़ब इस मकान पर, और इंसान और हैवान और मैदान के दरख़्तों पर, और ज़मीन की पैदावार पर उँडेल दिया जाएगा; और वह भड़केगा और बुझेगा नहीं।”
\s5
\v 21 रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: अपने ज़बीहों पर अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ भी बढ़ाओ और गोश्त खाओ।
\v 22 क्यूँकि जिस वक़्त मैं तुम्हारे बाप दादा को मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया, उनको सोख़्तनी क़ुर्बानी और ज़बीहे के बारे में कुछ नहीं कहा और हुक्म नहीं दिया;
\v 23 बल्कि मैंने उनको ये हुक्म दिया, और फ़रमाया कि मेरी आवाज़ के शिनवा हो, और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा और तुम मेरे लोग होगे; और जिस राह की मैं तुम को हिदायत करूँ, उस पर चलो ताकि तुम्हारा भला हो।
\s5
\v 24 लेकिन उन्होंने न सुना, न कान लगाया, बल्कि अपनी मसलहतों और अपने बुरे दिल की सख़्ती पर चले और फिर गए और आगे न बढ़े।
\v 25 जब से तुम्हारे बाप — दादा मुल्क — ए — मिस्र से निकल आए, अब तक मैंने तुम्हारे पास अपने सब ख़ादिमों या'नी नबियों को भेजा, मैंने उनको हमेशा सही वक़्त पर भेजा।
\v 26 लेकिन उन्होंने मेरी न सुनी और कान न लगाया, बल्कि अपनी गर्दन सख़्त की; उन्होंने अपने बाप — दादा से बढ़कर बुराई की।
\s5
\v 27 तू ये सब बातें उनसे कहेगा, लेकिन वह तेरी न सुनेंगे; तू उनको बुलाएगा, लेकिन वह तुझे जवाब न देंगे।
\v 28 तब तू उनसे कह दे, 'यह वह क़ौम है जो ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ की शिनवा, और तरबियत पज़ीर न हुई; सच्चाई बर्बाद हो गई, और उनके मुँह से जाती रही।
\s5
\v 29 “अपने बाल काटकर फेंक दे, और पहाड़ों पर जाकर नौहा कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उन लोगों को जिन पर उसका क़हर है, रद्द और छोड़ दिया है।”
\v 30 इसलिए कि बनी यहूदाह ने मेरी नज़र में बुराई की, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन्होंने उस घर में जो मेरे नाम से कहलाता है अपनी मकरूहात रख्खी, ताकि उसे नापाक करें।
\s5
\v 31 और उन्होंने तूफ़त के ऊँचे मक़ाम बिन हिन्नोम की वादी में बनाए, ताकि अपने बेटे और बेटियों को आग में जलाएँ, जिसका मैंने हुक्म नहीं दिया और मेरे दिल में इसका ख़याल भी न आया था।
\v 32 इसलिए ख़ुदावन्द फ़रमाता है, देख, वह दिन आते हैं कि यह न तूफ़त कहलाएगी न बिन हिन्नोम की वादी, बल्कि वादी — ए — क़त्ल; और जगह न होने की वजह से तूफ़त में दफ़्न करेंगे।
\s5
\v 33 और इस क़ौम की लाशें हवाई परिन्दों और ज़मीन के दरिन्दों की ख़ुराक होंगी, और उनको कोई न हँकाएगा।
\v 34 तब मैं यहूदाह के शहरों में और येरूशलेम के बाज़ारों में ख़ुशी और ख़ुशी की आवाज़, दुल्हे और दुल्हन की आवाज़ ख़त्म करूँगा; क्यूँकि यह मुल्क वीरान हो जाएगा।
\s5
\c 8
\p
\v 1 ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि उस वक़्त वह यहूदाह के बादशाहों और उसके सरदारों और काहिनों और नबियों और येरूशलेम के बाशिन्दों की हड्डियाँ, उनकी क़ब्रों से निकाल लाएँगे;
\v 2 और उनको सूरज और चाँद और तमाम अजराम — ए — फ़लक के सामने, जिनको वह दोस्त रखते और जिनकी ख़िदमत — ओ — पैरवी करते थे जिनसे वह सलाह लेते थे और जिनको सिज्दा करते थे, बिछाएँगे; वह न जमा' की जाएँगी न दफ़्न होंगी, बल्कि इस ज़मीन पर खाद बनेंगी।
\v 3 और वह सब लोग जो इस बुरे घराने में से बाक़ी बच रहेंगे, उन सब मकानों में जहाँ जहाँ मैं उनको हाँक दूँ, मौत को ज़िन्दगी से ज़्यादा चाहेंगे, रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है।
\s झुठे नबियों से धोखा
\s5
\p
\v 4 और तू उनसे कह दे कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, क्या लोग गिरकर फिर नहीं उठते? क्या कोई फिर कर वापस नहीं आता?
\v 5 फिर येरूशलेम के यह लोग क्यूँ हमेशा की नाफ़रमानी पर अड़े हैं? वह फ़रेब से लिपटे रहते हैं और वापस आने से इन्कार करते हैं।
\s5
\v 6 मैंने कान लगाया और सुना, उनकी बातें ठीक नहीं; किसी ने अपनी बुराई से तौबा करके नहीं कहा कि 'मैंने क्या किया?' हर एक अपनी राह को फिरता है, जिस तरह घोड़ा लड़ाई में सरपट दौड़ता है।
\v 7 हाँ हवाई लक़लक़ अपने मुक़र्ररा वक़्तों को जानता है, और क़ुमरी और अबाबील और कुलंग अपने आने का वक़्त पहचान लेते हैं; लेकिन मेरे लोग ख़ुदावन्द के हुक्मों को नहीं पहचानते।
\s5
\v 8 “तुम क्यूँकर कहते हो कि हमतो 'अक़्लमन्द हैं और ख़ुदावन्द की शरी'अत हमारे पास है? लेकिन देख, लिखने वालों के बेकार क़लम ने बतालत पैदा की है।
\v 9 'अक़्लमन्द शर्मिन्दा हुए, वह हैरान हुए और पकड़े गए; देख, उन्होंने ख़ुदावन्द के कलाम को रद्द किया; उनमें कैसी समझदारी है?
\v 10 तब मैं उनकी बीवियाँ औरों को, और उनके खेत उनको दूँगा जो उन पर क़ाबिज़ होंगे; क्यूँकि वह सब छोटे से बड़े तक लालची हैं, और नबी से काहिन तक हर एक दग़ाबाज़ है।
\s5
\v 11 और वह मेरी बिन्त — ए — क़ौम के ज़ख़्म को यूँ ही 'सलामती सलामती' कह कर अच्छा करते हैं, हालाँकि सलामती नहीं है।
\v 12 क्या वह अपने मकरूह कामों की वजह से शर्मिन्दा हुए? वह हरगिज़ शर्मिन्दा न हुए, बल्कि वह लजाए तक नहीं। इस लिए वह गिरने वालों के साथ गिरेंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब उनको सज़ा मिलेगी तो वह पस्त हो जाएँगे।
\v 13 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं उनको बिल्कुल फ़ना करूँगा। न ताक में अंगूर लगेंगे और न अंजीर के दरख़्त में अंजीर, बल्कि पत्ते भी सूख जाएँगे; और जो कुछ मैंने उनको दिया, जाता रहेगा।”
\s5
\v 14 हम क्यूँ चुपचाप बैठे हैं? आओ, इकट्ठे होकर मज़बूत शहरों में भाग चलें और वहाँ चुप हो रहें क्यूँकि ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने हमको चुप कराया और हमको इन्द्रायन का पानी पीने को दिया है; इसलिए कि हम ख़ुदावन्द के गुनाहगार हैं।
\v 15 सलामती का इन्तिज़ार था पर कुछ फ़ायदा न हुआ; और शिफ़ा के वक़्त का, लेकिन देखो दहशत!
\s5
\v 16 “उसके घोड़ों के फ़र्राने की आवाज़ दान से सुनाई देती है, उसके जंगी घोड़ों के हिनहिनाने की आवाज़ से तमाम ज़मीन काँप गई; क्यूँकि वह आ पहुँचे हैं और ज़मीन को और सब कुछ जो उसमें है, और शहर को भी उसके बाशिन्दों के साथ खा जाएँगे।”
\v 17 क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, देखो, मैं तुम्हारे बीच साँप और अज़दहे भेजूँगा जिन पर मन्तर कारगर न होगा और वह तुम को काटेंगे।
\s5
\v 18 काश कि मैं फ़रियाद से तसल्ली पाता; मेरा दिल मुझ में सुस्त हो गया।
\v 19 देख, मेरी बिन्त — ए — क़ौम की ग़म की आवाज़ दूर के मुल्क से आती है, 'क्या ख़ुदावन्द सिय्यून में नहीं? क्या उसका बादशाह उसमें नहीं? उन्होंने क्यूँ अपनी तराशी हुई मूरतों से, और बेगाने मा'बूदों से मुझ को ग़ज़बनाक किया?
\s5
\v 20 “फ़सल काटने का वक़्त गुज़रा, गर्मी के दिन ख़त्म हुए, और हम ने रिहाई नहीं पाई।”
\v 21 अपनी बिन्त — क़ौम की शिकस्तगी की वजह से मैं शिकस्ताहाल हुआ; मैं कुढ़ता रहता हूँ, हैरत ने मुझे दबा लिया।
\v 22 क्या जिल'आद में रौग़न — ए — बलसान नहीं है? क्या वहाँ कोई हकीम नहीं? मेरी बिन्त — ए — क़ौम क्यूँ शिफ़ा नहीं पाती?
\s5
\c 9
\p
\v 1 काश कि मेरा सिर पानी होता, और मेरी आँखें आँसुओं का चश्मा, ताकि मैं अपनी बिन्त — ए — क़ौम के मक़्तूलों पर रात दिन मातम करता!
\v 2 काश कि मेरे लिए वीराने में मुसाफ़िर ख़ाना होता, ताकि मैं अपनी क़ौम को छोड़ देता और उनमें से निकल जाता! क्यूँकि वह सब बदकार और दग़ाबाज़ जमा'अत हैं।
\s ना'फरमानी की सज़ा
\p
\v 3 वह अपनी ज़बान को नारास्ती की कमान बनाते हैं, वह मुल्क में ताक़तवर हो गए हैं लेकिन रास्ती के लिए नहीं; क्यूँकि वह बुराई से बुराई तक बढ़ते जाते हैं और मुझ को नहीं जानते, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 4 हर एक अपने पड़ोसी से होशियार रहे, और तुम किसी भाई पर भरोसा न करो, क्यूँकि हर एक भाई दग़ाबाज़ी से दूसरे की जगह ले लेगा, और हर एक पड़ोसी ग़ीबत करता फिरेगा।
\v 5 और हर एक अपने पड़ोसी को फ़रेब देगा और सच न बोलेगा, उन्होंने अपनी ज़बान को झूट बोलना सिखाया है; और बदकारी में जॉफ़िशानी करते हैं।
\v 6 तेरा घर फ़रेब के बीच है; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, फ़रेब ही से वह मुझ को जानने से इन्कार करते हैं।
\s5
\v 7 इसलिए रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं उनको पिघला डालूँगा और उनको आज़माऊँगा; क्यूँकि अपनी बिन्त — ए — क़ौम से और क्या करूँ?
\v 8 उनकी ज़बान हलाक करने वाला तीर है, उससे दग़ा की बातें निकलती हैं, अपने पड़ोसी को मुँह से तो सलाम कहते हैं पर बातिन में उसकी घात में बैठते हैं।
\v 9 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्या मैं इन बातों के लिए उनको सज़ा न दूँगा? क्या मेरी रूह ऐसी क़ौम से इन्तक़ाम न लेगी?
\s5
\v 10 “मैं पहाड़ों के लिए गिरया — ओ — ज़ारी, और वीराने की चरागाहों के लिए नौहा करूँगा, क्यूँकि वह यहाँ तक जल गई कि कोई उनमे क़दम नहीं रखता चौपायों की आवाज़ सुनाई नहीं देती; हवा के परिन्दे और मवेशी भाग गए, वह चले गए।
\v 11 मैं येरूशलेम को खण्डर और गीदड़ों का घर बना दूँगा, और यहूदाह के शहरों को ऐसा वीरान करूँगा कि कोई बाशिन्दा न रहेगा।”
\v 12 साहिब — ए — हिकमत आदमी कौन है कि इसे समझे? और वह जिससे ख़ुदावन्द के मुँह ने फ़रमाया कि इस बात का 'ऐलान करे। ये सरज़मीन किस लिए वीरान हुई, और वीराने की तरह जल गई कि कोई इसमें क़दम नहीं रखता?
\s5
\v 13 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, इसलिए कि उन्होंने मेरी शरी'अत को जो मैंने उनके आगे रख्खी थी, छोड़ दिया और मेरी आवाज़ को न सुना और उसके मुताबिक़ न चले,
\v 14 बल्कि उन्होंने अपने हट्टी दिलों की और बा'लीम की पैरवी की, जिसकी उनके बाप — दादा ने उनको ता'लीम दी थी।
\s5
\v 15 इसलिए रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं इनको, हाँ, इन लोगों को नागदौना खिलाऊँगा, और इन्द्रायन का पानी पिलाऊँगा।
\v 16 और इनको उन क़ौमों में, जिनको न यह न इनके बाप — दादा जानते थे, तितर — बितर करूँगा और तलवार इनके पीछे भेजकर इनको हलाक कर डालूँगा।
\s5
\v 17 रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: “सोचो और मातम करने वाली 'औरतों को बुलाओ कि आएँ, और माहिर 'औरतों को बुलवा भेजो कि वह भी आएँ;
\v 18 और जल्दी करें और हमारे लिए नोहा उठायें ताकि हमारी आँखों से आँसू जारी हों और हमारी पलकों से आसुवों का सैलाब बह निकले।
\s5
\v 19 यक़ीनन सिय्यून से नोहे की आवाज़ सुनाई देती है, 'हम कैसे बर्बाद हुए! हम सख़्त रुस्वा हुए, क्यूँकि हम वतन से आवारा हुए और हमारे घर गिरा दिए गए।”
\v 20 ऐ 'औरतो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो और तुम्हारे कान उसके मुँह की बात क़ुबूल करें; और तुम अपनी बेटियों को नोहागरी और अपनी पड़ोसनो को मर्सिया — ख़्वानी सिखाओ।
\s5
\v 21 क्यूँकि मौत हमारी खिड़कियों में चढ़ आई है और हमारे क़स्रों में घुस बैठी है, ताकि बाहर बच्चों को और बाज़ारों में जवानों को काट डाले।
\v 22 कह दे, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: 'आदमियों की लाशें मैदान में खाद की तरह गिरेंगी, और उस मुट्ठी भर की तरह होंगी जो फ़सल काटनेवाले के पीछे रह जाये जिसे कोई जमा नहीं करता।
\s5
\v 23 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: न साहिब — ए — हिकमत अपनी हिकमत पर, और न क़वी अपनी क़ुव्वत पर, और न मालदार अपने माल पर फ़ख़्र करे;
\v 24 लेकिन जो फ़ख़्र करता है, इस पर फ़ख़्र करे कि वह समझता और मुझे जानता है कि मैं ही ख़ुदावन्द हूँ, जो दुनिया में शफ़क़त — ओ — 'अद्ल और रास्तबाज़ी को 'अमल में लाता हूँ; क्यूँकि मेरी ख़ुशी इन्हीं बातों में है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 25 “देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब मैं सब मख़्तूनों को नामख़्तूनों के तौर पर सज़ा दूँगा;
\v 26 मिस्र और यहूदाह और अदोम और बनी 'अम्मोन और मोआब को, और उन सब को जो गाओदुम दाढ़ी रखते हैं, जो वीरान के बाशिन्दे हैं; क्यूँकि यह सब क़ौमें नामख़्तून हैं, और इस्राईल का सारा घराना दिल का नामख़्तून है।”
\s5
\c 10
\s बुत परस्ति से बर्बादी होना
\p
\v 1 ऐ इस्राईल के घराने, वह कलाम जो ख़ुदावन्द तुम से करता है सुनो।
\v 2 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: “तुम दीगर क़ौमों के चाल चलन न सीखो, और आसमानी 'अलामात और निशान और से हिरासान न हो; अगरचे दीगर क़ौमें उनसे हिरासान होती हैं।
\s5
\v 3 क्यूँकि उनके क़ानून बेकार हैं। चुनाँचे कोई जंगल में कुल्हाड़ी से दरख़्त काटता है, जो बढ़ई के हाथ का काम है।
\v 4 वह उसे चाँदी और सोने से आरास्ता करते हैं, और उसमें हथोड़ों से मेखे़ं लगाकर उसे मज़बूत करते हैं ताकि क़ाईम रहे।
\v 5 वह खजूर की तरह मख़रूती सुतून हैं पर बोलते नहीं, उनको उठा कर ले जाना पड़ता है क्यूँकि वह चल नहीं सकते; उनसे न डरो क्यूँकि वह नुक़सान नहीं पहुँचा सकते, और उनसे फ़ायदा भी नहीं पहुँच सकता।”
\s5
\v 6 ऐ ख़ुदावन्द, तेरा कोई नज़ीर नहीं, तू 'अज़ीम है और क़ुदरत की वजह से तेरा नाम बुज़ुर्ग है।
\v 7 ऐ क़ौमों के बादशाह, कौन है जो तुझ से न डरे? यक़ीनन यह तुझ ही को ज़ेबा है; क्यूँकि क़ौमों के सब हकीमों में, और उनकी तमाम ममलुकतों में तेरा जैसा कोई नहीं।
\s5
\v 8 मगर वह सब हैवान ख़सलत और बेवक़ूफ़ हैं; बुतों की ता'लीम क्या, वह तो लकड़ी हैं।
\v 9 तरसीस से चाँदी का पीटा हुआ पत्तर, और ऊफ़ाज़ से सोना आता है जो कारीगर की कारीगरी और सुनार की दस्तकारी है; उनका लिबास नीला और अर्ग़वानी है, और ये सब कुछ माहिर उस्तादों की दस्तकारी है।
\v 10 लेकिन ख़ुदावन्द सच्चा ख़ुदा है, वह ज़िन्दा ख़ुदा और हमेशा का बादशाह है; उसके क़हर से ज़मीन थरथराती है और क़ौमों में उसके क़हर की ताब नहीं।
\s5
\v 11 तुम उनसे यूँ कहना कि “यह मा'बूद जिन्होंने आसमान और ज़मीन को नहीं बनाया, ज़मीन पर से और आसमान के नीचे से हलाक हो जाएँगे।”
\v 12 उसी ने अपनी क़ुदरत से ज़मीन को बनाया, उसी ने अपनी हिकमत से जहान को क़ाईम किया और अपनी 'अक़्ल से आसमान को तान दिया है।
\v 13 उसकी आवाज़ से आसमान में पानी की बहुतायत होती है, और वह ज़मीन की इन्तिहा से बुख़ारात उठाता है। वह बारिश के लिए बिजली चमकाता है और अपने ख़ज़ानों से हवा चलाता है।
\s5
\v 14 हर आदमी हैवान ख़सलत और बे — 'इल्म हो गया है; हर एक सुनार अपनी खोदी हुई मूरत से रुस्वा है क्यूँकि उसकी ढाली हुई मूरत बेकार है, उनमें दम नहीं।
\v 15 वह बेकार, फ़े'ल — ए — फ़रेब हैं, सज़ा के वक़्त बर्बाद हो जाएँगी।
\v 16 या'क़ूब का हिस्सा उनकी तरह नहीं, क्यूँकि वह सब चीज़ों का ख़ालिक़ है और इस्राईल उसकी मीरास का 'असा है; रब्बउल — अफ़वाज उसका नाम है।
\s5
\v 17 ऐ घिराव में रहने वाली, ज़मीन पर से अपनी गठरी उठा ले!
\v 18 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: “देख, मैं इस मुल्क के बाशिन्दों को अब की बार जैसे फ़लाख़न में रख कर फेंक दूँगा, और उनको ऐसा तंग करूँगा कि जान लें।”
\s5
\v 19 हाय मेरी ख़स्तगी! मेरा ज़ख़्म दर्दनाक है और मैंने समझ लिया, यक़ीनन मुझे यह दुख बरदाश्त करना है।
\v 20 मेरा ख़ेमा बर्बाद किया गया, और मेरी सब तनाबें तोड़ दी गईं, मेरे बच्चे मेरे पास से चले गए, और वह हैं नहीं, अब कोई न रहा जो मेरा ख़ेमा खड़ा करे और मेरे पर्दे लगाए।
\s5
\v 21 क्यूँकि चरवाहे हैवान बन गए और ख़ुदावन्द के तालिब न हुए, इसलिए वह कामयाब न हुए और उनके सब गल्ले तितर — बितर हो गए।
\v 22 देख, उत्तर के मुल्क से बड़े ग़ौग़ा और हंगामे की आवाज़ आती है ताकि यहूदाह के शहरों को उजाड़ कर गीदड़ों का घर बनाए।
\s5
\v 23 ऐ ख़ुदावन्द, मैं जानता हूँ कि इंसान की राह उसके इख़्तियार में नहीं; इंसान अपने चाल चलन में अपने क़दमों की रहनुमाई नहीं कर सकता।
\v 24 ऐ ख़ुदावन्द, मुझे हिदायत कर लेकिन अन्दाज़े से; अपने क़हर से नहीं, न हो कि तू मुझे हलाक कर दे'।
\v 25 ऐ ख़ुदावन्द, उन क़ौमों पर जो तुझे नहीं जानतीं, और उन घरानों पर जो तेरा नाम नहीं लेते, अपना क़हर उँडेल दे; क्यूँकि वह या'क़ूब को खा गए, वह उसे निगल गए और चट कर गए, और उसके घर को उजाड़ दिया।
\s5
\c 11
\s यहूदाह का टुटा हुआ अहद
\p
\v 1 यह वह कलाम है जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,
\v 2 कि “तुम इस 'अहद की बातें सुनो, और बनी यहूदाह और येरूशलेम के बाशिन्दों से बयान करो;
\s5
\v 3 और तू उनसे कह, ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि ला'नत उस इंसान पर जो इस 'अहद की बातें नहीं सुनता।
\v 4 जो मैंने तुम्हारे बाप — दादा से उस वक़्त फ़रमाईं, जब मैं उनको मुल्क — ए — मिस्र से लोहे के तनूर से, यह कह कर निकाल लाया कि तुम मेरी आवाज़ की फ़रमाँबरदारी करो, और जो कुछ मैंने तुम को हुक्म दिया है उस पर 'अमल करो, तो तुम मेरे लोग होगे और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा;
\v 5 ताकि मैं उस क़सम को जो मैंने तुम्हारे बाप — दादा से खाई कि मैं उनको ऐसा मुल्क दूँगा जिसमें दूध और शहद बहता हो, जैसा कि आज के दिन है, पूरा करूँ।” तब मैंने जवाब में कहा, ऐ ख़ुदावन्द, आमीन।
\s5
\v 6 फिर ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, यहूदाह के शहरों और येरूशलेम के कूचों में इन सब बातों का 'ऐलान कर और कह: इस 'अहद की बातें सुनो और उन पर 'अमल करो।
\v 7 क्यूँकि मैं तुम्हारे बाप — दादा को जिस दिन से मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया, आज तक ताकीद करता और वक़्त पर जताता और कहता रहा कि मेरी सुनो।
\v 8 लेकिन उन्होंने कान न लगाया और शिनवा न हुए, बल्कि हर एक ने अपने बुरे दिल की सख़्ती की पैरवी की; इसलिए मैंने इस 'अहद की सब बातें, जिन पर 'अमल करने का उनको हुक्म दिया था और उन्होंने न किया, उन पर पूरी कीं।
\s5
\v 9 तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, यहूदाह के लोगों और येरूशलेम के बाशिन्दों में साज़िश पाई जाती है।
\v 10 वह अपने बाप — दादा की तरफ़ जिन्होंने मेरी बातें सुनने से इन्कार किया, फिर गए और ग़ैर मा'बूदों के पैरौ होकर उनकी इबादत की, इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने ने उस 'अहद को जो मैंने उनके बाप — दादा से किया था तोड़ दिया।
\s5
\v 11 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं उन पर ऐसी बला लाऊँगा जिससे वह भाग न सकेंगे, और वह मुझे पुकारेंगे पर मैं उनकी न सुनूँगा।
\v 12 तब यहूदाह के शहर और येरूशलेम के बाशिन्दे जाएँगे और उन मा'बूदों को जिनके आगे वह ख़ुशबू जलाते हैं पुकारेंगे, लेकिन वह मुसीबत के वक़्त उनको हरगिज़ न बचाएँगे।
\v 13 क्यूँकि ऐ यहूदाह, जितने तेरे शहर हैं उतने ही तेरे मा'बूद हैं, और जितने येरूशलेम के कूचे हैं उतने ही तुम ने उस रुस्वाई की वजह के लिए मज़बहे बनाए, या'नी बा'ल के लिए ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाहें।
\s5
\v 14 “इसलिए तू इन लोगों के लिए दुआ न कर और न इनके लिए अपनी आवाज़ बलन्द कर और न मिन्नत कर, क्यूँकि जब वह अपनी मुसीबत में मुझे पुकारेंगे मैं इनकी न सुनूँगा।
\v 15 मेरे घर में मेरी महबूबा को क्या काम जब कि वह बहुत ज़्यादा शरारत कर चुकी? क्या मन्नत और पाक गोश्त तेरी शरारत को दूर करेंगे? क्या तू इनके ज़रिए' से रिहाई पाएगी? तू शरारत करके ख़ुश होती है।
\v 16 ख़ुदावन्द ने ख़ुशमेवा हरा ज़ैतून, तेरा नाम रखा; उसने बड़े हंगामे की आवाज़ होते होते ही उसे आग लगा दी और उसकी डालियाँ तोड़ दी गईं।
\s5
\v 17 क्यूँकि रब्ब — उल — अफ़वाज ने जिसने तुझे लगाया, तुझ पर बला का हुक्म किया, उस बदी की वजह से जो इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने ने अपने हक़ में की कि बा'ल के लिए ख़ुशबू जला कर मुझे ग़ज़बनाक किया।”
\s5
\v 18 ख़ुदावन्द ने मुझ पर ज़ाहिर किया और मैं जान गया, तब तूने मुझे उनके काम दिखाए।
\v 19 लेकिन मैं उस पालतू बर्रे की तरह था, जिसे ज़बह करने को ले जाते हैं; और मुझे मा'लूम न था कि उन्होंने मेरे ख़िलाफ़ मंसूबे बाँधे हैं कि आओ, दरख़्त को उसके फल के साथ हलाक करें और उसे ज़िन्दों की ज़मीन से काट डालें, ताकि उसके नाम का ज़िक्र तक बाक़ी न रहे।
\v 20 ऐ रब्बउल — अफ़वाज, जो सदाक़त से 'अदालत करता है, जो दिल — ओ — दिमाग़ को जाँचता है, उनसे इन्तक़ाम लेकर मुझे दिखा क्यूँकि मैंने अपना दावा तुझ ही पर ज़ाहिर किया।
\s5
\v 21 इसलिए ख़ुदावन्द फ़रमाता है, अन्तोत के लोगों के बारे में, जो यह कहकर तेरी जान के तलबगार हैं कि ख़ुदावन्द का नाम लेकर नबुव्वत न कर, ताकि तू हमारे हाथ से न मारा जाए।
\v 22 रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि “देख, मैं उनको सज़ा दूँगा, जवान तलवार से मारे जाएँगे, उनके बेटे — बेटियाँ काल से मरेंगे;
\v 23 और उनमें से कोई बाक़ी न रहेगा। क्यूँकि मैं 'अन्तोत के लोगों पर उनकी सज़ा के साल में आफ़त लाऊँगा।”
\s5
\c 12
\s यर्मयाह का ख़ुदा के ईन्साफ़ पर सवाल उठाना
\p
\v 1 ऐ ख़ुदावन्द अगर मैं तेरे साथ बहस करूँ तो तू ही सच्चा ठहरेगा; तो भी मैं तुझ से इस अम्र पर बहस करना चाहता हूँ कि शरीर अपने चाल चलन में क्यूँ कामयाब होते हैं? सब दग़ाबाज़ क्यूँ आराम से रहते हैं?
\v 2 तूने उनको लगाया और उन्होंने जड़ पकड़ ली, वह बढ़ गए बल्कि कामयाब हुए; तू उनके मुँह से नज़दीक पर उनके दिलों से दूर है।
\s5
\v 3 लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, तू मुझे जानता है; तूने मुझे देखा और मेरे दिल को, जो तेरी तरफ़ है आज़माया है; तू उनको भेड़ों की तरह ज़बह होने के लिए खींच कर निकाल और क़त्ल के दिन के लिए उनको मख़्सूस कर।
\v 4 अहल — ए — ज़मीन की शरारत से ज़मीन कब तक मातम करे, और तमाम मुल्क की रोएदगी पज़मुर्दा हो? चरिन्दे और परिन्दे हलाक हो गए, क्यूँकि उन्होंने कहा, वह हमारा अंजाम न देखेगा।
\s5
\v 5 'अगर तू प्यादों के साथ दौड़ा और उन्होंने तुझे थका दिया, तो फिर तुझ में यह ताब कहाँ कि सवारों की बराबरी करे? तू सलामती की सरज़मीन में तो बे — ख़ौफ़ है, लेकिन यरदन के जंगल में क्या करेगा?
\v 6 क्यूँकि तेरे भाइयों और तेरे बाप के घराने ने भी तेरे साथ बेवफ़ाई की है; हाँ, उन्होंने बड़ी आवाज़ से तेरे पीछे ललकारा, उन पर भरोसा न कर, अगरचे वह तुझ से मीठी मीठी बातें करें।
\s5
\v 7 मैंने अपने लोगों को छोड़ दिया, मैंने अपनी मीरास को रद्द कर दिया, मैंने अपने दिल की महबूबा को उसके दुश्मनों के हवाले किया।
\v 8 मेरी मीरास मेरे लिए जंगली शेर बन गई, उसने मेरे ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बलन्द की; इसलिए मुझे उससे नफ़रत है।
\v 9 क्या मेरी मीरास मेरे लिए अबलक़ शिकारी परिन्दा है? क्या शिकारी परिन्दे उसको चारों तरफ़ घेरे हैं? आओ, सब जंगली जानवरों को जमा' करो; उनको लाओ कि वह खा जाएँ।
\s5
\v 10 बहुत से चरवाहों ने मेरे ताकिस्तान को ख़राब किया, उन्होंने मेरे हिस्से को पामाल किया, मेरे दिल पसन्द हिस्से को उजाड़ कर वीरान बना दिया।
\v 11 उन्होंने उसे वीरान किया, वह वीरान होकर मुझसे फ़रयादी है। सारी ज़मीन वीरान हो गई तो भी कोई इसे ख़ातिर में नहीं लाता,
\s5
\v 12 वीराने के सब पहाड़ों पर ग़ारतगर आ गए हैं; क्यूँकि ख़ुदावन्द की तलवार मुल्क के एक सिरे से दूसरे सिरे तक निगल जाती है और किसी बशर को सलामती नहीं।
\v 13 उन्होंने गेहूँ बोया, लेकिन काँटे जमा' किये उन्होंने मशक़्क़त खींची लेकिन फ़ायदा न उठाया; ख़ुदावन्द के बहुत ग़ुस्से की वजह से अपने अंजाम से शर्मिन्दा हो।
\s5
\v 14 मेरे सब शरीर पड़ोसियों के ख़िलाफ़ ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, देख, जिन्होंने उस मीरास को छुआ जिसका मैंने अपनी क़ौम इस्राईल को वारिस किया, मैं उनको उनकी सरज़मीन से उखाड़ डालूँगा और यहूदाह के घराने को उनके बीच से निकाल फेकूँगा।
\v 15 और इसके बाद कि मैं उनको उखाड़ डालूँगा, यूँ होगा कि मैं फिर उन पर रहम करूँगा और हर एक को उसकी मीरास में और हर एक को उसकी ज़मीन में फिर लाऊँगा;
\s5
\v 16 और यूँ होगा कि अगर वह दिल लगा कर मेरे लोगों के तरीके़ सीखेंगे, कि मेरे नाम की क़सम खाएँ कि ख़ुदावन्द ज़िन्दा है। जैसा कि उन्होंने मेरे लोगों को सिखाया कि बा'ल की क़सम खाएँ, तो वह मेरे लोगों में शामिल होकर क़ाईम हो जाएँगे'।
\v 17 लेकिन अगर वह शर्मिंदा न होंगे, तो मैं उस क़ौम को बिल्कुल उखाड़ डालूँगा और हलाक — ओ — बर्बाद कर दूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\c 13
\s यर्मयाह का कतानी कमरबन्द
\p
\v 1 ख़ुदावन्द ने मुझे यूँ फ़रमाया कि “तू जाकर अपने लिए एक कतानी कमरबन्द ख़रीद ले और अपनी कमर पर बाँध, लेकिन उसे पानी में मत भिगो।”
\v 2 तब मैंने ख़ुदावन्द के कलाम के मुवाफ़िक़ एक कमरबन्द ख़रीद लिया और अपनी कमर पर बाँधा।
\v 3 और ख़ुदावन्द का कलाम दोबारा मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया,
\v 4 कि “इस कमरबन्द को जो तूने ख़रीदा और जो तेरी कमर पर है, लेकर उठ और फ़रात को जा और वहाँ चट्टान के एक शिगाफ़ में उसे छिपा दे।”
\v 5 चुनाँचे मैं गया और उसे फ़रात के किनारे छिपा दिया, जैसा ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया था।
\s5
\v 6 और बहुत दिनों के बाद यूँ हुआ कि ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, कि उठ, फ़रात की तरफ़ जा और उस कमरबन्द को जिसे तूने मेरे हुक्म से वहाँ छिपा रख्खा है, निकाल ले।
\v 7 तब मैं फ़रात को गया और खोदा और कमरबन्द को उस जगह से जहाँ मैंने उसे गाड़ दिया था, निकाला और देख, वह कमरबन्द ऐसा ख़राब हो गया था कि किसी काम का न रहा।
\s5
\v 8 तब ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 9 कि “ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि इसी तरह मैं यहूदाह के ग़ुरूर और येरूशलेम के बड़े ग़ुरूर को तोड़ दूँगा।
\v 10 यह शरीर लोग जो मेरा कलाम सुनने से इन्कार करते हैं और अपने ही दिल की सख़्ती के पैरौ होते, और ग़ैर मा'बूदों के तालिब होकर उनकी इबादत करते और उनको पूजते हैं, वह इस कमरबन्द की तरह होंगे जो किसी काम का नहीं।
\v 11 क्यूँकि जैसा कमरबन्द इंसान की कमर से लिपटा रहता है वैसा ही, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैंने इस्राईल के तमाम घराने और यहूदाह के तमाम घराने को लिया कि मुझसे लिपटे रहें; ताकि वह मेरे लोग हों और उनकी वजह से मेरा नाम हो, और मेरी सिताइश की जाए और मेरा जलाल हो; लेकिन उन्होंने न सुना।
\s5
\v 12 तब तू उनसे ये बात भी कह दे कि ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि 'हर एक मटके में मय भरी जाएगी। और वह तुझ से कहेंगे, 'क्या हम नहीं जानते कि हर एक मटके में मय भरी जाएगी?”
\v 13 तब तू उनसे कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देखो, मैं इस मुल्क के सब बाशिन्दों को, हाँ, उन बादशाहों को जो दाऊद के तख़्त पर बैठते हैं, और काहिनों और नबियों और येरूशलेम के सब बाशिन्दों को मस्ती से भर दूँगा।
\v 14 और मैं उनको एक दूसरे पर, यहाँ तक कि बाप को बेटों पर दे मारूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं न शफ़कत करूँगा, न रि'आयत और न रहम करूँगा कि उनको हलाक न करूँ।
\s5
\v 15 सुनो और कान लगाओ, ग़ुरूर न करो, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है।
\v 16 ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की तम्जीद करो, इससे पहले के वह तारीकी लाए और तुम्हारे पाँव गहरे अन्धेरे में ठोकर खाएँ; और जब तुम रोशनी का इन्तिज़ार करो, तो वह उसे मौत के साये से बदल डाले और उसे सख़्त तारीकी बना दे।
\v 17 लेकिन अगर तुम न सुनोगे, तो मेरी जान तुम्हारे ग़ुरूर की वजह से ख़िल्वतख़ानों में ग़म खाया करेगी; हाँ, मेरी आँखें फूट फूटकर रोएँगी और आँसू बहाएँगी, क्यूँकि ख़ुदावन्द का गल्ला ग़ुलामी में चला गया।
\s5
\v 18 बादशाह और उसकी वालिदा से कह, ''आजिज़ी करो और नीचे बैठो, क्यूँकि तुम्हारी बुज़ुर्गी का ताज तुम्हारे सिर पर से उतार लिया गया है।
\v 19 दख्खिन के शहर बन्द हो गए और कोई नहीं खोलता, सब बनी यहूदाह ग़ुलाम हो गए; सबको ग़ुलाम करके ले गए।
\s5
\v 20 'अपनी आँखें उठा और उनको जो उत्तर से आते हैं, देख। वह गल्ला जो तुझे दिया गया था, तेरा ख़ुशनुमा गल्ला कहाँ है?
\v 21 जब वह तुझ पर उनको मुक़र्रर करेगा जिनको तूने अपनी हिमायत की ता'लीम दी है, तो तू क्या कहेगी? क्या तू उस 'औरत की तरह जिसे पैदाइश का दर्द हो, दर्द में मुब्तिला न होगी?
\s5
\v 22 और अगर तू अपने दिल में कहे कि यह हादसे मुझ पर क्यूँ गुज़रे? तेरी बदकिरदारी की शिद्दत से तेरा दामन उठाया गया और तेरी एड़ियाँ जबरन बरहना की गईं।
\v 23 हब्शी अपने चमड़े को या चीता अपने दाग़ों को बदल सके, तो तुम भी जो बदी के 'आदी हो नेकी कर सकोगे।
\v 24 इसलिए मैं उनको उस भूसे की तरह जो वीराने की हवा से उड़ता फिरता है, तितर — बितर करूँगा।
\s5
\v 25 ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि मेरी तरफ़ से यही तेरा हिस्सा, तेरा नपा हुआ हिस्सा है; क्यूँकि तूने मुझे फ़रामोश करके बेकारी पर भरोसा किया है।
\v 26 फिर मैं भी तेरा दामन तेरे सामने से उठा दूँगा, ताकि तू बेपर्दा हो।
\v 27 मैंने तेरी बदकारी, तेरा हिनहिनाना, तेरी हरामकारी और तेरे नफ़रतअंगेज़ काम जो तूने पहाड़ों पर और मैदानों में किए, देखे हैं। ऐ येरूशलेम, तुझ पर अफ़सोस! तू अपने आपको कब तक पाक — ओ — साफ़ न करेगी?
\s5
\c 14
\s यहूदाह में भारी ख़ुश्कसाली
\p
\v 1 ख़ुदावन्द का कलाम जो ख़ुश्कसाली के बारे में यरमियाह पर नाज़िल हुआ
\v 2 “यहूदाह मातम करता है और उसके फाटकों पर उदासी छाई है, वह मातमी लिबास में ख़ाक पर बैठे हैं; और येरूशलेम का नाला बलन्द हुआ है।
\v 3 उनके हाकिम अपने अदना लोगों को पानी के लिए भेजते हैं; वह चश्मों तक जाते हैं पर पानी नहीं पाते, और ख़ाली घड़े लिए लौट आते हैं, वह शर्मिन्दा — ओ — पशेमान होकर अपने सिर ढाँपते हैं।
\s5
\v 4 चूँकि मुल्क में बारिश न हुई, इसलिए ज़मीन फट गई और किसान सरासीमा हुए, वह अपने सिर छिपाते हैं।
\v 5 चुनाँचे हिरनी मैदान में बच्चा देकर उसे छोड़ देती है क्यूँकि घास नहीं मिलती।
\v 6 और गोरख़र ऊँची जगहों पर खड़े होकर गीदड़ों की तरह हाँफते हैं उनकी आँखे रह जाती हैं, क्यूँकि घास नहीं है।
\s5
\v 7 'अगरचे हमारी बदकिरदारी हम पर गवाही देती है, तो भी ऐ ख़ुदावन्द अपने नाम की ख़ातिर कुछ कर; क्यूँकि हमारी नाफ़रमानी बहुत है, हम तेरे ख़ताकार हैं।
\v 8 ऐ इस्राईल की उम्मीद, मुसीबत के वक़्त उसके बचानेवाले, तू क्यूँ मुल्क में परदेसी की तरह बना, और उस मुसाफ़िर की तरह जो रात काटने के लिए डेरा डाले?
\v 9 तू क्यूँ इंसान की तरह हक्का — बक्का है, और उस बहादुर की तरह जो रिहाई नहीं दे सकता? बहर — हाल, ऐ ख़ुदावन्द, तू तो हमारे बीच है और हम तेरे नाम से कहलाते हैं; तू हमको मत छोड़।”
\s5
\v 10 ख़ुदावन्द इन लोगों से यूँ फ़रमाता है कि “इन्होंने गुमराही को यूँ दोस्त रख्खा है और अपने पाँव को नहीं रोका, इसलिए ख़ुदावन्द इनको क़ुबूल नहीं करता; अब वह इनकी बदकिरदारी याद करेगा और इनके गुनाह की सज़ा देगा।”
\v 11 और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, इन लोगों के लिए दु'आ — ए — ख़ैर न कर।
\v 12 क्यूँकि जब यह रोज़ा रख्खें तो मैं इनकी फ़रियाद न सुनूँगा और जब सोख़्तनी क़ुर्बानी और हदिया पेश करें तो क़ुबूल न करूँगा, बल्कि मैं तलवार और काल और वबा से इनको हलाक करूँगा।
\s5
\v 13 तब मैंने कहा, 'आह, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, देख, अम्बिया उनसे कहते हैं, तुम तलवार न देखोगे, और तुम में काल न पड़ेगा; बल्कि मैं इस मक़ाम में तुम को हक़ीक़ी सलामती बख्शूँगा।
\v 14 तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया कि अम्बिया मेरा नाम लेकर झूटी नबुव्वत करते हैं; मैंने न उनको भेजा और न हुक्म दिया और न उनसे कलाम किया, वह झूठा ख़्वाब और झूठा 'इल्म — ए — ग़ैब और बतालत और अपने दिलों की मक्कारी, नबुव्वत की सूरत में तुम पर ज़ाहिर करते हैं।
\s5
\v 15 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि वह नबी जिनको मैंने नहीं भेजा, जो मेरा नाम लेकर नबुव्वत करते और कहते हैं कि तलवार और काल इस मुल्क में न आएँगे, वह तलवार और काल ही से हलाक होंगे।
\v 16 और जिन लोगों से वह नबुव्वत करते हैं, तो काल और तलवार की वजह से येरूशलेम के गलियों में फेंक दिए जाएँगे; उनको और उनकी बीवियों और उनके बेटों और उनकी बेटियों को दफ़्न करने वाला कोई न होगा। मैं उनकी बुराई उन पर उँडेल दूँगा।
\s5
\v 17 “और तू उनसे यूँ कहना: 'मेरी आँखें रात दिन आँसू बहाएँ और हरगिज़ न थमें, क्यूँके मेरी कुँवारी दुख़्तर — ए — क़ौम ख़श्तगी और ज़र्ब — ए — शदीद से शिकस्ता है।
\v 18 अगर मैं बाहर मैदान में जाऊँ, तो वहाँ तलवार के मक़्तूल हैं; और अगर मैं शहर में दाख़िल होऊँ, तो वहाँ काल के मारे हैं! हाँ, नबी और काहिन दोनों एक ऐसे मुल्क को जाएँगे, जिसे वह नहीं जानते।”
\s5
\v 19 क्या तूने यहूदाह को बिल्कुल रद्द कर दिया? क्या तेरी जान को सिय्यून से नफ़रत है? तूने हमको क्यूँ मारा और हमारे लिए शिफ़ा नहीं? सलामती का इन्तिज़ार था, लेकिन कुछ फ़ायदा न हुआ; और शिफ़ा के वक़्त का, लेकिन देखो, दहशत!
\v 20 ऐ ख़ुदावन्द, हम अपनी शरारत और अपने बाप — दादा की बदकिरदारी का इक़रार करते हैं; क्यूँकि हम ने तेरा गुनाह किया है।
\s5
\v 21 अपने नाम की ख़ातिर रद्द न कर, और अपने जलाल के तख़्त की तहक़ीर न कर; याद फ़रमा और हम से रिश्ता — ए — 'अहद को न तोड़।
\v 22 क़ौमों के बुतों में कोई है जो मेंह बरसा सके? या आसमान बरिश पर क़ादिर हैं? ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा, क्या वह तू ही नहीं है? इसलिए हम तुझ ही पर उम्मीद रख्खेंगे, क्यूँकि तू ही ने यह सब काम किए हैं।
\s5
\c 15
\s यहूदाह की तय हुई बर्बादी
\p
\v 1 तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया कि अगरचे मूसा और समुएल मेरे सामने खड़े होते तो मेरा दिल इन लोगों की तरफ़ मुतवज्जिह न होता। इनको मेरे सामने से निकाल दे कि चले जाएँ!
\v 2 और जब वह तुझसे कहें कि 'हम किधर जाएँ?' तू उनसे कहना कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि जो मौत के लिए हैं वह मौत की तरफ़ जाएँ, और जो तलवार के लिए हैं वह तलवार की तरफ़, और जो काल के लिए हैं वह काल को, और जो ग़ुलामी के लिए हैं वह ग़ुलामी में।
\s5
\v 3 और मैं चार चीज़ों' को उन पर मुसल्लत करूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है: तलवार को कि क़त्ल करे, और कुत्तों को कि फाड़ डालें, और आसमानी परिन्दों को, और ज़मीन के दरिन्दों को कि निगल जाएँ और हलाक करें।
\v 4 और मैं उनको शाह — ए — यहूदाह मनस्सी — बिन — हिज़क़ियाह की वजह से, उस काम के ज़रिये' जो उसने येरूशलेम में किया, छोड़ दूँगा कि ज़मीन की सब ममलुकतों में धक्के खाते फिरें।
\s5
\v 5 “अब ऐ येरूशलेम, कौन तुझ पर रहम करेगा? कौन तेरा हमदर्द होगा? या कौन तेरी तरफ़ आएगा कि तेरी ख़ैर — ओ — 'आफ़ियत पूछे?
\v 6 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तूने मुझे छोड़ दिया और नाफ़रमान हो गई, इसलिए मैं तुझ पर अपना हाथ बढ़ाऊँगा और तुझे बर्बाद करूँगा, मैं तो तरस खाते खाते तंग आ गया।
\v 7 और मैंने उनको मुल्क के फाटकों पर छाज से फटका, मैंने उनके बच्चे छीन लिए, मैंने अपने लोगों को हलाक किया, क्यूँकि वह अपनी राहों से न फिरे।
\s5
\v 8 उनकी बेवाएँ मेरे आगे समन्दर की रेत से ज़्यादा हो गईं; मैंने दोपहर के वक़्त जवानों की माँ पर ग़ारतगर को मुसल्लत किया; मैंने उस पर अचानक 'ऐज़ाब — ओ — दहशत को डाल दिया।
\v 9 सात बच्चों की वालिदा निढाल हो गई, उसने जान दे दी; दिन ही को उसका सूरज डूब गया, वह पशेमान और शर्मिंदा हो गई है; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं उनके बाक़ी लोगों को उनके दुश्मनों के आगे तलवार के हवाले करूँगा।”
\s5
\v 10 ऐ मेरी माँ, मुझ पर अफ़सोस कि मैं तुझ से तमाम दुनिया कि लिए लड़ाका आदमी और झगड़ालू शख़्स पैदा हुआ! मैंने तो न सूद पर क़र्ज़ दिया और न क़र्ज़ लिया, तो भी उनमें से हर एक मुझ पर ला'नत करता है।
\v 11 ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, यक़ीनन मैं तुझे ताक़त बख़्शूँगा कि तेरी ख़ैर हो; यक़ीनन मैं मुसीबत और तंगी के वक़्त दुश्मनों से तेरे सामने इल्तिजा कराऊँगा।
\v 12 क्या कोई लोहे को या'नी उत्तरी फ़ौलाद और पीतल को तोड़ सकता है?
\s5
\v 13 'तेरे माल और तेरे ख़ज़ानों को मुफ़्त लुटवा दूँगा, और यह तेरे सब गुनाहों की वजह से तेरी तमाम सरहदों में होगा।
\v 14 और मैं तुझ को तेरे दुश्मनों के साथ ऐसे मुल्क में ले जाऊँगा जिसे तू नहीं जानता, क्यूँकि मेरे ग़ज़ब की आग भड़केगी और तुम को जलाएगी।
\s5
\v 15 ऐ ख़ुदावन्द, तू जानता है; मुझे याद फ़रमा और मुझ पर शफ़क़त कर, और मेरे सतानेवालों से मेरा इन्तक़ाम ले। तू बर्दाश्त करते — करते मुझे न उठा ले, जान रख कि मैंने तेरी ख़ातिर मलामत उठाई है।
\v 16 तेरा कलाम मिला और मैंने उसे नोश किया, और तेरी बातें मेरे दिल की ख़ुशी और ख़ुर्रमी थीं; क्यूँकि ऐ ख़ुदावन्द, रब्ब — उल — अफ़वाज मैं तेरे नाम से कहलाता हूँ।
\s5
\v 17 न मैं ख़ुशी मनानेवालों की महफ़िल में बैठा और न ख़ुश हुआ, तेरे हाथ की वजह से मैं तन्हा बैठा, क्यूँकि तूने मुझे क़हर — से — लबरेज़ कर दिया है।
\v 18 मेरा दर्द क्यूँ हमेशा का और मेरा ज़ख़्म क्यूँ ला — 'इलाज है कि सिहत पज़ीर नहीं होता? क्या तू मेरे लिए सरासर धोके की नदी के जैसा हो गया है, उस पानी की तरह जिसको क़याम नहीं?
\s5
\v 19 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि अगर तू बाज़ आये तों मैं तुझे फेर लाऊँगा और तू मेरे सामने खड़ा होगा। और अगर तू लतीफ़ को कसीफ़ से जुदा करे, तो तू मेरे मुँह की तरह होगा। वह तेरी तरफ़ फिरें, लेकिन तू उनकी तरफ़ न फिरना।
\v 20 और मैं तुझे इन लोगों के सामने पीतल की मज़बूत दीवार ठहराऊँगा; और यह तुझ से लड़ेंगे लेकिन तुझ पर ग़ालिब न आएँगे, क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैं तेरे साथ हूँ कि तेरी हिफ़ाज़त करूँ और तुझे रिहाई दूँ।
\v 21 हाँ, मैं तुझे शरीरों के हाथ से रिहाई दूँगा और ज़ालिमों के पंजे से तुझे छुड़ाऊँगा।
\s5
\c 16
\s यर्मयाह को निकाह करन से मनाही
\p
\v 1 ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ, और उसने फ़रमाया,
\v 2 तू बीवी न करना, इस जगह तेरे यहाँ बेटे — बेटियाँ न हों।
\v 3 क्यूँकि ख़ुदावन्द उन बेटों और बेटियों के बारे में जो इस जगह पैदा हुए हैं, और उनकी माँओं के बारे में जिन्होंने उनको पैदा किया, और उनके बापों के बारे में जिनसे वह पैदा हुए, यूँ फ़रमाता है:
\v 4 कि वह बुरी मौत मरेंगे, न उन पर कोई मातम करेगा और न वह दफ़्न किए जाएँगे, वह सतह — ए — ज़मीन पर खाद की तरह होंगे; वह तलवार और काल से हलाक होंगे और उनकी लाशें हवा के परिन्दों और ज़मीन के दरिन्दों की ख़ुराक होंगी।
\s5
\v 5 'इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू मातम वाले घर में दाख़िल न हो, और न उन पर रोने के लिए जा, न उन पर मातम कर; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि मैंने अपनी सलामती और शफ़क़त — ओ — रहमत को इन लोगों पर से उठा लिया है।
\v 6 और इस मुल्क के छोटे बड़े सब मर जाएँगे; न वह दफ़्न किए जाएँगे, न लोग उन पर मातम करेंगे, और न कोई उनके लिए ज़ख़्मी होगा, न सिर मुण्डाएगा;
\s5
\v 7 न लोग मातम करनेवालों को खाना खिलाएँगे, ताकि उनको मुर्दों के बारे में तसल्ली दें; और न उनकी दिलदारी का प्याला देंगे कि वह अपने माँ — बाप के ग़म में पिएँ।
\v 8 और तू ज़ियाफ़त वाले घर में दाख़िल न होना कि उनके साथ बैठकर खाए पिए।
\v 9 क्यूँकि रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं इस जगह से तुम्हारे देखते हुए और तुम्हारे ही दिनों में ख़ुशी और शादमानी की आवाज़ दुल्हे और दुल्हन की आवाज़ ख़त्म कराऊँगा।
\s5
\v 10 “और जब तू यह सब बातें इन लोगों पर ज़ाहिर करे और वह तुझ से पूछे कि 'ख़ुदावन्द ने क्यूँ यह सब बुरी बातें हमारे ख़िलाफ़ कहीं? हमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के ख़िलाफ़ कौन सी बुराई और कौन सा गुनाह किया है?”
\v 11 तब तू उनसे कहना, 'ख़ुदावन्द फ़रमाता है: इसलिए कि तुम्हारे बाप — दादा ने मुझे छोड़ दिया, और ग़ैरमा'बूदों के तालिब हुए और उनकी इबादत और परस्तिश की, और मुझे छोड़ दिया और मेरी शरी'अत पर 'अमल नहीं किया;
\s5
\v 12 और तुमने अपने बाप — दादा से बढ़कर बुराई की; क्यूँकि देखो, तुम में से हर एक अपने बुरे दिन की सख़्ती की पैरवी करता है कि मेरी न सुने,
\v 13 इसलिए मैं तुमको इस मुल्क से ख़ारिज करके ऐसे मुल्क में आवारा करूँगा, जिसे न तुम और न तुम्हारे बाप — दादा जानते थे; और वहाँ तुम रात दिन ग़ैर मा'बूदों की इबादत करोगे, क्यूँकि मैं तुम पर रहम न करूँगा।
\s5
\v 14 लेकिन देख, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, वह दिन आते हैं कि लोग कभी न कहेंगे कि ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम जो बनी — इस्राईल को मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया;
\v 15 बल्कि ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम जो बनी — इस्राईल को उत्तर की सरज़मीन से और उन सब ममलुकतों से, जहाँ — जहाँ उसने उनको हॉक दिया था, निकाल लाया; और मैं उनको फिर उस मुल्क में लाऊँगा जो मैंने उनके बाप — दादा को दिया था।
\s5
\v 16 आनेवाली सज़ा 'ख़ुदावन्द फ़रमाता है: देख बहुत से माहीगीरों को बुलवाऊँगा और वह उनको शिकार करेंगे, और फिर मैं बहुत से शिकारियों को बुलवाऊँगा और वह हर पहाड़ से और हर टीले से और चट्टानों के शिगाफ़ों से उनको पकड़ निकालेंगे।
\v 17 क्यूँकि मेरी ऑखें उनके सब चाल चलन पर लगी हैं, वह मुझसे छिपी नहीं हैं और उनकी बदकिरदारी मेरी ऑखों से छिपी नहीं।
\v 18 और मैं पहले उनकी बदकिरदारी और ख़ताकारी की दूनी सज़ा दूँगा क्यूँकि उन्होंने मेरी सरज़मीन को अपनी मकरूह चीज़ों की लाशों से नापाक किया और मेरी मीरास को अपनी मकरूहात से भर दिया है।
\s5
\v 19 यरमियाह की दुआ ऐ ख़ुदावन्द, मेरी क़ुव्वत और मेरे गढ़ और मुसीबत के दिन में मेरी पनाहगाह, दुनिया कि किनारों से क़ौमें तेरे पास आकर कहेंगी कि “हक़ीक़त में हमारे बाप — दादा ने महज़ झूट की मीरास हासिल की, या'नी बेकार और बेसूद चीज़ें।
\v 20 क्या इंसान अपने लिए मा'बूद बनाए जो ख़ुदा नहीं हैं!”
\v 21 “इसलिए देख, मैं इस मर्तबा उनको आगाह करूँगा; मैं अपने हाथ और अपना ज़ोर उनको दिखाऊँगा, और वह जानेंगे कि मेरा नाम यहोवा है।”
\s5
\c 17
\s यहूदाह का गुनाह और सज़ा
\p
\v 1 “यहूदाह का गुनाह लोहे के क़लम और हीरे की नोक से लिखा गया है; उनके दिल की तख़्ती पर, और उनके मज़बहों के सींगों पर खुदवाया गया है;
\v 2 क्यूँकि उनके बेटे अपने मज़बहों और यसीरतों को याद करते हैं, जो हरे दरख़्तों के पास ऊँचे पहाड़ों पर हैं।
\s5
\v 3 ऐ मेरे पहाड़, जो मैदान में है; मैं तेरा माल और तेरे सब ख़ज़ाने और तेरे ऊँचे मक़ाम जिनको तूने अपनी तमाम सरहदों पर गुनाह के लिए बनाया, लुटाऊँगा।
\v 4 और तू अज़ख़ुद उस मीरास से जो मैंने तुझे दी, अपने क़ुसूर की वजह से हाथ उठाएगा; और मैं उस मुल्क में जिसे तू नहीं जानता, तुझ से तेरे दुश्मनों की ख़िदमत कराऊँगा; क्यूँकि तुमने मेरे क़हर की आग भड़का दी है जो हमेशा तक जलती रहेगी।”
\s5
\v 5 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: मला'ऊन है वह आदमी जो इंसान पर भरोसा करता है, और बशर को अपना बाज़ू जानता है, और जिसका दिल ख़ुदावन्द से फिर जाता है।
\v 6 क्यूँकि वह रतमा की तरह, होगा जो वीराने में है और कभी भलाई न देखेगा; बल्कि वीराने की बे पानी जगहों में और ग़ैर — आबाद ज़मीन — ए — शोर में रहेगा।
\s5
\v 7 “मुबारक है वह आदमी जो ख़ुदावन्द पर भरोसा करता है, और जिसकी उम्मीदगाह ख़ुदावन्द है।
\v 8 क्यूँकि वह उस दरख़्त की तरह होगा जो पानी के पास लगाया जाए, और अपनी जड़ दरिया की तरफ़ फैलाए, और जब गर्मी आए तो उसे कुछ ख़तरा न हो बल्कि उसके पत्ते हरे रहें, और ख़ुश्कसाली का उसे कुछ ख़ौफ़ न हो, और फल लाने से बाज़ न रहे।”
\s5
\v 9 दिल सब चीज़ों से ज़्यादा हीलाबाज़ और ला'इलाज है, उसको कौन दरियाफ़्त कर सकता है?
\v 10 “मैं ख़ुदावन्द दिल — ओ — दिमाग़ को जाँचता और आज़माता हूँ, ताकि हर एक आदमी को उसकी चाल के मुवाफ़िक़ और उसके कामों के फल के मुताबिक़ बदला दूँ।”
\v 11 बेइन्साफ़ी से दौलत हासिल करनेवाला, उस तीतर की तरह है जो किसी दूसरे के अंडों पर बैठे; वह आधी उम्र में उसे खो बैठेगा और आख़िर को बेवक़ूफ़ ठहरेगा।
\s5
\v 12 हमारे हैकल का मकान इब्तिदा ही से मुक़र्रर किया हुआ जलाली तख़्त है।
\v 13 ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल की उम्मीदगाह, तुझको छोड़ने वाले सब शर्मिन्दा होंगे; मुझको छोड़ने वाले ख़ाक में मिल जाएँगे, क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द को, जो आब — ए — हयात का चश्मा है छोड़ दिया।
\v 14 ऐ ख़ुदावन्द, तू मुझे शिफ़ा बख़्शे तो मैं शिफ़ा पाऊँगा; तू ही बचाए तो बचूँगा, क्यूँकि तू मेरा फ़ख़्र है'।
\s5
\v 15 देख, वह मुझे कहते हैं, ख़ुदावन्द का कलाम कहाँ है? अब नाज़िल हो।
\v 16 मैंने तो तेरी पैरवी में गड़रिया बनने से इन्कार नहीं किया, और मुसीबत के दिन की आरज़ू नहीं की; तू ख़ुद जानता है कि जो कुछ मेरे लबों से निकला, तेरे सामने था।
\s5
\v 17 तू मेरे लिए दहशत की वजह न हो, मुसीबत के दिन तू ही मेरी पनाह है।
\v 18 मुझ पर सितम करने वाले शर्मिन्दा हों, लेकिन मुझे शर्मिन्दा न होने दे; वह हिरासान हों, लेकिन मुझे हिरासान न होने दे; मुसीबत का दिन उन पर ला और उनको शिकस्त पर शिकस्त दे!
\s5
\v 19 ख़ुदावन्द ने मुझसे यूँ फ़रमाया है कि: 'जा और उस फाटक पर जिससे 'आम लोग और शाहान — ए — यहूदाह आते जाते हैं, बल्कि येरूशलेम के सब फाटकों पर खड़ा हो
\v 20 और उनसे कह दे, 'ऐ शाहान — ए — यहूदाह, और ऐ सब बनी यहूदाह, और येरूशलेम के सब बाशिन्दों, जो इन फाटकों में से आते जाते हो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो।
\s5
\v 21 ख़ुदावन्द यू फ़रमाता है कि तुम ख़बरदार रहो, और सबत के दिन बोझ न उठाओ और येरूशलेम के फाटकों की राह से अन्दर न लाओ;
\v 22 और तुम सबत के दिन बोझ अपने घरों से उठा कर बाहर न ले जाओ, और किसी तरह का काम न करो; बल्कि सबत के दिन को पाक जानो, जैसा मैंने तुम्हारे बाप — दादा को हुक्म दिया था।
\v 23 लेकिन उन्होंने न सुना, न कान लगाया, बल्कि अपनी गर्दन को सख़्त किया कि सुनने न हों और तरबियत न पाएँ।
\s5
\v 24 “और यूँ होगा कि अगर तुम दिल लगाकर मेरी सुनोगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और सबत के दिन तुम इस शहर के फाटकों के अन्दर बोझ न लाओगे बल्कि सबत के दिन को पाक जानोगे, यहाँ तक कि उसमें कुछ काम न करो;
\v 25 तो इस शहर के फाटकों से दाऊद के जानशीन बादशाह और हाकिम दाख़िल होंगे; वह और उनके हाकिम यहूदाह के लोग और येरूशलेम के बाशिन्दे, रथों और घोड़ों पर सवार होंगे और यह शहर हमेशा तक आबाद रहेगा।
\s5
\v 26 और यहूदाह के शहरों और येरूशलेम के 'इलाक़े और बिनयमीन की सरज़मीन, और मैदान और पहाड़ और दख्खिन से सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और ज़बीहे और हदिये और लुबान लेकर आएँगे, और ख़ुदावन्द के घर में शुक्रगुज़ारी के हदिये लाएँगे।
\v 27 लेकिन अगर तुम मेरी न सुनोगे कि सबत के दिन को पाक जानो, और बोझ उठा कर सबत के दिन येरूशलेम के फाटकों में दाख़िल होने से बाज़ न रहो; तो मैं उसके फाटकों में आग सुलगाऊँगा, जो उसके क़स्रों को भसम कर देगी और हरगिज़ न बुझेगी।”
\s5
\c 18
\s कुम्हार और मिट्टी
\p
\v 1 ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि “उठ और कुम्हार के घर जा, और मैं वहाँ अपनी बातें तुझे सुनाऊँगा।”
\v 3 तब मैं कुम्हार के घर गया और क्या देखता हूँ कि वह चाक पर कुछ बना रहा है।
\v 4 उस वक़्त वह मिट्टी का बर्तन जो वह बना रहा था, उसके हाथ में बिगड़ गया; तब उसने उससे जैसा मुनासिब समझा एक दूसरा बर्तन बना लिया।
\s5
\v 5 तब ख़ुदावन्द का यह कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ:
\v 6 ऐ इस्राईल के घराने, क्या मैं इस कुम्हार की तरह तुम से सुलूक नहीं कर सकता हूँ? ख़ुदावन्द फ़रमाता है। देखो, जिस तरह मिट्टी कुम्हार के हाथ में है उसी तरह, ऐ इस्राईल के घराने, तुम मेरे हाथ में हो।
\v 7 अगर किसी वक़्त मैं किसी क़ौम और किसी सल्तनत के हक़ में कहूँ कि उसे उखाड़ूँ और तोड़ डालूँ और वीरान करूँ,
\v 8 और अगर वह क़ौम, जिसके हक़ में मैंने ये कहा, अपनी बुराई से बाज़ आए, तो मैं भी उस बुराई से जो मैंने उस पर लाने का इरादा किया था बाज़ आऊँगा।
\s5
\v 9 और फिर, अगर मैं किसी क़ौम और किसी सल्तनत के बारे में कहूँ कि उसे बनाऊँ और लगाऊँ;
\v 10 और वह मेरी नज़र में बुराई करे और मेरी आवाज़ को न सुने, तो मैं भी उस नेकी से बाज़ रहूँगा जो उसके साथ करने को कहा था।
\s5
\v 11 और अब तू जाकर यहूदाह के लोगों और येरूशलेम के बाशिन्दों से कह दे, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देखो, मैं तुम्हारे लिए मुसीबत तजवीज़ करता हूँ और तुम्हारी मुख़ालिफ़त में मनसूबा बाँधता हूँ। इसलिए अब तुम में से हर एक अपने बुरे चाल चलन से बाज़ आए, और अपनी राह और अपने 'आमाल को दुरुस्त करे।
\v 12 लेकिन वह कहेंगे, 'यह तो फ़ुज़ूल है, क्यूँकि हम अपने मन्सूबों पर चलेंगे, और हर एक अपने बुरे दिल की सख़्ती के मुताबिक़ 'अमल करेगा।
\s5
\v 13 “इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: दरियाफ़्त करो कि क़ौमों में से किसी ने कभी ऐसी बातें सुनी हैं? इस्राईल की कुँवारी ने बहुत हौलनाक काम किया।
\v 14 क्या लुबनान की बर्फ़ जो चट्टान से मैदान में बहती है, कभी बन्द होगी? क्या वह ठंडा बहता पानी जो दूर से आता है, सूख जाएगा?
\s5
\v 15 लेकिन मेरे लोग मुझ को भूल गए, और उन्होंने बेकार के लिए ख़ुशबू जलाया; और उसने उनकी राहों में या'नी क़दीम राहों में उनको गुमराह किया, ताकि वह पगडंडियों में जाएँ और ऐसी राह में जो बनाई न गई।
\v 16 कि वह अपनी सरज़मीन की वीरानी और हमेशा की हैरानी और सुस्कार का ज़रिया' बनाएँ; हर एक जो उधर से गुज़रे दंग होगा और सिर हिलाएगा।
\v 17 मैं उनको दुश्मन के सामने जैसे पूरबी हवा से तितर — बितर कर दूँगा; उनकी मुसीबत के वक़्त उनको मुँह नहीं, बल्कि पीठ दिखाऊँगा।”
\s5
\v 18 तब उन्होंने कहा, आओ, हम यरमियाह की मुख़ालिफ़त में मंसूबे बाँधे, क्यूँकि शरी'अत काहिन से जाती न रहेगी, और न मश्वरत मुशीर से और न कलाम नबी से। आओ, हम उसे ज़बान से मारें, और उसकी किसी बात पर तव्ज्जुह न करें।
\v 19 ऐ ख़ुदावन्द, तू मुझ पर तवज्जुह कर और मुझसे झगड़ने वालों की आवाज़ सुन।
\v 20 क्या नेकी के बदले बदी की जाएगी? क्यूँकि उन्होंने मेरी जान के लिए गढ़ा खोदा। याद कर कि मैं तेरे सामने खड़ा हुआ कि उनकी शफ़ा'अत करूँ और तेरा क़हर उन पर से टला दूँ।
\s5
\v 21 इसलिए उनके बच्चों को काल के हवाले कर, और उनको तलवार की धार के सुपुर्द कर, उनकी बीवियाँ बेऔलाद और बेवा हों, और उनके मर्द मारे जाएँ, उनके जवान मैदान — ए — जंग में तलवार से क़त्ल हों।
\v 22 जब तू अचानक उन पर फ़ौज चढ़ा लाएगा, उनके घरों से मातम की सदा निकले! क्यूँकि उन्होंने मुझे फँसाने को गढ़ा खोदा और मेरे पाँव के लिए फन्दे लगाए।
\v 23 लेकिन ऐ ख़ुदावन्द, तू उनकी सब साज़िशों को जो उन्होंने मेरे क़त्ल पर कीं जानता है। उनकी बदकिरदारी को मु'आफ़ न कर, और उनके गुनाह को अपनी नज़र से दूर न कर; बल्कि वह तेरे सामने पस्त हों, अपने क़हर के वक़्त तू उनसे यूँ ही कर।
\s5
\c 19
\s यर्मयाह का टूटी हुई सुराही
\p
\v 1 ख़ुदावन्द ने यूँ फ़रमाया है कि: तू जाकर कुम्हार से मिट्टी की सुराही मोल ले, और क़ौम के बुज़ुर्गों और काहिनों के सरदारों को साथ ले,
\v 2 और बिन — हिनूम की वादी में कुम्हारों के फाटक के मदख़ल पर निकल जा, और जो बातें मैं तुझ से कहूँ वहाँ उनका 'ऐलान कर,
\v 3 और कह, 'ऐ यहूदाह के बादशाहों और येरूशलेम के बाशिन्दो, ख़ुदा का कलाम सुनो। रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं इस जगह पर ऐसी बला नाज़िल करूँगा कि जो कोई उसके बारे में सुने उसके कान भन्ना जाएँगे।
\s5
\v 4 क्यूँकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया, और इस जगह को ग़ैरों के लिए ठहराया और इसमें ग़ैरमा'बूदों के लिए ख़ुशबू जलायी जिनको न वह, न उनके बाप — दादा, न यहूदाह के बादशाह जानते थे; और इस जगह को बेगुनाहों के ख़ून से भर दिया,
\v 5 और बा'ल के लिए ऊँचे मक़ाम बनाए, ताकि अपने बेटों को बा'ल की सोख़्तनी क़ुर्बानियों के लिए आग में जलाएँ जो न मैंने फ़रमाया न उसका ज़िक्र किया, और न कभी यह मेरे ख़याल में आया।
\s5
\v 6 इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि यह जगह न तूफ़त कहलाएगी और न बिनहिनूम की वादी, बल्कि वादी — ए — क़त्ल।
\v 7 और इसी जगह मैं यहूदाह और येरूशलेम का मन्सूबा बर्बाद करूँगा और मैं ऐसा करूँगा कि वह अपने दुश्मनों के आगे और उनके हाथों से जो उनकी जान के तलबगार हैं, तलवार से क़त्ल होंगे; और मैं उनकी लाशें हवा के परिन्दों को और ज़मीन के दरिन्दों को खाने को दूँगा,
\v 8 और मैं इस शहर को हैरानी और सुस्कार का ज़रिया' बनाऊँगा; हर एक जो इधर से गुज़रे दंग होगा, और उसकी सब आफ़तों की वजह से सुस्कारेगा।
\v 9 और मैं उनको उनके बेटों और उनकी बेटियों का गोश्त खिलाऊँगा, बल्कि हर एक दूसरे का गोश्त खाएगा, घिराव के वक़्त उस तंगी में जिससे उनके दुश्मन और उनकी जान के तलबगार उनको तंग करेंगे।
\s5
\v 10 “तब तू उस सुराही को उन लोगों के सामने जो तेरे साथ जाएँगे, तोड़ डालना
\v 11 और उनसे कहना के 'रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि मैं इन लोगों और इस शहर को ऐसा तोडूंगा, जिस तरह कोई कुम्हार के बर्तन को तोड़ डाले जो फिर दुरुस्त नहीं हो सकता; और लोग तूफ़त में दफ़्न करेंगे, यहाँ तक कि दफ़्न करने की जगह न रहेगी।
\s5
\v 12 मैं इस जगह और इसके बाशिन्दों से ऐसा ही करूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है चुनाँचे मैं इस शहर को तूफ़त की तरह कर दूँगा;
\v 13 और येरूशलेम के घर और यहूदाह के बादशाहों के घर तूफ़त के मक़ाम की तरह नापाक हो जाएँगे; हाँ, वह सब घर जिनकी छतों पर उन्होंने तमाम अजराम — ए — फ़लक के लिए ख़ुशबू जलायी और ग़ैरमा'बूदों के लिए तपावन तपाए।”
\s5
\v 14 तब यरमियाह तूफ़त से, जहाँ ख़ुदावन्द ने उसे नबुव्वत करने को भेजा था वापस आया; और ख़ुदावन्द के घर के सहन में खड़ा होकर तमाम लोगों से कहने लगा,
\v 15 “रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं इस शहर पर और इसकी सब बस्तियों पर वह तमाम बला, जो मैं ने उस पर भेजने को कहा था लाऊँगा: इसलिए कि उन्होंने बहुत बग़ावत की ताकि मेरी बातों को न सुनें।”
\s5
\c 20
\s यर्मयाह और फ़शहूर
\p
\v 1 फ़शहूर — बिन — इम्मेर काहिन ने, जो ख़ुदावन्द के घर में सरदार नाज़िम था, यरमियाह को यह बातें नबुव्वत से कहते सुना।
\v 2 तब फ़शहूर ने यरमियाह नबी को मारा और उसे उस काठ में डाला, जो बिनयमीन के बालाई फाटक में ख़ुदावन्द के घर में था।
\s5
\v 3 और दूसरे दिन यूँ हुआ कि फ़शहूर ने यरमियाह को काठ से निकाला। तब यरमियाह ने उसे कहा, ख़ुदावन्द ने तेरा नाम फ़शहूर नहीं, बल्कि मजूरमिस्साबीब रखा है।
\v 4 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं तुझ को तेरे लिए और तेरे सब दोस्तों के लिए दहशत का ज़रिया' बनाऊँगा; और वह अपने दुश्मनों की तलवार से क़त्ल होंगे और तेरी आँखे देखेंगी और मैं तमाम यहूदाह को शाह — ए — बाबुल के हवाले कर दूँगा, और वह उनको ग़ुलाम करके बाबुल में ले जाएगा और उनको तलवार से क़त्ल करेगा।
\s5
\v 5 और मैं इस शहर की सारी दौलत और इसके तमाम महासिल और इसकी सब नफ़ीस चीज़ों को, और यहूदाह के बादशाहों के सब ख़ज़ानों को दे डालूँगा; हाँ, मैं उनको उनके दुश्मनों के हवाले कर दूँगा, जो उनको लूटेंगे और बाबुल को ले जाएँगे।
\v 6 और ऐ फ़शहूर, तू और तेरा सारा घराना ग़ुलामी में जाओगे, और तू बाबुल में पहुँचेगा और वहाँ मरेगा और वहीं दफ़्न किया जाएगा तू और तेरे सब दोस्त जिनसे तूने झूटी नबुव्वत की।
\s5
\v 7 ऐ ख़ुदावन्द, तूने मुझे तरग़ीब दी है और मैंने मान लिया; तू मुझसे तवाना था, और तू ग़ालिब आया। मैं दिन भर हँसी का ज़रिया' बनता हूँ, हर एक मेरी हँसी उड़ाता है।
\v 8 क्यूँकि जब — जब मैं कलाम करता हूँ, ज़ोर से पुकारता हूँ, मैंने ग़ज़ब और हलाकत का 'ऐलान किया, क्यूँकि ख़ुदावन्द का कलाम दिन भर मेरी मलामत और हँसी का ज़रिया' होता है।
\v 9 और अगर मैं कहूँ कि 'मैं उसका ज़िक्र न करूँगा, न फिर कभी उसके नाम से कलाम करूँगा, तो उसका कलाम मेरे दिल में जलती आग की तरह है जो मेरी हड्डियों में छिपा है, और मैं ज़ब्त करते करते थक गया और मुझसे रहा नहीं जाता।
\s5
\v 10 क्यूँकि मैंने बहुतों की तोहमत सुनी। चारों तरफ़ दहशत है! “उसकी शिकायत करो! वह कहते हैं, हम उसकी शिकायत करेंगे, मेरे सब दोस्त मेरे ठोकर खाने के मुन्तज़िर हैं और कहते हैं, शायद वह ठोकर खाए, तब हम उस पर ग़ालिब आएँगे और उससे बदला लेंगे।”
\v 11 लेकिन ख़ुदावन्द बड़े बहादुर की तरह मेरी तरफ़ है, इसलिए मुझे सताने वालों ने ठोकर खाई और ग़ालिब न आए, वह बहुत शर्मिन्दा हुए इसलिए कि उन्होंने अपना मक़सद न पाया; उनकी शर्मिन्दगी हमेशा तक रहेगी, कभी फ़रामोश न होगी।
\s5
\v 12 इसलिए, ऐ रब्बउल — अफ़वाज, तू जो सादिक़ों को आज़माता और दिल — ओ — दिमाग़ को देखता है, उनसे बदला लेकर मुझे दिखा; इसलिए कि मैंने अपना दा'वा तुझ पर ज़ाहिर किया है।
\v 13 ख़ुदावन्द की मदहसराई करो; ख़ुदावन्द की सिताइश करो! क्यूँकि उसने ग़रीब की जान को बदकिरदारों के हाथ से छुड़ाया है।
\s5
\v 14 ला'नत उस दिन पर जिसमें मैं पैदा हुआ! वह दिन जिस में मेरी माँ ने मुझ को पैदा किया, हरगिज़ मुबारक न हो!
\v 15 ला'नत उस आदमी पर जिसने मेरे बाप को ये कहकर ख़बर दी, तेरे यहाँ बेटा पैदा हुआ, और उसे बहुत ख़ुश किया।
\s5
\v 16 हाँ, वह आदमी उन शहरों की तरह हो, जिनको ख़ुदावन्द ने शिकस्त दी और अफ़सोस न किया; और वह सुबह को ख़ौफ़नाक शोर सुने और दोपहर के वक़्त बड़ी ललकार,
\v 17 इसलिए कि उसने मुझे रिहम ही में क़त्ल न किया, कि मेरी माँ मेरी क़ब्र होती, और उसका रिहम हमेशा तक भरा रहता।
\v 18 मैं पैदा ही क्यूँ हुआ कि मशक़्क़त और रंज देखूँ, और मेरे दिन रुस्वाई में कटें?
\s5
\c 21
\s बाबेल से कोई नजात ना मिलना
\p
\v 1 वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ, जब सिदक़ियाह बादशाह ने फ़शहूर — बिन — मलकियाह और सफ़नियाह — बिन — मासियाह काहिन को उसके पास ये कहने को भेजा,
\v 2 कि “हमारी ख़ातिर ख़ुदावन्द से दरियाफ़्त कर क्यूँकि शाहे — ए — बाबुल नबूकदनज़र हमारे साथ लड़ाई करता है; शायद ख़ुदावन्द हम से अपने तमाम 'अजीब कामों के मुवाफ़िक़ ऐसा सुलूक करे कि वह हमारे पास से चला जाए।”
\s5
\v 3 तब यरमियाह ने उनसे कहा, तुम सिदक़ियाह से यूँ कहना,
\v 4 कि 'ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं लड़ाई के हथियारों को जो तुम्हारे हाथ में हैं, जिनसे तुम शाह — ए — बाबुल और कसदियों के ख़िलाफ़ जो फ़सील के बाहर तुम्हारा घिराव किए हुए हैं लड़ते हो फेर दूँगा और मैं उनको इस शहर के बीच में इकट्ठे करूँगा;
\v 5 और मैं आप अपने बढ़ाए हुए हाथ से और क़ुव्वत — ए — बाज़ू से तुम्हारे ख़िलाफ़ लड़ूँगा, हाँ, क़हर — ओ — ग़ज़ब से बल्कि ग़ज़बनाक ग़ुस्से से।
\s5
\v 6 और मैं इस शहर के बाशिन्दों को, इंसान और हैवान दोनों को मारूँगा, वह बड़ी वबा से फ़ना हो जाएँगे।
\v 7 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, फिर मैं शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह को और उसके मुलाज़िमों और 'आम लोगों को, जो इस शहर में वबा और तलवार और काल से बच जाएँगे, शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र और उनके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों के हवाले करूँगा। और वह उनको हलाक करेगा; न उनको छोड़ेगा, न उन पर तरस खाएगा और न रहम करेगा।
\s5
\v 8 'और तू इन लोगों से कहना ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं तुम को हयात की राह और मौत की राह दिखाता हूँ।
\v 9 जो कोई इस शहर में रहेगा, वह तलवार और काल और वबा से मरेगा, लेकिन जो निकलकर कसदियों में जो तुम को घेरे हुए हैं, चला जाएगा, वह जिएगा और उसकी जान उसके लिए ग़नीमत होगी।
\v 10 क्यूँकि मैंने इस शहर का रुख़ किया है कि इससे बुराई करूँ, और भलाई न करूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; वह शाह — ए — बाबुल के हवाले किया जाएगा और वह उसे आग से जलाएगा।
\s5
\v 11 'और शाह — ए — यहूदाह के ख़ान्दान के बारे में ख़ुदावन्द का कलाम सुनो,
\v 12 'ऐ दाऊद के घराने! ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तुम सवेरे उठ कर इन्साफ़ करो और मज़लूम को ज़ालिम के हाथ से छुड़ाओ, ऐसा तुम्हारे कामों की बुराई की वजह से मेरा क़हर आग की तरह भड़के, और ऐसा तेज़ हो कि कोई उसे ठंडा न कर सके।
\s5
\v 13 ऐ वादी की बसनेवाली, ऐ मैदान की चट्टान पर रहने वाली, जो कहती है कि कौन हम पर हमला करेगा? या हमारे घरों में कौन आ घुसेगा?' ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ,
\v 14 और तुम्हारे कामों के फल के मुवाफ़िक़ मैं तुम को सज़ा दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और मैं उसके बन में आग लगाऊँगा, जो उसके सारे 'इलाक़े को भसम करेगी।
\s5
\c 22
\s यहूदाह के बादशाह के लिए पैगाम
\p
\v 1 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि “शाह — ए — यहूदाह के घर को जा, और वहाँ ये कलाम सुना
\v 2 और कह, 'ऐ शाह — ए — यहूदाह जो दाऊद के तख़्त पर बैठा है, ख़ुदावन्द का कलाम सुन, तू और तेरे मुलाज़िम और तेरे लोग जो इन दरवाज़ों से दाख़िल होते हैं।
\v 3 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: 'अदालत और सदाक़त के काम करो, और मज़लूम को ज़ालिम के हाथ से छुड़ाओ; और किसी से बदसुलूकी न करो, और मुसाफ़िर — ओ — यतीम और बेवा पर ज़ुल्म न करो, इस जगह बेगुनाह का ख़ून न बहाओ।
\s5
\v 4 क्यूँकि अगर तुम इस पर 'अमल करोगे, तो दाऊद के जानशीन बादशाह रथों पर और घोड़ों पर सवार होकर इस घर के फाटकों से दाख़िल होंगे, बादशाह और उसके मुलाज़िम और उसके लोग।
\v 5 लेकिन अगर तुम इन बातों को न सुनोगे, तो ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मुझे अपनी ज़ात की क़सम यह घर वीरान हो जाएगा
\s5
\v 6 क्यूँकि शाह — ए — यहूदाह के घराने के बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: अगरचे तू मेरे लिए जिल'आद है और लुबनान की चोटी, तो भी मैं यक़ीनन तुझे उजाड़ दूंगा और ग़ैर — आबाद शहर बनाऊँगा।
\v 7 और मैं तेरे ख़िलाफ़ ग़ारतगरों को मुक़र्रर करूँगा, हर एक को उसके हथियारों के साथ, और वह तेरे नफ़ीस देवदारों को काटेंगे और उनको आग में डालेंगे।
\s5
\v 8 और बहुत सी क़ौमें इस शहर की तरफ़ से गुज़रेंगी और उनमें से एक दूसरे से कहेगा कि 'ख़ुदावन्द ने इस बड़े शहर से ऐसा क्यूँ किया है?”
\v 9 तब वह जवाब देंगे, इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के 'अहद को छोड़ दिया और ग़ैरमा'बूदों की इबादत और परस्तिश की।
\s5
\v 10 मुर्दे पर न रो, न नौहा करो, मगर उस पर जो चला जाता है ज़ार — ज़ार नाला करो, क्यूँकि वह फिर न आएगा, न अपने वतन को देखेगा।
\s5
\v 11 क्यूँकि शाह — ए — यहूदाह सलूम — बिन — यूसियाह के बारे में जो अपने बाप यूसियाह का जानशीन हुआ और इस जगह से चला गया, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि “वह फिर इस तरफ़ न आएगा;
\v 12 बल्कि वह उसी जगह मरेगा, जहाँ उसे ग़ुलाम करके ले गए हैं और इस मुल्क को फिर न देखेगा।”
\s5
\v 13 “उस पर अफ़सोस, जो अपने घर को बे — इन्साफ़ी से और अपने बालाख़ानों को ज़ुल्म से बनाता है; जो अपने पड़ोसी से बेगार लेता है, और उसकी मज़दूरी उसे नहीं देता;
\v 14 जो कहता है, 'मैं अपने लिए बड़ा मकान और हवादार बालाख़ाना बनाऊँगा, और वह अपने लिए झांझरियाँ बनाता है और देवदार की लकड़ी की छत लगाता हैं और उसे शंगर्फ़ी करता है।
\s5
\v 15 क्या तू इसीलिए सल्तनत करेगा कि तुझे देवदार के काम का शौक़ है? क्या तेरे बाप ने नहीं खाया — पिया और 'अदालत — ओ — सदाक़त नहीं की जिससे उसका भला हुआ?
\v 16 उसने ग़रीब और मुहताज का इन्साफ़ किया, इसी से उसका भला हुआ। क्या यही मेरा इरफ़ान न था? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 17 लेकिन तेरी आँखें और तेरा दिल, सिर्फ़ लालच और बेगुनाह का ख़ून बहाने और ज़ुल्म — ओ — सितम पर लगे हैं।”
\v 18 इसीलिए ख़ुदावन्द यहूयक़ीम शाह — ए — यहूदाह — बिन — यूसियाह के बारे में यूँ फ़रमाता है कि “उस पर 'हाय मेरे भाई! या हाय बहन!' कह कर मातम नहीं करेंगे, उसके लिए 'हाय आक़ा! या हाय मालिक!' कह कर नौहा नहीं करेंगे।
\v 19 उसका दफ़्न गधे के जैसा होगा, उसको घसीटकर येरूशलेम के फाटकों के बाहर फेंक देंगे।”
\s5
\v 20 “तू लुबनान पर चढ़ जा और चिल्ला, और बसन में अपनी आवाज़ बुलन्द कर; और 'अबारीम पर से फ़रियाद कर, क्यूँकि तेरे सब चाहने वाले मारे गए।
\v 21 मैंने तेरी इक़बालमन्दी के दिनों में तुझ से कलाम किया, लेकिन तूने कहा, 'मैं न सुनूँगी। तेरी जवानी से तेरी यही चाल है कि तू मेरी आवाज़ को नहीं सुनती।
\s5
\v 22 एक आँधी तेरे चरवाहों को उड़ा ले जाएगी, और तेरे आशिक़ ग़ुलामी में जाएँगे; तब तू अपनी सारी शरारत के लिए शर्मसार और पशेमान होगी।
\v 23 ऐ लुबनान की बसनेवाली, जो अपना आशियाना देवदारों पर बनाती है, तू कैसी 'आजिज़ होगी, जब तू ज़च्चा की तरह पैदाइश के दर्द में मुब्तिला होगी।”
\s5
\v 24 'ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मुझे अपनी हयात की क़सम, अगरचे तू ऐ शाह — ए — यहूदाह कूनियाह — बिन — यहूयक़ीम मेरे दहने हाथ की अँगूठी होता, तो भी मैं तुझे निकाल फेंकता;
\v 25 और मैं तुझ को तेरे जानी दुश्मनों के जिनसे तू डरता है, या'नी शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र और कसदियों के हवाले करूँगा।
\v 26 हाँ, मैं तुझे और तेरी माँ को जिससे तू पैदा हुआ, ग़ैर मुल्क में जो तुम्हारी ज़ादबूम नहीं है, हाँक दूँगा और तुम वहीं मरोगे।
\s5
\v 27 जिस मुल्क में वह वापस आना चाहते हैं, हरगिज़ लौटकर न आएँगे।
\v 28 क्या यह शख़्स कूनियाह, नाचीज़ टूटा बर्तन है या ऐसा बर्तन जिसे कोई नहीं पूछता? वह और उसकी औलाद क्यूँ निकाल दिए गए और ऐसे मुल्क में जिलावतन किए गए जिसे वह नहीं जानते?
\s5
\v 29 ऐ ज़मीन, ज़मीन, ज़मीन! ख़ुदावन्द का कलाम सुन!
\v 30 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि “इस आदमी को बे — औलाद लिखो, जो अपने दिनों में इक़बालमन्दी का मुँह न देखेगा; क्यूँकि उसकी औलाद में से कभी कोई ऐसा इक़बालमन्द न होगा कि दाऊद के तख़्त पर बैठे और यहूदाह पर सल्तनत करे।”
\s5
\c 23
\s पाक नसबनामा
\p
\v 1 ख़ुदावन्द फ़रमाता है: “उन चरवाहों पर अफ़सोस, जो मेरी चरागाह की भेड़ों को हलाक और तितर — बितर करते हैं!”
\v 2 इसलिए ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा उन चरवाहों की मुख़ालिफ़त में जो मेरे लोगों की चरवाही करते हैं, यूँ फ़रमाता है कि तुमने मेरे गल्ले को तितर — बितर किया, और उनको हाँक कर निकाल दिया और निगहबानी नहीं की; देखो, मैं तुम्हारे कामों की बुराई तुम पर लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 3 लेकिन मैं उनको जो मेरे गल्ले से बच रहे हैं, तमाम मुमालिक से जहाँ — जहाँ मैंने उनको हाँक दिया था जमा' कर लूँगा, और उनको फिर उनके गल्ला ख़ानों में लाऊँगा, और वह फैलेंगे और बढ़ेंगे।
\v 4 और मैं उन पर ऐसे चौपान मुक़र्रर करूँगा जो उनको चराएँगे; और वह फिर न डरेंगे, न घबराएँगे, न गुम होंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 5 “देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि: मैं दाऊद के लिए एक सादिक़ शाख़ पैदा करूँगा और उसकी बादशाही मुल्क में इक़बालमन्दी और 'अदालत और सदाक़त के साथ होगी।
\v 6 उसके दिनों में यहूदाह नजात पाएगा, और इस्राईल सलामती से सुकूनत करेगा; और उसका नाम यह रख्खा जाएगा, 'ख़ुदावन्द हमारी सदाक़त'।
\s5
\v 7 'इसी लिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि वह फिर न कहेंगे, ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम, जो बनी — इस्राईल को मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया,
\v 8 बल्कि, ज़िन्दा ख़ुदावन्द की क़सम, जो इस्राईल के घराने की औलाद को उत्तर की सरज़मीन से, और उन सब ममलुकतों से जहाँ — जहाँ मैंने उनको हाँक दिया था निकाल लाया, और वह अपने मुल्क में बसेंगे।”
\s5
\v 9 नबियों के बारे में:मेरा दिल मेरे अन्दर टूट गया, मेरी सब हड्डियाँ थरथराती हैं; ख़ुदावन्द और उसके पाक कलाम की वजह से मैं मतवाला सा हूँ, और उस शख़्स की तरह जो मय से मग़लूब हो।
\v 10 यक़ीनन ज़मीन बदकारों से भरी है; ला'नत की वजह से ज़मीन मातम करती है मैदान की चारागाहें सूख गयीं क्यूँकि उनके चाल चलन बुरे और उनका ज़ोर नाहक़ है।
\s5
\v 11 कि “नबी और काहिन, दोनों नापाक हैं, हाँ, मैंने अपने घर के अन्दर उनकी शरारत देखी, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 12 इसलिए उनकी राह उनके हक़ में ऐसी होगी, जैसे तारीकी में फिसलनी जगह, वह उसमे दौड़ाये जायेंगे और वहां गिरेंगे ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मैं उन पर बला लाऊँगा, या'नी उनकी सज़ा का साल।
\s5
\v 13 और मैंने सामरिया के नबियों में हिमाक़त देखी है: उन्होंने बा'ल के नाम से नबुव्वत की और मेरी क़ौम इस्राईल को गुमराह किया।
\v 14 मैंने येरूशलेम के नबियों में भी एक हौलनाक बात देखी:वह ज़िनाकार, झूठ के पैरौ और बदकारों के हामी हैं, यहाँ तक कि कोई अपनी शरारत से बाज़ नहीं आता; वह सब मेरे नज़दीक सदूम की तरह और उसके बाशिन्दे 'अमूरा की तरह हैं।”
\v 15 इसीलिए रब्ब — उल — अफ़वाज, नबियों के बारे में यूँ फ़रमाता है कि: “देख, मैं उनको नागदौना खिलाऊँगा और इन्द्रायन का पानी पिलाऊँगा; क्यूँकि येरूशलेम के नबियों ही से तमाम मुल्क में बेदीनी फैली है।”
\s5
\v 16 रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: उन नबियों की बातें न सुनो, जो तुम से नबुव्वत करते हैं, वह तुम को बेकार की ता'लीम देते हैं, वह अपने दिलों के इल्हाम बयान करते हैं, न कि ख़ुदावन्द के मुँह की बातें।
\v 17 वह मुझे हक़ीर जाननेवालों से कहते रहते हैं, 'ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है कि: तुम्हारी सलामती होगी; “और हर एक से जो अपने दिल की सख़्ती पर चलता है, कहते हैं कि 'तुझ पर कोई बला न आएगी।”
\v 18 लेकिन उनमें से कौन ख़ुदावन्द की मजलिस में शामिल हुआ कि उसका कलाम सुने और समझे? किसने उसके कलाम की तरफ़ तवज्जुह की और उस पर कान लगाया?
\s5
\v 19 देख, ख़ुदावन्द के ग़ज़बनाक ग़ुस्से का तूफ़ान जारी हुआ है, बल्कि तूफ़ान का बगोला शरीरों के सिर पर टूट पड़ेगा।
\v 20 ख़ुदावन्द का ग़ज़ब फिर ख़त्म न होगा, जब तक उसे अंजाम तक न पहुँचाए और उसके दिल के इरादे को पूरा न करे। तुम आने वाले दिनों में उसे बख़ूबी मा'लूम करोगे।
\s5
\v 21 'मैंने इन नबियों को नहीं भेजा, लेकिन ये दौड़ते फिरे; मैंने इनसे कलाम नहीं किया, लेकिन इन्होंने नबुव्वत की।
\v 22 लेकिन अगर वह मेरी मजलिस में शामिल होते, तो मेरी बातें मेरे लोगों को सुनाते; और उनको उनकी बुरी राह से और उनके कामों की बुराई से बाज़ रखते।
\s5
\v 23 “ख़ुदावन्द फ़रमाता है: क्या मैं नज़दीक ही का ख़ुदा हूँ और दूर का ख़ुदा नहीं?”
\v 24 क्या कोई आदमी पोशीदा जगहों में छिप सकता है कि मैं उसे न देखूँ? ख़ुदावन्द फ़रमाता है। क्या ज़मीन — ओ — आसमान मुझसे मा'मूर नहीं हैं? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 25 मैंने सुना जो नबियों ने कहा, जो मेरा नाम लेकर झूटी नबुव्वत करते और कहते हैं कि 'मैंने ख़्वाब देखा, मैने ख़्वाब देखा!'
\v 26 कब तक ये नबियों के दिल में रहेगा कि झूटी नबुव्वत करें? हाँ, वह अपने दिल की फ़रेबकारी के नबी हैं।
\v 27 जो गुमान रखते हैं कि अपने ख़्वाबों से, जो उनमें से हर एक अपने पड़ोसी से बयान करता है, मेरे लोगों को मेरा नाम भुला दें, जिस तरह उनके बाप — दादा बा'ल की वजह से मेरा नाम भूल गए थे।
\s5
\v 28 जिस नबी के पास ख़्वाब है, वह ख़्वाब बयान करे; और जिसके पास मेरा कलाम है, वह मेरे कलाम को दियानतदारी से सुनाए। गेहूँ को भूसे से क्या निस्बत? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 29 क्या मेरा कलाम आग की तरह नहीं है? ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और हथौड़े की तरह जो चट्टान को चकनाचूर कर डालता है?
\v 30 इसलिए देख, मैं उन नबियों का मुख़ालिफ़ हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जो एक दूसरे से मेरी बातें चुराते हैं।
\s5
\v 31 देख, मैं उन नबियों का मुख़ालिफ़ हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जो अपनी ज़बान को इस्ते'माल करते हैं और कहते हैं कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 32 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, देख, मैं उनका मुख़ालिफ़ हूँ जो झूटे ख़्वाबों को नबुव्वत कहते और बयान करते हैं और अपनी झूटी बातों से और बकवास से मेरे लोगों को गुमराह करते हैं; लेकिन मैंने न उनको भेजा न हुक्म दिया; इसलिए इन लोगों को उनसे हरगिज़ फ़ायदा न होगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 33 “और जब यह लोग या नबी या काहिन तुझ से पूछे कि 'ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार — ए — नबुव्वत क्या है?' तब तू उनसे कहना, 'कौन सा बार — ए — नबुव्वत! ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं तुम को फेंक दूँगा।”
\v 34 और नबी और काहिन और लोगों में से जो कोई कहे, 'ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार — ए — नबुव्वत, मैं उस शख़्स को और उसके घराने को सज़ा दूँगा।
\s5
\v 35 चाहिए कि हर एक अपने पड़ोसी और अपने भाई से यूँ कहे कि 'ख़ुदावन्द ने क्या जवाब दिया?' और 'ख़ुदावन्द ने क्या फ़रमाया है?
\v 36 लेकिन ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार — ए — नबुव्वत का ज़िक्र तुम कभी न करना; इसलिए कि हर एक आदमी की अपनी ही बातें उस पर बार होंगी, क्यूँकि तुम ने ज़िन्दा ख़ुदा रब्ब — उलअफ़वाज, हमारे ख़ुदा के कलाम को बिगाड़ डाला है।
\s5
\v 37 तू नबी से यूँ कहना कि 'ख़ुदावन्द ने तुझे क्या जवाब दिया?' और 'ख़ुदावन्द ने क्या फ़रमाया?'
\v 38 लेकिन चूँकि तुम कहते हो, 'ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार — ए — नबुवत; “इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: चूँकि तुम कहते हो, ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार — ए — नबुव्वत, और मैंने तुम को कहला भेजा, 'ख़ुदावन्द की तरफ़ से बार — ए — नबुव्वत न कहो;
\v 39 इसलिए देखो, मैं तुम को बिल्कुल फ़रामोश कर दूँगा और तुमको और इस शहर को, जो मैंने तुम को और तुम्हारे बाप दादा को दिया, अपनी नज़र से दूर कर दूँगा।
\v 40 और मैं तुमको हमेशा की मलामत का निशाना बनाऊँगा, और हमेशा की शर्मिंदगी तुम पर लाऊँगा जो कभी फ़रामोश न होगी।”
\s5
\c 24
\s अच्छे और खराब अंजीर
\p
\v 1 जब शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र शाह — ए — यहूदाह यकूनियाह — बिन — यहूयक़ीम को और यहूदाह के हाकिम को, कारीगरों और लुहारों के साथ येरूशलेम से ग़ुलाम करके बाबुल को ले गया, तो ख़ुदावन्द ने मुझ पर नुमायाँ किया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द की हैकल के सामने अंजीर की दो टोकरियाँ धरी थीं।
\v 2 एक टोकरी में अच्छे से अच्छे अंजीर थे, उनकी तरह जो पहले पकते हैं; और दूसरी टोकरी में बहुत ख़राब अंजीर थे, ऐसे ख़राब कि खाने के क़ाबिल न थे।
\v 3 और ख़ुदावन्द ने मुझसे फ़रमाया, ऐ यरमियाह! तू क्या देखता है? और मैंने 'अर्ज़ की, अंजीर अच्छे अंजीर बहुत अच्छे और ख़राब अंजीर बहुत ख़राब, ऐसे ख़राब कि खाने के क़ाबिल नहीं।
\s5
\v 4 फिर ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ कि:
\v 5 ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: इन अच्छे अंजीरों की तरह मैं यहूदाह के उन ग़ुलामों पर जिनको मैंने इस मक़ाम से कसदियों के मुल्क में भेजा है, करम की नज़र रखूँगा।
\v 6 क्यूँकि उन पर मेरी नज़र — ए — 'इनायत होगी, और मैं उनको इस मुल्क में वापस लाऊँगा, और मैं उनको बर्बाद नहीं बल्कि आबाद करूँगा; मैं उनको लगाऊँगा और उखाड़ूँगा नहीं।
\v 7 और मैं उनको ऐसा दिल दूँगा कि मुझे पहचानें कि मैं ख़ुदावन्द हूँ! और वह मेरे लोग होंगे और मैं उनका ख़ुदा हूँगा, इसलिए कि वह पूरे दिल से मेरी तरफ़ फिरेंगे।
\s5
\v 8 “लेकिन उन ख़राब अंजीरों के बारे में, जो ऐसे ख़राब हैं कि खाने के क़ाबिल नहीं; ख़ुदावन्द यक़ीनन यूँ फ़रमाता है कि इसी तरह मैं शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह को, और उसके हाकिम को, और येरूशलेम के बाक़ी लोगों को, जो इस मुल्क में बच रहे हैं और जो मुल्क — ए — मिस्र में बसते हैं, छोड़ दूँगा।
\v 9 हाँ, मैं उनको छोड़ दूँगा कि दुनिया की सब ममलुकतों में धक्के खाते फिरें, ताकि वह हर एक जगह में जहाँ — जहाँ मैं उनको हॉक दूँगा, मलामत और मसल और तान और ला'नत का ज़रिया' हों।
\v 10 और मैं उनमें तलवार और काल और वबा भेजूँगा यहाँ तक कि वह उस मुल्क से जो मैंने उनको और उनके बाप — दादा को दिया, हलाक हो जाएँगे।”
\s5
\c 25
\s गुलामी के सत्तर साल
\p
\v 1 वह कलाम जो शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम — बिन — यूसियाह के चौथे बरस में, जो शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र का पहला बरस था, यहूदाह के सब लोगों के बारे में यरमियाह पर नाज़िल हुआ;
\v 2 जो यरमियाह नबी ने यहूदाह के सब लोगों और येरूशलेम के सब बाशिन्दों को सुनाया, और कहा,
\s5
\v 3 कि शाह — ए — यहूदाह यूसियाह — बिन — अमून के तेरहवें बरस से आज तक यह तेईस बरस ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल होता रहा, और मैं तुम को सुनाता और सही वक़्त पर “जताता रहा पर तुम ने न सुना।
\v 4 और ख़ुदावन्द ने अपने सब ख़िदमतगुज़ार नबियों को तुम्हारे पास भेजा, उसने उनको सही वक़्त पर भेजा, लेकिन तुम ने न सुना और न कान लगाया;
\s5
\v 5 उन्होंने कहा, 'तुम सब अपनी — अपनी बुरी राह से, और अपने बुरे कामों से बाज़ आओ, और उस मुल्क में जो ख़ुदावन्द ने तुम को और तुम्हारे बाप — दादा को पहले से हमेशा के लिए दिया है, बसो;
\v 6 और ग़ैर मा'बूदों की पैरवी न करो कि उनकी 'इबादत — ओ — परस्तिश करो, और अपने हाथों के कामों से मुझे ग़ज़बनाक न करो; और मैं तुम को कुछ नुक़सान न पहुँचाऊँगा।
\s5
\v 7 लेकिन ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तुम ने मेरी न सुनी; ताकि अपने हाथों के कामों से अपने ज़ियान के लिए मुझे ग़ज़बनाक करो।
\v 8 'इसलिए रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: चूँकि तुम ने मेरी बात न सुनी,
\v 9 देखो, मैं तमाम उत्तरी क़बीलों को और अपने ख़िदमत गुज़ार शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र को बुला भेजूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और मैं उनको इस मुल्क और इसके बाशिन्दों पर, और उन सब क़ौमों पर जो आस — पास हैं चढ़ा लाऊँगा; और इनको बिल्कुल हलाक — ओ — बर्बाद कर दूँगा और इनको हैरानी और सुस्कार का ज़रिया' बनाऊँगा और हमेशा के लिए वीरान करूँगा।
\s5
\v 10 बल्कि मैं इनमें से ख़ुशी — ओ — शादमानी की आवाज़ दूल्हे और दूल्हन की आवाज़, चक्की की आवाज़ और चराग़ की रोशनी ख़त्म कर दूँगा।
\v 11 और यह सारी सरज़मीन वीरान और हैरानी का ज़रिया' हो जाएगी, और यह क़ौमें सत्तर बरस तक शाह — ए — बाबुल की ग़ुलामी करेंगी।
\s5
\v 12 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब सत्तर बरस पूरे होंगे, तो मैं शाह — ए — बाबुल को और उस क़ौम को और कसदियों के मुल्क को, उनकी बदकिरदारी की वजह से सज़ा दूँगा; और मैं उसे ऐसा उजाड़ूँगा कि हमेशा तक वीरान रहे।
\v 13 और मैं उस मुल्क पर अपनी सब बातें जो मैंने उसके बारे में कहीं, या'नी वह सब जो इस किताब में लिखी हैं, जो यरमियाह ने नबुव्वत करके सब क़ौमों को कह सुनाई, पूरी करूँगा
\v 14 कि उनसे, हाँ, उन्हीं से बहुत सी क़ौमें और बड़े — बड़े बादशाह ग़ुलाम के जैसी ख़िदमत लेंगे; तब मैं उनके आ'माल के मुताबिक़ और उनके हाथों के कामों के मुताबिक़ उनको बदला दूँगा।”
\s5
\v 15 चूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा ने मुझे फ़रमाया, ग़ज़ब की मय का यह प्याला मेरे हाथ से ले और उन सब क़ौमों को जिनके पास मैं तुझे भेजता हूँ, पिला,
\v 16 कि वह पिएँ और लड़खड़ाएँ, और उस तलवार की वजह से जो मैं उनके बीच चलाऊँगा बेहवास हों।
\s5
\v 17 इसलिए मैंने ख़ुदावन्द के हाथ से वह प्याला लिया, और उन सब क़ौमों को जिनके पास ख़ुदावन्द ने मुझे भेजा था पिलाया;
\v 18 या'नी येरूशलेम और यहूदाह के शहरों को और उसके बादशाहों और हाकिम को, ताकि वह बर्बाद हों और हैरानी और सुस्कार और ला'नत का ज़रिया' ठहरें, जैसे अब हैं;
\s5
\v 19 शाह — ए — मिस्र फ़िर'औन को, और उसके मुलाज़िमों और उसके हाकिम और उसके सब लोगों को;
\v 20 और सब मिले — जुले लोगों, और 'ऊज़ की ज़मीन के सब बादशाहों और फ़िलिस्तियों की सरज़मीन के सब बादशाहों, और अश्क़लोंन और ग़ज़्ज़ा और अक़रून और अश्दूद के बाक़ी लोगों को;
\v 21 अदोम और मोआब और बनी 'अम्मोन को;
\s5
\v 22 और सूर के सब बादशाहों, और सैदा के सब बादशाहों, और समन्दर पार के बहरी मुल्कों के बादशाहों को;
\v 23 ददान और तेमा और बूज़, और उन सब को जो गाओदुम दाढ़ी रखते हैं;
\s5
\v 24 और 'अरब के सब बादशाहों, और उन मिले — जुले लोगों के सब बादशाहों को जो वीराने में बसते हैं;
\v 25 और ज़िमरी के सब बादशाहों और 'ऐलाम के सब बादशाहों और मादै के सब बादशाहों को;
\v 26 और उत्तर के सब बादशाहों को जो नज़दीक और जो दूर हैं, एक दूसरे के साथ, और दुनिया की सब सल्तनतों को जो इस ज़मीन पर हैं; और उनके बाद शेशक का बादशाह पिएगा।
\s5
\v 27 और तू उनसे कहेगा कि 'इस्राईल का ख़ुदा, रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि तुम पियो और मस्त हो और तय करो, और गिर पड़ो और फिर न उठो, उस तलवार की वजह से जो मैं तुम्हारे बीच भेजूँगा।
\v 28 और यूँ होगा कि अगर वह पीने को तेरे हाथ से प्याला लेने से इन्कार करें, तो उनसे कहना कि रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: यक़ीनन तुम को पीना होगा।
\v 29 क्यूँकि देख, मैं इस शहर पर जो मेरे नाम से कहलाता है आफ़त लाना शुरू' करता हूँ और क्या तुम साफ़ बेसज़ा छूट जाओगे? तुम बेसज़ा न छूटोगे, क्यूँकि मैं ज़मीन के सब बाशिन्दों पर तलवार को तलब करता हूँ, रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है।
\s5
\v 30 इसलिए तू यह सब बातें उनके ख़िलाफ़ नबुव्वत से बयान कर, और उनसे कह दे कि: 'ख़ुदावन्द बुलन्दी पर से गरजेगा और अपने पाक मकान से ललकारेगा, वह बड़े ज़ोर — ओ — शोर से अपनी चरागाह पर गरजेगा; अंगूर लताड़ने वालों की तरह वह ज़मीन के सब बाशिन्दों को ललकारेगा।
\v 31 एक ग़ौग़ा जमीन की शरहदों तक पहुँचा है क्यूँकि ख़ुदावन्द क़ौमों से झगड़ेगा, वह तमाम बशर को 'अदालत में लाएगा, वह शरीरों को तलवार के हवाले करेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 32 'रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: देख, क़ौम से क़ौम तक बला नाज़िल होगी, और ज़मीन की सरहदों से एक सख़्त तूफ़ान खड़ा होगा।
\v 33 और ख़ुदावन्द के मक़्तूल उस रोज़ ज़मीन के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पड़े होंगे; उन पर कोई नौहा न करेगा, न वह जमा' किए जाएँगे, न दफ़्न होंगे; वह खाद की तरह इस ज़मीन पर पड़े रहेंगे।
\s5
\v 34 ऐ चरवाहो, वावैला करो और चिल्लाओ; और ऐ गल्ले के सरदारों, तुम ख़ुद राख में लेट जाओ, क्यूँकि तुम्हारे क़त्ल के दिन आ पहुँचे हैं। मैं तुम को चकनाचूर करूँगा, तुम नफ़ीस बर्तन की तरह गिर जाओगे।
\v 35 और न चरवाहों को भागने की कोई राह मिलेगी, न गल्ले के सरदारों को बच निकलने की।
\v 36 चरवाहों की फ़रियाद की आवाज़ और गल्ले के सरदारों का नौहा है; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनकी चरागाह को बर्बाद किया है,
\s5
\v 37 और सलामती के भेड़ ख़ाने ख़ुदावन्द के ग़ज़बनाक ग़ुस्से से बर्बाद हो गए।
\v 38 वह जवान शेर की तरह अपनी कमीनगाह से निकला है; यक़ीनन सितमगर के ज़ुल्म से और उसके क़हर की शिद्दत से उनका मुल्क वीरान हो गया।
\s5
\c 26
\s यर्मयाह का मौत से बचना
\p
\v 1 शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम — बिन — यूसियाह की बादशाही के शुरू' में यह कलाम ख़ुदावन्द की तरफ़ से नाज़िल हुआ,
\v 2 कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तू ख़ुदावन्द के घर के सहन में खड़ा हो, और यहूदाह के सब शहरों के लोगों से जो ख़ुदावन्द के घर में सिज्दा करने को आते हैं, वह सब बातें जिनका मैंने तुझे हुक्म दिया है कि उनसे कहे, कह दे; एक लफ़्ज़ भी कम न कर।
\v 3 शायद वह सुने और हर एक अपने बुरे चाल चलन से बाज़ आए, और मैं भी उस 'ऐज़ाब को जो उनकी बद'आमाली की वजह से उन पर लाना चाहता हूँ, बाज़ रखूँ।
\s5
\v 4 और तू उनसे कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: अगर तुम मेरी न सुनोगे कि मेरी शरी'अत पर, जो मैंने तुम्हारे सामने रखी 'अमल करो,
\v 5 और मेरे ख़िदमतगुज़ार नबियों की बातें सुनो जिनको मैंने तुम्हारे पास भेजा मैंने उनको सही वक़्त पर “भेजा, लेकिन तुम ने न सुना;
\v 6 तो मैं इस घर को शीलोह कि तरह कर डालूँगा, और इस शहर को ज़मीन की सब क़ौमों के नज़दीक ला'नत का ज़रिया' ठहराऊँगा।”
\s5
\v 7 चुनाँचे काहिनों और नबियों और सब लोगों ने यरमियाह को ख़ुदावन्द के घर में यह बातें कहते सुना।
\v 8 और यूँ हुआ कि जब यरमियाह वह सब बातें कह चुका जो ख़ुदावन्द ने उसे हुक्म दिया था कि सब लोगों से कहे, तो काहिनों और नबियों और सब लोगों ने उसे पकड़ा और कहा कि तू यक़ीनन क़त्ल किया जाएगा!
\v 9 तू ने क्यूँ ख़ुदावन्द का नाम लेकर नबुव्वत की और कहा, 'यह घर शीलोह की तरह होगा, और यह शहर वीरान और ग़ैरआबाद होगा'? और सब लोग ख़ुदावन्द के घर में यरमियाह के पास जमा' हुए।
\s5
\v 10 और यहूदाह के हाकिम यह बातें सुनकर बादशाह के घर से ख़ुदावन्द के घर में आए, और ख़ुदावन्द के घर के नये फाटक के मदख़ल पर बैठे।
\v 11 और काहिनों और नबियों ने हाकिम से और सब लोगों से मुख़ातिब होकर कहा कि यह शख़्स वाजिब — उल — क़त्ल है क्यूँकि इसने इस शहर के ख़िलाफ़ नबुव्वत की है, जैसा कि तुम ने अपने कानों से सुना।
\v 12 तब यरमियाह ने सब हाकिम और तमाम लोगों से मुख़ातिब होकर कहा कि “ख़ुदावन्द ने मुझे भेजा कि इस घर और इस शहर के ख़िलाफ़ वह सब बातें जो तुम ने सुनी हैं, नबुव्वत से कहूँ।
\s5
\v 13 इसलिए अब तुम अपने चाल चलन और अपने आ'माल को दुरूस्त करो, और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ को सुनो, ताकि ख़ुदावन्द उस 'ऐज़ाब से जिसका तुम्हारे ख़िलाफ़ 'ऐलान किया है बाज़ रहे।
\v 14 और देखो, मैं तो तुम्हारे क़ाबू में हूँ जो कुछ तुम्हारी नज़र में ख़ूब — ओ — रास्त हो मुझसे करो।
\v 15 लेकिन यक़ीन जानो कि अगर तुम मुझे क़त्ल करोगे, तो बेगुनाह का ख़ून अपने आप पर और इस शहर पर और इसके बाशिन्दों पर लाओगे; क्यूँकि हक़ीक़त में ख़ुदावन्द ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है कि तुम्हारे कानों में ये सब बातें कहूँ।”
\s5
\v 16 तब हाकिम और सब लोगों ने काहिनों और नबियों से कहा, यह शख़्स वाजिब — उल — क़त्ल नहीं क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के नाम से हम से कलाम किया।
\v 17 तब मुल्क के चंद बुज़ुर्ग उठे और कुल जमा'अत से मुख़ातिब होकर कहने लगे,
\s5
\v 18 कि “मीकाह मोरश्ती ने शाह — ए — यहूदाह हिज़क़ियाह के दिनों में नबुव्वत की, और यहूदाह के सब लोगों से मुख़ातिब होकर यूँ कहा, 'रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: सिय्यून खेत की तरह जोता जाएगा और येरूशलेम खण्डर हो जाएगा, और इस घर का पहाड़ जंगल की ऊँची जगहों की तरह होगा।
\v 19 क्या शाह — ए — यहूदाह हिज़क़ियाह और तमाम यहूदाह ने उसको क़त्ल किया? क्या वह ख़ुदावन्द से न डरा, और ख़ुदावन्द से मुनाजात न की? और ख़ुदावन्द ने उस 'ऐज़ाब को जिसका उनके ख़िलाफ़ 'ऐलान किया था, बाज़ न रख्खा? तब यूँ हम अपनी जानों पर बड़ी आफ़त लाएँगे।”
\s5
\v 20 फिर एक और शख़्स ने ख़ुदावन्द के नाम से नबुवत की, या'नी ऊरिय्याह — बिनसमा'याह ने जो करयत या'रीम का था; उसने इस शहर और मुल्क के ख़िलाफ़ यरमियाह की सब बातों के मुताबिक़ नबुव्वत की;
\v 21 और जब यहूयक़ीम बादशाह और उसके सब जंगी मर्दों और हाकिम ने उसकी बातें सुनीं, तो बादशाह ने उसे क़त्ल करना चाहा; लेकिन ऊरिय्याह यह सुनकर डरा और मिस्र को भाग गया।
\s5
\v 22 और यहूयक़ीम बादशाह ने चंद आदमियों या'नी इलनातन — बिन — अकबूर और उसके साथ कुछ और आदमियों को मिस्र में भेजा:
\v 23 और वह ऊरिय्याह को मिस्र से निकाल लाए, और उसे यहूयक़ीम बादशाह के पास पहुँचाया; और उसने उसको तलवार से क़त्ल किया और उसकी लाश को 'अवाम के क़ब्रिस्तान में फिकवा दिया।
\v 24 लेकिन अख़ीक़ाम — बिन — साफ़न यरमियाह का दस्तगीर था, ताकि वह क़त्ल होने के लिए लोगों के हवाले न किया जाए।
\s5
\c 27
\s यर्मयाह का बैल का जुआ अपनी गर्दन पर बांधना
\p
\v 1 शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह — बिन — यूसियाह की सल्तनत के शुरू' में ख़ुदावन्द की तरफ़ से यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ,
\v 2 कि ख़ुदावन्द ने मुझे यूँ फ़रमाया कि: “बन्धन और जुए बनाकर अपनी गर्दन पर डाल,
\v 3 और उनको शाह — ए — अदोम, शाह — ए — मोआब, शाह — ए — बनी 'अम्मोन, शाह — ए — सूर और शाह — ए — सैदा के पास उन क़ासिदों के हाथ भेज, जो येरूशलेम में शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह के पास आए हैं;
\v 4 और तू उनको उनके आक़ाओं के वास्ते ताकीद कर, 'रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम अपने आक़ाओं से यूँ कहना
\s5
\v 5 कि मैंने ज़मीन को और इंसान — ओ — हैवान को जो इस ज़मीन पर हैं, अपनी बड़ी क़ुदरत और बलन्द बाज़ू से पैदा किया; और उनको जिसे मैंने मुनासिब जाना बख़्शा
\v 6 और अब मैंने यह सब ममलुकतें अपने ख़िदमत गुज़ार शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र के क़ब्ज़े में कर दी हैं, और मैदान के जानवर भी उसे दिए, कि उसके काम आएँ।
\v 7 और सब क़ौमें उसकी और उसके बेटे और उसके पोते की ख़िदमत करेंगी, जब तक कि उसकी ममलुकत का वक़्त न आए; तब बहुत सी क़ौमें और बड़े — बड़े बादशाह उससे ख़िदमत करवाएँगे।
\s5
\v 8 ख़ुदावन्द फ़रमाता है: जो क़ौम और जो सल्तनत उसकी, या'नी शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र की ख़िदमत न करेगी और अपनी गर्दन शाह — ए — बाबुल के जूए तले न झूकाएगी, उस क़ौम को मैं तलवार और काल और वबा से सज़ा दूँगा, यहाँ तक कि मैं उसके हाथ से उनको हलाक कर डालूँगा।
\s5
\v 9 इसलिए तुम अपने नबियों और ग़ैबदानो और ख्व़ाबबीनों और शगूनियों और जादूगरों की न सुनो, जो तुम से कहते हैं कि तुम शाह — ए — बाबुल की ख़िदमतगुज़ारी न करोगे।
\v 10 क्यूँकि वह तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं, ताकि तुम को तुम्हारे मुल्क से आवारा करें, और मैं तुम को निकाल दूँ और तुम हलाक हो जाओ।
\v 11 लेकिन जो क़ौम अपनी गर्दन शाह — ए — बाबुल के जूए तले रख देगी और उसकी ख़िदमत करेगी, उसको मैं उसकी ममलुकत में रहने दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और वह उसमें खेती करेगी और उसमें बसेगी।”
\s5
\v 12 इन सब बातों के मुताबिक़ मैंने शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह से कलाम किया और कहा कि “अपनी गर्दन शाह — ए — बाबुल के जूए तले रख कर उसकी और उसकी क़ौम की ख़िदमत करो और ज़िन्दा रहो।
\v 13 तू और तेरे लोग तलवार और काल और वबा से क्यूँ मरोगे, जैसा कि ख़ुदावन्द ने उस क़ौम के बारे में फ़रमाया है, जो शाह — ए — बाबुल की ख़िदमत न करेगी?
\s5
\v 14 और उन नबियों की बातें न सुनो, जो तुम से कहते हैं कि तुम शाह — ए — बाबुल की ख़िदमत न करोगे; क्यूँकि वह तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं।
\v 15 क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है मैंने उनकों नहीं भेजा, लेकिन वह मेरा नाम लेकर झूटी नबुव्वत करते हैं; ताकि मैं तुम को निकाल दूँ और तुम उन नबियों के साथ जो तुम से नबुव्वत करते हैं हलाक हो जाओ।”
\s5
\v 16 मैंने काहिनों से और उन सब लोगों से भी मुख़ातिब होकर कहा, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: अपने नबियों की बातें न सुनो, जो तुम से नबुव्वत करते और कहते हैं कि 'देखो, ख़ुदावन्द के घर के बर्तन अब थोड़ी ही देर में बाबुल से वापस आ जाएँगे, क्यूँकि वह तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं।
\v 17 उनकी न सुनो, शाह — ए — बाबुल की ख़िदमतगुज़ारी करो और ज़िन्दा रहो; यह शहर क्यूँ वीरान हो?
\v 18 लेकिन अगर वह नबी हैं, और ख़ुदावन्द का कलाम उनकी अमानत में है, तो वह रब्ब — उल — अफ़वाज से शफ़ा'अत करें, ताकि वह बर्तन जो ख़ुदावन्द के घर में और शाह — ए — यहूदाह के घर में और येरूशलेम में बाक़ी हैं, बाबुल को न जाएँ।
\s5
\v 19 क्यूँकि सुतूनों के बारे में और बड़े हौज़ और कुर्सियों और बर्तनों के बारे में जो इस शहर में बाक़ी हैं, रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है,
\v 20 या'नी जिनको शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र नहीं ले गया, जब वह यहूदाह के बादशाह यकूनियाह — बिन — यहूयक़ीम को येरूशलेम से, और यहूदाह और येरूशलेम के सब शुरफ़ा को ग़ुलाम करके बाबुल को ले गया;
\s5
\v 21 हाँ, रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, उन बर्तनों के बारे में जो ख़ुदावन्द के घर में और शाह — ए — यहूदाह के महल में और येरूशलेम में बाक़ी हैं, यूँ फ़रमाता है
\v 22 कि वह बाबुल में पहुँचाए जाएँगे; और उस दिन तक कि मैं उनको याद फ़रमाऊँ वहाँ रहेंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है उस वक़्त मैं उनको उठा लाऊँगा और फिर इस मकान में रख दूँगा।
\s5
\c 28
\s यर्मयाह का हननियाह पर इल्ज़ाम लगाना
\p
\v 1 और उसी साल शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह की सल्तनत के शुरू' में, चौथे बरस के पाँचवें महीने में, यूँ हुआ कि जिबा'ऊनी ''अज़्ज़ूर के बेटे हननियाह नबी ने ख़ुदावन्द के घर में काहिनों और सब लोगों के सामने मुझसे मुख़ातिब होकर कहा,
\v 2 'रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: मैंने शाह — ए — बाबुल का जुआ तोड़ डाला है,
\s5
\v 3 दो ही बरस के अन्दर मैं ख़ुदावन्द के घर के सब बर्तन, जो शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र इस मकान से बाबुल को ले गया, इसी मकान में वापस लाऊँगा।
\v 4 शाह — ए — यहूदाह यकूनियाह — बिन — यहूयक़ीम को और यहूदाह के सब ग़ुलामों को जो बाबुल को गए थे, फिर इसी जगह लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; क्यूँकि मैं शाह — ए — बाबुल के जूए को तोड़ डालूँगा।
\s5
\v 5 तब यरमियाह नबी ने काहिनों और सब लोगों के सामने, जो ख़ुदावन्द के घर में खड़े थे, हननियाह नबी से कहा,
\v 6 “हाँ, यरमियाह नबी ने कहा, आमीन! ख़ुदावन्द ऐसा ही करे, ख़ुदावन्द तेरी बातों को जो तू ने नबुव्वत से कहीं, पूरा करे कि ख़ुदावन्द के घर के बर्तनों को और सब ग़ुलामों को बाबुल से इस मकान में वापस लाए।
\v 7 तो भी अब यह बात जो मैं तेरे और सब लोगों के कानों में कहता हूँ सुन;
\s5
\v 8 उन नबियों ने जो मुझसे और तुझ से पहले गुज़रे ज़माने में थे, बहुत से मुल्कों और बड़ी — बड़ी सल्तनतों के हक़ में, जंग और बला और वबा की नबुव्वत की है।
\v 9 वह नबी जो सलामती की ख़बर देता है, जब उस नबी का कलाम पूरा हो जाए तो मा'लूम होगा कि हक़ीक़त में ख़ुदावन्द ने उसे भेजा है।”
\s5
\v 10 तब हननियाह नबी ने यरमियाह नबी की गर्दन पर से जुआ उतारा और उसे तोड़ डाला;
\v 11 और हननियाह ने सब लोगों के सामने इस तरह कलाम किया, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: मैं इसी तरह शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र का जुआ सब क़ौमों की गर्दन पर से, दो ही बरस के अन्दर तोड़ डालूँगा। तब यरमियाह नबी ने अपनी राह ली।
\s5
\v 12 जब हननियाह नबी यरमियाह नबी की गर्दन पर से जुआ तोड़ चुका था, तो ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 13 कि “जा, और हननियाह से कह कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तूने लकड़ी के जुओं को तो तोड़ा, लेकिन उनके बदले में लोहे के जूए बना दिए।
\v 14 क्यूँकि रब्ब — उलअफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि मैंने इन सब क़ौमों की गर्दन पर लोहे का जुआ डाल दिया है, ताकि वह शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र की ख़िदमत करें; तब वह उसकी ख़िदमतगुज़ारी करेंगी, और मैंने मैदान के जानवर भी उसे दे दिए हैं।”
\s5
\v 15 तब यरमियाह नबी ने हननियाह नबी से कहा, ऐ हननियाह, अब सुन; ख़ुदावन्द ने तुझे नहीं भेजा, लेकिन तू इन लोगों को झूटी उम्मीद दिलाता है।
\v 16 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि “देख, मैं तुझे इस ज़मीन पर से निकाल दूँगा; तू इसी साल मर जाएगा क्यूँकि तूने ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ फ़ितनाअंगेज़ बातें कही हैं।”
\v 17 चुनाँचे उसी साल के सातवें महीने हननियाह नबी मर गया।
\s5
\c 29
\s जिला वतनी को ख़त
\p
\v 1 अब यह उस ख़त की बातें हैं जो यरमियाह नबी ने येरूशलेम से, बाक़ी बुज़ुर्गों को जो ग़ुलाम हो गए थे, और काहिनों और नबियों और उन सब लोगों को जिनको नबूकदनज़र येरूशलेम से ग़ुलाम करके बाबुल ले गया था
\v 2 उसके बाद के यकूनियाह बादशाह और उसकी वालिदा और ख़्वाजासरा और यहूदाह और येरूशलेम के हाकिम और कारीगर और लुहार येरूशलेम से चले गए थे
\v 3 अल'आसा — बिन — साफ़न और जमरियाह — बिन — ख़िलक़ियाह के हाथ जिनको शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह ने बाबुल में शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र के पास भेजा इरसाल किया और उसने कहा,
\s5
\v 4 'रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, उन सब ग़ुलामों से जिनको मैंने येरूशलेम से ग़ुलाम करवा कर बाबुल भेजा है, यूँ फ़रमाता है:
\v 5 तुम घर बनाओ और उन में बसों, और बाग़ लगाओ और उनके फल खाओ,
\s5
\v 6 बीवियाँ करो ताकि तुम से बेटे — बेटियाँ पैदा हों, और अपने बेटों के लिए बीवियाँ लो और अपनी बेटियाँ शौहरों को दो ताकि उनसे बेटे — बेटियाँ पैदा हों, और तुम वहाँ फलो — फूलो और कम न हो।
\v 7 और उस शहर की ख़ैर मनाओ, जिसमें मैंने तुम को ग़ुलाम करवा कर भेजा है, और उसके लिए ख़ुदावन्द से दुआ करो; क्यूँकि उसकी सलामती में तुम्हारी सलामती होगी।
\s5
\v 8 क्यूँकि रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: वह नबी जो तुम्हारे बीच हैं और तुम्हारे ग़ैबदान तुम को गुमराह न करें, और अपने ख़्वाबबीनों को, जो तुम्हारे ही कहने से ख़्वाब देखते हैं न मानो;
\v 9 क्यूँकि वह मेरा नाम लेकर तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं, मैंने उनको नहीं भेजा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 10 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: जब बाबुल में सत्तर बरस गुज़र चुकेंगे, तो मैं तुम को याद फ़रमाऊँगा और तुम को इस मकान में वापस लाने से अपने नेक क़ौल को पूरा करूँगा।
\v 11 क्यूँकि मैं तुम्हारे हक़ में अपने ख़यालात को जानता हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, या'नी सलामती के ख़यालात, बुराई के नहीं; ताकि मैं तुम को नेक अन्जाम की उम्मीद बख़्शूँ।
\s5
\v 12 तब तुम मेरा नाम लोगे, और मुझसे दुआ करोगे और मैं तुम्हारी सुनूँगा।
\v 13 और तुम मुझे ढूंडोगे और पाओगे, जब पूरे दिल से मेरे तालिब होगे।
\v 14 और मैं तुम को मिल जाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और मैं तुम्हारी ग़ुलामी को ख़त्म कराऊँगा और तुम को उन सब क़ौमों से और सब जगहों से, जिनमें मैंने तुम को हाँक दिया है, जमा' कराऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और मैं तुम को उस जगह में जहाँ से मैंने तुम को ग़ुलाम करवाकर भेजा, वापस लाऊँगा।
\s5
\v 15 “क्यूँकि तुम ने कहा कि 'ख़ुदावन्द ने बाबुल में हमारे लिए नबी खड़े किए।
\v 16 इसलिए ख़ुदावन्द उस बादशाह के बारे में जो दाऊद के तख़्त पर बैठा है, और उन सब लोगों के बारे में जो इस शहर में बसते हैं, या'नी तुम्हारे भाइयों के बारे में जो तुम्हारे साथ ग़ुलाम होकर नहीं गए, यूँ फ़रमाता है:
\v 17 'रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि देखो, मैं उन पर तलवार और काल और वबा भेजूँगा और उनको ख़राब अंजीरों की तरह बनाऊँगा जो ऐसे ख़राब हैं कि खाने के क़ाबिल नहीं।
\s5
\v 18 और मैं तलवार और काल और वबा से उनका पीछा करूँगा, और मैं उनको ज़मीन की सब सल्तनतों के हवाले करूँगा कि धक्के खाते फिरें और सताए जाएँ, और सब क़ौमों के बीच जिनमें मैंने उनको हाँक दिया है, ला'नत और हैरत और सुस्कार और मलामत का ज़रिया' हों;
\v 19 इसलिए कि उन्होंने मेरी बातें नहीं सुनी ख़ुदावन्द फ़रमाता है जब मैंने अपने ख़िदमतगुज़ार नबियों को उनके पास भेजा, हाँ, मैंने उनको सही वक़्त पर भेजा, लेकिन तुम ने न सुना, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
\s5
\v 20 'इसलिए तुम, ऐ ग़ुलामी के सब लोगों, जिनको मैंने येरूशलेम से बाबुल को भेजा, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो:
\v 21 'रब्ब — उल — अफ़वाज इस्राईल का ख़ुदा अख़ीअब बिन — क़ुलायाह के बारे में और सिदक़ियाह — बिन — मासियाह के बारे में, जो मेरा नाम लेकर तुम से झूटी नबुव्वत करते हैं, यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं उनको शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र के हवाले करूँगा, और वह उनको तुम्हारी आँखों के सामने क़त्ल करेगा;
\s5
\v 22 और यहूदाह के सब ग़ुलाम जो बाबुल में हैं, उनकी ला'नती मसल बनाकर कहा करेंगे, कि ख़ुदावन्द तुझे सिदक़ियाह और अख़ीअब की तरह करे, जिनको शाह — ए — बाबुल ने आग पर कबाब किया,
\v 23 क्यूँकि उन्होंने इस्राईल में बेवक़ूफ़ी की और अपने पड़ोसियों की बीवियों से ज़िनाकारी की, और मेरा नाम लेकर झूठी बातें कहीं जिनका मैंने उनको हुक्म नहीं दिया था, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं जानता हूँ और गवाह हूँ।
\s5
\v 24 और नख़लामी समा'याह से कहना,
\v 25 कि रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है: इसलिए कि तूने येरूशलेम के सब लोगों को, और सफ़नियाह — बिन — मासियाह काहिन और सब काहिनों को अपने नाम से यूँ ख़त लिख भेजे,
\v 26 कि 'ख़ुदावन्द ने यहूयदा' काहिन की जगह तुझको काहिन मुक़र्रर किया कि तू ख़ुदावन्द के घर के नाज़िमों में हो, और हर एक मजनून और नबुव्वत के मुद्द'ई को क़ैद करे और काठ में डाले।
\s5
\v 27 तब तूने 'अन्तोती यरमियाह की जो कहता है कि मैं तुम्हारा नबी हूँ, गोशमाली क्यूँ नहीं की?
\v 28 क्यूँकि उसने बाबुल में यह कहला भेजा है कि ये मुद्दत दराज़ है; तुम घर बनाओ और बसो, और बाग़ लगाओ और उनका फल खाओ।
\v 29 और सफ़नियाह काहिन ने यह खत पढ़ कर यरमियाह नबी को सुनाया।
\s5
\v 30 तब ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ कि:
\v 31 ग़ुलामी के सबलोगों को कहला भेज, 'ख़ुदावन्द नख़लामी समायाह के बारे में यूँ फ़रमाता है: इसलिए कि समा'याह ने तुम से नबुव्वत की, हालाँकि मैंने उसे नहीं भेजा, और उसने तुम को झूटी उम्मीद दिलाई;
\v 32 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देखो, मैं नख़लामी समा'याह को और उसकी नसल को सज़ा दूँगा; उसका कोई आदमी न होगा जो इन लोगों के बीच बसे, और वह उस नेकी को जो मैं अपने लोगों से करूँगा हरगिज़ न देखेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ फ़ितनाअंगेज़ बातें कही हैं।
\s5
\c 30
\s नजात का वादा
\p
\v 1 वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ
\v 2 “ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि: यह सब बातें जो मैंने तुझ से कहीं किताब में लिख।
\v 3 क्यूँकि देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं अपनी क़ौम इस्राईल और यहूदाह की ग़ुलामी को ख़त्म कराऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और मैं उनको उस मुल्क में वापस लाऊँगा, जो मैंने उनके बाप — दादा को दिया, और वह उसके मालिक होंगे।”
\s5
\v 4 और वह बातें जो ख़ुदावन्द ने इस्राईल और यहूदाह के बारे में फ़रमाईं यह हैं:
\v 5 कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: हम ने हड़बड़ी की आवाज़ सुनी, ख़ौफ़ है और सलामती नहीं।
\s5
\v 6 अब पूछो और देखो, क्या कभी किसी मर्द को पैदाइश का दर्द लगा? क्या वजह है कि मैं हर एक मर्द को ज़च्चा की तरह अपने हाथ कमर पर रख्खे देखता हूँ और सबके चेहरे ज़र्द हो गए हैं?
\v 7 अफ़सोस! वह दिन बड़ा है, उसकी मिसाल नहीं; वह या'क़ूब की मुसीबत का वक़्त है, लेकिन वह उससे रिहाई पाएगा।
\s5
\v 8 और उस रोज़ यूँ होगा, रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है, कि मैं उसका जूआ तेरी गर्दन पर से तोड़ूँगा और तेरे बन्धनों को खोल डालूँगा; और बेगाने तुझ से फिर ख़िदमत न कराएँगे।
\v 9 लेकिन वह ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की और अपने बादशाह दाऊद की, जिसे मैं उनके लिए खड़ा करूँगा, ख़िदमत करेंगे।
\s5
\v 10 इसलिए ऐ मेरे ख़ादिम या'क़ूब, हिरासान न हो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और ऐ इस्राईल, घबरा न जा; क्यूँकि देख, मैं तुझे दूर से और तेरी औलाद को ग़ुलामी की सरज़मीन से छुड़ाऊँगा; और या'क़ूब वापस आएगा और आराम — ओ — राहत से रहेगा और कोई उसे न डराएगा।
\v 11 क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ताकि तुझे बचाऊँ:अगरचे मैं सब क़ौमों को जिनमें मैंने तुझे तितर — बितर किया तमाम कर डालूँगा तोभी तुझे तमाम न करूँगा; बल्कि तुझे मुनासिब तम्बीह करूँगा और हरगिज़ बे सज़ा न छोड़ूँगा।
\s5
\v 12 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तेरी ख़स्तगी ला — इलाज और तेरा ज़ख़्म सख़्त दर्दनाक है।
\v 13 तेरा हिमायती कोई नहीं जो तेरी मरहम पट्टी करे तेरे पास कोई शिफ़ा बख़्श दवा नहीं।
\s5
\v 14 तेरे सब चाहने वाले तुझे भूल गए, वह तेरे तालिब नहीं हैं, हक़ीक़त में मैंने तुझे दुश्मन की तरह घायल किया और संग दिल की तरह तादीब की; इसलिए कि तेरी बदकिरदारी बढ़ गई और तेरे गुनाह ज़्यादा हो गए।
\v 15 तू अपनी ख़स्तगी की वजह से क्यूँ चिल्लाती है, तेरा दर्द ला — इलाज है; इसलिए कि तेरी बदकिरदारी बहुत बढ़ गई और तेरे गुनाह ज़्यादा हो गए, मैंने तुझसे ऐसा किया।
\s5
\v 16 तो भी वह सब जो तुझे निगलते हैं, निगले जाएँगे, और तेरे सब दुश्मन ग़ुलामी में जाएँगे, और जो तुझे ग़ारत करते हैं, ख़ुद ग़ारत होंगे; और मैं उन सबको जो तुझे लूटते हैं लुटा दूँगा।
\v 17 क्यूँकि मैं फिर तुझे तंदुरुस्ती और तेरे ज़ख्मों से शिफ़ा बख़्शूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है क्यूँकि उन्होंने तेरा मरदूदा रख्खा कि यह सिय्यून है, जिसे कोई नहीं पूछता
\s5
\v 18 “ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं या'क़ूब के ख़ेमों की ग़ुलामी को ख़त्म कराऊँगा, और उसके घरों पर रहमत करूँगा; और शहर अपने ही पहाड़ पर बनाया जाएगा और क़स्र अपने ही मक़ाम पर आबाद हो जाएगा।
\v 19 और उनमें से शुक्रगुज़ारी और ख़ुशी करने वालों की आवाज़ आएगी; और मैं उनको अफ़ज़ाइश बख़्शूँगा, और वह थोड़े न होंगे; मैं उनको शौकत बख़्शूँगा और वह हक़ीर न होंगे।
\s5
\v 20 और उनकी औलाद ऐसी होगी जैसी पहले थी, और उनकी जमा'अत मेरे हुज़ूर में क़ाईम होगी, और मैं उन सबको जो उन पर ज़ुल्म करें सज़ा दूँगा।
\v 21 और उनका हाकिम उन्हीं में से होगा, और उनका फ़रमॉरवाँ उन्हीं के बीच से पैदा होगा और मैं उसे क़ुर्बत बख़्शूँगा, और वह मेरे नज़दीक आएगा; क्यूँकि कौन है जिसने ये जुर'अत की हो कि मेरे पास आए? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 22 और तुम मेरे लोग होगे, और मैं तुम्हारा ख़ुदा हूँगा।”
\s5
\v 23 देख, ख़ुदावन्द के ग़ज़बनाक ग़ुस्से की आँधी चलती है! यह तेज़ तूफ़ान शरीरों के सिर पर टूट पड़ेगा।
\v 24 जब तक यह सब कुछ न हो ले, और ख़ुदावन्द अपने दिल के मक़सद पूरे न कर ले, उसका ग़ज़बनाक ग़ुस्सा ख़त्म न होगा; तुम आख़िरी दिनों में इसे समझोगे।
\s5
\c 31
\s बहाली का वादा
\p
\v 1 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं उस वक़्त इस्राईल के सब घरानों का ख़ुदा हूँगा और वह मेरे लोग होंगे।
\v 2 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: इस्राईल में से जो लोग तलवार से बचे, जब वह राहत की तलाश में गए तो वीराने में मक़बूल ठहरे।
\v 3 “ख़ुदावन्द फहले से मुझ पर ज़ाहिर हुआ और कहा कि मैंने तुझ से हमेशा की मुहब्बत रख्खी; इसीलिए मैंने अपनी शफ़क़त तुझ पर बढ़ाई।
\s5
\v 4 ऐ इस्राईल की कुँवारी! मैं तुझे फिर आबाद करूँगा और तू आबाद हो जाएगी; तू फिर दफ़ उठाकर आरास्ता होगी, और ख़ुशी करने वालों के नाच में शामिल होने को निकलेगी।
\v 5 तू फिर सामरिया के पहाड़ों पर ताकिस्तान लगाएगी, बाग़ लगाने वाले लगायेंगे और उसका फल खाएँगे।
\v 6 क्यूँकि एक दिन आएगा कि इफ़्राईम की पहाड़ियों पर निगहबान पुकारेंगे कि 'उठो, हम सिय्यून पर ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने चलें।”
\s5
\v 7 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: या'क़ूब के लिए ख़ुशी से गाओ और क़ौमों के सरताज के लिए ललकारो; 'ऐलान करो, हम्द करो और कहो, 'ऐ ख़ुदावन्द, अपने लोगों को, या'नी इस्राईल के बक़िये को बचा।
\s5
\v 8 देखो, मैं उत्तरी मुल्क से उनको लाऊँगा, और ज़मीन की सरहदों से उनको जमा' करूँगा, और उनमें अंधे, और लंगड़े, और हामिला और ज़च्चा सब होंगे; उनकी बड़ी जमा'अत यहाँ वापस आएगी।
\v 9 वह रोते और मुनाजात करते हुए आएँगे, मैं उनकी रहबरी करूँगा; मैं उनको पानी की नदियों की तरफ़ राह — ए — रास्त पर चलाऊँगा, जिसमें वह ठोकर न खाएँगे; क्यूँकि मैं इस्राईल का बाप हूँ और इफ़्राईम मेरा पहलौठा है।
\s5
\v 10 “ऐ क़ौमों, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो, और दूर के जज़ीरों में 'ऐलान करो; और कहो, 'जिसने इस्राईल को तितर — बितर किया, वही उसे जमा' करेगा और उसकी ऐसी निगहबानी करेगा, जैसी गड़रिया अपने गल्ले की,
\v 11 क्यूँकि ख़ुदावन्द ने या'क़ूब का फ़िदिया दिया है, और उसे उसके हाथ से जो उससे ताक़तवर था रिहाई बख़्शी है।
\s5
\v 12 तब वह आएँगे और सिय्यून की चोटी पर गाएँगे, और ख़ुदावन्द की ने'मतों या'नी अनाज और मय और तेल, और गाय — बैल के और भेड़ — बकरी के बच्चों की तरफ़ इकट्ठे रवाँ होंगे; और उनकी जान सैराब बाग़ की तरह होगी, और वह फिर कभी ग़मज़दा न होंगे।
\s5
\v 13 उस वक़्त कुवाँरियाँ और पीर — ओ — जवान ख़ुशी से रक़्स करेंगे, क्यूँकि मैं उनके ग़म को ख़ुशी से बदल दूँगा और उनको तसल्ली देकर ग़म के बाद ख़ुश करूँगा।
\v 14 मैं काहिनों की जान को चिकनाई से सेर करूँगा, और मेरे लोग मेरी ने'मतों से आसूदा होंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
\s5
\v 15 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: “रामा में एक आवाज़ सुनाई दी, नौहा और ज़ार — ज़ार रोना; राख़िल अपने बच्चों को रो रही है, वह अपने बच्चों के बारे में तसल्ली पज़ीर नहीं होती, क्यूँकि वह नहीं हैं।”
\s5
\v 16 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: अपनी रोने की आवाज़ को रोक, और अपनी आँखों को आँसुओं से बाज़ रख; क्यूँकि तेरी मेहनत के लिए बदला है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और वह दुश्मन के मुल्क से वापस आएँगे।
\v 17 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, तेरी 'आक़बत के बारे में उम्मीद है क्यूँकि तेरे बच्चे फिर अपनी हदों में दाख़िल होंगे।
\s5
\v 18 हक़ीक़त में मैंने इफ़्राईम को अपने आप पर यूँ मातम करते सुना, 'तू ने मुझे तम्बीह की, और मैंने उस बछड़े की तरह जो सधाया नहीं गया तम्बीह पाई। तू मुझे फेर तो मैं फिरूँगा, क्यूँकि तू ही मेरा ख़ुदावन्द ख़ुदा है।
\v 19 क्यूँकि फिरने के बाद मैंने तौबा की, और तरबियत पाने के बाद मैंने अपनी रान पर हाथ मारा; मैं शर्मिन्दा बल्कि परेशान ख़ातिर हुआ, इसलिए कि मैंने अपनी जवानी की मलामत उठाई थी।
\v 20 क्या इफ़्राईम मेरा प्यारा बेटा है? क्या वह पसन्दीदा फ़र्ज़न्द है? क्यूँकि जब — जब मैं उसके ख़िलाफ़ कुछ कहता हूँ, तो उसे जी जान से याद करता हूँ। इसलिए मेरा दिल उसके लिए बेताब है; मैं यक़ीनन उस पर रहमत करूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 21 “अपने लिए सुतून खड़े कर, अपने लिए खम्बे बना; उस शाहराह पर दिल लगा, हाँ, उसी राह से जिससे तू गई थी वापस आ। ऐ इस्राईल की कुँवारी, अपने इन शहरों में वापस आ।
\v 22 ऐ नाफ़रमान बेटी, तू कब तक आवारा फिरेगी? क्यूँकि ख़ुदावन्द ने ज़मीन पर एक नई चीज़ पैदा की है, कि 'औरत मर्द की हिमायत करेगी।”
\s5
\v 23 रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है: “जब मैं उनके ग़ुलामों को वापस लाऊँगा, तो वह यहूदाह के मुल्क और उसके शहरों में फिर यूँ कहेंगे, ऐ सदाक़त के घर, ऐ कोह — ए — मुक़द्दस, ख़ुदावन्द तुझे बरकत बख़्शे।”
\v 24 और यहूदाह और उसके सब शहर उसमें इकट्ठे आराम करेंगे, किसान और वह जो गल्ले लिए फिरते हैं।
\v 25 क्यूँकि मैंने थकी जान को आसूदा, और हर ग़मगीन रूह को सेर किया है।
\v 26 अब मैंने बेदार होकर निगाह की, और मेरी नींद मेरे लिए मीठी थी।
\s5
\v 27 देखो, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब मैं इस्राईल के घर में और यहूदाह के घर में इंसान का बीज और हैवान का बीज बोऊँगा।
\v 28 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जिस तरह मैंने उनकी घात में बैठ कर उनको उखाड़ा और ढाया और गिराया और बर्बाद किया और दुख दिया; उसी तरह मैं निगहबानी करके उनको बनाऊँगा और लगाऊँगा।
\s5
\v 29 उन दिनों में फिर यूँ न कहेंगे, 'बाप — दादा ने कच्चे अंगूर खाए और औलाद के दाँत खट्टे हो गए।
\v 30 क्यूँकि हर एक अपनी ही बदकिरदारी की वजह से मरेगा; हर एक जो कच्चे अँगूर खाता है, उसी के दाँत खट्टे होंगे।
\s5
\v 31 “देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जब मैं इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने के साथ नया 'अहद बाधूँगा;
\v 32 उस 'अहद के मुताबिक़ नहीं, जो मैंने उनके बाप — दादा से किया जब मैंने उनकी दस्तगीरी की, ताकि उनको मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाऊँ; और उन्होंने मेरे उस 'अहद को तोड़ा अगरचे मैं उनका मालिक था, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 33 बल्कि यह वह 'अहद है जो मैं उन दिनों के बाद इस्राईल के घराने से बाधूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मैं अपनी शरी'अत उनके बातिन में रख्खूँगा, और उनके दिल पर उसे लिखूँगा; और मैं उनका ख़ुदा हूँगा, और वह मेरे लोग होंगे;
\v 34 और वह फिर अपने — अपने पड़ोसी और अपने — अपने भाई को यह कह कर ता'लीम नहीं देंगे कि ख़ुदावन्द को पहचानो, क्यूँकि छोटे से बड़े तक वह सब मुझे जानेंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; इसलिए कि मैं उनकी बदकिरदारी को बख़्श दूँगा और उनके गुनाह को याद न करूँगा।”
\s5
\v 35 ख़ुदावन्द जिसने दिन की रोशनी के लिए सूरज को मुक़र्रर किया, और जिसने रात की रोशनी के लिए चाँद और सितारों का निज़ाम क़ाईम किया, जो समन्दर को मौजज़न करता है जिससे उसकी लहरें शोर करतीं है यूँ फ़रमाता है; उसका नाम रब्ब — उल — अफ़वाज है।
\v 36 ख़ुदावन्द फ़रमाता है: “अगर यह निज़ाम मेरे सामने से ख़त्म हो जाए, तो इस्राईल की नसल भी मेरे सामने से जाती रहेगी कि हमेशा तक फिर क़ौम न हो।”
\s5
\v 37 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: “अगर कोई ऊपर आसमान को नाप सके और नीचे ज़मीन की बुनियाद का पता लगा ले, तो मैं भी बनी — इस्राईल को उनके सब 'आमाल की वजह से रद्द कर दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
\s5
\v 38 देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि “यह शहर हननेल के बुर्ज से कोने के फाटक तक ख़ुदावन्द के लिए ता'मीर किया जाएगा।
\v 39 और फिर जरीब सीधी कोह — ए — जारेब पर से होती हुई जोआता को घेर लेगी।
\v 40 और लाशों और राख की तमाम वादी और सब खेत क़िद्रोन के नाले तक, और घोड़े फाटक के कोने तक पूरब की तरफ़ ख़ुदावन्द के लिए पाक होंगे; फिर वह हमेशा तक न कभी उखाड़ा, न गिराया जाएगा।”
\s5
\c 32
\s यर्मयाह की ज़मीन खरीदना
\p
\v 1 वह कलाम जो शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह के दसवें बरस में जो नबूकदनज़र का अट्ठारहवाँ बरस था, ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ।
\v 2 उस वक़्त शाह — ए — बाबुल की फ़ौज येरूशलेम का घिराव किए पड़ी थी, और यरमियाह नबी शाह — ए — यहूदाह के घर में क़ैदख़ाने के सहन में बन्द था।
\s5
\v 3 क्यूँकि शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह ने उसे यह कह कर क़ैद किया, तू क्यूँ नबुव्वत करता और कहता है, कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं इस शहर को शाह — ए — बाबुल के हवाले कर दूँगा, और वह उसे ले लेगा;
\v 4 और शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह कसदियों के हाथ से न बचेगा, बल्कि ज़रूर शाह — ए — बाबुल के हवाले किया जाएगा, और उससे आमने — सामने बातें करेगा और दोनों की आँखें सामने होंगी।
\v 5 और वह सिदक़ियाह को बाबुल में ले जाएगा, और जब तक मैं उसको याद न फ़रमाऊँ वह वहीं रहेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है। हरचन्द तुम कसदियों के साथ जंग करोगे, लेकिन कामयाब न होगे?
\s5
\v 6 तब यरमियाह ने कहा कि “ख़ुदावन्द का कलाम मुझ पर नाज़िल हुआ और उसने फ़रमाया
\v 7 देख, तेरे चचा सलूम का बेटा हनमएल तेरे पास आकर कहेगा कि 'मेरा खेत जो 'अन्तोत में है, अपने लिए ख़रीद ले; क्यूँकि उसको छुड़ाना तेरा हक़ है।
\s5
\v 8 तब मेरे चचा का बेटा हनमएल क़ैदख़ाने के सहन में मेरे पास आया, और जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था, मुझसे कहा कि, मेरा खेत जो 'अन्तोत में बिनयमीन के 'इलाक़े में है, ख़रीद ले; क्यूँकि यह तेरा मौरूसी हक़ है और उसको छुड़ाना तेरा काम है, उसे अपने लिए ख़रीद ले।” तब मैंने जाना कि ये ख़ुदावन्द का कलाम है।
\v 9 'और मैंने उस खेत को जो 'अन्तोत में था, अपने चचा के बेटे हनमएल से ख़रीद लिया और नक़द सत्तर मिस्काल चांदी तोल कर उसे दी।
\s5
\v 10 और मैंने एक कबाला लिखा और उस पर मुहर की और गवाह ठहराए, और चाँदी तराजू में तोलकर उसे दी
\v 11 तब मैंने उस क़बाले को लिया, या'नी वह जो क़ानून और दस्तूर के मुताबिक़ सर — ब — मुहर था, और वह जो खुला था;
\v 12 और मैंने उस क़बाले को अपने चचा के बेटे हनमएल के सामने और उन गवाहों के सामने जिन्होंने अपने नाम क़बाले पर लिखे थे, उन सब यहूदियों के सामने जो क़ैदख़ाने के सहन में बैठे थे, बारूक — बिन — नेयिरियाह — बिन — महसियाह को सौंपा।
\s5
\v 13 और मैंने उनके सामने बारूक की ताकीद की
\v 14 कि 'रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: यह काग़ज़ात ले, या'नी यह क़बाला जो सर — ब — मुहर है, और यह जो खुला है, और उनको मिट्टी के बर्तन में रख ताकि बहुत दिनों तक महफ़ूज़ रहें।
\v 15 क्यूँकि रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: इस मुल्क में फिर घरों और ताकिस्तानों की ख़रीद — ओ — फ़रोख्त होगी।
\s5
\v 16 'बारूक — बिन — नेयिरियाह को क़बाला देने के बा'द, मैंने ख़ुदावन्द से यूँ दुआ की:
\v 17 'आह, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा! देख, तूने अपनी 'अज़ीम क़ुदरत और अपने बुलन्द बाज़ू से आसमान और ज़मीन को पैदा किया, और तेरे लिए कोई काम मुश्किल नहीं है;
\v 18 तू हज़ारों पर शफ़क़त करता है, और बाप — दादा की बदकिरदारी का बदला उनके बाद उनकी औलाद के दामन में डाल देता है; जिसका नाम ख़ुदा — ए — 'अज़ीम — ओ — क़ादिर रब्ब — उल — अफ़वाज है;
\s5
\v 19 मश्वरत में बुज़ुर्ग, और काम में क़ुदरत वाला है; बनी — आदम की सब राहें तेरे ज़ेर — ए — नज़र हैं; ताकि हर एक को उसके चाल चलन के मुवाफ़िक़ और उसके 'आमाल के फल के मुताबिक़ बदला दे।
\v 20 जिसने मुल्क — ए — मिस्र में आज तक, और इस्राईल और दूसरे लोगों में निशान और 'अजायब दिखाए और अपने लिए नाम पैदा किया, जैसा कि इस ज़माने में है।
\v 21 क्यूँकि तू अपनी क़ौम इस्राईल को मुल्क — ए — मिस्र से निशान और 'अजायब और क़वी हाथ और बलन्द बाज़ू से, और बड़ी हैबत के साथ निकाल लाया;
\s5
\v 22 और यह मुल्क उनको दिया जिसे देने की तूने उनके बाप — दादा से क़सम खायी थी ऐसा मुल्क जिसमे दूध और शहद बहता है।
\v 23 और वह आकर उसके मालिक हो गए, लेकिन वह न तेरी आवाज़ को सुना और न तेरी शरी'अत पर चले, और जो कुछ तूने करने को कहा उन्होंने नहीं किया। इसलिए तू यह सब मुसीबत उन पर लाया।
\s5
\v 24 दमदमों को देख, वह शहर तक आ पहुँचे हैं कि उसे फ़तह कर लें, और शहर तलवार और काल और वबा की वजह से कसदियों के हवाले कर दिया गया है, जो उस पर चढ़ आए और जो कुछ तूने फ़रमाया पूरा हुआ, और तू आप देखता है।
\v 25 तो भी, ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, तूने मुझसे फ़रमाया कि वह खेत रुपया देकर अपने लिए ख़रीद ले और गवाह ठहरा ले, हालाँकि यह शहर कसदियों के हवाले कर दिया गया।
\s5
\v 26 तब ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 27 देख, मैं ख़ुदावन्द, तमाम बशर का ख़ुदा हूँ, क्या मेरे लिए कोई काम दुश्वार है?
\v 28 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं इस शहर को कसदियों के और शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र के हवाले कर दूँगा, और वह इसे ले लेगा;
\s5
\v 29 और कसदी जो इस शहर पर चढ़ाई करते हैं, आकर इसको आग लगाएँगे और इसे उन घरों के साथ जलाएँगे, जिनकी छतों पर लोगों ने बा'ल के लिए ख़ुशबू जलायी और ग़ैरमा'बूदों के लिए तपावन तपाए कि मुझे ग़ज़बनाक करें।
\v 30 क्यूँकि बनी — इस्राईल और बनी यहूदाह अपनी जवानी से अब तक सिर्फ़ वही करते आए हैं जो मेरी नज़र में बुरा है; क्यूँकि बनी — इस्राईल ने अपने 'आमाल से मुझे ग़ज़बनाक ही किया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 31 क्यूँकि यह शहर जिस दिन से उन्होंने इसे ता'मीर किया, आज के दिन तक मेरे क़हर और ग़ज़ब का ज़रिया' हो रहा है; ताकि मैं इसे अपने सामने से दूर करूँ
\v 32 बनी — इस्राईल और बनी यहूदाह की तमाम बुराई के ज़रिए' जो उन्होंने और उनके बादशाहों ने, और हाकिम और काहिनों और नबियों ने, और यहूदाह के लोगों और येरूशलेम के बशिन्दों ने की, ताकि मुझे ग़ज़बनाक करें।
\s5
\v 33 क्यूँकि उन्होंने मेरी तरफ़ पीठ की और मुँह न किया, हर चन्द मैंने उनको सिखाया और वक़्त पर ता'लीम दी, तो भी उन्होंने कान न लगाया कि तरबियत पज़ीर हों,
\v 34 बल्कि उस घर में जो मेरे नाम से कहलाता है, अपनी मकरूहात रख्खीं ताकि उसे नापाक करें।
\v 35 और उन्होंने बा'ल के ऊँचे मक़ाम जो बिन हिनूम की वादी में हैं बनाए, ताकि अपने बेटों और बेटियों को मोलक के लिए आग में से गुज़ारें, जिसका मैंने उनको हुक्म नहीं दिया और न मेरे ख़याल में आया कि वह ऐसा मकरूह काम करके यहूदाह को गुनाहगार बनाएँ।
\s5
\v 36 और अब इस शहर के बारे में, जिसके हक़ में तुम कहते हो, 'तलवार और काल और वबा के वसीले से वह शाह — ए — बाबुल के हवाले किया जाएगा, ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है:
\v 37 देख, मैं उनको उन सब मुल्कों से जहाँ मैंने उनको गैज़ — ओ — ग़ज़ब और बड़े ग़ुस्से से हॉक दिया है, जमा' करूँगा और इस मक़ाम में वापस लाऊँगा और उनको अम्न से आबाद करूँगा।
\s5
\v 38 और वह मेरे लोग होंगे और मैं उनका ख़ुदा हूँगा।
\v 39 मैं उनको यकदिल और यकरविश बना दूँगा, और वह अपनी और अपने बाद अपनी औलाद की भलाई कि लिए हमेशा मुझसे डरते रहेंगे।
\v 40 मैं उनसे हमेशा का 'अहद करूँगा कि उनके साथ भलाई करने से बाज़ न आऊँगा, और मैं अपना ख़ौफ़ उनके दिल में डालूँगा ताकि वह मुझसे फिर न जाएँ।
\s5
\v 41 हाँ, मैं उनसे ख़ुश होकर उनसे नेकी करूँगा, और यक़ीनन दिल — ओ — जान से उनको इस मुल्क में लगाऊँगा।
\v 42 “क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: जिस तरह मैं इन लोगों पर यह तमाम बला — ए — 'अज़ीम लाया हूँ, उसी तरह वह तमाम नेकी जिसका मैंने उनसे वा'दा किया है, उनसे करूँगा।
\s5
\v 43 और इस मुल्क में जिसके बारे में तुम कहते हो कि 'वह वीरान है, वहाँ न इंसान है न हैवान, वह कसदियों के हवाले किया गया,' फिर खेत ख़रीदे जाएँगे।
\v 44 बिनयमीन के ''इलाक़े में और येरूशलेम के 'इलाक़े में और यहूदाह के शहरों में और पहाड़ी के, और वादी के, और दख्खिन के शहरों में लोग रुपया देकर खेत ख़रीदेंगे; और क़बाले लिखाकर उन पर मुहर लगाएँगे और गवाह ठहराएँगे, क्यूँकि मैं उनकी ग़ुलामी को ख़त्म कर दूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
\s5
\c 33
\s अमन और कामयाबी के वादे
\p
\v 1 हुनुज़ यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में बन्द था कि ख़ुदावन्द का कलाम दोबारा उस पर नाज़िल हुआ कि:
\v 2 ख़ुदावन्द जो पूरा करता और बनाता और क़ाईम करता है, जिसका नाम यहोवाह है, यूँ फ़रमाता है:
\v 3 कि मुझे पुकार और मैं तुझे जवाब दूँगा, और बड़ी — बड़ी और गहरी बातें जिनको तू नहीं जानता, तुझ पर ज़ाहिर करूँगा।
\s5
\v 4 क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, इस शहर के घरों के बारे में, और शाहान — ए — यहूदाह के घरों के बारे में जो दमदमों और तलवार के ज़रिए' गिरा दिए गए हैं, यूँ फ़रमाता है:
\v 5 कि वह कसदियों से लड़ने आए हैं, और उनको आदमियों की लाशों से भरेंगे, जिनको मैंने अपने क़हर — ओ — ग़ज़ब से क़त्ल किया है, और जिनकी तमाम शरारत की वजह से मैंने इस शहर से अपना मुँह छिपाया है।
\s5
\v 6 देख, मैं उसे सिहत और तंदुरुस्ती बख़्शूँगा मैं उनको शिफ़ा दूँगा और अम्न — ओ — सलामती की कसरत उन पर ज़ाहिर करूँगा।
\v 7 और मैं यहूदाह और इस्राईल को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा और उनको पहले की तरह बनाऊँगा।
\v 8 और मैं उनको उनकी सारी बदकिरदारी से जो उन्होंने मेरे ख़िलाफ़ की है, पाक करूँगा और मैं उनकी सारी बदकिरदारी जिससे वह मेरे गुनाहगार हुए और जिससे उन्होंने मेरे ख़िलाफ़ बग़ावत की है, मु'आफ़ करूँगा।
\v 9 और यह मेरे लिए इस ज़मीन की सब क़ौमों के सामने ख़ुशी बख़्श नाम और शिताइश — ओ — जलाल का ज़रिया' होगा; वह उस सब भलाई का जो मैं उनसे करता हूँ, ज़िक्र सुनेंगी और उस भलाई और सलामती की वजह से जो मैं इनके लिए मुहय्या करता हूँ, डरेंगी और काँपेंगी।
\s5
\v 10 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: इस मक़ाम में जिसके बारे में तुम कहते हो, 'वह वीरान है, वहाँ न इंसान है न हैवान, या'नी यहूदाह के शहरों में और येरूशलेम के बाज़ारों में जो वीरान हैं, जहाँ न इंसान हैं न बाशिन्दे न हैवान,
\v 11 ख़ुशी और शादमानी की आवाज़, दुल्हे और दुल्हन की आवाज़, और उनकी आवाज़ सुनी जाएगी जो कहते हैं, 'रब्ब — उल — अफ़वाज की सिताइश करो क्यूँकि ख़ुदावन्द भला है और उसकी शफ़क़कत हमेशा की है! हाँ, उनकी आवाज़ जो ख़ुदावन्द के घर में शुक्रगुजारी की क़ुर्बानी लायेंगे क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं इस मुल्क के ग़ुलामों को वापस लाकर बहाल करूँगा।
\s5
\v 12 'रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: इस वीरान जगह और इसके सब शहरों में जहाँ न इंसान है न हैवान, फिर चरवाहों के रहने के मकान होंगे जो अपने गल्लों को बिठाएँगे।
\v 13 कोहिस्तान के शहरों में और वादी के और दख्खिन के शहरों में, और बिनयमीन के 'इलाक़ों में और येरूशलेम के 'इलाक़े में, और यहूदाह के शहरों में फिर गल्ले गिनने वाले के हाथ के नीचे से गुज़रेंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 14 देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि 'वह नेक बात जो मैंने इस्राईल के घराने और यहूदाह के घराने के हक़ में फ़रमाई है, पूरी करूँगा।
\v 15 उन्हीं दिनों में और उसी वक़्त मैं दाऊद के लिए सदाक़त की शाख़ पैदा करूँगा, और वह मुल्क में 'अदालत — ओ — सदाक़त से 'अमल करेगा।
\v 16 उन दिनों में यहूदाह नजात पाएगा और येरूशलेम सलामती से सुकूनत करेगा; और 'ख़ुदावन्द हमारी सदाक़त' उसका नाम होगा।
\s5
\v 17 “क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: इस्राईल के घराने के तख़्त पर बैठने के लिए दाऊद को कभी आदमी की कमी न होगी,
\v 18 और न लावी काहिनों को आदमियों की कमी होगी, जो मेरे सामने सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ पेश करे और हदिये चढ़ाएँ और हमेशा क़ुर्बानी करें।”
\s5
\v 19 फिर ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 20 “ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: अगर तुम मेरा वह 'अहद, जो मैंने दिन से और रात से किया, तोड़ सको कि दिन और रात अपने अपने वक़्त पर न हों,
\v 21 तो मेरा वह 'अहद भी जो मैंने अपने ख़ादिम दाऊद से किया, टूट सकता है कि उसके तख़्त पर बादशाही करने को बेटा न हो और वह 'अहद भी जो अपने ख़िदमतगुज़ार लावी काहिनों से किया।
\v 22 जैसे अजराम — ए — फ़लक बेशुमार हैं और समन्दर की रेत बे अन्दाज़ा है, वैसे ही मैं अपने बन्दे दाऊद की नसल की और लावियों को जो मेरी ख़िदमत करते हैं, फ़िरावानी बख्शूँगा।”
\s5
\v 23 फिर ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 24 कि “क्या तू नहीं देखता कि ये लोग क्या कहते हैं कि 'जिन दो घरानों को ख़ुदावन्द ने चुना, उनको उसने रद्द कर दिया'? यूँ वह मेरे लोगों को हक़ीर जानते हैं कि जैसे उनके नज़दीक वह क़ौम ही नहीं रहे।
\s5
\v 25 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: अगर दिन और रात के साथ मेरा 'अहद न हो, और अगर मैंने आसमान और ज़मीन का निज़ाम मुक़र्रर न किया हो;
\v 26 तो मैं या'क़ूब की नसल को और अपने ख़ादिम दाऊद की नसल को रद्द कर दूँगा, ताकि मैं अब्रहाम और इस्हाक़ और या'क़ूब की नसल पर हुकूमत करने के लिए उसके फ़र्ज़न्दों में से किसी को न लूँ बल्कि मैं तो उनको ग़ुलामी से वापस लाऊँगा और उन पर रहम करूँगा।”
\s5
\c 34
\s सिदक़ियाह को खबरदार करना
\p
\v 1 जब शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र और उसकी तमाम फ़ौज और इस ज़मीन की तमाम सल्तनतें जो उसकी फरमाँरवाई में थीं, और सब क़ौमें येरूशलेम और उसकी सब बस्तियों के ख़िलाफ़ जंग कर रही थीं, तब ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह नबी पर नाज़िल हुआ
\v 2 कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: जा और शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह से कह दे, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं इस शहर को शाह — ए — बाबुल के हवाले कर दूंगा, और वह इसे आग से जलाएगा;
\v 3 और तू उसके हाथ से न बचेगा, बल्कि ज़रूर पकड़ा जाएगा और उसके हवाले किया जाएगा; और तेरी आँखें शाह — ए — बाबुल की आँखों को देखेंगी और वह सामने तुझ से बातें करेगा, और तू बाबुल को जाएगा।
\s5
\v 4 तो भी, ऐ शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह, ख़ुदावन्द का कलाम सुन; तेरे बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तू तलवार से क़त्ल न किया जाएगा।
\v 5 तू अम्न की हालत में मरेगा और जिस तरह तेरे बाप — दादा या'नी तुझ से पहले बादशाहों के लिए ख़ुशबू जलाते थे, उसी तरह तेरे लिए भी जलाएँगे, और तुझ पर नौहा करेंगे और कहेंगे, हाय, आक़ा! “क्यूँकि मैंने यह बात कही है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
\s5
\v 6 तब यरमियाह नबी ने यह सब बातें शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह से येरूशलेम में कहीं,
\v 7 जब कि शाह — ए — बाबुल की फ़ौज येरूशलेम और यहूदाह के शहरों से जो बच रहे थे, या'नी लकीस और 'अज़ीक़ाह से लड़ रही थी; क्यूँकि यहूदाह के शहरों में से यही हसीन शहर बाक़ी थे।
\s5
\v 8 वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ, जब सिदक़ियाह बादशाह ने येरूशलेम के सब लोगों से 'अहद — ओ — पैमान किया कि आज़ादी का 'ऐलान किया जाए।
\v 9 कि हर एक अपने ग़ुलाम को और अपनी लौंडी को, जो 'इब्रानी मर्द या 'औरत हो, आज़ाद कर दे कि कोई अपने यहूदी भाई से ग़ुलामी न कराए।
\s5
\v 10 और जब सब हाकिम और सब लोगों ने जो इस 'अहद में शामिल थे, सुना कि हर एक को लाज़िम है कि अपने ग़ुलाम और अपनी लौंडी को आज़ाद करे और फिर उनसे ग़ुलामी न कराए, तो उन्होंने इता'अत की और उनको आज़ाद कर दिया।
\v 11 लेकिन उसके बाद वह फिर गए और उन ग़ुलामों और लौंडियों को जिनको उन्होंने आज़ाद कर दिया था, फिर वापस ले आए और उनको ताबे' करके ग़ुलाम और लौंडियाँ बना लिया।
\s5
\v 12 इसलिए ख़ुदावन्द की तरफ़ से यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 13 कि ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि: मैंने तुम्हारे बाप — दादा से, जिस दिन मैं उनको मुल्क — ए — मिस्र से और ग़ुलामी के घर से निकाल लाया, यह 'अहद बाँधा,
\v 14 कि 'तुम में से हर एक अपने 'इब्रानी भाई को जो उसके हाथ बेचा गया हो, सात बरस के आख़िर में या'नी जब वह छ: बरस तक ख़िदमत कर चुके, तो आज़ाद कर दे; लेकिन तुम्हारे बाप — दादा ने मेरी न सुनी और कान न लगाया।
\s5
\v 15 और आज ही के दिन तुम रूजू' लाए, और वही किया जो मेरी नज़र में भला है कि हर एक ने अपने पड़ोसी को आज़ादी का मुज़दा दिया; और तुम ने उस घर में जो मेरे नाम से कहलाता है, मेरे सामने 'अहद बाँधा;
\v 16 लेकिन तुम ने नाफ़रमान हो कर मेरे नाम को नापाक किया, और हर एक ने अपने ग़ुलाम को और अपनी लौंडी को, जिनको तुमने आज़ाद करके उनकी मर्ज़ी पर छोड़ दिया था, फिर पकड़कर ताबे' किया कि तुम्हारे लिए ग़ुलाम और लौंडियाँ हों।
\s5
\v 17 “इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तुम ने मेरी न सुनी कि हर एक अपने भाई और अपने पड़ोसी को आज़ादी का मुज़दा सुनाए, देखो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मैं तुम को तलवार और वबा और काल के लिए आज़ादी का मुज़दा देता हूँ और मैं ऐसा करूँगा कि तुम इस ज़मीन की सब ममलुकतों में धक्के खाते फिरोगे।
\v 18 और मैं उन आदमियों को जिन्होंने मुझसे 'अहदशिकनी की और उस 'अहद की बातें, जो उन्होंने मेरे सामने बाँधा है पूरी नहीं कीं, जब बछड़े को दो टुकड़े किया और उन दो टुकड़ों के बीच से होकर गुज़रे;
\v 19 या'नी यहूदाह के और येरूशलेम के हाकिम और ख़्वाजासरा और काहिन और मुल्क के सब लोग जो बछड़े के टुकड़ों के बीच से होकर गुज़रे;
\s5
\v 20 हाँ, मैं उनको उनके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों के हवाले करूँगा, और उनकी लाशें हवाई परिन्दों और ज़मीन के दरिन्दों की ख़ुराक होंगी।
\v 21 और मैं शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह को और उसके हाकिम को, उनके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों और शाह — ए — बाबुल की फ़ौज के, जो तुम को छोड़कर चली गई, हवाले कर दूँगा।
\v 22 देखो, मैं हुक्म करूँगा ख़ुदावन्द फ़रमाता है और उनको फिर इस शहर की तरफ़ वापस लाऊँगा, और वह इससे लड़ेंगे और फ़तह करके आग से जलाएँगे; और मैं यहूदाह के शहरों को वीरान कर दूँगा कि ग़ैरआबाद हों।”
\s5
\c 35
\s भरोसेमंद रैकाबी
\p
\v 1 वह कलाम जो शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम — बिन — यूसियाह के दिनों में ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि “तू रैकाबियों के घर जा और उनसे कलाम कर, और उनको ख़ुदावन्द के घर की एक कोठरी में लाकर मय पिला।”
\s5
\v 3 तब मैंने याज़नियाह — बिन — यर्मियाह — बिन हबसिनयाह और उसके भाइयों और उसके सब बेटों और रैकाबियों के तमाम घराने को साथ लिया।
\v 4 और मैं उनको ख़ुदावन्द के घर में बनी हनान — बिन — यजदलियाह मर्द — ए — ख़ुदा की कोठरी में लाया, जो हाकिम की कोठरी के नज़दीक मासियाह — बिन — सलूम दरबान की कोठरी के ऊपर थी।
\s5
\v 5 और मैंने मय से लबरेज़ प्याले और जाम रैकाबियों के घराने के बेटों के आगे रख्खे और उनसे कहा, 'मय पियो।
\v 6 लेकिन उन्होंने कहा, हम मय न पियेंगे, क्यूँकि हमारे बाप यूनादाब — बिन — रैकाब ने हमको यूँ हुक्म दिया, 'तुम हरगिज़ मय न पीना; न तुम न तुम्हारे बेटे;
\v 7 और न घर बनाना, न बीज बोना, न ताकिस्तान लगाना, न उनके मालिक होना; बल्कि उम्र भर ख़ेमों में रहना ताकि जिस सरज़मीन में तुम मुसाफ़िर हो, तुम्हारी उम्र दराज़ हो।
\s5
\v 8 चुनाँचे हम ने अपने बाप यूनादाब — बिन — रैकाब की बात मानी; उसके हुक्म के मुताबिक़ हम और हमारी बीवियाँ और हमारे बेटे बेटियाँ कभी मय नहीं पीते।
\v 9 और हम न रहने के लिए घर बनाते और न ताकिस्तान और खेत और बीज रखते हैं।
\v 10 लेकिन हम ख़ेमों में बसे हैं, और हमने फ़रमाँबरदारी की और जो कुछ हमारे बाप यूनादाब ने हमको हुक्म दिया हम ने उस पर 'अमल किया है।
\v 11 लेकिन यूँ हुआ कि जब शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र इस मुल्क पर चढ़ आया, तो हम ने कहा कि 'आओ, हम कसदियों और अरामियों की फ़ौज के डर से येरूशलेम को चले जाएँ, यूँ हम येरूशलेम में बसते हैं।
\s5
\v 12 तब ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 13 कि 'रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: जा, और यहूदाह के आदमियों और येरूशलेम के बाशिन्दों से यूँ कह कि क्या तुम तरबियत पज़ीर न होगे कि मेरी बातें सुनो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है?
\v 14 जो बातें यूनादाब — बिन — रैकाब ने अपने बेटों को फ़रमाईं कि मय न पियो, वह बजा लाए और आज तक मय नहीं पीते, बल्कि उन्होंने अपने बाप के हुक्म को माना; लेकिन मैंने तुम से कलाम किया और वक़्त पर तुम को फ़रमाया, और तुम ने मेरी न सुनी।
\s5
\v 15 मैंने अपने तमाम ख़िदमतगुज़ार नबियों को तुम्हारे पास भेजा, और उनको वक़्त पर ये कहते हुए भेजा कि तुम हर एक अपनी बुरी राह से बाज़ आओ, और अपने 'आमाल को दुरुस्त करो और ग़ैर मा'बूदों की पैरवी और इबादत न करो, और जो मुल्क मैंने तुमको और तुम्हारे बाप — दादा को दिया है, तुम उसमें बसोगे; लेकिन तुम ने न कान लगाया न मेरी सुनी।
\v 16 इस वजह से कि यूनादाब बिन रैकाब के बेटे अपने बाप के हुक्म को जो उसने उनको दिया था बजा लाये लेकिन इन लोगों ने मेरी न सुनी।
\s5
\v 17 इसलिए ख़ुदावन्द, रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं यहूदाह पर और येरूशलेम के तमाम बाशिन्दों पर वह सब मुसीबत, जिसका मैंने उनके ख़िलाफ़ 'ऐलान किया है, लाऊँगा; क्यूँकि मैंने उनसे कलाम किया लेकिन उन्होंने न सुना, और मैंने उनको बुलाया पर उन्होंने जवाब न दिया।
\s5
\v 18 और यरमियाह ने रैकाबियों के घराने से कहा, 'रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: चूँकि तुमने अपने बाप यूनादाब के हुक्म को माना, और उसकी सब वसीयतों पर 'अमल किया है, और जो कुछ उसने तुम को फ़रमाया तुम बजा लाए;
\v 19 इसलिए रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: यूनादाब — बिन — रैकाब के लिए मेरे सामने में खड़े होने को कभी आदमी की कमी न होगी।
\s5
\c 36
\s बारूक का ख़ुदा के पैगाम को पढ़ना
\p
\v 1 शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम — बिन — यूसियाह के चौथे बरस में यह कलाम ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि “किताब का एक तूमार ले और वह सब कलाम जो मैंने इस्राईल और यहूदाह और तमाम क़ौमों के ख़िलाफ़ तुझ से किया, उस दिन से लेकर जब से मैं तुझ से कलाम करने लगा, या'नी यूसियाह के दिन से आज के दिन तक उसमें लिख।
\v 3 शायद यहूदाह का घराना उस तमाम मुसीबत का हाल जो मैं उन पर लाने का इरादा रखता हूँ सुने, ताकि वह सब अपनी बुरे चाल चलन से बाज़ आएँ; और मैं उनकी बदकिरदारी और गुनाह को मु'आफ़ करूँ।”
\s5
\v 4 तब यरमियाह ने बारूक — बिन — नेयिरियाह को बुलाया, और बारूक ने ख़ुदावन्द का वह सब कलाम जो उसने यरमियाह से किया था, उसकी ज़बानी किताब के उस तूमार में लिखा।
\v 5 और यरमियाह ने बारूक को हुक्म दिया और कहा, मैं तो मजबूर हूँ, मैं ख़ुदावन्द के घर में नहीं जा सकता;
\v 6 लेकिन तू जा और ख़ुदावन्द का वह कलाम जो तूने मेरे मुँह से इस तूमार में लिखा है, ख़ुदावन्द के घर में रोज़े के दिन लोगों को पढ़ कर सुना; और तमाम यहूदाह के लोगों को भी जो अपने शहरों से आए हों, तू वही कलाम पढ़ कर सुना।
\s5
\v 7 शायद वह ख़ुदा के सामने मिन्नत करें और सब के सब अपनी बुरे चाल चलन से बाज़ आएँ, क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर — ओ — ग़ज़ब जिसका उसने इन लोगों के ख़िलाफ़ 'ऐलान किया है, शदीद है।
\v 8 और बारूक — बिन — नेयिरियाह ने सब कुछ जैसा यरमियाह नबी ने उसको फ़रमाया था वैसा ही किया, और ख़ुदावन्द के घर में ख़ुदावन्द का कलाम उस किताब से पढ़ कर सुनाया।
\s5
\v 9 और शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम — बिन — यूसियाह के पाँचवें बरस के नौवें महीने में यूँ हुआ कि येरूशलेम के सब लोगों ने और उन सब ने जो यहूदाह के शहरों से येरूशलेम में आए थे, ख़ुदावन्द के सामने रोज़े का 'ऐलान किया।
\v 10 तब बारूक ने किताब से यरमियाह की बातें, ख़ुदावन्द के घर में जमरियाह — बिन — साफ़न मुन्शी की कोठरी में ऊपर के सहन के बीच, ख़ुदावन्द के घर के नये फाटक के मदख़ल पर सब लोगों के सामने पढ़ सुनाईं।
\s5
\v 11 जब मीकायाह — बिन — जमरियाह — बिनसाफ़न ने ख़ुदावन्द का वह सब कलाम जो उस किताब में था सुना,
\v 12 तो वह उतर कर बादशाह के घर मुन्शी की कोठरी में गया, और सब हाकिम या'नी इलीसमा' मुन्शी, और दिलायाह बिन समयाह और इलनातन बिन अकबूर और जमरियाह बिन साफ़न और सिदक़ियाह — बिन — हननियाह, और सब हाकिम वहाँ बैठे थे।
\s5
\v 13 तब मीकायाह ने वह सब बातें जो उसने सुनी थीं, जब बारूक किताब से पढ़ कर लोगों को सुनाता था, उनसे बयान कीं।
\v 14 और सब हाकिम ने यहूदी — बिन — नतनियाह — बिन — सलमियाह — बिन — कूशी को बारूक के पास यह कहकर भेजा, कि “वह तूमार जो तूने लोगों को पढ़कर सुनाया है, अपने हाथ में ले और चला आ।” तब बारूक — बिन — नेयिरियाह वह तूमार लेकर उनके पास आया।
\v 15 और उन्होंने उसे कहा, कि “अब बैठ जा और हमको यह पढ़ कर सुना।” और बारूक ने उनको पढ़कर सुनाया।
\s5
\v 16 जब उन्होंने वह सब बातें सुनीं, तो डरकर एक दूसरे का मुँह ताकने लगे और बारूक से कहा कि “हम यक़ीनन यह सब बातें बादशाह से बयान करेंगे।”
\v 17 और उन्होंने यह कह कर बारूक से पूछा, हम से कह कि तूने यह सब बातें उसकी ज़बानी क्यूँकर लिखीं?
\v 18 तब बारूक ने उनसे कहा, “वह यह सब बातें मुझे अपने मुँह से कहता गया और मैं स्याही से किताब में लिखता गया।”
\v 19 तब हाकिम ने बारूक से कहा, “जा, अपने आपको और यरमियाह को छिपा, और कोई न जाने कि तुम कहाँ हो।”
\s5
\v 20 और वह बादशाह के पास सहन में गए, लेकिन उस तूमार को इलीसमा' मुन्शी की कोठरी में रख गए, और वह बातें बादशाह को कह सुनाईं।
\v 21 तब बादशाह ने यहूदी को भेजा कि तूमार लाए, और वह उसे इलीसमा' मुन्शी की कोठरी में से ले आया। और यहूदी ने बादशाह और सब हाकिम को जो बादशाह के सामने खड़े थे, उसे पढ़कर सुनाया।
\v 22 और बादशाह ज़मिस्तानी महल में बैठा था, क्यूँकि नवाँ महीना था और उसके सामने अंगेठी जल रही थी।
\s5
\v 23 जब यहूदी ने तीन चार वर्क़ पढ़े, तो उसने उसे मुन्शी के क़लम तराश से काटा और अंगेठी की आग में डाल दिया, यहाँ तक कि तमाम तूमार अंगेठी की आग में भसम हो गया।
\v 24 लेकिन वह न डरे, न उन्होंने अपने कपड़े फाड़े, न बादशाह ने न उसके मुलाज़िमों में से किसी ने जिन्होंने यह सब बातें सुनी थीं।
\s5
\v 25 लेकिन इलनातन, और दिलायाह, और जमरियाह ने बादशाह से 'अर्ज़ की कि तूमार को न जलाए, लेकिन उसने उनकी एक न सुनी।
\v 26 और बादशाह ने शाहज़ादे यरहमिएल को और शिरायाह — बिन अज़रिएल और सलमियाह बिन अबदिएल को हुक्म दिया कि बारूक मुन्शी और यरमियाह नबी को गिरफ़्तार करें, लेकिन ख़ुदावन्द ने उनको छिपाया।
\s5
\v 27 और जब बादशाह तूमार और उन बातों को जो बारूक ने यरमियाह की ज़बानी लिखी थीं, जला चुका तो ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 28 कि “तू दूसरा तूमार ले, और उसमें वह सब बातें लिख जो पहले तूमार में थीं, जिसे शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम ने जला दिया।
\v 29 और शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम से कह कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: तूने तूमार को जला दिया और कहा है, तू ने उसमें यूँ क्यूँ लिखा कि शाह — ए — बाबुल यक़ीनन आएगा और इस मुल्क को हलाक करेगा, और न इसमें इंसान बाक़ी छोड़ेगा न हैवान?”
\s5
\v 30 इसलिए शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम के बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: उसकी नसल में से कोई न रहेगा जो दाऊद के तख़्त पर बैठे, और उसकी लाश फेंकी जाएगी, ताकि दिन की गर्मी में और रात को पाले में पड़ी रहे;
\v 31 और मैं उसको और उसकी नसल को और उसके मुलाज़िमों को उनकी बदकिरदारी की सज़ा दूँगा। मैं उन पर और येरूशलेम के बाशिन्दों पर और यहूदाह के लोगों पर वह सब मुसीबत लाऊँगा, जिसका मैंने उनके ख़िलाफ़ 'ऐलान किया लेकिन उन्होंने न सुना।
\s5
\v 32 तब यरमियाह ने दूसरा तूमार लिया और बारूक — बिन — नेयिरियाह मुन्शी को दिया, और उसने उस किताब की सब बातें जिसे शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम ने आग में जलाया था, यरमियाह की ज़बानी उसमें लिखीं और उनके अलावा वैसी ही और बहुत सी बातें उनमें बढ़ा दी गईं।
\s5
\c 37
\s सिदक़ियाह का यर्मयाह को बुलाना
\p
\v 1 और सिदक़ियाह बिन यूसियाह जिसको शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र ने मुल्क — ए — यहूदाह पर बादशाह मुक़र्रर किया था, कूनियाह बिन यहुयक़ीम की जगह बादशाही करने लगा।
\v 2 लेकिन न उसने, न उसके मुलाज़िमों ने, न मुल्क के लोगों ने ख़ुदावन्द की वह बातें सुनीं, जो उसने यरमियाह नबी के ज़रिए' फ़रमाई थीं।
\s5
\v 3 और सिदक़ियाह बादशाह ने यहूकल — बिन सलमियाह और सफ़नियाह — बिन — मासियाह काहिन के ज़रिए' यरमियाह नबी को कहला भेजा कि अब हमारे लिए ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा से दुआ कर।
\v 4 हुनूज़ यरमियाह लोगों के बीच आया जाया करता था, क्यूँकि उन्होंने अभी उसे क़ैदख़ाने में नहीं डाला था।
\v 5 इस वक़्त फ़िर'औन की फ़ौज ने मिस्र से चढ़ाई की; और जब कसदियों ने जो येरूशलेम का घिराव किए थे इसकी शोहरत सुनी, तो वहाँ से चले गए।
\s5
\v 6 तब ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह नबी पर नाज़िल हुआ:
\v 7 कि ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम शाह — ए — यहूदाह से जिसने तुम को मेरी तरफ़ भेजा कि मुझसे दरियाफ़्त करो, यूँ कहना कि देख, फ़िर'औन की फ़ौज जो तुम्हारी मदद को निकली है, अपने मुल्क — ए — मिस्र को लौट जाएगी।
\v 8 और कसदी वापस आकर इस शहर से लड़ेंगे, और इसे फ़तह करके आग से जलाएँगे।
\s5
\v 9 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तुम यह कह कर अपने आपको फ़रेब न दो, कसदी ज़रूर हमारे पास से चले जाएँगे, क्यूँकि वह न जाएँगे।
\v 10 और अगरचे तुम कसदियों की तमाम फ़ौज को जो तुम से लड़ती है, ऐसी शिकस्त देते कि उनमें से सिर्फ़ ज़ख़्मी बाक़ी रहते, तो भी वह सब अपने — अपने ख़ेमे से उठते और इस शहर को जला देते।
\s5
\v 11 और जब कसदियों की फ़ौज फ़िर'औन की फ़ौज के डर से येरूशलेम के सामने से रवाना हो गई,
\v 12 तो यरमियाह येरूशलेम से निकला कि बिनयमीन के 'इलाक़े में जाकर वहाँ लोगों के बीच अपना हिस्सा ले।
\v 13 और जब वह बिनयमीन के फाटक पर पहुँचा, तो वहाँ पहरेवालों का दारोग़ा था, जिसका नाम इर्रियाह — बिन — सलमियाह — बिन — हननियाह था, और उसने यरमियाह नबी को पकड़ा और कहा तू क़सदियों की तरफ़ भागा जाता है।
\s5
\v 14 तब यरमियाह ने कहा, यह झूट है; मैं कसदियों की तरफ़ भागा नहीं जाता हूँ, लेकिन उसने उसकी एक न सुनी; तब इर्रियाह यरमियाह को पकड़ कर हाकिम के पास लाया।
\v 15 और हाकिम यरमियाह पर ग़ज़बनाक हुए और उसे मारा, और यूनतन मुन्शी के घर में उसे क़ैद किया; क्यूँकि उन्होंने उस घर को क़ैदख़ाना बना रख्खा था।
\s5
\v 16 जब यरमियाह क़ैदख़ाने में और उसके तहख़ानों में दाख़िल होकर बहुत दिनों तक वहाँ रह चुका;
\v 17 तो सिदक़ियाह बादशाह ने आदमी भेजकर उसे निकलवाया, और अपने महल में उससे ख़ुफ़िया तौर से दरियाफ़्त किया कि “क्या ख़ुदावन्द की तरफ़ से कोई कलाम है?” और यरमियाह ने कहा है कि “क्यूँकि उसने फ़रमाया है कि तू शाह — ए — बाबुल के हवाले किया जाएगा।”
\s5
\v 18 और यरमियाह ने सिदक़ियाह बादशाह से कहा, मैंने तेरा, और तेरे मुलाज़िमों का, और इन लोगों का क्या गुनाह किया है कि तुमने मुझे क़ैदख़ाने में डाला है?
\v 19 अब तुम्हारे नबी कहाँ हैं, जो तुम से नबुव्वत करते और कहते थे, 'शाह — ए — बाबुल तुम पर और इस मुल्क पर चढ़ाई नहीं करेगा'?
\v 20 अब ऐ बादशाह, मेरे आक़ा मेरी सुन; मेरी दरख़्वास्त क़ुबूल फ़रमा और मुझे यूनतन मुन्शी के घर में वापस न भेज, ऐसा न हो कि मैं वहाँ मर जाऊँ।
\s5
\v 21 तब सिदक़ियाह बादशाह ने हुक्म दिया, और उन्होंने यरमियाह को क़ैदख़ाने के सहन में रख्खा; और हर रोज़ उसे नानबाइयों के महल्ले से एक रोटी ले कर देते रहे, जब तक कि शहर में रोटी मिल सकती थी। इसलिए यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में रहा।
\s5
\c 38
\s यर्मयाह कैदख़ाने में
\p
\v 1 फिर सफ़तियाह बिन मत्तान और जिदलियाह बिन फ़शहूर और यूकुल बिन सलमियाह और फ़शहूर बिन मलकियाह ने वह बातें जो यरमियाह सब लोगों से कहता था, सुनीं, वह कहता था,
\v 2 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: जो कोई इस शहर में रहेगा, वह तलवार और काल और वबा से मरेगा; और जो कसदियों में जा मिलेगा, वह ज़िन्दा रहेगा और उसकी जान उसके लिए ग़नीमत होगी और वह ज़िन्दा रहेगा।
\v 3 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: “यह शहर यक़ीनन शाह — ए — बाबुल की फ़ौज के हवाले कर दिया जाएगा और वह इसे ले लेगा।”
\s5
\v 4 इसलिए हाकिम ने बादशाह से कहा, हम तुझ से 'अर्ज़ करते हैं कि इस आदमी को क़त्ल करवा, क्यूँकि यह जंगी मर्दों के हाथों को, जो इस शहर में बाक़ी हैं और सब लोगों के हाथों को, उनसे ऐसी बातें कह कर सुस्त करता है। क्यूँकि यह शख़्स इन लोगों का ख़ैरख़्वाह नहीं, बल्कि बदचाहे है।
\v 5 तब सिदक़ियाह बादशाह ने कहा, वह तुम्हारे क़ाबू में है; क्यूँकि बादशाह तुम्हारे ख़िलाफ़ कुछ नहीं कर सकता।
\s5
\v 6 तब उन्होंने यरमियाह को पकड़ कर मलकियाह शाहज़ादे के हौज़ में, जो क़ैदख़ाने के सहन में था डाल दिया; और उन्होंने यरमियाह को रस्से से बाँध कर लटकाया। और हौज़ में कुछ पानी न था बल्कि कीच थी; और यरमियाह कीच में धंस गया।
\s5
\v 7 जब 'अब्द मलिक कूशी ने जो शाही महल के ख़्वाजासराओं में से था, सुना कि उन्होंने यरमियाह को हौज़ में डाल दिया है — जब कि बादशाह बिनयमीन के फाटक में बैठा था।
\v 8 तो 'अब्द मलिक बादशाह के महल से निकला और बादशाह से यूँ 'अर्ज़ की,
\v 9 कि “ऐ बादशाह, मेरे आक़ा, इन लोगों ने यरमियाह नबी से जो कुछ किया बुरा किया, क्यूँकि उन्होंने उसे हौज़ में डाल दिया है, और वह वहाँ भूक से मर जाएगा क्यूँकि शहर में रोटी नहीं है।”
\s5
\v 10 तब बादशाह ने 'अब्द मलिक कूशी को यूँ हुक्म दिया, कि “तू यहाँ से तीस आदमी अपने साथ ले, और यरमियाह नबी को इससे पहले कि वह मर जाए हौज़ में से निकाल।”
\v 11 और 'अब्द मलिक उन आदमियों को जो उसके पास थे, अपने साथ लेकर बादशाह के महल में ख़ज़ाने के नीचे गया, और पुराने चीथड़े और पुराने सड़े हुए लत्ते वहाँ से लिए और उनको रस्सियों के वसीले से हौज़ में यरमियाह के पास लटकाया।
\s5
\v 12 और 'अब्द मलिक कूशी ने यरमियाह से कहा कि इन पुराने चीथड़ों और सड़े हुए लत्तों को रस्सी के नीचे अपनी बगल तले रख। और यरमियाह ने वैसा ही किया।
\v 13 और उन्होंने रस्सियों से यरमियाह को खींचा और हौज़ से बाहर निकाला; और यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में रहा।
\s5
\v 14 तब सिदक़ियाह बादशाह ने यरमियाह नबी को ख़ुदावन्द के घर के तीसरे मदखल में अपने पास बुलाया; और बादशाह ने यरमियाह से कहा, मैं तुझ से एक बात पूछता हूँ, तू मुझसे कुछ न छिपा।
\v 15 और यरमियाह ने सिदक़ियाह से कहा, अगर मैं तुझ से खोलकर बयान करूँ, तो क्या तू मुझे यक़ीनन क़त्ल न करेगा? और अगर मैं तुझे सलाह दूँ, तो तू न मानेगा।
\v 16 तब सिदक़ियाह बादशाह ने यरमियाह के सामने तन्हाई में कहा, ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम, जो हमारी जानों का ख़ालिक़ है, कि न मैं तुझे क़त्ल करूँगा, और न उनके हवाले करूँगा जो तेरी जान के तलबगार हैं।
\s5
\v 17 तब यरमियाह ने सिदक़ियाह से कहा कि “ख़ुदावन्द, लश्करों का ख़ुदा, इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि: यक़ीनन अगर तू निकल कर शाह — ए — बाबुल के हाकिम के पास चला जाएगा, तो तेरी जान बच जाएगी और यह शहर आग से जलाया न जाएगा, और तू और तेरा घराना ज़िन्दा रहेगा।
\v 18 लेकिन अगर तू शाह — ए — बाबुल के हाकिम के पास न जाएगा, तो यह शहर कसदियों के हवाले कर दिया जाएगा, और वह इसे जला देंगे और तू उनके हाथ से रिहाई न पाएगा।”
\s5
\v 19 सिदक़ियाह बादशाह ने यरमियाह से कहा कि “मैं उन यहूदियों से डरता हूँ जो कसदियों से जा मिले हैं, ऐसा न हो कि वह मुझे उनके हवाले करें, और वह मुझ पर ता'ना मारें।”
\s5
\v 20 और यरमियाह ने कहा, वह तुझे हवाले न करेंगे; मैं तेरी मिन्नत करता हूँ, तू ख़ुदावन्द की बात, जो मैं तुझ से कहता हूँ मान ले। इससे तेरा भला होगा और तेरी जान बच जाएगी।
\v 21 लेकिन अगर तू जाने से इन्कार करे, तो यही कलाम है जो ख़ुदावन्द ने मुझ पर ज़ाहिर किया:
\s5
\v 22 कि देख, वह सब 'औरतें जो शाह — ए — यहूदाह के महल में बाक़ी हैं शाह — ए — बाबुल के हाकिम के पास पहुँचाई जाएँगी और कहेंगी कि तेरे दोस्तों ने तुझे फ़रेब दिया और तुझ पर ग़ालिब आए; जब तेरे पाँव कीच में धँस गए, तो वह उल्टे फिर गए।
\v 23 और वह तेरी सब बीवियों को, और तेरे बेटों को कसदियों के पास निकाल ले जाएँगे; और तू भी उनके हाथ से रिहाई न पाएगा, बल्कि शाह — ए — बाबुल के हाथ में गिरफ़्तार होगा और तू इस शहर के आग से जलाए जाने का ज़रिया' होगा।
\s5
\v 24 तब सिदक़ियाह ने यरमियाह से कहा कि इन बातों को कोई न जाने, तो तू मारा न जाएगा।
\v 25 लेकिन अगर हाकिम सुन लें कि मैंने तुझ से बातचीत की, और वह तेरे पास आकर कहें, कि जो कुछ तूने बादशाह से कहा, और जो कुछ बादशाह ने तुझ से कहा अब हम पर ज़ाहिर कर, यह हम से न छिपा और हम तुझे क़त्ल न करेंगे;
\v 26 तब तू उनसे कहना कि 'मैंने बादशाह से 'अर्ज़ की थी कि मुझे फिर यूनतन के घर में वापस न भेज कि वहाँ मरूँ।
\s5
\v 27 तब सब हाकिम यरमियाह के पास आए और उससे पूछा, और उसने इन सब बातों के मुताबिक़, जो बादशाह ने फ़रमाई थीं, उनको जवाब दिया। और वह उसके पास से चुप होकर चले गए; क्यूँकि असल मुआ'मिला उनको मा'लूम न हुआ।
\v 28 और जिस दिन तक येरूशलेम फ़तह न हुआ, यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में रहा, और जब येरूशलेम फ़तह हुआ तो वह वहीं था।
\s5
\c 39
\s यरूशलेम की बर्बादी
\p
\v 1 शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह के नवें बरस के दसवें महीने में, शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र अपनी तमाम फ़ौज लेकर येरूशलेम पर चढ़ आया और उसका घिराव किया।
\v 2 सिदक़ियाह के ग्यारहवें बरस के चौथे महीने की नवीं तारीख़ को शहर — की — फ़सील में रख़ना हो गया;
\v 3 और शाह — ए — बाबुल के सब सरदार या'नी नेयिरीगल सराज़र, समगर नबू, सरसकीम, ख़्वाजासराओ का सरदार नेयिरीगल सराज़र मजूसियों का सरदार और शाह — ए — बाबुल के बाक़ी सरदार दाख़िल हुए और बीच के फाटक पर बैठे।
\s5
\v 4 और शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह और सब जंगी मर्द उनको देख कर भागे, और दोनों दीवारों के बीच जो फाटक शाही बाग़ के बराबर था, उससे वह रात ही रात भाग निकले और वीराने की राह ली।
\v 5 लेकिन कसदियों की फ़ौज ने उनका पीछा किया और यरीहू के मैदान में सिदक़ियाह को जा लिया, और उसको पकड़ कर रिब्ला में शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र के पास हमात के 'इलाक़े में ले गए; और उसने उस पर फ़तवा दिया।
\s5
\v 6 और शाह — ए — बाबुल ने सिदक़ियाह के बेटों को रिब्ला में उसकी ऑखों के सामने ज़बह किया, और यहूदाह के सब शुरफ़ा को भी क़त्ल किया।
\v 7 और उसने सिदक़ियाह की आँखें निकाल डालीं और बाबुल को ले जाने के लिए उसे ज़ंजीरों से जकड़ा।
\s5
\v 8 और कसदियों ने शाही महल को और लोगों के घरों को आग से जला दिया, और येरूशलेम की फ़सील को गिरा दिया।
\v 9 इसके बाद जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान बाक़ी लोगों को, जो शहर में रह गए थे और उनको जो उसकी तरफ़ होकर उसके पास भाग आए थे, या'नी क़ौम के सब बाक़ी लोगों को ग़ुलाम करके बाबुल को ले गया।
\v 10 लेकिन क़ौम के ग़रीबों को जिनके पास कुछ न था, जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने यहूदाह के मुल्क में रहने दिया और उसी वक़्त उनको ताकिस्तान और खेत बख़्शे।
\s5
\v 11 और शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र ने यरमियाह के बारे में जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान को ताकीद करके यूँ कहा,
\v 12 कि “उसे लेकर उस पर ख़ूब निगाह रख, और उसे कुछ दुख न दे, बल्कि तू उससे वही कर जो वह तुझे कहे।”
\v 13 तब जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान, नाबूशज़बान ख़्वाजासराओं के सरदार, और नेयिरिगल सराज़र, मजूसियों के सरदार, और बाबुल के सब सरदारों ने आदमी भेजकर
\v 14 यरमियाह को क़ैदख़ाने के सहन से निकलवा लिया, और जिदलियाह — बिन — अख़ीक़ाम — बिन — साफ़न के सुपुर्द किया कि उसे घर ले जाए। इसलिए वह लोगों के साथ रहने लगा।
\s5
\v 15 और जब यरमियाह क़ैदख़ाने के सहन में बन्द था, ख़ुदावन्द का यह कलाम उस पर नाज़िल हुआ:
\v 16 कि “जा, 'अब्द मलिक कूशी से कह, 'रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं अपनी बातें इस शहर की भलाई कि लिए नहीं, बल्कि ख़राबी के लिए पूरी करूँगा; और वह उस रोज़ तेरे सामने पूरी होंगी।
\s5
\v 17 लेकिन उस दिन मैं तुझे रिहाई दुँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और तू उन लोगों के हवाले न किया जाएगा जिनसे तू डरता है।
\v 18 क्यूँकि मैं तुझे ज़रूर बचाऊँगा और तू तलवार से मारा न जाएगा, बल्कि तेरी जान तेरे लिए ग़नीमत होगी; इसलिए कि तूने मुझ पर भरोसा किया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
\s5
\c 40
\p
\v 1 वह कलाम जो ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ, इसके बाद के जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने उसको रामा से रवाना कर दिया, जब उसने उसे हथकड़ियों से जकड़ा हुआ उन सब ग़ुलामों के बीच पाया जो येरूशलेम और यहूदाह के थे, जिनको ग़ुलाम करके बाबुल को ले जा रहे थे
\v 2 और जिलौदारों के सरदार ने यरमियाह को लेकर उससे कहा, कि “ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने इस बला की, जो इस जगह पर आई ख़बर दी थी।
\s5
\v 3 इसलिए ख़ुदावन्द ने उसे नाज़िल किया, और उसने अपने क़ौल के मुताबिक़ किया; क्यूँकि तुम लोगों ने ख़ुदावन्द का गुनाह किया और उसकी नहीं सुनी, इसलिए तुम्हारा ये हाल हुआ।
\v 4 और देख, आज मैं तुझे इन हथकड़ियों से जो तेरे हाथों में हैं रिहाई देता हूँ। अगर मेरे साथ बाबुल चलना तेरी नज़र में बेहतर हो, तो चल, और मैं तुझ पर ख़ूब निगाह रखूँगा; और अगर मेरे साथ बाबुल चलना तेरी नज़र में बुरा लगे, तो यहीं रह; तमाम मुल्क तेरे सामने है जहाँ तेरा जी चाहे और तू मुनासिब जाने वहीं चला जा।”
\s5
\v 5 वह वहीं था कि उसने फिर कहा, तू जिदलियाह बिन अख़ीक़ाम बिन साफ़न के पास जिसे शाह — ए — बाबुल ने यहूदाह के शहरों का हाकिम किया है, चला जा और लोगों के बीच उसके साथ रह; वर्ना जहाँ तेरी नज़र में बेहतर हो वहीं चला जा। और जिलौदारों के सरदार ने उसे ख़ुराक और इन'आम देकर रुख़्सत किया।
\v 6 तब यरमियाह जिदलियाह — बिन — अख़ीक़ाम के पास मिस्फ़ाह में गया, और उसके साथ उन लोगों के बीच, जो उस मुल्क में बाक़ी रह गए थे रहने लगा।
\s जिदलियाह का यहूदाह में हाकिम बनना
\s5
\p
\v 7 जब लश्करों के सब सरदारों ने और उनके आदमियों ने जो मैदान में रह गए थे, सुना के शाह — ए — बाबुल ने जिदलियाह — बिन — अख़ीक़ाम को मुल्क का हाकिम मुक़र्रर किया है; और मर्दों और 'औरतों और बच्चों को, और ममलुकत के ग़रीबों को जो ग़ुलाम होकर बाबुल को न गए थे, उसके सुपुर्द किया है;
\v 8 तो इस्माईल — बिन — नतनियाह और यूहनान और यूनतन बनी क़रिह और सिरायाह — बिन — तनहुमत और बनी 'ईफ़ी नतुफ़ाती और यज़नियाह — बिन — मा'काती अपने आदमियों के साथ जिदलियाह के पास मिस्फ़ाह में आए।
\s5
\v 9 और जिद्लियाह — बिन — अख़ीक़ाम — बिन — साफ़न ने उन से और उन के आदमियों से क़सम खाकर कहा, तुम कसदियों की ख़िदमत गुज़ारी से न डरो। अपने मुल्क में बसो, और शाह — ए — बाबुल की ख़िदमत करो तो तुम्हारा भला होगा।
\v 10 देखो, मैं तो इसलिए मिस्फ़ाह में रहता हूँ कि जो कसदी हमारे पास आएँ, उनकी ख़िदमत में हाज़िर रहूँ पर तुम मय और ताबिस्तानी मेवे, और तेल जमा' करके अपने बर्तनों में रख्खो, और अपने शहरो में जिन पर तुम ने क़ब्ज़ा किया है बसो।
\s5
\v 11 और इसी तरह जब उन सब यहूदियों ने जो मोआब और बनी 'अम्मोन और अदोम' और तमाम मुमालिक में थे, सुना कि शाह — ए — बाबुल ने यहूदाह के चन्द लोगों को रहने दिया है, और जिदलियाह — बिन — अख़ीक़ाम — बिन — साफ़न को उन पर हाकिम मुक़र्रर किया है;
\v 12 तो सब यहूदी हर जगह से, जहाँ वह तितर — बितर किए गए थे, लौटे और यहूदाह के मुल्क में मिस्फ़ाह में जिदलियाह के पास आए, और मय और ताबिस्तानी मेवे कसरत से जमा' किए।
\s5
\v 13 और यूहनान — बिन — क़रीह और लश्करों के सब सरदार जो मैदानों में थे, मिस्फ़ाह में जिदलियाह के पास आए
\v 14 और उससे कहने लगे, क्या तू जानता है कि बनी 'अम्मोन के बादशाह बा'लीस ने इस्माईल — बिन — नतनियाह को इसलिए भेजा है कि तुझे क़त्ल करे? लेकिन जिदलियाह — बिन — अख़ीक़ाम ने उनका यक़ीन न किया।
\s5
\v 15 और यूहनान — बिन — क़रीह ने मिस्फ़ाह में जिदलियाह से तन्हाई में कहा, इजाज़त हो तो मैं इस्माईल — बिन — नतनियाह को क़त्ल करूँ, और इसको कोई न जानेगा; वह क्यूँ तुझे क़त्ल करे, और सब यहूदी जो तेरे पास जमा' हुए हैं, तितर — बितर किए जाएँ, और यहूदाह के बाक़ी मान्दा लोग हलाक हों?
\v 16 लेकिन जिदलियाह — बिन — अख़ीक़ाम ने यूहनान — बिन — क़रीह से कहा, तू ऐसा काम हरगिज़ न करना, क्यूँकि तू इस्माईल के बारे में झूट कहता है।
\s5
\c 41
\s जिदलियाह का कातिल
\p
\v 1 और सातवें महीने में यूँ हुआ कि इस्माईल बिन — नतनियाह — बिन — इलीसमा' जो शाही नसल से और बादशाह के सरदारों में से था, दस आदमी साथ लेकर जिदलियाह — बिन — अख़ीक़ाम के पास मिस्फ़ाह में आया; और उन्होंने वहाँ मिस्फ़ाह में मिल कर खाना खाया।
\v 2 तब इस्माईल — बिन — नतनियाह उन दस आदमियों के साथ जो उसके साथ थे उठा और जिदलियाह — बिन — अख़ीक़ाम बिन साफ़न को जिसे शाह — ए — बाबुल ने मुल्क का हाकिम मुक़र्रर किया था, तलवार से मारा और उसे क़त्ल किया।
\v 3 और इस्माईल ने उन सब यहूदियों को जो जिदलियाह के साथ मिस्फ़ाह में थे, और कसदी सिपाहियों को जो वहाँ हाज़िर थे क़त्ल किया।
\s5
\v 4 जब वह जिदलियाह को मार चुका, और किसी को ख़बर न हुई, तो उसके दूसरे दिन यूँ हुआ।
\v 5 कि सिकम और शीलोह और सामरिया से कुछ लोग जो सब के सब अस्सी आदमी थे, दाढ़ी मुंडाए और कपड़े फाड़े और अपने आपको घायल किए और हदिये और लुबान हाथों में लिए हुए वहाँ आए, ताकि ख़ुदावन्द के घर में पेश करें।
\s5
\v 6 और इस्माईल — बिन — नतनियाह मिस्फ़ाह से उनके इस्तक़बाल को निकला, और रोता हुआ चला; और यूँ हुआ कि जब वह उनसे मिला तो उनसे कहने लगा कि जिदलियाह बिन अख़ीक़ाम के पास चलो।
\v 7 और फिर जब वह शहर के वस्त में पहुँचे, तो इस्माईल — बिन — नतनियाह और उसके साथियों ने उनको क़त्ल करके हौज़ में फेंक दिया।
\s5
\v 8 लेकिन उनमें से दस आदमी थे जिन्होंने इस्माईल से कहा, हम को क़त्ल न कर, क्यूँकि हमारे गेहूँ और जौ और तेल और शहद के ज़ख़ीरे खेतों में पोशीदा हैं। इसलिए वह बाज़ रहा और उनको उनके भाइयों के साथ क़त्ल न किया।
\v 9 वह हौज़ जिसमें इस्माईल ने उन लोगों की लाशों को फेंका था, जिनको उसने जिदलियाह के साथ क़त्ल किया वही है जिसे आसा बदशाह ने शाह — ए — इस्राईल बाशा के डर से बनाया था और इस्मा'ईल — बिन — नतनियाह ने उसको मक़्तूलों की लाशों से भर दिया।
\s5
\v 10 तब इस्माईल बाक़ी सब लोगों को, या'नी शहज़ादियों और उन सब लोगों को जो मिस्फ़ाह में रहते थे जिनको जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने जिदलियाह — बिन — अख़ीक़ाम के सुपुर्द किया था, ग़ुलाम करके ले गया; इस्मा'ईल — बिन — नतनियाह उनको ग़ुलाम करके रवाना हुआ कि पार होकर बनी 'अम्मोन में जा पहुँचे।
\s5
\v 11 लेकिन जब यूहनान — बिन — क़रीह ने और लश्कर कि सब सरदारों ने जो उसके साथ थे, इस्माईल — बिन — नतनियाह की तमाम शरारत के बारे में जो उसने की थी सुना,
\v 12 तो वह सब लोगों को लेकर उससे लड़ने को गए और जिबा'ऊन के बड़े तालाब पर उसे जा लिया।
\s5
\v 13 और यूँ हुआ कि जब उन सब लोगों ने जो इस्माईल के साथ थे यूहनान — बिन — क़रीह को और उसके साथ सब फ़ौजी सरदारों को देखा, तो वह ख़ुश हुए।
\v 14 तब वह सब लोग जिनको इस्माईल मिस्फ़ाह से पकड़ ले गया था, पलटे और यूहनान — बिनक़रीह के पास वापस आए।
\s5
\v 15 लेकिन इस्माईल — बिन — नतनियाह आठ आदमियों के साथ यूहनान के सामने से भाग निकला और बनी 'अमोन की तरफ़ चला गया।
\v 16 तब यूहनान — बिन क़रीह और वह फ़ौजी सरदार जो उसके हमराह थे, सब बाक़ी मान्दा लोगों को वापस लाए, जिनको इस्माईल बिन नतनियाह जिदलियाह बिन — अख़ीक़ाम को क़त्ल करने के बाद मिस्फ़ाह से ले गया था या'नी जंगी मर्दों और 'औरतों और लड़कों और ख़्वाजासराओं को, जिनको वह जिबा'ऊन से वापस लाया था।
\s5
\v 17 और वह रवाना हुए और सराय — ए — किमहाम में जो बैतलहम के नज़दीक है, आ रहे ताकि मिस्र को जाएँ।
\v 18 क्यूँकि वह कसदियों से डरे; इसलिए कि इस्माईल — बिन — नतनियाह ने जिदलियाह — बिन — अख़ीक़ाम को, जिसे शाहए — बाबुल ने उस मुल्क पर हाकिम मुक़र्रर किया था, क़त्ल कर डाला।
\s5
\c 42
\s यहूदाह में रहने के लिये खबरदार करना
\p
\v 1 तब सब फ़ौजी सरदार और यूहनान बिन क़रीह और यजनियाह बिन हूसाइयाह और अदना — ओ — 'आला, सब लोग आए
\v 2 और यरमियाह नबी से कहा, तू देखता है कि हम बहुतों में से चन्द ही रह गए हैं; हमारी दरख़्वास्त क़ुबूल कर और अपने ख़ुदावन्द ख़ुदा से हमारे लिए, हाँ, इस तमाम बक़िये के लिए दुआ कर,
\v 3 ताकि ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, हमको, वह राह जिसमें हम चलें और वह काम जो हम करें बतला दे।
\s5
\v 4 तब यरमियाह नबी ने उनसे कहा, मैंने सुन लिया, देखो, अब मैं ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा से तुम्हारे कहने के मुताबिक़ दुआ करूँगा; और जो जवाब ख़ुदावन्द तुम को देगा, मैं तुम को सुनाऊँगा। मैं तुम से कुछ न छिपाऊँगा।
\v 5 और उन्होंने यरमियाह से कहा कि “जो कुछ ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा, तेरे ज़रिए' हम से फ़रमाए, अगर हम उस पर 'अमल न करें तो ख़ुदावन्द हमारे ख़िलाफ़ सच्चा और वफ़ादार गवाह हो।
\v 6 चाहे भला मा'लूम हो चाहे बुरा, हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा का हुक्म, जिसके सामने हम तुझे भेजते हैं मानेंगे; ताकि जब हम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की फ़रमाँबरदारी करें तो हमारा भला हो।”
\s5
\v 7 अब दस दिन के बाद यूँ हुआ कि ख़ुदावन्द का कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ।
\v 8 और उसने यूहनान — बिन — क़रीह और सब फ़ौजी सरदारों को जो उसके साथ थे, और अदना — ओ — आ'ला सबको बुलाया,
\v 9 और उनसे कहा, ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा, जिसके पास तुम ने मुझे भेजा कि मैं उसके सामने तुम्हारी दरख़्वास्त पेश करूँ, यूँ फ़रमाता है:
\v 10 अगर तुम इस मुल्क में ठहरे रहोगे, तो मैं तुम को बर्बाद नहीं बल्कि आबाद करूँगा और उखाड़ूँ नहीं लगाऊँगा, क्यूँकि मैं उस बुराई से जो मैंने तुम से की है बाज़ आया।
\s5
\v 11 शाह — ए — बाबुल से, जिससे तुम डरते हो, न डरो ख़ुदावन्द फ़रमाता है; उससे न डरो, क्यूँकि मैं तुम्हारे साथ हूँ कि तुम को बचाऊँ और उसके हाथ से छुड़ाऊँ।
\v 12 मैं तुम पर रहम करूँगा, ताकि वह तुम पर रहम करे और तुम को तुम्हारे मुल्क में वापस जाने की इजाज़त दे।
\s5
\v 13 लेकिन अगर तुम कहो कि 'हम फिर इस मुल्क में न रहेंगे,' और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात न मानेंगे;
\v 14 और कहो कि 'नहीं, हम तो मुल्क — ए — मिस्र में जाएँगे, जहाँ न लड़ाई देखेंगे न तुरही की आवाज़ सुनेंगे, न भूक से रोटी को तरसेंगे और हम तो वहीं बसेंगे,
\s5
\v 15 तो ऐ यहूदाह के बाक़ी लोगों, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो। रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: अगर तुम वाक़'ई मिस्र में जाकर बसने पर आमादा हो,
\v 16 तो यूँ होगा कि वह तलवार जिससे तुम डरते हो, मुल्क — ए — मिस्र में तुम को जा लेगी, और वह काल जिससे तुम हिरासान हो, मिस्र तक तुम्हारा पीछा करेगा और तुम वहीं मरोगे।
\v 17 बल्कि यूँ होगा कि वह सब लोग जो मिस्र का रुख़ करते हैं कि वहाँ जाकर रहें, तलवार और काल और वबा से मरेंगे:उनमें से कोई बाक़ी न रहेगा और न कोई उस बला से जो मैं उन पर नाज़िल करूँगा बचेगा।
\s5
\v 18 “क्यूँकि रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: जिस तरह मेरा क़हर — ओ — ग़ज़ब येरूशलेम के बाशिन्दों पर नाज़िल हुआ, उसी तरह मेरा क़हर तुम पर भी, जब तुम मिस्र में दाख़िल होगे, नाज़िल होगा और तुम ला'नत — ओ — हैरत और तान — ओ — तशनी' का ज़रिया' होगे; और इस मुल्क को तुम फिर न देखोगे।
\v 19 ऐ यहूदाह के बाक़ी मान्दा लोगों, ख़ुदावन्द ने तुम्हारे बारे में फ़रमाया है, कि 'मिस्र में न जाओ, यक़ीन जानो कि मैंने आज तुम को जता दिया है।
\s5
\v 20 हक़ीक़त में तुमने अपनी जानों को फ़रेब दिया है, क्यूँकि तुम ने मुझ को ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के सामने यूँ कहकर भेजा, कि 'तू ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा से हमारे लिए दुआ कर और जो कुछ ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा कहे, हम पर ज़ाहिर कर और हम उस पर 'अमल करेंगे।
\v 21 और मैंने आज तुम पर यह ज़ाहिर कर दिया है; तो भी तुमने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आवाज़ को, या किसी बात को जिसके लिए उसने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, नहीं माना।
\v 22 अब तुम यक़ीन जानो कि तुम उस मुल्क में जहाँ जाना और रहना चाहते हो, तलवार और काल और वबा से मरोगे।”
\s5
\c 43
\s यर्मयाह का मिस्र में ले जाना
\p
\v 1 और यूँ हुआ कि जब यरमियाह सब लोगों से वह सब बातें, जो ख़ुदावन्द उनके ख़ुदा ने उसके ज़रिए' फ़रमाईं थीं, या'नी यह सब बातें कह चुका,
\v 2 तो अज़रियाह बिन होसियाह और यूहनान बिन क़रीह और सब मग़रूर लोगों ने यरमियाह से यूँ कहा कि, तू झूट बोलता है; ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा ने तुझे यह कहने को नहीं भेजा, 'मिस्र में बसने को न जाओ,'
\v 3 बल्कि बारूक — बिन — नेयिरियाह तुझे उभारता है कि तू हमारे मुखालिफ़ हो, ताकि हम कसदियों के हाथ में गिरफ़्तार हों और वह हमको क़त्ल करें और ग़ुलाम करके बाबुल को ले जाएँ।
\s5
\v 4 तब यूहनान — बिन — क़रीह और सब फ़ौजी सरदारों और सब लोगों ने ख़ुदावन्द का यह हुक्म कि वह यहूदाह के मुल्क में रहें, न माना।
\v 5 लेकिन यूहनान — बिन — क़रीह और सब फ़ौजी सरदारों ने यहूदाह के सब बाक़ी लोगों को, जो तमाम क़ौमों में से जहाँ — जहाँ वह तितर — बितर किए गए थे और यहूदाह के मुल्क में बसने को वापस आए थे, साथ लिया;
\v 6 या'नी मर्दों और 'औरतों और बच्चों और शाहज़ादियों और जिस किसी को जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने जिदलियाह — बिन — अख़ीक़ाम — बिन — साफ़न के साथ छोड़ा था, और यरमियाह नबी और बारूक — बिन — नेयिरियाह को साथ लिया;
\v 7 और वह मुल्क — ए — मिस्र में आए, क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द का हुक्म न माना, इसलिए वह तहफ़नहीस में पहुँचे।
\s5
\v 8 तब ख़ुदावन्द का कलाम तहफ़नहीस में यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 9 कि बड़े पत्थर अपने हाथ में ले, और उनको फ़िर'औन के महल के मदख़ल पर जो तहफ़नहीस में है, बनी यहूदाह की आँखों के सामने चूने से फ़र्श में लगा;
\v 10 और उनसे कह कि 'रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है: देखो, मैं अपने ख़िदमत गुज़ार शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र को बुलाऊँगा, और इन पत्थरों पर जिनको मैंने लगाया है, उसका तख़्त रख्खूंगा, और वह इन पर अपना क़ालीन बिछाएगा।
\s5
\v 11 और वह आकर मुल्क — ए — मिस्र को शिकस्त देगा; और जो मौत के लिए हैं मौत के, और जो ग़ुलामी के लिए हैं ग़ुलामी के, और जो तलवार के लिए हैं तलवार के हवाले करेगा।
\v 12 और मैं मिस्र के बुतख़ानों में आग भड़काऊँगा, और वह उनको जलाएगा और ग़ुलाम करके ले जाएगा; और जैसे चरवाहा अपना कपड़ा लपेटता है, वैसे ही वह ज़मीन — ए — मिस्र को लपेटेगा; और वहाँ से सलामत चला जाएगा।
\v 13 और वह बैतशम्स के सुतूनों को, जो मुल्क — ए — मिस्र में हैं तोड़ेगा और मिस्रियों के बुतख़ानों को आग से जला देगा।
\s5
\c 44
\s बुत परस्ति के लिये सज़ा मिलना
\p
\v 1 वह कलाम जो उन सब यहूदियों के बारे में जो मुल्क — ए — मिस्र में मिजदाल के 'इलाक़े और तहफ़नीस और नूफ़ और फ़तरूस में बसते थे, यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
\v 2 कि 'रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम ने वह तमाम मुसीबत जो मैं येरूशलेम पर और यहूदाह के सब शहरों पर लाया हूँ, देखी; और देखो, अब वह वीरान और ग़ैर आबाद हैं।
\v 3 उस शरारत की वजह से जो उन्होंने मुझे गज़बनाक करने को की, क्यूँकि वह ग़ैर — मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाने को गए, और उनकी इबादत की जिनको न वह जानते थे, न तुम न तुम्हारे बाप — दादा।
\s5
\v 4 और मैंने अपने तमाम ख़िदमत — गुज़ार नबियों को तुम्हारे पास भेजा, उनको वक़्त पर यूँ कह कर भेजा कि तुम यह नफ़रती काम, जिससे मैं नफ़रत रखता हूँ, न करो।
\v 5 लेकिन उन्होंने न सुना, न कान लगाया कि अपनी बुराई से बाज़ आएँ, और ग़ैर — मा'बूदों के आगे ख़ुशबू न जलाएँ।
\v 6 इसलिए मेरा क़हर — ओ — ग़ज़ब नाज़िल हुआ, और यहूदाह के शहरों और येरूशलेम के बाज़ारों पर भड़का; और वह ख़राब और वीरान हुए जैसे अब हैं।
\s5
\v 7 और अब ख़ुदावन्द रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम क्यूँ अपनी जानों से ऐसी बड़ी बुराई करते हो, कि यहूदाह में से मर्द — ओ — ज़न और तिफ़्ल — ओ — शीर ख़्वार काट डालें जाएँ और तुम्हारा कोई बाक़ी न रहे;
\v 8 कि तुम मुल्क — ए — मिस्र में, जहाँ तुम बसने को गए हो, अपने 'आमाल से और ग़ैर — मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाकर मुझको ग़ज़बनाक करते हो, कि हलाक किए जाओ और इस ज़मीन की सब क़ौमों के बीच ला'नत — ओ — मलामत का ज़रिया' बनो।
\s5
\v 9 क्या तुम अपने बाप — दादा की शरारत और यहूदाह के बादशाहों और उनकी बीवियों की और ख़ुद अपनी और अपनी बीवियों की शरारत, जो तुम ने यहूदाह के मुल्क में और येरूशलेम के बाज़ारों में की, भूल गए हो?
\v 10 वह आज के दिन तक न फ़रोतन हुए, न डरे और मेरी शरी'अत — ओ — आईन पर, जिनको मैंने तुम्हारे और तुम्हारे बाप — दादा के सामने रख्खा, न चले।
\s5
\v 11 “इसलिए रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है: देखो, मैं तुम्हारे ख़िलाफ़ ज़ियानकारी पर आमादा हूँ ताकि तमाम यहूदाह को हलाक करूँ।
\v 12 और मैं यहूदाह के बाक़ी लोगों को, जिन्होंने मुल्क — ए — मिस्र का रुख़ किया है कि वहाँ जाकर बसें, पकड़ूँगा; और वह मुल्क — ए — मिस्र ही में हलाक होंगे, वह तलवार और काल से हलाक होंगे; उनके अदना — ओ — 'आला हलाक होंगे और वह तलवार और काल से फ़ना हो जाएँगे; और ला'नत — ओ — हैरत और ता'न — ओ — तशनी' का ज़रिया' होंगे।
\s5
\v 13 और मैं उनको जो मुल्क — ए — मिस्र में बसने को जाते हैं, उसी तरह सज़ा दूँगा जिस तरह मैंने येरूशलेम को तलवार और काल और वबा से सज़ा दी है;
\v 14 तब यहूदाह के बाक़ी लोगों में से, जो मुल्क — ए — मिस्र में बसने को जाते हैं, न कोई बचेगा, न बाक़ी रहेगा कि वह यहूदाह की सरज़मीन में वापस आएँ, जिसमें आकर बसने के वह मुश्ताक़ हैं; क्यूँकि भाग कर बच निकलने वालों के अलावा कोई वापस न आएगा।”
\s5
\v 15 तब सब मर्दों ने, जो जानते थे कि उनकी बीवियों ने ग़ैर — मा'बूदों के लिए ख़ुशबू जलायी है, और सब 'औरतों ने जो पास खड़ी थीं, एक बड़ी जमा'अत या'नी सब लोगों ने जो मुल्क — ए — मिस्र में फ़तरूस में जा बसे थे, यरमियाह को यूँ जवाब दिया:
\v 16 कि “यह बात जो तूने ख़ुदावन्द का नाम लेकर हम से कही, हम कभी न मानेंगे।
\v 17 बल्कि हम तो उसी बात पर 'अमल करेंगे, जो हम ख़ुद कहते हैं कि हम आसमान की मलिका के लिए ख़ुशबू जलाएँगे और तपावन तपाएँगे, जिस तरह हम और हमारे बाप — दादा, हमारे बादशाह और हमारे सरदार, यहूदाह के शहरों और येरूशलेम के बाज़ारों में किया करते थे; क्यूँकि उस वक़्त हम ख़ूब खाते — पीते और ख़ुशहाल और मुसीबतों से महफ़ूज़ थे।
\s5
\v 18 लेकिन जबसे हम ने आसमान की मलिका के लिए ख़ुशबू जलाना और तपावन तपाना छोड़ दिया, तब से हम हर चीज़ के मोहताज हैं, और तलवार और काल से फ़ना हो रहे हैं।
\v 19 और जब हम आसमान की मलिका के लिए ख़ुशबू जलाती और तपावन तपाती थीं, तो क्या हम ने अपने शौहरों के बग़ैर, उसकी इबादत के लिए कुल्चे पकाए और तपावन तपाए थे?”
\s5
\v 20 तब यरमियाह ने उन सब मर्दों और 'औरतों या'नी उन सब लोगों से, जिन्होंने उसे जवाब दिया था, कहा,
\v 21 “क्या वह ख़ुशबू, जो तुम ने और तुम्हारे बाप दादा और तुम्हारे बादशाहों और हाकिम ने र'इयत के साथ यहूदाह के शहरों और येरूशलेम के बाज़ारों में जलाया, ख़ुदावन्द को याद नहीं? क्या वह उसके ख़याल में नहीं आया?
\s5
\v 22 इसलिए तुम्हारे बद'आमाल और नफ़रती कामों की वजह से ख़ुदावन्द बर्दाश्त न कर सका; इसलिए तुम्हारा मुल्क वीरान हुआ और हैरत — ओ — ला'नत का ज़रिया' बना, जिसमें कोई बसने वाला न रहा, जैसा कि आज के दिन है।
\v 23 चूँकि तुम ने ख़ुशबू जलाया और ख़ुदावन्द के गुनाहगार ठहरे, और उसकी आवाज़ को न सुना और न उसकी शरी'अत, न उसके क़ानून, न उसकी शहादतों पर चले; इसलिए यह मुसीबत जैसी कि अब है, तुम पर आ पड़ी।”
\s5
\v 24 और यरमियाह ने सब लोगों और सब 'औरतों से यूँ कहा कि “ऐ तमाम बनी यहूदाह, जो मुल्क — ए — मिस्र में हो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो।
\v 25 रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: तुम ने और तुम्हारी बीवियों ने अपनी ज़बान से कहा कि 'आसमान की मलिका के लिए ख़ुशबू जलाने और तपावन तपाने की जो नज़्रें हम ने मानी हैं, ज़रूर अदा करेंगे, और तुमने अपने हाथों से ऐसा ही किया; इसलिए अब तुम अपनी नज़्रों को क़ाईम रख्खो और अदा करो
\s5
\v 26 इसलिए ऐ तमाम बनी यहूदाह, जो मुल्क — ए — मिस्र में बसते हो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो; देखो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है: मैंने अपने बुज़ुर्ग नाम की क़सम खाई है कि अब मेरा नाम यहूदाह के लोगों में तमाम मुल्क — ए — मिस्र में किसी के मुँह से न निकलेगा, कि वह कहें ज़िन्दा ख़ुदावन्द ख़ुदा की क़सम।
\v 27 देखो, मैं नेकी कि लिए नहीं, बल्कि बुराई के लिए उन पर निगरान हूँगा; और यहूदाह के सब लोग, जो मुल्क — ए — मिस्र में हैं, तलवार और काल से हलाक होंगे यहाँ तक कि बिल्कुल नेस्त हो जाएँगे।
\v 28 और वह जो तलवार से बचकर मुल्क — ए — मिस्र से यहूदाह के मुल्क में वापस आएँगे, थोड़े से होंगे और यहूदाह के तमाम बाक़ी लोग, जो मुल्क — ए — मिस्र में बसने को गए, जानेंगे कि किसकी बात क़ाईम रही, मेरी या उनकी।
\s5
\v 29 और तुम्हारे लिए यह निशान है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं इसी जगह तुम को सज़ा दूँगा, ताकि तुम जानो कि तुम्हारे ख़िलाफ़ मेरी बातें मुसीबत के बारे में यक़ीनन क़ाईम रहेंगी:
\v 30 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि देखो, मैं शाह — ए — मिस्र फ़िर'औन हुफ़रा' को उसके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों के हवाले कर दूँगा; जिस तरह मैंने शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह को शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र के हवाले कर दिया, जो उसका मुख़ालिफ़ और जानी दुश्मन था।”
\s5
\c 45
\s बारेक को पैगाम
\p
\v 1 शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम बिन यूसियाह के चौथे बरस में, जब बारूक — बिन — नेयिरियाह यरमियाह की ज़बानी कलाम की किताब में लिख रहा था, जो यरमियाह ने उससे कहा:
\v 2 “ऐ बारूक, ख़ुदावन्द, इस्राईल का ख़ुदा, तेरे बारे में यूँ फ़रमाता है:
\v 3 कि तूने कहा, 'मुझ पर अफ़सोस! कि ख़ुदावन्द ने मेरे दुख — दर्द पर ग़म भी बढ़ा दिया; मैं कराहते — कराहते थक गया और मुझे आराम न मिला।
\s5
\v 4 तू उससे यूँ कहना, कि ख़ुदावन्द फ़रमाता है: देख, इस तमाम मुल्क में, जो कुछ मैंने बनाया गिरा दूँगा, और जो कुछ मैंने लगाया उखाड़ फेकूँगा।
\v 5 और क्या तू अपने लिए उमूर — ए — 'अज़ीम की तलाश में है? उनकी तलाश छोड़ दे; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है: देख, मैं तमाम बशर पर बला नाज़िल करूँगा; लेकिन जहाँ कहीं तू जाए तेरी जान तेरे लिए ग़नीमत ठहराऊँगा।”
\s5
\c 46
\s मुल्कों को पैगाम
\p
\v 1 ख़ुदावन्द का कलाम जो यरमियाह नबी पर क़ौमों के बारे में नाज़िल हुआ।
\s मिस्र के बारे में पैगाम
\p
\v 2 मिस्र के बारे में शाह — ए — मिस्र फ़िर'औन निकोह की फ़ौज के बारे में जो दरिया — ए — फ़रात के किनारे पर करकिमीस में थी, जिसको शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र ने शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम — बिन — यूसियाह के चौथे बरस में शिकस्त दी:
\v 3 सिपर और ढाल को तैयार करो, और लड़ाई पर चले आओ।
\v 4 घोड़ों पर साज़ लगाओ; ऐ सवारो, तुम सवार हो और ख़ोद पहनकर निकलो, नेज़ों को सैक़ल करो, बक्तर पहिनो!
\s5
\v 5 मैं उनको घबराए हुए क्यूँ देखता हूँ? वह पलट गए; उनके बहादुरों ने शिकस्त खाई, वह भाग निकले और पीछे फिरकर नहीं देखते क्यूँकि चारों तरफ़ खौफ़ है ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 6 न सुबुकपा भागने पाएगा, न बहादुर बच निकलेगा; उत्तर में दरिया — ए — फ़रात के किनारे उन्होंने ठोकर खाई और गिर पड़े।
\s5
\v 7 'यह कौन है जो दरिया-ए-नील की तरह बढ़ा चला आता है, जिसका पानी सैलाब की तरह मौजज़न है?
\v 8 मिस्र दरिया-ए-नील की तरह उठता है, और उसका पानी सैलाब की तरह मौजज़न है; और वह कहता है, 'मैं चढ़ूँगा और ज़मीन को छिपा लूँगा मैं शहरों को और उनके बशिन्दों को हलाक कर दूँगा।
\v 9 घोड़े बरअन्गेख़ता हों, रथ हवा हो जाएँ, और कूश — ओ — फ़ूत के बहादुर जो सिपरबरदार हैं, और लूदी जो कमानकशी और तीरअन्दाज़ी में माहिर हैं, निकलें।
\s5
\v 10 क्यूँकि यह ख़ुदावन्द रब्ब — उल — अफ़वाज का दिन, या'नी इन्तक़ाम का रोज़ है, ताकि वह अपने दुश्मनों से इन्तक़ाम ले। इसलिए तलवार खा जाएगी और सेर होगी, और उनके ख़ून से मस्त होगी; क्यूँकि ख़ुदावन्द रब्ब — उल — अफ़वाज के लिए उत्तरी सरज़मीन में दरिया — ए — फ़रात के किनारे एक ज़बीहा है।
\s5
\v 11 ऐ कुँवारी दुख़्तर — ए — मिस्र, जिल'आद को चढ़ जा और बलसान ले, तू बे — फ़ायदा तरह तरह की दवाएँ इस्ते'माल करती है तू शिफ़ा न पाएगी।
\v 12 क़ौमों ने तेरी रुस्वाई का हाल सुना, और ज़मीन तेरी फ़रियाद से मा'मूर हो गई, क्यूँकि बहादुर एक दूसरे से टकराकर एक साथ गिर गए।
\s5
\v 13 वह कलाम जो ख़ुदावन्द ने यरमियाह नबी को शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र के आने और मुल्क — ए — मिस्र को शिकस्त देने के बारे में फ़रमाया:
\v 14 मिस्र में आशकारा करो, मिजदाल में इश्तिहार दो; हाँ, नूफ़ और तहफ़नहीस में 'ऐलान करो; कहो कि 'अपने आपको तैयार कर; क्यूँकि तलवार तेरी चारों तरफ़ खाये जाती है।
\s5
\v 15 तेरे बहादुर क्यूँ भाग गए? वह खड़े न रह सके, क्यूँकि ख़ुदावन्द ने उनको गिरा दिया।
\v 16 उसने बहुतों को गुमराह किया, हाँ, वह एक दूसरे पर गिर पड़े; और उन्होंने कहा, 'उठो, हम मुहलिक तलवार के ज़ुल्म से अपने लोगों में और अपने वतन को फिर जाएँ।
\v 17 वह वहाँ चिल्लाए कि 'शाह — ए — मिस्र फ़िर'औन बर्बाद हुआ; उसने मुक़र्ररा वक़्त को गुज़र जाने दिया।
\s5
\v 18 'वह बादशाह, जिसका नाम रब्ब — उल — अफ़वाज है, यूँ फ़रमाता है कि मुझे अपनी हयात की क़सम, जैसा तबूर पहाड़ों में और जैसा कर्मिल समन्दर के किनारे है, वैसा ही वह आएगा।
\v 19 ऐ बेटी, जो मिस्र में रहती है ग़ुलामी में जाने का सामान कर; क्यूँकि नूफ़ वीरान और भसम होगा, उसमें कोई बसने वाला न रहेगा।
\s5
\v 20 “मिस्र बहुत ख़ूबसूरत बछिया है; लेकिन उत्तर से तबाही आती है, बल्कि आ पहुँची।
\v 21 उसके मज़दूर सिपाही भी उसके बीच मोटे बछड़ों की तरह हैं; लेकिन वह भी शुमार हुए, वह इकट्ठे भागे, वह खड़े न रह सके; क्यूँकि उनकी हलाकत का दिन उन पर आ गया, उनकी सज़ा का वक़्त आ पहुँचा।
\v 22 'वह साँप की तरह चिलचिलाएगी; क्यूँकि वह फ़ौज लेकर चढ़ाई करेंगे, और कुल्हाड़े लेकर लकड़हारों की तरह उस पर चढ़ आएँगे।
\s5
\v 23 वह उसका जंगल काट डालेंगे, अगरचे वह ऐसा घना है कि कोई उसमें से गुज़र नहीं सकता ख़ुदावन्द फ़रमाता है क्यूँकि वह टिड्डियों से ज़्यादा बल्कि बेशुमार हैं।
\v 24 दुख़्तर — ए — मिस्र रुस्वा होगी, वह उत्तरी लोगों के हवाले की जाएगी।”
\s5
\v 25 रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, फ़रमाता है: देख, मैं आमून — ए — नो को, और फ़िर'औन और मिस्र और उसके मा'बूदों, और उसके बादशाहों को; या'नी फ़िर'औन और उनको जो उस पर भरोसा रखते हैं, सज़ा दूँगा;
\v 26 और मैं उनको उनके जानी दुश्मनों, और शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र और उसके मुलाज़िमों के हवाले कर दूँगा; लेकिन इसके बाद वह फिर ऐसी आबाद होगी, जैसी अगले दिनों में थी, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 27 लेकिन मेरे ख़ादिम या'क़ूब, हिरासाँ न हो; और ऐ इस्राईल, घबरा न जा; क्यूँकि देख, मैं तुझे दूर से, और तेरी औलाद को उनकी ग़ुलामी की ज़मीन से रिहाई दूँगा; और या'क़ूब वापस आएगा और आराम — ओ — राहत से रहेगा, और कोई उसे न डराएगा।
\v 28 ऐ मेरे ख़ादिम या'क़ूब, हिरासाँ न हो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ। अगरचे मैं उन सब क़ौमों को जिनमें मैंने तुझे हाँक दिया, हलाक — ओ — बर्बाद करूँ तों भी मै तुझे हलाक — ओ — बर्बाद न करूँगा; बल्कि मुनासिब तम्बीह करूँगा और हरगिज़ बे — सज़ा न छोड़ूँगा।
\s5
\c 47
\s फ़िलिस्ती के लिये पैगाम
\p
\v 1 ख़ुदावन्द का कलाम जो यरमियाह नबी पर फ़िलिस्तियों के बारे में नाज़िल हुआ, इससे पहले कि फ़िर'औन ने ग़ज़्ज़ा को फ़तह किया।
\v 2 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, उत्तर से पानी चढ़ेंगे और सैलाब की तरह होंगे, और मुल्क पर और सब पर जो उसमें है, शहर पर और उसके बाशिन्दों पर, बह निकलेंगे। उस वक़्त लोग चिल्लाएँगे, और मुल्क के सब बाशिन्दे फ़रियाद करेंगे।
\s5
\v 3 उसके ताकतवर घोड़ों के खुरों की टाप की आवाज़ से, उसके रथों के रेले और उसके पहियों की गड़गड़ाहट से बाप कमज़ोरी की वजह से अपने बच्चों की तरफ़ लौट कर न देखेंगे।
\v 4 यह उस दिन की वजह से होगा, जो आता है कि सब फ़िलिस्तियों को ग़ारत करे, और सूर और सैदा से हर मददगार को जो बाक़ी रह गया है हलाक करे; क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़िलिस्तियों को या'नी कफ़तूर के जज़ीरे के बाक़ी लोगों को ग़ारत करेगा।
\s5
\v 5 ग़ज़्ज़ा पर चन्दलापन आया है, अस्क़लोन अपनी वादी के बक़िये के साथ हलाक किया गया, तू कब तक अपने आप को काटता जाएगा
\v 6 “ऐ ख़ुदावन्द की तलवार, तू कब तक न ठहरेगी? तू चल, अपने ग़िलाफ़ में आराम ले, और साकिन हो!
\v 7 वह कैसे ठहर सकती है, जब कि ख़ुदावन्द ने अस्क़लोन और समन्दर के साहिल के ख़िलाफ़ उसे हुक्म दिया है? उसने उसे वहाँ मुक़र्रर किया है।”
\s5
\c 48
\s मोआब के लिये पैगाम
\p
\v 1 मोआब के बारे में। रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: नबू पर अफ़सोस, कि वह वीरान हो गया! क़रयताइम रुस्वा हुआ, और ले लिया गया; मिसजाब ख़जिल और पस्त हो गया।
\v 2 अब मोआब की ता'रीफ़ न होगी। हस्बोन में उन्होंने यह कह कर उसके ख़िलाफ़ मंसूबे बाँधे हैं कि: 'आओ, हम उसे बर्बाद करें कि वह क़ौम न कहलाए, ऐ मदमेन तू भी काट डाला जाएगा; तलवार तेरा पीछा करेगी।
\s5
\v 3 'होरोनायिम में चीख़ पुकार, 'वीरानी और बड़ी तबाही होगी।
\v 4 मोआब बर्बाद हुआ; उसके बच्चों के नौहे की आवाज़ सुनाई देती है।
\v 5 क्यूँकि लूहीत की चढ़ाई पर आह — ओ — नाला करते हुए चढ़ेंगे यक़ीनन होरोनायिम की उतराई पर मुख़ालिफ़ हलाकत के जैसी आवाज़ सुनते हैं।
\s5
\v 6 भागो! अपनी जान बचाओ! वीराने में रतमा के दरख़्त की तरह हो जाओ!
\v 7 और चूँकि तूने अपने कामों और ख़ज़ानों पर भरोसा किया इसलिए तू भी गिरफ़्तार होगा; और कमोस अपने काहिनों और हाकिम के साथ ग़ुलाम होकर जाएगा।
\s5
\v 8 और ग़ारतगर हर एक शहर पर आएगा, और कोई शहर न बचेगा; वादी भी वीरान होगी, और मैदान उजाड़ हो जाएगा; जैसा ख़ुदावन्द ने फ़रमाया है।
\v 9 मोआब को पर लगा दो, ताकि उड़ जाए क्यूँकि उसके शहर उजाड़ होंगे और उनमे कोई बसनेवाला न होगा।
\v 10 जो ख़ुदावन्द का काम बेपरवाई से करता है, और जो अपनी तलवार को ख़ूँरेज़ी से बाज़ रखता है, मला'ऊन हो।
\s5
\v 11 मोआब बचपन ही से आराम से रहा है, और उसकी तलछट तहनशीन रही, न वह एक बर्तन से दूसरे में उँडेला गया और न ग़ुलामी में गया; इसलिए उसका मज़ा उसमें क़ाईम है और उसकी बू नहीं बदली।
\v 12 इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं उण्डेलने वालों को उसके पास भेजूँगा कि वह उसे उलटाएँ; और उसके बर्तनों को ख़ाली और मटकों को चकनाचूर करें।
\s5
\v 13 तब मोआब कमोस से शर्मिन्दा होगा, जिस तरह इस्राईल का घराना बैतएल से जो उसका भरोसा था, ख़जिल हुआ।
\v 14 तुम क्यूँकर कहते हो, कि 'हम पहलवान हैं और जंग के लिए ज़बरदस्त सूर्मा हैं'?
\s5
\v 15 मोआब ग़ारत हुआ; उसके शहरों का धुवाँ उठ रहा है, और उसके चीदा जवान क़त्ल होने को उतर गए; वह बादशाह फ़रमाता है जिसका नाम रब्ब — उल — अफ़वाज है।
\v 16 नज़दीक है कि मोआब पर आफ़त आए, और उनका वबाल दौड़ा आता है।
\v 17 ऐ उसके आस — पास वालों, सब उस पर अफ़सोस करो; और तुम सब जो उसके नाम से वाक़िफ़ हो कहो कि यह मोटा 'असा और ख़ूबसूरत डंडा क्यूँकर टूट गया।
\s5
\v 18 ऐ बेटी, जो दीबोन में बसती है! अपनी शौकत से नीचे उतर और प्यासी बैठ; क्यूँकि मोआब का ग़ारतगर तुझ पर चढ़ आया है और उसने तेरे क़िलों' को तोड़ डाला।
\v 19 ऐ अरो'ईर की रहने वाली' तू राह पर खड़ी हो, और निगाह कर! भागने वाले से और उससे जो बच निकली हो; पूछ कि 'क्या माजरा है?'
\v 20 मोआब रुस्वा हुआ, क्यूँकि वह पस्त कर दिया गया, तुम वावैला मचाओ और चिल्लाओ! अरनोन में इश्तिहार दो, कि मोआब ग़ारत हो गया।
\s5
\v 21 और कि सहरा की अतराफ़ पर, होलून पर, और यहसाह पर, और मिफ़'अत पर,
\v 22 और दीबोन पर, और नबू पर, और बैत — दिब्बलताइम पर,
\v 23 और करयताइम पर, और बैत — जमूल पर, और बैत — म'ऊन पर,
\v 24 और करयोत पर, और बुसराह, और मुल्क — ए — मोआब के दूर — ओ — नज़दीक के सब शहरों पर 'ऐज़ाब नाज़िल हुआ है।
\v 25 मोआब का सींग काटा गया, और उसका बाज़ू तोड़ा गया, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 26 तुम उसको मदहोश करो, क्यूँकि उसने अपने आपको ख़ुदावन्द के सामने बुलन्द किया; मोआब अपनी क़य में लोटेगा और मस्ख़रा बनेगा।
\v 27 क्या इस्राईल तेरे आगे मस्ख़रा न था? क्या वह चोरों के बीच पाया गया कि जब कभी तू उसका नाम लेता था, तू सिर हिलाता था?
\s5
\v 28 “ऐ मोआब के बाशिन्दों, शहरों को छोड़ दो और चट्टान पर जा बसो; और कबूतर की तरह बनो जो गहरे ग़ार के मुँह के किनारे पर आशियाना बनाता है।
\v 29 हम ने मोआब का तकब्बुर सुना है, वह बहुत मग़रूर है, उसकी गुस्ताख़ी भी, और उसकी शेख़ी और उसका ग़ुरूर और उसके दिल का तकब्बुर
\s5
\v 30 मैं उसका क़हर जानता हूँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; वह कुछ नहीं और उसकी शेख़ी से कुछ बन न पड़ा।
\v 31 इसलिए मैं मोआब के लिए वावैला करूँगा; हाँ, सारे मोआब के लिए मैं ज़ार — ज़ार रोऊँगा; कोर हरस के लोगों के लिए मातम किया जाएगा।
\v 32 ऐ सिबमाह की ताक, मैं या'ज़ेर के रोने से ज़्यादा तेरे लिए रोऊँगा; तेरी शाख़ें समन्दर तक फैल गईं, वह या'ज़ेर के समन्दर तक पहुँच गईं, ग़ारतगर तेरे ताबिस्तानी मेवों पर और तेरे अंगूरों पर आ पड़ा है
\s5
\v 33 ख़ुशी और शादमानी हरे भरे खेतों से और मोआब के मुल्क से उठा ली गई; और मैंने अंगूर के हौज़ में मय बाक़ी नहीं छोड़ी, अब कोई ललकार कर न लताड़ेगा; उनका ललकारना, ललकारना न होगा।
\s5
\v 34 'हस्बोन के रोने से वह अपनी आवाज़ को इली'आली और यहज़ तक और ज़ुग़र से होरोनायिम तक 'इजलत शलीशियाह तक बुलन्द करते हैं; क्यूँकि नमरियम के चश्मे भी ख़राब हो गए हैं।
\v 35 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि जो कोई ऊँचे मक़ाम पर क़ुर्बानी चढ़ाता है, और जो कोई अपने मा'बूदों के आगे ख़ुशबू जलाता है, मोआब में से हलाक कर दूँगा।
\s5
\v 36 इसलिए मेरा दिल मोआब के लिए बाँसरी की तरह आहें भरता, और क़ीर हरस के लोगों के लिए शहनाओं की तरह फुग़ान करता है, क्यूँकि उसका फ़िरावान ज़ख़ीरा तलफ़ हो गया।
\v 37 हक़ीक़त में हर एक सिर मुंडा है, और हर एक दाढ़ी कतरी गई; हर एक के हाथ पर ज़ख्म है और हर एक की कमर पर टाट।
\s5
\v 38 मोआब के सब घरों की छतों पर और उसके सब बाज़ारों में बड़ा मातम होगा, क्यूँकि मैंने मोआब को उस बर्तन की तरह जो पसन्द न आए तोड़ा है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 39 वह वावैला करेंगे और कहेंगे, कि उसने कैसी शिकस्त खाई है! मोआब ने शर्म के मारे क्यूँकर अपनी पीठ फेरी! तब मोआब सब आस — पास वालों के लिए हँसी और ख़ौफ़ का ज़रिया' होगा।”
\s5
\v 40 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख, वह 'उक़ाब की तरह उड़ेगा और मोआब के ख़िलाफ़ बाज़ू फैलाएगा।
\v 41 वहाँ के शहर और क़िले' ले लिए जायेंगे और उस दिन मोआब के बहादुरों के दिल ज़च्चा के दिल की तरह होंगे।
\s5
\v 42 और मोआब हलाक किया जाएगा और क़ौम न कहलाएगा, इसलिए कि उसने ख़ुदावन्द के सामने अपने आपको बुलन्द किया।
\v 43 ख़ौफ़ और गढ़ा और दाम तुझ पर मुसल्लत होंगे, ऐ साकिन — ए — मोआब, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 44 जो कोई दहशत से भागे, गढ़े में गिरेगा, और जो गढ़े से निकले, दाम में फँसेगा; क्यूँकि मैं उन पर, हाँ, मोआब पर उनकी सियासत का बरस लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 45 “जो भागे, इसलिए हस्बोन के साये तले बेताब खड़े हैं; लेकिन हस्बोन से आग और सीहोन के वस्त से एक शो'ला निकलेगा और मोआब की दाढ़ी के कोने को और हर एक फ़सादी की चाँद को खा जाएगा।
\s5
\v 46 हाय, तुझ पर ऐ मोआब! कमोस के लोग हलाक हुए, क्यूँकि तेरे बेटों को ग़ुलाम करके ले गए और तेरी बेटियाँ भी ग़ुलाम हुईं।
\v 47 बावजूद इसके मैं आख़री दिनों में मोआब के ग़ुलामों को वापस लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।” मोआब की 'अदालत यहाँ तक हुई।
\s5
\c 49
\s अम्मोन के लिये पैगाम
\p
\v 1 बनी 'अम्मोन के बारे में ख़ुदावन्द का इन्साफ़ फ़रमाता है कि: क्या इस्राईल के बेटे नहीं हैं? क्या उसका कोई वारिस नहीं? फिर मिलकूम ने क्यूँ जद्द पर क़ब्ज़ा कर लिया, और उसके लोग उसके शहरों में क्यूँ बसते हैं?
\v 2 इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं बनी 'अम्मोन के रब्बह में लड़ाई का हुल्लड़ बर्पा करूँगा; और वह खंडर हो जाएगा और उसकी बेटियाँ आग से जलाई जाएँगी; तब इस्राईल उनका जो उसके वारिस बन बैठे थे, वारिस होगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 3 “ऐ हस्बोन, वावैला कर, कि 'ऐ बर्बाद की गई। ऐ रब्बाह की बेटियो, चिल्लाओ, और टाट ओढ़कर मातम करो और इहातों में इधर उधर दौड़ो, क्यूँकि मिलकूम ग़ुलामी में जाएगा और उसके काहिन और हाकिम भी साथ जाएँगे।
\v 4 तू क्यूँ वादियों पर फ़ख़्र करती है? तेरी वादी सेराब है, ऐ बरगश्ता बेटी, तू अपने ख़ज़ानों पर भरोसा करती है, कि 'कौन मुझ तक आ सकता है?'
\s5
\v 5 देख, ख़ुदावन्द, रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है: मैं तेरे सब इर्दगिर्द वालों का ख़ौफ़ तुझ पर ग़ालिब करूँगा; और तुम में से हर एक आगे हाँका जाएगा, और कोई न होगा जो आवारा फिरने वालों को जमा' करे।
\v 6 मगर उसके बाद मैं बनी 'अम्मोन को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
\s5
\v 7 अदोम के बारे में। रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: “क्या तेमान में ख़िरद मुतलक़ न रही? क्या तदबीरों की मसलहत जाती रही? क्या उनकी 'अक़्ल उड़ गई?
\v 8 ऐ ददान के बाशिन्दों, भागो, लौटो, और नशेबों में जा बसो! क्यूँकि मैं इन्तक़ाम के वक़्त उस पर ऐसौ की जैसी मुसीबत लाऊँगा।
\s5
\v 9 अगर अँगूर तोड़ने वाले तेरे पास आएँ, तो क्या कुछ दाने बाक़ी न छोड़ेंगे? या अगर रात को चोर आएँ, तो क्या वह हस्ब — ए — ख़्वाहिश ही न तोड़ेंगे?
\v 10 लेकिन मैं ऐसौ को बिल्कुल नंगा करूँगा, उसके पोशीदा मकानों को बे — पर्दा कर दूँगा कि वह छिप न सके; उसकी नसल और उसके भाई और उसके पड़ोसी सब बर्बाद किए जाएँगे, और वह न रहेगा।
\v 11 तू अपने यतीम फ़र्ज़न्दों को छोड़, मैं उनको ज़िन्दा रख्खूंगा; और तेरी बेवाएँ मुझ पर भरोसा करें।”
\s5
\v 12 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: कि “देख, जो सज़ावार न थे कि प्याला पीएँ, उन्होंने ख़ूब पिया; क्या तू बे — सज़ा छूट जाएगा? तू बेसज़ा न छूटेगा, बल्कि यक़ीनन उसमें से पिएगा।
\v 13 क्यूँकि मैंने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि बुसराह जा — ए — हैरत और मलामत और वीरानी और ला'नत होगा; और उसके सब शहर अबद — उल — आबाद वीरान रहेंगे।”
\s5
\v 14 मैंने ख़ुदावन्द से एक ख़बर सुनी है, बल्कि एक क़ासिद यह कहने को क़ौमों के बीच भेजा गया है: जमा' हो और उस पर जा पड़ो, और लड़ाई कि लिए उठो।
\v 15 क्यूँकि देख, मैंने तुझे क़ौमों के बीच हक़ीर, और आदमियों के बीच ज़लील किया।
\s5
\v 16 तेरी हैबत और तेरे दिल के ग़ुरूर ने तुझे फ़रेब दिया है। ऐ तू जो चट्टानों के शिगाफ़ों में रहती है, और पहाड़ों की चोटियों पर क़ाबिज़ है; अगरचे तू 'उक़ाब की तरह अपना आशियाना बुलन्दी पर बनाए, तो भी मैं वहाँ से तुझे नीचे उतारूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 17 “अदोम भी जा — ए — हैरत होगा, हर एक जो उधर से गुज़रेगा हैरान होगा, और उसकी सब आफ़तों की वजह से सुस्कारेगा।
\v 18 जिस तरह सदूम और 'अमूरा और उनके आस पास के शहर ग़ारत हो गए, उसी तरह उसमें भी न कोई आदमी बसेगा, न आदमज़ाद वहाँ सुकूनत करेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 19 देख, वह शेर — ए — बबर की तरह यरदन के जंगल से निकलकर मज़बूत बस्ती पर चढ़ आएगा; लेकिन मैं अचानक उसको वहाँ से भगा दूँगा, और अपने बरगुज़ीदा को उस पर मुक़र्रर करूँगा; क्यूँकि मुझ सा कौन है? कौन है जो मेरे लिए वक़्त मुक़र्रर करे? और वह चरवाहा कौन है जो मेरे सामने खड़ा हो सके?
\s5
\v 20 तब ख़ुदावन्द की मसलहत को, जो उसने अदोम के ख़िलाफ़ ठहराई है और उसके इरादे को जो उसने तेमान के बाशिन्दों के ख़िलाफ़ किया है, सुनो, उनके गल्ले के सबसे छोटों को भी घसीट ले जाएँगे, यक़ीनन उनका घर भी उनके साथ बर्बाद होगा।
\s5
\v 21 उनके गिरने की आवाज़ से ज़मीन काँप जाएगी, उनके चिल्लाने का शोर बहर — ए — कु़लजु़म तक सुनाई देगा।
\v 22 देख, वह चढ़ आएगा और 'उक़ाब की तरह उड़ेगा, और बुसराह के ख़िलाफ़ बाज़ू फैलाएगा; और उस दिन अदोम के बहादुरों का दिल ज़च्चा के दिल की तरह होगा।”
\s5
\v 23 दमिश्क़ के बारे में: “हमात और अरफ़ाद शर्मिन्दा हैं क्यूँकि उन्होंने बुरी ख़बर सुनी, वह पिघल गए समन्दर ने जुम्बिश खाई, वह ठहर नहीं सकता।
\v 24 दमिश्क़ का ज़ोर टूट गया, उसने भागने के लिए मुँह फेरा, और थरथराहट ने उसे आ लिया; ज़च्चा के से रंज — ओ — दर्द ने उसे आ पकड़ा।
\v 25 यह क्यूँकर हुआ कि वह नामवर शहर, मेरा शादमान शहर, नहीं बचा?
\s5
\v 26 इसलिए उसके जवान उसके बाज़ारों में गिर जाएँगे, और सब जंगी मर्द उस दिन काट डाले जाएँगे, रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है।
\v 27 और मैं दमिश्क़ की शहरपनाह में आग भड़काऊँगा, जो बिन — हदद के महलों को भसम कर देगी।”
\s5
\v 28 क़ीदार के बारे में और हसूर की सल्तनतों के बारे में जिनको शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र ने शिकस्त दी। ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: “उठो, क़ीदार पर चढ़ाई करो, और अहल — ए — मशरिक़ को हलाक करो।
\v 29 वह उनके ख़ेमों और गल्लों को ले लेंगे; उनके पर्दों और बर्तनों और ऊँटो को छीन ले जाएँगे; और वह चिल्ला कर उनसे कहेंगे कि चारों तरफ़ ख़ौफ़ है!”
\s5
\v 30 भागो, दूर निकल जाओ, नशेब में बसो, ऐ हसूर के बाशिन्दो, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; क्यूँकि शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र ने तुम्हारी मुखालिफ़त में मश्वरत की और तुम्हारे ख़िलाफ़ इरादा किया है।
\v 31 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उठो, उस आसूदा क़ौम पर, जो बे — फ़िक्र रहती है, जिसके न किवाड़े हैं न अड़बंगे और अकेली है चढ़ाई करो
\s5
\v 32 उनके ऊँट ग़नीमत के लिए होंगे, और उनके चौपायों की कसरत लूट के लिए; और मैं उन लोगों को जो गाओदुम दाढ़ी रखते हैं, हर तरफ़ हवा में तितर — बितर करूँगा; और मैं उन पर हर तरफ़ से आफ़त लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 33 हसूर गीदड़ों का मक़ाम, हमेशा का वीराना होगा; न कोई आदमी वहाँ बसेगा, और न कोई आदमज़ाद उसमें सुकूनत करेगा।
\s5
\v 34 ख़ुदावन्द का कलाम जो शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह की सल्तनत के शुरू' में 'ऐलाम के बारे में यरमियाह नबी पर नाज़िल हुआ।
\v 35 कि रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: देख मैं एलाम की कमान उनकी बड़ी तवानाई को तोड़ डालूँगा।
\v 36 और चारों हवाओं को आसमान के चारों कोनों से ऐलाम पर लाऊँगा, और उन चारों हवाओं की तरफ़ उनको तितर — बितर करूँगा; और कोई ऐसी क़ौम न होगी, जिस तक ऐलाम के जिलावतन न पहुँचेंगे।
\s5
\v 37 क्यूँकि मैं ऐलाम को उनके मुख़ालिफ़ों और जानी दुश्मनों के आगे हिरासाँ करूँगा; और उन पर एक बला या'नी क़हर — ए — शदीद को नाज़िल करूँगा। ख़ुदावन्द फ़रमाता है, और तलवार को उनके पीछे लगा दूँगा, यहाँ तक कि उनको नाबूद कर डालूँगा;
\v 38 और मैं अपना तख़्त 'ऐलाम में रखूंगा, और वहाँ से बादशाह और हाकिम को नाबूद करूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 39 “लेकिन आख़िरी दिनों में यूँ होगा, कि मैं ऐलाम को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।”
\s5
\c 50
\s बाबेलके लिये पैगाम
\p
\v 1 वह कलाम जो ख़ुदावन्द ने बाबुल और कसदियों के मुल्क के बारे में यरमियाह नबी की ज़रिए' फ़रमाया:
\v 2 क़ौमों में 'ऐलान करो, और इश्तिहार दो, और झण्डा खड़ा करो, 'ऐलान करो, पोशीदा न रख्खो; कह दो कि बाबुल ले लिया गया, बेल रुस्वा हुआ, मरोदक सरासीमा हो गया; उसके बुत ख़जिल हुए, उसकी मूरतें तोड़ी गईं।
\s5
\v 3 क्यूँकि उत्तर से एक क़ौम उस पर चढ़ी चली आती है, जो उसकी सरज़मीन को उजाड़ देगी, यहाँ तक कि उसमें कोई न रहेगा, वह भाग निकले, वह चल दिए, क्या इंसान क्या हैवान।
\v 4 'ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन दिनों में बल्कि उसी वक़्त बनी — इस्राईल आएँगे; वह और बनी यहूदाह इकट्ठे रोते हुए चलेंगे और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के तालिब होंगे।
\v 5 वह सिय्यून की तरफ़ मुतवज्जिह होकर उसकी राह पूछेंगे, 'आओ, हम ख़ुदावन्द से मिल कर उससे अबदी 'अहद करें, जो कभी फ़रामोश न हो।
\s5
\v 6 मेरे लोग भटकी हुई भेड़ों की तरह हैं; उनके चरवाहों ने उनको गुमराह कर दिया, उन्होंने उनको पहाड़ों पर ले जाकर छोड़ दिया; वह पहाड़ों से टीलों पर गए और अपने आराम का मकान भूल गए हैं।
\v 7 सब जिन्होंने उनको पाया उनको निगल गए, और उनके दुश्मनों ने कहा, हम क़ुसूरवार नहीं हैं क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द का गुनाह किया है; वह ख़ुदावन्द जो सदाक़त का मस्कन और उनके बाप — दादा की उम्मीदगाह है।
\s5
\v 8 बाबुल में से भागो, और कसदियों की सरज़मीन से निकलो, और उन बकरों की तरह हो जो गल्लों के आगे आगे चलते हैं।
\v 9 क्यूँकि देख, मैं उत्तर की सरज़मीन से बड़ी क़ौमों के अम्बोह को बर्पा करूँगा और बाबुल पर चढ़ा लाऊँगा, और वह उसके सामने सफ़ — आरा होंगे; वहाँ से उस पर क़ब्ज़ा कर लेंगे उनके तीरकार आज़मूदा बहादुर के से होंगे जो ख़ाली हाथ नहीं लौटता।
\v 10 कसदिस्तान लूटा जाएगा, उसे लूटने वाले सब आसूदा होंगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 11 ऐ मेरी मीरास को लूटनेवालों, चूँकि तुम शादमान और ख़ुश हो और दावने वाली बछिया की तरह कूदते फाँदते और ताक़तवर घोड़ों की तरह हिनहिनाते हो;
\v 12 इसलिए तुम्हारी माँ बहुत शर्मिन्दा होगी, तुम्हारी वालिदा ख़जालत उठाएगी। देखो, वह क़ौमों में सबसे आख़िरी ठहरेगी और वीरान — ओ — ख़ुश्क ज़मीन और रेगिस्तान होगी।
\v 13 ख़ुदावन्द के क़हर की वजह से वह आबाद न होगी, बल्कि बिल्कुल वीरान हो जाएगी; जो कोई बाबुल से गुज़रेगा हैरान होगा, और उसकी सब आफ़तों के बाइस सुस्कारेगा।
\s5
\v 14 ऐ सब तीरअन्दाज़ो, बाबुल को घेर कर उसके ख़िलाफ़ सफ़आराई करो, उस पर तीर चलाओ, तीरों को दरेग़ न करो, क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द का गुनाह किया है।
\v 15 उसे घेर कर तुम उस पर ललकारो, उसने इता'अत मन्ज़ूर कर ली; उसकी बुनियादें धंस गई, उसकी दीवारें गिर गई। क्यूँकि यह ख़ुदावन्द का इन्तक़ाम है, उससे इन्तक़ाम लो; जैसा उसने किया, वैसा ही तुम उससे करो।
\s5
\v 16 बाबुल में हर एक बोनेवाले को और उसे जो दिरौ के वक़्त दरॉती पकड़े, काट डालो; ज़ालिम की तलवार की हैबत से हर एक अपने लोगों में जा मिलेगा, और हर एक अपने वतन को भाग जाएगा।
\s5
\v 17 इस्राईल तितर — बितर भेड़ों की तरह है, शेरों ने उसे रगेदा है। पहले शाह — ए — असूर ने उसे खा लिया और फिर यह शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र उसकी हड्डियाँ तक चबा गया।
\v 18 इसलिए रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं शाह — ए — बाबुल और उसके मुल्क को सज़ा दूँगा, जिस तरह मैंने शाह — ए — असूर को सज़ा दी है।
\s5
\v 19 लेकिन मैं इस्राईल को फिर उसके घर में लाऊँगा, और वह कर्मिल और बसन में चरेगा, और उसकी जान कोह — ए — इफ़्राईम और जिल'आद पर आसूदा होगी।
\v 20 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन दिनों में और उसी वक़्त इस्राईल की बदकिरदारी ढूँडे न मिलेगी; और यहूदाह के गुनाहों का पता न मिलेगा जिनको मैं बाक़ी रखूँगा उनको मु'आफ़ करूँगा।
\s5
\v 21 मरातायम की सरज़मीन पर और फ़िक़ोद के बाशिन्दों पर चढ़ाई कर। उसे वीरान कर और उनको बिल्कुल नाबूद कर, ख़ुदावन्द फ़रमाता है; और जो कुछ मैंने तुझे फ़रमाया है, उस सब के मुताबिक़ 'अमल कर।
\v 22 मुल्क में लड़ाई और बड़ी हलाकत की आवाज़ है।
\s5
\v 23 तमाम दुनिया का हथौड़ा, क्यूँकर काटा और तोड़ा गया! बाबुल क़ौमों के बीच कैसा जा — ए — हैरत हुआ!
\v 24 मैंने तेरे लिए फन्दा लगाया, और ऐ बाबुल, तू पकड़ा गया, और तुझे ख़बर न थी। तेरा पता मिला और तू गिरफ़्तार हो गया, क्यूँकि तूने ख़ुदावन्द से लड़ाई की है।
\s5
\v 25 ख़ुदावन्द ने अपना सिलाहख़ाना खोला और अपने क़हर के हथियारों को निकाला है; क्यूँकि कसदियों की सरज़मीन में ख़ुदावन्द रब्ब — उल — अफ़वाज को कुछ करना है।
\v 26 सिरे से शुरू' करके उस पर चढ़ो, और उसके अम्बारख़ानों को खोलो, उसको खण्डर कर डालो और उसको बर्बाद करो, उसकी कोई चीज़ बाक़ी न छोड़ो।
\s5
\v 27 उसके सब बैलों को ज़बह करो, उनको मसलख़ में जाने दो; उन पर अफ़सोस! कि उनका दिन आ गया, उनकी सज़ा का वक़्त आ पहुँचा।
\v 28 सरज़मीन — ए — बाबुल से फ़रारियों की आवाज़! वह भागते और सिय्यून में ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के इन्तक़ाम, या'नी उसकी हैकल के इन्तक़ाम का ऐलान करते हैं।
\s5
\v 29 तीरअन्दाज़ों को बुलाकर इकट्ठा करो कि बाबुल पर जाएँ, सब कमानदारों को हर तरफ़ से उसके सामने ख़ेमाज़न करो। वहाँ से कोई बच न निकले, उसके काम के मुवाफ़िक़ उसको बदला दो। सब कुछ जो उसने किया उसे करों क्यूँकि उसने ख़ुदावन्द इस्राईल के क़ुद्दूस के सामने बहुत तकब्बुर किया।
\v 30 इसलिए उसके जवान बाज़ारों में गिर जाएँगे, और सब जंगी मर्द उस दिन काट डाले जाएँगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 31 ऐ मग़रूर, देख, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ ख़ुदावन्द रब्ब — उल — अफ़वाज फ़रमाता है क्यूँकि तेरा वक़्त आ पहुँचा, हाँ, वह वक़्त जब मैं तुझे सज़ा दूँ।
\v 32 और वह मग़रूर ठोकर खाएगा, वह गिरेगा और कोई उसे न उठाएगा; और मैं उसके शहरों में आग भड़काऊँगा, और वह उसके तमाम 'इलाक़े को भसम कर देगी।
\s5
\v 33 'रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: कि बनी — इस्राईल और बनी यहूदाह दोनों मज़लूम हैं; और उनको ग़ुलाम करने वाले उनको क़ैद में रखते हैं, और छोड़ने से इन्कार करते हैं।
\v 34 उनका छुड़ानेवाला ज़ोरआवर है; रब्ब — उल — अफ़वाज उसका नाम है; वह उनकी पूरी हिमायत करेगा ताकि ज़मीन को राहत बख़्शे, और बाबुल के बाशिन्दों को परेशान करे।
\s5
\v 35 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि तलवार कसदियों पर और बाबुल के बाशिन्दों पर, और उसके हाकिम और हुक्मा पर है।
\v 36 लाफ़ज़नों पर तलवार है, वह बेवकूफ़ हो जाएँगे; उसके बहादुरों पर तलवार है, वह डर जाएँगे।
\v 37 उसके घोड़ों और रथों और सब मिले — जुले लोगों पर जो उसमें हैं, तलवार है, वह 'औरतों की तरह होंगे; उसके ख़ज़ानों पर तलवार है, वह लूटे जाएँगे।
\s5
\v 38 उसकी नहरों पर ख़ुश्कसाली है, वह सूख जाएँगी; क्यूँकि वह तराशी हुई मूरतों की ममलुकत है और वह बुतों पर शेफ़्ता हैं।
\v 39 इसलिए दश्ती दरिन्दे गीदड़ों के साथ वहाँ बसेंगे और शुतुरमुर्ग उसमें बसेरा करेंगे, और वह फिर अबद तक आबाद न होगी, नसल — दर — नसल कोई उसमें सुकूनत न करेगा।
\v 40 जिस तरह ख़ुदा ने सदूम और 'अमूरा और उनके आसपास के शहरों को उलट दिया ख़ुदावन्द फ़रमाता है उसी तरह कोई आदमी वहाँ न बसेगा, न आदमज़ाद उसमें रहेगा।
\s5
\v 41 देख, उत्तरी मुल्क से एक गिरोह आती है; और इन्तिहा — ए — ज़मीन से एक बड़ी क़ौम और बहुत से बादशाह बरअन्गेख़ता किए जाएँगे।
\v 42 वह तीरअन्दाज़ — ओ — नेज़ा बाज़ हैं, वह संगदिल — ओ — बेरहम हैं, उनके ना'रों की आवाज़ हमेशा समन्दर की जैसी है, वह घोड़ों पर सवार हैं; ऐ दुख़्तर — ए — बाबुल, वह जंगी मर्दों की तरह तेरे सामने सफ़ — आराई करते हैं।
\s5
\v 43 शाह — ए — बाबुल ने उनकी शोहरत सुनी है, उसके हाथ ढीले हो गए, वह ज़च्चा की तरह मुसीबत और दर्द में गिरफ़्तार है।
\s5
\v 44 “देख, वह शेर — ए — बबर की तरह यरदन के जंगल से निकलकर मज़बूत बस्ती पर चढ़ आएगा; लेकिन मैं अचानक उसको वहाँ से भगा दूँगा, और अपने बरगुज़ीदा को उस पर मुक़र्रर करूँगा; क्यूँकि मुझ सा कौन है? कौन है जो मेरे लिए वक़्त मुक़र्रर करे? और वह चरवाहा कौन है जो मेरे सामने खड़ा हो सके?
\s5
\v 45 इसलिए ख़ुदावन्द की मसलहत को जो उसने बाबुल के ख़िलाफ़ ठहराई है, और उसके इरादे को जो उसने कसदियों की सरज़मीन के ख़िलाफ़ किया है, सुनो, यक़ीनन उनके गल्ले के सब से छोटों को भी घसीट ले जाएँगे; यक़ीनन उनका घर भी उनके साथ बर्बाद होगा।
\v 46 बाबुल की शिकस्त के शोर से ज़मीन काँपती है, और फ़रियाद को क़ौमों ने सुना है।”
\s5
\c 51
\p
\v 1 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं बाबुल पर और उस मुखालिफ़ दार — उस — सल्तनत के रहनेवालों पर एक मुहलिक हवा चलाऊँगा।
\v 2 और मैं उसाने वालों को बाबुल में भेजूँगा कि उसे उसाएँ, और उसकी सरज़मीन को ख़ाली करें; यक़ीनन उसकी मुसीबत के दिन वह उसके दुश्मन बनकर उसे चारों तरफ़ से घेर लेंगे।
\s5
\v 3 उसके कमानदारों और ज़िरहपोशों पर तीरअन्दाज़ी करो; तुम उसके जवानों पर रहम न करो, उसके तमाम लश्कर को बिल्कुल हलाक करो।
\v 4 मक़्तूल कसदियों की सरज़मीन में गिरेंगे, और छिदे हुए उसके बाज़ारों में पड़े रहेंगे।
\s5
\v 5 क्यूँकि इस्राईल और यहूदाह को उनके ख़ुदा रब्ब — उल — अफ़वाज ने तर्क नहीं किया; अगरचे इनका मुल्क इस्राईल के क़ुद्दूस की नाफ़रमानी से पुर है।
\v 6 बाबुल से निकल भागो, और हर एक अपनी जान बचाए, उसकी बदकिरदारी की सज़ा में शरीक होकर हलाक न हो, क्यूँकि यह ख़ुदावन्द के इन्तक़ाम का वक़्त है; वह उसे बदला देता है।
\s5
\v 7 बाबुल ख़ुदावन्द के हाथ में सोने का प्याला था, जिसने सारी दुनिया को मतवाला किया; क़ौमों ने उसकी मय पी, इसलिए वह दीवाने हैं।
\v 8 बाबुल अचानक गिर गया और ग़ारत हुआ, उस पर वावैला करो; उसके ज़ख़्म के लिए बलसान लो, शायद वह शिफ़ा पाए।
\s5
\v 9 हम तो बाबुल की शिफ़ायाबी चाहते थे लेकिन वह शिफ़ायाब न हुआ, तुम उसको छोड़ो, आओ, हम सब अपने अपने वतन को चले जाएँ, क्यूँकि उसकी आवाज़ आसमान तक पहुँची और अफ़लाक तक बुलन्द हुई।
\v 10 ख़ुदावन्द ने हमारी रास्तबाज़ी को आशकारा किया; आओ, हम सिय्यून में ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के काम का बयान करें।
\s5
\v 11 तीरों को सैक़ल करो, सिपरों को तैयार रख्खो; ख़ुदावन्द ने मादियों के बादशाहों की रूह को उभारा है, क्यूँकि उसका इरादा बाबुल को बर्बाद करने का है; क्यूँकि यह ख़ुदावन्द का, या'नी उसकी हैकल का इन्तक़ाम है।
\v 12 बाबुल की दीवारों के सामने झंडा खड़ा करो पहरे की चौकियाँ मज़बूत करो, पहरेदारों को बिठाओ, कमीनगाहें तैयार करो; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अहल — ए — बाबुल के हक़ में जो कुछ ठहराया और फ़रमाया था, इसलिए पूरा किया।
\s5
\v 13 ऐ नहरों पर सुकूनत करने वाली, जिसके ख़ज़ाने फ़िरावान हैं; तेरी तमामी का वक़्त आ पहुँचा और तेरी ग़ारतगरी का पैमाना पुर हो गया।
\v 14 रब्ब — उल — अफ़वाज ने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, कि यक़ीनन मैं तुझ में लोगों को टिड्डियों की तरह भर दूँगा, और वह तुझ पर जंग का नारा मारेंगे।
\s ख़ुदा की शुक्र करने के लिये गीत
\s5
\p
\v 15 उसी ने अपनी क़ुदरत से ज़मीन को बनाया, उसी ने अपनी हिकमत से जहाँ को क़ाईम किया, और अपनी 'अक़्ल से आसमान को तान दिया है;
\v 16 उसकी आवाज़ से आसमान में पानी की फ़िरावानी होती है, और वह ज़मीन की इन्तिहा से बुख़ारात उठाता है; वह बारिश के लिए बिजली चमकाता है और अपने ख़ज़ानों से हवा चलाता है।
\s5
\v 17 हर आदमी हैवान ख़सलत और बे — 'इल्म हो गया है, सुनार अपनी खोदी हुई मूरत से रुस्वा है; क्यूँकि उसकी ढाली हुई मूरत बातिल है, उनमें दम नहीं।
\v 18 वह बातिल — फ़े'ल — ए — फ़रेब हैं, सज़ा के वक़्त बर्बाद हो जाएँगी।
\v 19 या'क़ूब का हिस्सा उनकी तरह नहीं, क्यूँकि वह सब चीज़ों का ख़ालिक़ है और इस्राईल उसकी मीरास का 'असा है; रब्बउल — अफ़वाज उसका नाम है।
\s5
\v 20 तू मेरा गुर्ज़ और जंगी हथियार है, और तुझी से मैं क़ौमों को तोड़ता और तुझी से सल्तनतों को बर्बाद करता हूँ।
\v 21 तुझी से मैं घोड़े और सवार को कुचलता, और तुझी से रथ और उसके सवार को चूर करता हूँ;
\s5
\v 22 तुझी से मर्द — ओ — ज़न और पीर — ओ — जवान को कुचलता, और तुझ ही से नौखेंज़ लड़कों और लड़कियों को पीस डालता हूँ;
\v 23 और तुझी से चरवाहे और उसके गल्ले को कुचलता, और तुझी से किसान और उसके जोड़ी बैल को, और तुझी से सरदारों और हाकिमों को चूर — चूर कर देता हूँ।
\s5
\v 24 और मैं बाबुल को और कसदिस्तान के सब बाशिन्दों को उस तमाम नुक़्सान का, जो उन्होंने सिय्यून को तुम्हारी आँखों के सामने पहुँचाया है इवज़ देता हूँ ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 25 देख ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ऐ हलाक करने वाले पहाड़, जो तमाम इस ज़मीन को हलाक करता है, मैं तेरा मुख़ालिफ़ हूँ और मैं अपना हाथ तुझ पर बढ़ाऊँगा, और चट्टानों पर से तुझे लुढ़काऊँगा, और तुझे जला हुआ पहाड़ बना दूँगा।
\v 26 न तुझ से कोने का पत्थर, और न बुनियाद के लिए पत्थर लेंगे; बल्कि तू हमेशा तक वीरान रहेगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 27 'मुल्क में झण्डा खड़ा करो, क़ौमों में नरसिंगा फूँको उनको उसके ख़िलाफ़ मख़सूस करो अरारात और मिन्नी और अश्कनाज़ की ममलुकतों को उस पर चढ़ा लाओ; उसके ख़िलाफ़ सिपहसालार मुक़र्रर करो और सवारों को मुहलिक टिड्डियों की तरह चढ़ा लाओ।
\v 28 क़ौमों को मादियों के बादशाहों को और सरदारों और हाकिमों और उनकी सल्तनत के तमाम मुमालिक को मख़सूस करो कि उस पर चढ़ाई करें।
\s5
\v 29 और ज़मीन काँपती और दर्द में मुब्तिला है, क्यूँकि ख़ुदावन्द के इरादे बाबुल की मुखालिफ़त में क़ाईम रहेंगे, कि बाबुल की सरज़मीन को वीरान और ग़ैरआबाद कर दे।
\s5
\v 30 बाबुल के बहादुर लड़ाई से दस्तबरदार और क़िलों' में बैठे हैं, उनका ज़ोर घट गया, वह 'औरतों की तरह हो गए; उसके घर जलाए गए, उसके अड़बंगे तोड़े गए।
\v 31 हरकारा हरकारे से मिलने को और क़ासिद से मिलने को दौड़ेगा कि बाबुल के बादशाह को इत्तला दे, कि उसका शहर हर तरफ़ से ले लिया गया;
\v 32 और गुज़रगाहें ले ली गई, और नेस्तान आग से जलाए गए और फ़ौज हड़बड़ा गईं।
\s5
\v 33 क्यूँकि रब्ब — उल — अफ़वाज, इस्राईल का ख़ुदा, यूँ फ़रमाता है कि: दुख़्तर — ए — बाबुल खलीहान की तरह है, जब उसे रौंदने का वक़्त आए, थोड़ी देर है कि उसकी कटाई का वक़्त आ पहुँचेगा।
\s5
\v 34 “शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र ने मुझे खा लिया, उसने मुझे शिकस्त दी है, उसने मुझे ख़ाली बर्तन की तरह कर दिया अज़दहा की तरह वह मुझे निगल गया, उसने अपने पेट को मेरी ने'मतों से भर लिया; उसने मुझे निकाल दिया;
\v 35 सिय्यून के रहनेवाले कहेंगे, जो सितम हम पर और हमारे लोगों पर हुआ, बाबुल पर हो।” और येरूशलेम कहेगा, मेरा ख़ून अहल — ए — कसदिस्तान पर हो।
\s5
\v 36 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: देख, मैं तेरी हिमायत करूँगा और तेरा इन्तक़ाम लूँगा, और उसके बहर को सुखाऊँगा और उसके सोते को ख़ुश्क कर दूँगा;
\v 37 और बाबुल खण्डर हो जाएगा, और गीदड़ों का मक़ाम और हैरत और सुस्कार का ज़रिया' होगी और उसमें कोई न बसेगा।
\s5
\v 38 वह जवान बबरों की तरह इकटठे गरजेंगे, वह शेर बच्चों की तरह ग़ुर्राएँगे।
\v 39 उनकी हालत — ए — तैश में मैं उनकी ज़ियाफ़त करके उनको मस्त करूँगा, कि वह जद्द में आएँ और दाइमी ख़्वाब में पड़े रहें और बेदार न हों, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 40 मैं उनको बर्रों और मेंढों की तरह बकरों के साथ मसलख़ पर उतार लाऊँगा।
\s5
\v 41 शेशक क्यूँकर ले लिया गया! हाँ, तमाम रु — ए — ज़मीन का खम्बा यकबारगी ले लिया गया। बाबुल क़ौमों के बीच कैसा वीरान हुआ!
\v 42 समन्दर बाबुल पर चढ़ गया है, वह उसकी लहरों की कसरत से छिप गया।
\s5
\v 43 उसकी बस्तियाँ उजड़ गईं, वह ख़ुश्क ज़मीन और सहरा हो गया ऐसी सरज़मीन जिसमें न कोई बसता हो और न वहाँ आदमज़ाद का गुज़र हो।
\v 44 क्यूँकि मैं बाबुल में बेल को सज़ा दूँगा, और जो कुछ वह निगल गया है उसके मुँह से निकालूँगा, और फिर क़ौमें उसकी तरफ़ रवाँ न होंगी; हाँ, बाबुल की फ़सील गिर जाएगी।
\s5
\v 45 ऐ मेरे लोगों, उसमें से निकल आओ, और तुम में से हर एक ख़ुदावन्द के क़हर — ए — शदीद से अपनी जान बचाए।
\v 46 न हो कि तुम्हारा दिल सुस्त हो, और तुम उस अफ़वाह से डरो जो ज़मीन में सुनी जाएगी; एक अफ़वाह एक साल आएगी और फिर दूसरी अफ़वाह दूसरे साल में, और मुल्क में ज़ुल्म होगा और हाकिम हाकिम से लड़ेगा।
\s5
\v 47 इसलिए देख, वह दिन आते हैं कि मैं बाबुल की तराशी हुई मूरतों से इन्तक़ाम लूँगा और उसकी तमाम सरज़मीं रुस्वा होगी और उसके सब मक़्तूल उसी में पड़े रहेंगे।
\v 48 तब आसमान और ज़मीन और सब कुछ जो उनमें है, बाबुल पर शादियाना बजाएँगे; क्यूँकि ग़ारतगर उत्तर से उस पर चढ़ आएँगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 49 जिस तरह बाबुल में बनी — इस्राईल क़त्ल हुए, उसी तरह बाबुल में तमाम मुल्क के लोग क़त्ल होंगे।
\s5
\v 50 तुम जो तलवार से बच गए हो, खड़े न हो, चले जाओ! दूर ही से ख़ुदावन्द को याद करो, और येरूशलेम का ख़याल तुम्हारे दिल में आए।
\v 51 'हम परेशान हैं, क्यूँकि हम ने मलामत सुनी; हम शर्मआलूदा हुए, क्यूँकि ख़ुदावन्द के घर के हैकलों में अजनबी घुस आए।
\s5
\v 52 इसलिए देख, वह दिन आते हैं, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि मैं उसकी तराशी हुई मूरतों को सज़ा दूँगा; और उसकी तमाम सल्तनत में घायल कराहेंगे।
\v 53 हरचन्द बाबुल आसमान पर चढ़ जाए और अपने ज़ोर की इन्तिहा तक मुस्तहकम हो बैठे तो भी ग़ारतगर मेरी तरफ़ से उस पर चढ़ आएँगे, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\v 54 बाबुल से रोने की और कसदियों की सरज़मीन से बड़ी हलाकत की आवाज़ आती है।
\v 55 क्यूँकि ख़ुदावन्द बाबुल को ग़ारत करता है, और उसके बड़े शोर — ओ — ग़ुल को बर्बाद करेगा; उनकी लहरें समन्दर की तरह शोर मचाती हैं उनके शोर की आवाज़ बुलंद है;
\v 56 इसलिए कि ग़ारतगर उस पर, हाँ, बाबुल पर चढ़ आया है, और उसके ताक़तवर लोग पकड़े जायेंगे उनकी कमाने तोड़ी जायेंगी क्यूँकि ख़ुदावन्द इन्तक़ाम लेनेवाला ख़ुदा है, वह ज़रूर बदला लेगा।
\s5
\v 57 मैं हाकिम — ओ — हुक्मा को और उसके सरदारों और हाकिमों को मस्त करूँगा, और वह दाइमी ख़्वाब में पड़े रहेंगे और बेदार न होंगे, वह बादशाह फ़रमाता है, जिसका नाम रब्ब — उल — अफ़वाज है।
\v 58 “रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: बाबुल की चौड़ी फ़सील बिल्कुल गिरा दी जाएगी, और उसके बुलन्द फाटक आग से जला दिए जाएँगे। यूँ लोगों की मेहनत बे फ़ायदा ठहरेगी, और क़ौमों का काम आग के लिए होगा और वह मान्दा होंगे।”
\s5
\v 59 यह वह बात है, जो यरमियाह नबी ने सिरायाह — बिन — नेयिरियाह — बिन — महसियाह से कही, जब वह शाह — ए — यहूदाह सिदक़ियाह के साथ उसकी सल्तनत के चौथे बरस बाबुल में गया, और यह सिरायाह ख़्वाजासराओं का सरदार था।
\v 60 और यरमियाह ने उन सब आफ़तों को जो बाबुल पर आने वाली थीं, एक किताब में क़लमबन्द किया; या'नी इन सब बातों को जो बाबुल के बारे में लिखी गई हैं।
\s5
\v 61 और यरमियाह ने सिरायाह से कहा, कि “जब तू बाबुल में पहुँचे, तो' इन सब बातों को पढ़ना,
\v 62 और कहना, 'ऐ ख़ुदावन्द, तूने इस जगह की बर्बादी के बारे में फ़रमाया है कि मैं इसको बर्बाद करूँगा, ऐसा कि कोई इसमें न बसे, न इंसान न हैवान, लेकिन हमेशा वीरान रहे।
\s5
\v 63 और जब तू इस किताब को पढ़ चुके, तो एक पत्थर इससे बाँधना और फ़रात में फेंक देना;
\v 64 और कहना, 'बाबुल इसी तरह डूब जाएगा, और उस मुसीबत की वजह से जो मैं उस पर डाल दूँगा, फिर न उठेगा और वह मान्दा होंगे।” यरमियाह की बातें यहाँ तक हैं।
\s5
\c 52
\s यरुशलेम की बर्बादी
\p
\v 1 जब सिदक़ियाह सल्तनत करने लगा, तो इक्कीस बरस का था; और उसने ग्यारह बरस येरूशलेम में सल्तनत की, और उसकी माँ का नाम हमूतल था जो लिबनाही यरमियाह की बेटी थी।
\v 2 और जो कुछ यहूयक़ीम ने किया था, उसी के मुताबिक़ उसने भी ख़ुदावन्द की नज़र में बदी की।
\v 3 क्यूँकि ख़ुदावन्द के ग़ज़ब की वजह से येरूशलेम और यहूदाह की यह नौबत आई कि आख़िर उसने उनको अपने सामने से दूर ही कर दिया। और सिदक़ियाह शाह — ए — बाबुल से मुन्हरिफ़ हो गया।
\s5
\v 4 और उसकी सल्तनत के नवें बरस के दसवें महीने के दसवें दिन यूँ हुआ कि शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र ने अपनी सारी फ़ौज के साथ येरूशलेम पर चढ़ाई की, और उसके सामने खैमाज़न हुआ और उन्होंने उसके सामने हिसार बनाए।
\v 5 और सिदक़ियाह बादशाह की सल्तनत के ग्यारहवें बरस तक शहर का घिराव रहा।
\s5
\v 6 चौथे महीने के नवें दिन से शहर में काल ऐसा सख़्त हो गया कि मुल्क के लोगों के लिए ख़ुराक न रही।
\v 7 तब शहरपनाह में रख़ना हो गया, और दोनों दीवारों के बीच जो फाटक शाही बाग़ के बराबर था, उससे सब जंगी मर्द रात ही रात भाग गए इस वक़्त कसदी शहर को घेरे हुए थे और वीराने की राह ली।
\v 8 लेकिन कसदियों की फ़ौज ने बादशाह का पीछा किया, और उसे यरीहू के मैदान में जा लिया, और उसका सारा लश्कर उसके पास से तितर — बितर हो गया था।
\s5
\v 9 तब वह बादशाह को पकड़ कर रिब्ला में शाह — ए — बाबुल के पास हमात के 'इलाक़े में ले गए, और उसने सिदक़ियाह पर फ़तवा दिया।
\v 10 और शाह — ए — बाबुल ने सिदक़ियाह के बेटों को उसकी आँखों के सामने ज़बह किया, और यहूदाह के सब हाकिम को भी रिब्ला में क़त्ल किया।
\v 11 और उसने सिदक़ियाह की आँखें निकाल डालीं, और शाह — ए — बाबुल उसको ज़ंजीरों से जकड़ कर बाबुल को ले गया, और उसके मरने के दिन तक उसे क़ैदख़ाने में रख्खा।
\s5
\v 12 और शाह — ए — बाबुल नबूकदनज़र के 'अहद के उन्नीसवें बरस के पाँचवें महीने के दसवें दिन जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान, जो शाह — ए — बाबुल के सामने में खड़ा रहता था, येरूशलेम में आया।
\v 13 उसने ख़ुदावन्द का घर और बादशाह का महल और येरूशलेम के सब घर, या'नी हर एक बड़ा घर आग से जला दिया।
\v 14 और कसदियों के सारे लश्कर ने जो जिलौदारों के सरदार के हमराह था, येरूशलेम की फ़सील को चारों तरफ़ से गिरा दिया।
\s5
\v 15 और बाक़ी लोगों और मोहताजों को जो शहर में रह गए थे, और उनको जिन्होंने अपनों को छोड़कर शाह — ए — बाबुल की पनाह ली थी, और 'अवाम में से जितने बाक़ी रह गए थे, उन सबको नबूज़रादान जिलौदारों का सरदार ग़ुलाम करके ले गया।
\v 16 लेकिन जिलौदारों के सरदार नबूज़रादान ने मुल्क के कंगालों को रहने दिया, ताकि खेती और ताकिस्तानों की बागबानी करें।
\s5
\v 17 और पीतल के उन सुतूनों को जो ख़ुदावन्द के घर में थे, और कुर्सियों को और पीतल के बड़े हौज़ को, जो ख़ुदावन्द के घर में था, कसदियों ने तोड़कर टुकड़े टुकड़े किया और उनका सब पीतल बाबुल को ले गए।
\v 18 और देगें और बेल्चे और गुलगीर और लगन और चमचे और पीतल के तमाम बर्तन, जो वहाँ काम आते थे, ले गए।
\v 19 और बासन और अंगेठियाँ और लगन और देगें और शमा'दान और चमचे और प्याले ग़र्ज़ जो सोने के थे उनके सोने को, और जो चाँदी के थे उनकी चाँदी को जिलौदारों का सरदार ले गया।
\s5
\v 20 वह दो सुतून और वह बड़ा हौज़ और वह पीतल के बारह बैल जो कुर्सियों के नीचे थे, जिनको सुलेमान बादशाह ने ख़ुदावन्द के घर के लिए बनाया था; इन सब चीज़ों के पीतल का वज़्न बेहिसाब था।
\v 21 हर सुतून अट्ठारह हाथ ऊँचा था, और बारह हाथ का सूत उसके चारों तरफ़ आता था, और वह चार ऊंगल मोटा था; यह खोखला था।
\s5
\v 22 और उसके ऊपर पीतल का एक ताज था, और वह ताज पाँच हाथ बुलन्द था, उस ताज पर चारों तरफ़ जालियाँ और अनार की कलियाँ, सब पीतल की बनी हुई थीं, और दूसरे सुतून के लवाज़िम भी जाली के साथ इन्हीं की तरह थे।
\v 23 और चारों हवाओं के रुख़ अनार की कलियाँ छियानवे थीं, और चारों तरफ़ जालियों पर एक सौ थीं।
\s5
\v 24 और जिलौदारों के सरदार ने सिरायाह सरदार काहिन को, और काहिन — ए — सानी सफ़नियाह को, और तीनों दरबानों को पकड़ लिया;
\v 25 और उसने शहर में से एक सरदार को पकड़ लिया जो जंगी मर्दों पर मुक़र्रर था, और जो लोग बादशाह के सामने हाज़िर रहते थे, उनमें से सात आदमियों को जो शहर में मिले; और लश्कर के सरदार के मुहर्रिर को जो अहल — ए — मुल्क की मौजूदात लेता था; और मुल्क के आदमियों में से साठ आदमियों को जो शहर में मिले।
\s5
\v 26 इनको जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान पकड़कर शाह — ए — बाबुल के सामने रिब्ला में ले गया।
\v 27 और शाह — ए — बाबुल ने हमात के 'इलाक़े के रिब्ला में इनको क़त्ल किया। इसलिए यहूदाह अपने मुल्क से ग़ुलाम होकर चला गया।
\s5
\v 28 यह वह लोग हैं जिनको नबूकदनज़र ग़ुलाम करके ले गया: सातवें बरस में तीन हज़ार तेईस यहूदी,
\v 29 नबूकदनज़र के अट्ठारहवें बरस में वह येरूशलेम के बाशिन्दों में से आठ सौ बत्तीस आदमी ग़ुलाम करके ले गया,
\v 30 नबूकदनज़र के तेईसवें बरस में जिलौदारों का सरदार नबूज़रादान सात सौ पैंतालीस आदमी यहूदियों में से पकड़कर ले गया; यह सब आदमी चार हज़ार छ: सौ थे।
\s5
\v 31 और यहूयाकीन शाह — ए — यहूदाह की ग़ुलामी के सैतीसवें बरस के बारहवें महीने के पच्चीसवें दिन यूँ हुआ, कि शाह — ए — बाबुल ईवील मरूदक ने अपनी सल्तनत के पहले साल यहूयाकीन शाह — ए — यहूदाह को क़ैदख़ाने से निकालकर सरफ़राज़ किया;
\s5
\v 32 और उसके साथ मेहरबानी से बातें कीं, और उसकी कुर्सी उन सब बादशाहों की कुर्सियों से जो उसके साथ बाबुल में थे, बुलन्द की।
\v 33 वह अपने क़ैदख़ाने के कपड़े बदलकर उम्र भर बराबर उसके सामने खाना खाता रहा।
\v 34 और उसकी उम्र भर, या'नी मरने तक शाह — ए — बाबुल की तरफ़ से वज़ीफ़े के तौर पर हर रोज़ रसद मिलती रही।